रविवार, 6 जून 2021

सनातन धर्म की रक्षा के लिए अम्बेर रियासत का योगदान

24 नवंबर 1675 की तारीख गवाह बनी थी कुम्भी बैस वंशीय एक सिख सरदार के सरदार बने रहने की। दोपहर का समय और जगह चाँदनी चौक दिल्ली में लाल किले के सामने जब मुगलिया सल्तनत के सबसे नीच शासक की क्रूरता देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था, तब भी उस सनकी शासक के डर से लोग चुपचाप फैसले का इंतजार कर रहे थे। वह शासक मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा की छल पूर्वक हत्या करवाने वाला वह कायर था, जिसने सल्तनत के लिए अपने भाईयों की हत्या कर के अपने पिता और पुत्र तक को कारागार में डाल दिया था। वह नराधम इस्लाम के विस्तार के नाम पर अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए बाधक बन रहे सिखों के गुरू श्री तेग बहादुर सिंह जी के खिलाफ़ जो फैसला सुनाने वाला था, उसे जानने के लिए लोगों का जमघट काज़ी के उस मंच की ओर लगा हुआ था, जहाँ तेग बहादुर जी का फैसला होने वाला था। सबकी साँसे उस परिणाम को जानने के लिए अटकी हुई थी जिसके मुताबिक अगर गुरु तेग बहादुर जी इस्लाम कबूल कर लेते तब बिना किसी खून-खराबे के सभी सिखों को मुस्लिम बनना पड़ता। औरंगजेब के लिए भी उस दिन का फैसला इज्ज़त का सवाल था। क्या मुसलमान और क्या सिख? तेग बहादुर सिंह जी की पत्नी गुजरी मइया और उनके पोतों को काज़ी के हवाले करने वाले धूर्त ब्राह्मणों के साथ अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी राजपूतों पर छोड़ कर अपनी रोजी-रोटी में लिप्त निःशेष हिन्दुओं की भी सांसे उस दिन का फैसला सुनने के लिए अटकी हुई थी। अपने भाईयों के खून से हाथ धोने वाले बादशाह को देख कर भी सिखों के गुरु तेग बहादुर जी अपने आसन से नहीं उठे। सिखों के कारण मुसलमानों को अपना धर्म खतरे में दिख रहा था। छल, छद्म और क्रूरता के बल पर अपने धर्म के अनुयायियों का विस्तार करने वाले इस्लामिक हुकूमत का अस्तित्व खतरे में था तो दूसरी तरफ एक धर्म का सब कुछ दाव पर लगा हुआ था। ना कहते ही तेग बहादुर जी की गर्दन धर से अलग कर देने के लिए तैयार जल्लाद, काज़ी और औरंगजेब सहित हिन्दुस्तान को हिन्दुत्व विहीन कर देने के लिए तैयार नर पिशाचों से घिरे होने के बाद भी तेग बहादुर जी बेखौफ़ होकर आने वाले फैसले का इंतजार कर रहे थे। तय समय पर अदालती कारवाई शुरू हुआ और काज़ी ने सवाल किया-"तुम्हें हमारी शर्तें मंजूर हैं या नहीं? यदि तुम इस्लाम कबूल कर लोगे तब हमारी तरह ही तुम भी अपनी जमात के अगुआ बने रहोगे। तुम्हारी शान में कोई कमी नहीं आएगी। लेकिन अपनी जिद पर अड़े रहोगे तब काफ़िरों की तरह ही मारे जाओगे। तुम्हारे कारण तुम्हारा साथ देने वाले लोगों का भी यही अंजाम होगा। लेकिन यदि तुम इस्लाम को कबूल कर लोगे तब तुम्हारे साथ आने वाले लोग भी अपनी बर्बादी से बच जायेंगे। इसके लिए तुम्हें सल्तनत में एक ऊँचे ओहदे के साथ इनाम-इकराम भी दिलवा दूँगा। इसलिए सोच-समझकर जवाब दो। तुम्हें शाही जिन्दगी चाहिए या मौत? अपना जवाब हाँ या नहीं में देना। तुम्हें इस्लाम कबूल है या नहीं?" उस दिन की अदालती कारवाई का निर्णय तेग बहादुर जी के हाँ या ना पर निर्भर था। काज़ी सहित उस जगह पर स्थित कई शाही दरबारियों ने भी उन्हें हाँ कह देने के लिए मनाना चाहा था, मगर अम्बेर (आमेर) के राजा राम सिंह जिन्हें औरंगजेब के कारण ही अपने ज्येष्ठ पुत्र सरदार किशन सिंह बहादुर जी को बागी घोषित कर के सारे सम्बन्ध त्यागने के बाद भी अपनी रियासत से हाथ धोना पड़ा था, उनकी पकड़ तलवार की मूठ पर कसती जा रही थी। लेकिन परिस्थिति के कारण मजबूर होकर उन्हें भी काज़ी के फैसले का इंतजार करना पड़ा था। आखिर तेगबहादुर जी के इस्लाम स्वीकार करने से इंकार करते ही काज़ी ने उनका सिर कलम करने का फैसला लेते हुए उस पर तुरन्त अमल करने का आदेश दे दिया था। लेकिन तेग बहादुर सिंह जी परम प्रकाश के ध्यान में लीन होकर अपने धर्म पर अडिग रहे। आदेश सुनते ही आये दिन लोगों की कत्ल करने वाला जल्लाद भी अपनी मौत से बेपरवाह तेगबहादुर सिंह को बेखौफ़ ईश्वर के ध्यान में लीन देख कर तलवार उठाते समय काँप गया था। तेग बहादुर जी का सिर कटते ही अम्बेर के राजा राम सिंह! मुगलिया सल्तनत के साथ किये गये अपने पूर्वज़ों की सन्धि को तोड़ने का निर्णय ले चुके थे। ऐसे भी इसके लिए उन्हें औरंगजेब ने ही मजबूर किया था। पहले तो उसने सल्तनत के बादशाह शाहजहाँ के आदेश से दारा शूकोह का साथ देने के कारण उनके निर्दोष बेटे किशन सिंह जी को बागी घोषित कर उनकी जागीर और मालो-मकान सहित अम्बेर रियासत पर भी कब्जा कर के उनके पूर्वज़ों का महल खाली करने के लिए मजबूर कर दिया था। फिर उनके पिता मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा को ही अपने पौत्र किशन सिंह जी और दारा शूकोह को गिरफ्तार करने का आदेश देकर चारों दिशाओं में दौड़ा-दौड़ा कर परेशान किया था। फिर औरंगजेब ने ही दक्षिण अभियान में राजा जय सिंह जी के साथ भेजे हुए अपने आदमी के द्वारा उनके रात्रि भोजन में जहर डलवा कर छल पूर्वक हत्या करवाया था। उस घटना के पहले शाहजहाँ ने जब अपने पिता के खिलाफ़ बगावत किया था तब बादशाह जहाँगीर के आदेश पर मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा ने खुर्रम (शाहजहाँ) को गिरफ्तार कर के दरबार में पेश किया था। राजा जय सिंह बाबा के साथ हुए जंग में पराजित होकर गिरफ्तार किए जाने से हुई शर्मिन्दगी का बदला लेने के लिए शहजादा खुर्रम ने सल्तनत की बादशाहत हाथ में आते ही मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा के हाथों हुई हार का बदला लेने के लिए साजिशें रचने लगा था। मिर्ज़ा राजा जय सिंह जी के विरोध के बावजूद दुल्हे राय के नाम से मशहूर उनके पूर्वज़ राजा तेजकरण की याद में उनके पूर्वज़ों के द्वारा बनवाये गये तेजू महल पर जबरन कब्जा कर के शाहजहाँ नामक नामुराद ने उसमें अपनी बेगम का कब्रगाह बना दिया था।
सल्तनत के लिए हुए शहजादों की जंग में कई जंगों के अनुभवी और विजेता रह चुके उनके पिता राजा जय सिंह जी का ओहदा कम कर के उम्र में काफ़ी छोटे और अनुभवहीन जसवंत सिंह, सुलेमान शूकोह और दारा शूकोह जैसे लोगों के अधीन कर दिया था। सत्ता के लिए शाहजहाँ के शहजादों की जंग में अनुभवहीन और अहंकारी लोगों के अधीन रह कर शुजा, मुराद और औरंगजेब के विरुद्ध चलाये गये युद्ध अभियान में गलत नीतियों के कारण हुए हार का दोषारोपण भी उनके पिता मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा पर ही थोप कर उनको लगातार अपमानित करने का काम भी मुगलिया सल्तनत के लोगों ने ही किया था। पहले शाहजहाँ, दारा शूकोह और सुलेमान शुकोह और फिर औरंगजेब के द्वारा भी अपने पिता के अपमान की घटनाओं को याद करते हुए राजा राम सिंह भी अपने बेटे किशन सिंह की राह पर ही चलने का मन बना लिये थे। कहते हैं कि सिखों के गुरु तेग बहादुर सिंह की शहीदी की खबर सुनते ही औरंगजेब खुद चल कर उस जगह पर गया था, जहाँ गुरु तेग बहादुर जी का शीष कट कर गिरा हुआ था। जिस जगह पर तेग बहादुर जी का शीष कट कर गिरा था वहाँ पर आज शीषगंज गुरुद्वारा बना दिया गया है। जिस मस्जिद से कुरान की आयतें पढ़ कर यातना देने का फतवा जारी किया जाता था, वह मस्जिद भी उसी जगह पर है। दिल्ली के चाँदनी चौक में स्थित गुरुद्वारा शीष गंज कभी पूरे इस्लाम के लिये प्रतिष्ठा का विषय था। आखिरकार जब इस्लाम कबूल करवाने की जिद पर इसलाम ना कबूलने का हौसला अडिग रहा तब जल्लाद की तलवार चली थी और प्रकाश अपने स्त्रोत में समा कर लीन हो गया था। यह घटना भारत के इतिहास का एक ऐसा मोड़ था जिसने पूरे हिंदुस्तान का भविष्य बदलने से रोक दिया था। सिखों के गुरु तेग बहादुर जी जिन्होंने हिन्द की चादर बनकर तिलक और जनेऊ की रक्षा की थी उनके पुत्र और सिखों के अन्तिम गुरु गोविन्द सिंह जी के कहने पर सिखों ने अन्ततः जनेऊ को उतार फेंका तेग बहादुर सिंह तक को मूगलों के खिलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए प्रेरित करने वाले किशन सिंह बहादुर को इतिहासकारों ने भुला दिया है। मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा के पौत्र और राम सिंह के ज्येष्ठ पुत्र किशन सिंह धोला रियासत के जागिरदार और आमेर रियासत के उत्तराधिकारी तो थे ही दारा शूकोह के मित्र और मुख्य सेवक भी थे। अपने अदम्य साहस से औरंगजेब के खिलाफ़ धर्म युद्ध छेड़ने वाले वे पहले योद्धा थे, जिन्होंने धरमत की लड़ाई में औरंगजेब से पराजित होकर युद्ध क्षेत्र से भागे हुए दारा शूकोह का साथ देने के लिए शाहजहाँ के द्वारा मदद माँगने और अपने पिता के द्वारा शाहजहाँ की मदद करने के आदेश का पालन करने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था। आज तेग बहादुर सिंह जी और उनके पुत्र गुरु गोविन्द सिंह जी के वंश में कोई नहीं बचा है, जबकि दरगाही बाबा और लङ्गरा बाबा के नाम से प्रसिद्ध सरदार किशन सिंह बहादुर जी के वंशज़ अपनी जनेऊ और अपने परम्परिक रीति-रिवाजों के साथ आज भी आबाद हैं। धर्म रक्षार्थ जिस राजकुमार ने अपना सर्वस्व त्याग दिया, उन्हें अपनी जनेऊ पर इतराने वाले हिन्दुओं ने भी भुला दिया है। इनकी समाधि पटना में गङ्गा नदी के किनारे गाय घाट में स्थित श्री चन्द्र उदासी मठ के मुख्य द्वार के सामने आज भी स्थित है और स्थानीय लोगों में दरगाही बाबा की समाधि के नाम से प्रसिद्ध है। शाहजहाँ के दरबार में अपने पिता राजा राम सिंह के वकील के रूप में नियुक्त किये जाने के कारण ये आम लोगों में दरगाही बाबा के नाम से तो अपने साथी हिन्दुओं के लिए लङ्गर लगाने के कारण लङ्गरा बाबा के नाम से भी पहचाने जाते हैं। मैं इन्हीं का वंशज़ हूँ तथा आज भी हमारे वंशजों का घराना! लङ्गरा बाबा किशन सिंह का घराना कहलाता है। दादर के सूबेदार मलिक जीवन की हवेली के पास दारा शूकोह के साथ गिरफ्तार हुए किशन सिंह जी को मलिक जीवन और मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा की मदद से मुक्त कर के अपने परिवार के साथ भगा दिया गया था। 1659 ईस्वी में नांदेड़ से होते हुए पटना की ओर आते समय बाबा किशन सिंह जी के ज्येष्ठ पुत्र भेदिया के रूप में घुम रहे औरंगजेब के गुप्तचरों से बचने-बचाने के प्रयास में अपनी टोली से भटक कर नांदेड़ में स्थित अपने पूर्वज़ महाराजा भगवन्त दास के छोटे भाई भगवान दास की हवेली में शरण लिये थे। संयोग से वहीं पर गुरु गोविन्द सिंह से मुलाकात होने के बाद पटना में रह रहे अपने परिजनों के बारे में जानकारी मिल पायी थी। उस दौरान मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा और राजा राम सिंह जी के द्वारा भी गुप्त रूप से इन लोगों को आर्थिक सहायता दी जाती थी। जिसकी सूचना मिलने पर औरंगजेब ने उन दोनों के पीछे अपना गुप्तचर लगा दिया था। उन गुप्तचरों में एक ब्राह्मण जाति का वह कर्मचारी भी था जो मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा का भोजन बनाने और पड़ोसने की जिम्मेवारी सम्भालता था। उसी ने मध्यप्रदेश के बुरहानपुर में रात्रि भोजन के समय मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा को विषयुक्त भोजन परोस दिया था। जिसे खाते ही उनकी तबीयत खराब हुई और भोर होते-होते मौत के आगोश में चले गए थे। जात-पात और ऊँच-नीच के नाम पर हिन्दुओं की धार्मिक एकता को कमजोर करने वालों को आज भी होश नहीं आया है। 24 नवम्बर का यह इतिहास सभी को पता होना चाहिए। इतिहास के वो पृष्ठ जो पढ़ाए नहीं गये वाहे गुरु जी दी खालसा वाहे गुरूजी दी फ़तेह 🙏

मंगलवार, 1 जून 2021

IMA द्वारा स्वामी रामदेव पर लगाया गया देशद्रोह का आरोप कितना सच

क्या पतञ्जलि के संस्थापक और विश्वविख्यात योगाचार्य स्वामी रामदेव ने एलोपैथिक डॉक्टरों और IMA के अध्यक्ष को बन्दूक की नोक पर लूटा है? या आयुर्वेदाचार्य बालकृष्ण और स्वामी रामदेव ने डॉक्टरों की जेबें काटी है?
क्या इन दोनों आचार्यों द्वारा स्थापित संगठन पतञ्जली ने भयंकर दुष्प्रभाव उत्पन्न करने वाले रसायन से युक्त उत्पाद बेच कर उपभोक्ताओं को संकट में डाला है? या लेड युक्त मैगी की तरह नूडल्स, चटनी, समोसा, ताबीज, गण्डा, भभूत या झाड़-फूक के नाम पर लोगों से पैसे ठगा है? तब  के डॉक्टर्स योगााचार्य स्वामी रामदेव को लूंगी और लंगोटी वाला कह कर व्यंग्य करते हुए देशद्रोही कह कर क्यों अपमानित किया जा रहा है? 


क्या 200 देशों में वैदिक चिकित्सा विज्ञान के अभिन्न अंग माने जाने वाले योग को पहुंचाने के बाद लगातार बढ़ती जा रही अच्छी गुणवत्ता वाले आयुर्वेदिक उत्पादों की भी बढ़ती श्रृंखला के कारण हानिकारक रसायन युक्त उत्पादों की घटती माँग से बौखलाए हुए लोगों के द्वारा स्वामी रामदेव के खिलाफ़ साजिश शुरू कर दिया गया है। इन साजिशकर्ताओं में अहम भूमिका निभाने वाले लोगों में सबसे ऊपर फार्मा कम्पनियों के बदौलत अपनी रोजी-रोटी चलाने वाले IMA के डॉक्टरों का नाम आया है। 
पतञ्जली के आयुर्वेदिक उत्पादों की बढ़ती माँग के कारण एलोपैथिक डॉक्टरों के घटते कारोबार से होने वाले नुकसान की भरपाई करने के लिए IMA के अध्यक्ष इतने गिर गये हैं कि झूठे आरोप लगा कर पतञ्जली योग पीठ के संस्थापक स्वामी रामदेव जी से 10000 करोड़ रुपये का मुआवजा देने की माँग तक कर दिया है। सिर्फ़ इतना ही नहीं बल्कि एलोपैथिक दवाओं का इस्तेमाल करने से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में अपने शिष्यों को बताने की घटना को एलोपैथ के विरुद्ध दुष्प्रचार और एलोपैथिक डॉक्टरों का अपमान कह कर स्वामी रामदेव जी को कोर्ट में घसीटने की चुनौती भी दे डाली है। हद तो तब हो गया जब केन्द्रीय स्वास्थ्य मन्त्री हर्षवर्धन ने भी IMA के अध्यक्ष के कहने पर पक्षपात पूर्ण रवइया अपनाते हुए स्वामी रामदेव जी के विरुद्ध नोटिस जारी कर दिया था। जबकि खुद भी चिकित्सक रह चुके हर्षवर्धन ने एलोपैथिक दवाओं के दुष्प्रभाव को जानते हुए भी स्वामी रामदेव जी के विरुद्ध कारवाई करने की नोटिस जारी कर के डॉक्टर हर्षवर्द्धन ने वैदिक संस्कृति प्रेमी भाजपाइयों का विश्वास खो दिया है। इसका खामियाजा आगामी चुनाव में उन्हें जरूर भोगना पड़ेगा। आखिर अपनी मेहनत और लगन के बदौलत अपने देश को विश्व गुरु के रूप में पदारूढ़ करने की कोशिश में लगातार सफल होते जा रहे रामदेव जी की पतञ्जली योग पीठ ने हाफिज सईद व दाऊद इब्राहिम जैसा गुनाह कैसे कर दिया था कुछ समझ में नहीं आ रहा है।

क्या स्वामी रामदेव जी ने बेबी केयर प्रोडक्ट्स तैयार करने वाली विश्व प्रसिद्ध फार्मा कम्पनी जॉनसन एण्ड जॉनसन की तरह कैंसर के खतरे को बढ़ाने वाले एस्बेस्टस युक्त टेलकम पाउडर बेचकर ओवेरियन कैंसर और वुहान द्वारा प्रायोजित कोरोना जैसी महामारी फैलाने जैसा वैश्विक अपराध किया है? या वाकई में दाउद इब्राहिम जैसा ही देशद्रोह का काम किये हैं? 

क्या मदर टेरेसा जिसे दो लोगों के बयान के आधार पर बिना किसी साक्ष्य के जीते जी पोप ने यह कह कर चमत्कारी सन्त घोषित किया कि वह रोगी को छूकर ही बीमारी ठीक कर देती हैं, उसकी सच्चाई जानने के लिए किसी ने प्रयास किया? यदि वे इतनी ही चमत्कारी थीं तो उनकी मृत्यु कैंसर के कारण हॉस्पिटल में तड़प-तड़प कर क्यों हुई थी?
नहीं! किसी ने भी मदर टेरेसा के चमत्कारों के बारे में कही गई बातों की सच्चाई जानने की कोशिश नहीं की। खासकर भारतीय लोगों ने झूठ न बोलने की आदत के कारण हर झूठ और अफवाहों को भी सच मान कर मदर टेरेसा की पूजा शुरू कर दिये थे। तो
क्या आचार्य बालकृष्ण या स्वामी रामदेव ने खुद को भगवान, गॉड या अवतार घोषित किया?


क्या हॉस्पिटल खोलना, अनाथालय खोलना, विद्यालय खोलना, धर्मशाला बनाना, शहीदों को सम्मानित करना, लङ्गर चलाना, किसानों के खेत से जड़ी बूटियाँ खरीदकर मिलावट रहित शुद्ध औषधियाँ बनाकर इन लोगों ने पाप किया है?
क्या आचार्य बालकृष्ण और स्वामी रामदेव ने विजय माल्या और नीरव मोदी की तरह अपने देश को लूटने का अपराध किया है?
आप सालों तक अपनी जेब कटवा कर फेयर एण्ड लवली रगड़ते रहे, क्या आप गोरे हो गये?


इस पतञ्जली का पाप यह है कि इसने माँसाहार से घृणा करने वाले लोगों को भी धोखा देकर हड्डियों के चूर्ण के मिश्रण से बने कोलगेट पेस्ट का इस्तेमाल कर रहे लोगों को नीम, तुलसी, पुदीने के मिश्रण से बने पेस्ट थमा कर सनातनी लोगों की धार्मिक आस्था की रक्षा करने का भी काम किया है। वेद, रामायण और महाभारत को काल्पनिक कह कर सनातन संस्कृति का मजाक उड़ाने वाले लोगों के व्यवसायियों के नकली उत्पादों की मार्केट से बाहर कर के शुद्ध और सस्ते उत्पादों के द्वारा लोगों के स्वास्थ्य की भी रक्षा करने का काम किया है।


पतञ्जली के उत्पाद आने के पहले लोग क्लोराइड जैसे हानिकारक रसायन और हड्डियों का चूर्ण रगड़ कर अपने दाँतों और मसूढों को कमजोर कर रहे थे, लेकिन हवाई चप्पल और फटी बनियान पहनने वाले भारतीय आचार्यों ने वेदों में वर्णित योग और आयुर्वेद की शक्ति को पुनर्स्थापित कर के बिना किसी जाति, धर्म और वेशभूषा के भेद-भाव किये सारी दुनियाँ को स्वस्थ रहने का मन्त्र देकर कौन सा वैश्विक अपराध कर दिया है, जो उनके खिलाफ़ राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाने की माँग इस देश के असली गद्दारों के द्वारा किया जा रहा है? 


भारत के देशवासियों के द्वारा देश की सम्पदा को लूटने वाले ठगों के नकली उत्पादों से IMA वालों को कोई दिक्कत नहीं है। क्योंकि हिन्दुस्तान, यूनिलीवर, कोलगेट, नेस्ले जैसी कम्पनियां IMA का गठन करने वाले विदेशी लोगों के द्वारा ही संचालित हैं।

भारतीय नागरिकों को चूसने वाले जिन विदेशी कम्पनियों के उत्पाद की बिक्री उनकी घटिया गुणवत्ता के कारण लगातार घटती जा रही है उन्हें सिर्फ़ अपने व्यवसाय से मतलब है। जबकि पतञ्जली! अपने व्यवसायिक लाभ का इस्तेमाल वैदिक ज्ञान-विज्ञान से सम्बधित अनुसन्धान और प्रचार-प्रसार में खर्च कर के राष्ट्रीय गौरव को पुनर्स्थापित करने का प्रयास कर रही है बल्कि राष्ट्रीय आपदा के समय प्रधानमन्त्री राहत कोष में भी भेजती है। सिर्फ़ इतना ही नहीं बल्कि यह संगठन अपने स्तर से भी जन कल्याण के लिए कई कार्यक्रमों का संचालन करने के साथ अपने संगठन में हरेक साल सैकड़ों बेरोजगार लोगों को रोजगार देने का काम भी काम कर रही है। तो क्या जो काम भारत के हित में IMA के लोग नहीं कर कर सके वैसे काम पतञ्जली के द्वारा करने के कारण ही पतञ्जली पर राष्ट्र द्रोह का मुकदमा चलाया जाना चाहिए?

क्या आप ने कभी इसके लिए सवाल उठाया कि जब 2500 साल पहले #महर्षि_सुश्रुत 100 तरह की सर्जरी कर सकते थे, तो आज भारत में आयुर्वेद के ऊपर अनुसन्धान क्यों नहीं की होता है?
क्या आपने कभी सवाल उठाया है कि जिस एलोपैथी शब्द का जन्म ही हाल-फिलहाल में हुआ है उसके ऊपर ही भारत में सारा बजट क्यों खर्च कर दिया जाता है?
क्या आपने कभी कश्मीर में पत्थरबाजी करने वाले आतङ्कवादियों पर सवाल उठाया?
क्या आपने आँखों के डॉक्टर को खुद अपनी आँखों पर चश्मा लगा कर इलाज करते देखकर उसके ज्ञान पर सवाल उठाया है?
क्या IMA ने देश के अन्दर लाखों विदेशी कम्पनियों के द्वारा की जा रही लूटपाट के विरोध में कभी सवाल उठाया है?

विश्व प्रसिद्ध फार्मा कम्पनी के इसी उत्पाद के दुष्प्रभाव के कारण
अमेरिका में कैंसर पीड़ितों की संख्या बढ़ गयी थी

#जॉनसन_एण्ड_जॉनसन के उत्पादों के दुष्प्रभाव के कारण कैंसर होने का आरोप लगा कर अमेरिकी ज्यूरी ने उस कम्पनी पर 32000 (बत्तीस हजार) करोड़ रुपये का जुर्माना  लगाया था। यदि आपको इस पर यकीन न हो तो गूगल पर सर्च कर के संलग्न लिंक देख लें। https://m.thewirehindi.com/article/johnson-johnson-talcom-cancer-fine-32000-cr-rupees/50589/amp
हो सकता है कि आपको 199 रुपये के Jio के कारण जुमलेबाज लोग गुमराह करने की कोशिश करें। 


अतः आप पतञ्जली का विरोध करने वाले लोगों से ही पूछ लें कि क्या आपने कभी विदेशी कम्पनियों के विरोध में सवाल उठाया है?
कभी पोस्ट डाला कि भारत में भी Johnson & Johnson को बैन किया जाए?
याद रखिये हम यह विरोध करके पतञ्जली का नहीं भारत का नुकसान कर रहे हैं?
लाला लाजपत राय ने कहा था कि पूरी दुनियाँ में केवल भारतीय हिन्दू ही ऐसी कौम है जो अपने महापुरुषों, अपने व्रत-त्योहारों, परम्पराओं, सांस्कृतिक रीति-रिवाजों और अपने आदि पूर्वज़ के रूप में अराध्य अपने भगवानों को गाली देकर अपमानित करने में ही गर्व महसूस करते हैं?

अपनी संस्कृति को भूल चुके लोगों की नौकरी करने वाले हिन्दुओं ने भी हिन्दुओं पर शासन करने वाले लोगों की नकल कर के होली, दिवाली, करवा चौथ और रक्षाबन्धन जैसे त्योहारों के अवसर पर अपने पूर्वजों राम, कृष्ण और हनुमान जी तक का मजाक उड़ाने में ही अपनी विद्वता समझते हैं। उनके ऊपर चुटकुले बनाकर, उनका मजाक उड़ा कर, उपहास कर के अपमानजनक पोस्ट वायरल करके यह समझते हैं कि हम बहुत पढ़े-लिखे हैं। गले में टाई बाँध कर समझते हैं कि हमने बहुत बड़ा तीर मार लिया और सारे ब्रह्माण्ड को बाँधना सीख लिया।

जो भारतीय! IMA जैसे विदेशी संगठनों के ईशारे पर पतञ्जली के विरुद्ध चलाये जा रहे अभियान से खुश हैं, उन्हें यह जानना चाहिये कि सभी धर्मों का मूल सनातन धर्म और सभी विज्ञान का मूल वेद है। इस वैदिक विज्ञान के उत्थान के लिए प्रयत्नशील भारतीय सन्तों स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण का विरोध सिर्फ़ उनका विरोध नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन का विरोध है। भारतीय संस्कृति और इसके स्वाभिमान का विरोध है। अतः इनके विरोधियों का साथ देने से पहले एक बार विचार अवश्य करें कि इसका क्या परिणाम होगा, किसका फायदा होगा, हम किसके मोहरे बनेंगे।

सनातन संस्कृति पर गर्व करने वाले लोग हमारे इस ब्लॉग से जुड़ें और अपने अधिक से अधिक मित्रों को भी इससे जोड़ें।

🙏भवदीय/निवेदक 🙏
उदासी सन्त स्वामी सत्यानन्द
उर्फ़ प्रसेनजित सिंह, निदेशक,
कौशिक कंसल्टेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो

सोमवार, 10 मई 2021

Winging of Scapula एक असाध्य रोग

जब जेनेवा के वेबसाइट पर अपनी तस्वीर दिखाया तब भी किसी को यकीन नहीं हुआ कि मैं वाकई में Winging of Scapula नामक असाध्य बीमारी से जूझ रहा हूँ। मेरी लाइलाज़ बीमारी को बहाना कह कर लोगों ने उड़ाया था मेरा मजाक

✍️ प्रसेनजित सिंह

मैं Wringing of Scapula नामक जिस लाइलाज़ बीमारी से पिछले चार वर्षों से जूझ रहा हूँ उस पर अभी रीसर्च चल रहा है। दुनियाँ भर के फिजियोथेरापिस्ट इसका इलाज ढुंढने के लिए प्रयत्नशील हैं। डॉक्टरों के जिस भारतीय टीम के लोग इसके लिए ज्यादा सक्रिय हैं उन लोगों ने मेरी कुछ तस्वीरें खींची थी। जिसे इंटरनेशनल हेल्थ रिसर्च आर्गनाइजेशन - Comite International, Geneve (ICRC) के समाचार पत्र Physiopedia  पर पब्लिस्ड किया गया था। इस समुह की वेबसाइट www.physiopedia.com अंग विच्छेदन और पुनर्वास पर अध्ययन करने के लिए फिजियोपिडिया द्वारा विकसित और वितरित किया जाने वाला वह ऑनलाइन माध्यम है जिस पर दुनिया भर के फिजियोथेरापिस्ट अपने अनुभवों को साझा कर सकते हैं। ताकि न सिर्फ़ एक अध्ययन सामग्री के रूप में इस पत्रिका का विकास हो बल्कि फिजियोलॉजी से सम्बन्धित नये समाचारों से भी दुनियाँ भर के फिजियोथेरापिस्ट को अवगत कराया जा सके। 
इस साइट पर दुनियाभर के किसी भी देश के फिजियोथेरापिस्ट फिजियोपिडिया के लिए साझा करने लायक सामग्रियों यथा कंटेंट्स, वीडियो क्लिप्स और फोटोग्राफ्स को अपलोड और सम्पादित कर सकते हैं।

Comite International, Geneve - ICRC की इस वेबसाइट पर Winging of scapula नामक मेरी लाइलाज़ बीमारी के लिए NMCH, Patna के डॉक्टरों की जिस टीम ने मेरे प्रभावित अंग की तस्वीरें ली थी उन तस्वीरों में से एक तस्वीर इस वेबसाइट पर भी अपलोड किया गया है जिसे संलग्न लिंक पर क्लिक कर के आप भी देख सकते हैं। वह लिंक है :👇

यह लिंक इसलिए दे रहा हूँ ताकि मेरी बीमारी को मेरा बहाना कहने वाले लोगों को मेरी बातों पर यकीन हो सके। इसी लिंक पर जाकर आप भी देख सकते हैं मेरी संलग्न तस्वीर और विंगिंग आफ स्कैपुला (Winging of Scapula) नामक मेरी असाध्य बीमारी के बारे में विस्तृत जानकारी।

physiopedia.com पर मेरी लाइलाज़ बीमारी Winging of scapula
के बारे में बताते हुए डॉक्टर का स्क्रीनशॉट

physiopedia.com से डाउनलोड की गयी मेरी तस्वीर

जिस दिन मुझे डॉक्टरों ने कहा था - "Sorry! इसका कोई इलाज़ नहीं है। यह ऐसा बीमारी है जो धीरे-धीरे बढ़ता ही जाएगा। एकमात्र ईश्वरीय चमत्कार से ही यह ठीक हो सकता है। चाहे आप दुनियाँ के किसी भी हिस्से में चले जाइए, इसका कोई इलाज नहीं है। अतः मैं तो यही कहुंगा कि भारी चीज नहीं उठायें। नियमित रूप से फिजियोथेरैपी करवायें। लेकिन फिर भी संतुष्टि के लिए आपको जो-जो जाँच लिख दे रहा हूँ उसे करवा कर मुझसे मिलें।" उस दिन डॉक्टर ने मुझे क्या-क्या बताया सब भूल गया सिवाय उस बात के कि "अब इसका कोई इलाज नहीं है।" डॉक्टरों के उस बात को सुनते ही मैं घोर हताशा में डूब गया था। लगा कि समाज पर बोझ बन कर जीने से अच्छा है कि अपनी जिन्दगी ही खत्म कर लूं। मगर सहसा जैसे ही इस बात का ख्याल आया कि मेरे मरने से मेरी बर्बादी चाहने वाले लोगों को तो इससे खुशी होगी ही, मुझे ईश्वर ने जिस काम को पूरा करने के लिए यह जीवन दिया है उसे छोड़कर जाने के बाद ईश्वर को भी कैसे मुँह दिखाऊंगा? बस इसी बात का ख्याल होते ही मैंने ठान लिया था कि चाहे जितने दिनों मैं जी सकूं, उतने दिनों के अन्दर अपने समाज के लोगों को जगाने का काम करुंगा। शोषित और वञ्चित लोगों को उनके अधिकार दिलवाने के लिए आखिरी साँस तक संघर्ष करुंगा। जो अपनी पहचान तक भूल चुके हैं उन्हें उनकी असली पहचान बता कर के सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों को पुनर्स्थापित करने की कोशिश करूंगा। इसके लिए प्रयास करने के बजाए लोगों को मैं बीमार हूँ, लाचार हूँ कहने से कोई मेरी मदद तो नहीं करेगा उल्टे मेरी मजबूरी को बहानेबाजी बता कर मेरी निन्दा ही करेंगे। और यही मेरे साथ हो भी रहा है। ऐसी ही परिस्थिति में मेरे जैसे लोग टूट कर आत्महत्या कर लेते हैं। 

आखिर कौन सी बीमारी हुई है मुझे जिसके बारे में सुनते ही मैं विचलित हो गया था और अस्पताल में ही फुट-फुट कर रोने के लिए बेचैन हो गया था। मगर सहसा मेरी बर्बादी चाहने वाली अपनी ही माँ और परिजनों की चिन्ता छोड़ मुझे जीवन देने वाले भगवान से ही इसका कारण पूछने का निर्णय ले कर खुद को सम्भाल पाया था। 

आखिर किस बीमारी के कारण NMCH, PMCH और IGIMS के डॉक्टर्स भी मेरी बीमारी को लाइलाज़ कह रहे हैं? उस बिमारी के बारे में जानने के लिए मैं कई दिनों से गूगल पर सर्च कर रहा था। आखिर एक दिन अचानक गूगल की एक साइट पर मुझे मेरी ही वह तस्वीर दिखाई दी जिसे NMCH के डॉक्टर ने खींचा था। इस सम्बन्ध में जब अपने डॉक्टर से पूछताछ किया तब पता चला कि ऐसे मामले बहुत कम आते हैं। इसलिए आपकी फोटो रिसर्च के लिए खींच कर रख लिया था। 

मैं ऐसी स्थिति में भी जब डॉक्टरों ने मुझे एक किलो का वजनी सामान उठाने या दाहिने हाथ को पर जरा भी बल पड़ते ही दर्द से तिलमिलाते हुए देख चुका था दाहिने हाथ को हिलाने-डुलाने से मना कर दिया था। उसके बावजूद पेन किलर खा-खाकर अपनी बाइक स्वयं चलाते हुए एक इण्डियन विलेजर की गुमशुदा बेटी का पता लगाने के लिए एड़ी-चोटी एक कर दिया था। जिनकी बेटी अपने घर से अचानक लापता हो गई थी वे 60-65 साल की विधवा थीं। उनके बारे में एक व्हाट्सएप ग्रुप के द्वारा पता चला था कि उनकी बेटी पन्द्रह दिनों से लापता है लेकिन पुलिस-प्रशासन उनकी मदद नहीं कर रही है। जिस व्हाट्सएप ग्रुप से मुझे इसकी जानकारी हुई थी उसने सामाजिक संगठनों और समाजसेवियों को मृत घोषित करते हुए इस घटना पर अफसोस जताया था। तभी मेरे मन में उस परिवार की मदद करने की इच्छा जागृत हुई थी और अपने मित्रों के साथ मामले की सच्चाई जानने के लिए पीड़ित परिवार के घर पर पहुंच गया था। उनकी आपबीती सुनने के बाद मैंने उनकी मदद करने का आश्वासन देते हुए इंवेस्टीगेटर और क्राइम रिपोर्टर के अपने पुराने अनुभवों का इस्तेमाल करने का निर्णय ले लिया था। इस कार्य में जहाँ भी जरूरत होती वहाँ एक साथ चलने के लिए मेरे दोस्तों ने मुझे वचन दिया था। क्योंकि मैंने अपनी बीमारी के कारण पिछले चार वर्षों से अपनी बाइक चलाना छोड़ दिया था और मँहगाई के इस युग में भाड़े की गाड़ी रिजर्व कर के इंवेस्टिगेटर का काम करना मेरे लिए सम्भव नहीं था। चुकी पीड़िता का घर मेरे घर से लगभग 18 किलोमीटर दूर था। वह भी ऐसे जगह पर जहाँ पहुंचने के लिए नीजी वाहन से आवागमन के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। उस महिला की मदद करने के लिए मामले की प्राथमिक जानकारी एकत्र करना भी जरूरी था। जो सम्बन्धित अधिकारियों और आरोपित लोगों के परिजनों से मिले बगैर सम्भव नहीं था। इस कार्य में दो दिनों तक अपना समय देने के बाद जब मुझे ऐसा महसूस हुआ कि पीड़ित लोग सच्चाई को छुपा रहे हैं और फरारी के मामले को कभी गुमशुदगी तो कभी अपहरण का मामला बता रहे हैं तो उस मामले को बेकार का लफड़ा कहते हुए मेरे मित्रों ने उस मामले में मेरा साथ देने से मना कर दिया था। ऐसे में जिस अधिकारी से मिलने के लिए मैंने पहले ही अप्वाइंटमेंट ले रखा था उनसे मिलने के लिए मुझे न चाहते हुए भी अपनी बाइक खुद चलाना पड़ा था। जबकि डॉक्टरों ने मुझे वजनी सामान उठाने के लिए मना कर रखा था।

इसके लिए अपने पूर्व निर्धारित समय पर मैं तो आई.जी ऑफिस में पहुंच ही गया था लेकिन जिनकी सहायता करने के लिए मैंने वह मीटिंग निर्धारित की थी उन्होंने फ़ोन कर के आग्रह किया था कि उनके मामले में मैं जिस अधिकारी से भी मिलुं अपने साथ उन्हें भी जरुर रखूं। उनके इस जिद के कारण निर्धारित समय पर आई.जी के कॉल करने पर भी उनसे भेंट न कर पीड़ित दुखियारिन के आने का इंतजार करता रहा। जब वह पहुंची तब उस आईजी ने हमारे साथ होने वाली मीटिंग कैंसिल कर के अपने विभागीय मीटिंग में व्यस्त हो गया। इसके कारण उस महिला ने इतना हंगामा किया कि आई.जी असीस्टेंट अशोक कुमार सिन्हा ने उन्हें सरकारी कार्य में बाधा उत्पन्न करने के आरोप में गिरफ्तार करने की धमकी देते हुए अपने ऑफिस से खदेड़ दिया था। आईजी ऑफिस के लोग अपने जगह पर सही थें। उन्होंने मदद करने के लिए मुझे हर तरह का आश्वासन दिया था। लेकिन वह महिला पूर्व निर्धारित समय पर नहीं आकर खुद लापरवाही की थी। इसके बावजूद आई जी संजय कुमार सिंह ने 05:00-06:00 बजे के बीच मिलने का दूबारा समय दिया। तब तक गाँधी मैदान थाना और नजदीकी बैंक से सम्बन्धित अन्य लफड़ों को सुलझाने के लिए भी मुझे चलने का आग्रह करते हुए मेरी बाइक पर बैठने लगीं। तब मैंने अपनी बीमारी की जानकारी देते हुए उन्हें बैठाकर बाइक नहीं चला पाने की मजबूरी बताते हुए चार वर्षों के बाद पहली बार उनकी मदद करने के लिए ही बाइक निकालने का कारण और वह बाइक चलाने के कारण बढ़ते जा रहे दर्द की जानकारी भी उन्हें देते हुए माफ़ी माँग लिया था। लेकिन मेरी मजबूरी को अनसुना कर के मेरी बाइक पर जबरन बैठ कर गाँधी मैदान थाना आदि अन्य जगहों पर चलने के लिए जिद करने लगी थीं। मैंने पहली बार एक अनजान महिला को इस तरह जिद करते हुए देखा था। जिसे उनका भोलापन समझ कर न चाहते हुए भी उनको समझाने की कोशिश करना छोड़ दिया और वे जहाँ-जहाँ कहीं वहाँ-वहाँ उनको ढ़ोता रहा। देर रात घर लौटते ही मुझे पेन किलर लेना पड़ा। इसके बावजूद रात भर मुझे नींद नहीं आई। सुबह होने पर मैने महसूस किया कि मेरा हाथ ऊपर नहीं उठ पा रहा है। जरा सी हरकत करने पर भी दर्द से तिलमिला उठता हूँ। तब गुमशुदा लड़की के बारे में पता करने के लिए खुद ही फिल्ड में न जाकर सोशल वर्क और पत्रकारिता से जुड़े अपने मित्रों की मदद से टेलिफ़ोन के द्वारा छानबीन करवाता रहा। जब भी दर्द में कुछ कमी महसूस करता खुद भी अपनी बाइक लेकर निकल जाता था। संयोगवश मेरी मेहनत रंग लाई। मैं अपहरणकर्ता के रूप में आरोपित मुख्य व्यक्ति से सम्पर्क करने में सफल हो गया और उसे कोर्ट में हाजिर होने के लिए दबाव बनाने लगा। तब तक उसके लोकेशन की सूचना अपने मित्रों को देकर उस पर चौतरफा दबाव बनाने लगा तब बाध्य होकर उसने मुझे स्वयं सूचित किया कि मैं स्वयं सरेण्डर करने के लिए तैयार हूँ। इसके लिए अपने वकील से बात कर रहा हूँ।

संयोगवश एक दिन अचानक अयोध्या में बैठे मेरे ग्रुप का ही सेतु सिंह नामक युवक ने मुझे फ़ोन कर के बताया कि मुझे अभी-अभी सूचना मिली है कि अपहृत युवती रचना सिंह को लेकर फरार चल रहा युवक आज कोर्ट में सरेण्डर करने वाला है। इस सूचना के मिलते ही अपहरणकर्ता संजीत कुमार यादव के मुहल्ले में रहने वाले मेरे एक और मित्र ने कॉल कर के सूचित किया कि संजीत और रचना एक घण्टे के अन्दर सीविल कोर्ट में सरेण्डर करने वाला है, वहाँ जल्दी पहुंचिये। इस कॉल के आते ही मुझे पुनः अपनी बाइक से ही कोर्ट की ओर निकलना पड़ा था। इसलिए नहीं कि अपहृत युवती के परिजनों से मुझे प्रेम था और इसलिए भी नहीं कि अपहरण के लिए आरोपित युवक से मेरी दुश्मनी थी। बल्कि इसलिए क्योंकि मेरे कारण कई लोग खुल कर इस मामले के उद्भेदन के लिए मेरी खुल कर मदद कर रहे थे। मेरे वहाँ नहीं जाने से मैं खुद उन लोगों की नजरों से गिर जाता। कोर्ट में पहुंचते ही मैंने देखा कि इस मामले में मेरा साथ दे रहे 7-8 लोग वहाँ पहले ही पहुंच चुके थे। अपहृत कही जा रही युवती जो स्वयं प्रेम प्रसंग के चक्कर में स्वेच्छा से अपने घर से फरार हुई थी, वह भी महिला पुलिसकर्मियों के साथ कोर्ट के बरामदे में अपने कॉल का इंतजार कर रही थी। मैंने उससे मिल कर उसके प्रेमी के बारे में जानकारी देते हुए यह बताया कि वह पहले से ही शादीशुदा और चार बच्चों का बाप है। जिस तरह से पहली पत्नी और बच्चों से पिछले चार वर्षों से कोई मतलब नहीं रखता है उसी तरह किसी और के मिलते ही तुम्हें भी छोड़ देगा। अतः कोर्ट में बयान देते समय यह जरूर कहना की "मैं स्वेच्छा से इनके साथ जरूर भागी थी लेकिन जब विवाह करने के बाद मुझे पता चला कि यह पहले से शादीशुदा और 3-4 बच्चों का बाप है तब मुझे खुद के ठगे जाने का अहसास हुआ। अतः अब इसके साथ नहीं बल्कि अपनी माँ के साथ रहना चाहती हूँ। इसे इसकी धोखाधड़ी करने की सजा मिलनी चाहिए।" बस इसी बयान के आधार पर वह लड़की उसकी माँ को सौंप दी गई। इस तरह एक महीने के अन्दर जिसके साथ उनकी बेटी स्वयं भाग कर गयी थी उससे सम्पर्क स्थापित करने और उन लोगों को समझाने के बाद उनकी बेटी को कोर्ट में हाजिर करवा कर उसके परिजनों तक पहुंचाने का भी काम पूरा कर दिया था।

इस दौरान चार वर्षों से बेरोजगार होकर घर में बैठने की मजबूरी के बावजूद तमाम सरकारी सुविधाओं से भी वंचित होने के बाद भी अपनी जमा पूँजी निकाल-निकाल कर जिस विधवा की सहायता करने के लिए भाग-दौड़ करता रहा उसने अपने अन्य लम्बित मामलों के निपटारे के लिए भी मुझसे मदद करने का आग्रह करने लगी तब मैंने उन्हें स्पष्ट कह दिया कि "मैंने लड़की के अपहरण का मामला समझ कर आपकी मदद किया था।" मुझे आपके कारण ही वह बाइक चलाना पड़ा जिसके कारण मेरी बीमारी फिर से बढ़ गयी है। इसके इलाज के लिए पैसे की जरूरत है। अतः मैं आपका काम तो करवा दुंगा लेकिन अब इसके लिए फी देना होगा। इस मामले से पहले मेरा यही प्रोफेशन था और इसके लिए मैं भारत सरकार के द्वारा रजिस्टर्ड हूँ। तब उन्होंने मुझे वचन दिया की आपकी जो भी फी होगी ले लीजिएगा लेकिन मेरा काम करवा दीजिए। चुकी मेरे एकाउण्ट के लगभग सभी पैसे खत्म हो गये थे इसके कारण मैंने उनसे एडवांस में कुछ पैसे जमा करने का आग्रह किया तो वे बहाने बना कर चली गई थीं। तब मैंने भी अपने स्वास्थ्य कारणों से कहीं आना-जाना बन्द कर दिया था। मुझे बार-बार फोन कर के घर में आकर भेंट करने के लिए बुलाने पर भी जब मैं विधवा महिला अनामिका किशोर के यहाँ नहीं गया तब एक दिन उनका बेटा मेरे घर में आकर माँ की मदद करने का आग्रह किया। तब न चाहते हुए भी उनकी माँ की कई लम्बित मामलों की पैरवी करने के लिए लगातार दो-तीन दिनों तक समय दिया। लेकिन जैसे ही पैसे की बात करता वे बहाने बनाने लगती। मैं समझ गया था कि वे लोग जरूरत से ज्यादा चालाक हैं। यही कारण है कि हर जगह उनका आसानी से होने वाला काम भी फँस जाता है। चुकि वह महिला मेरे ग्रामीण क्षेत्र की ही निकल गई थी जिसके कारण मैं उन पर पैसे के लिए दबाव नहीं बना पा रहा था। लेकिन उन्हें भी तो मेरी परेशानी समझनी चाहिए थी। एक दिन उनके जिद के कारण मुझे इतनी भीड़-भाड़ वाली गली में बाइक लेकर जाना पड़ गया जहाँ अपने दाहिने हाथ में हो रहे दर्द के कारण बाइक की हैण्डल नहीं सम्भाल पाया और दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। उसके कारण मेरी गाड़ी और हेलमेट तो क्षतिग्रस्त हुआ ही पहले से ही Winging of scapula से सबसे ज्यादा पीड़ित दाहिने हाथ में ही दुबारा चोट लगने से हमारी परेशानी और बढ़ गई थी। जिसका इलाज़ करवाने के लिए डॉक्टर का फी देने तक का पैसा अपने पास नहीं होने के कारण जब मैंने उस महिला से उनकी मदद करने के लिए किया गया खर्च माँगने लगा तब मोच बैठाने वाले से दिखवा देने की जिद कर के मुझे Pain Relief Spray लाकर दे दी। जबकि मैं जानता था कि मोच से नहीं बल्कि किसी और बीमारी से परेशान था और चोट लगने के कारण मेरी बीमारी विकराल रूप धारण करने वाली थी।

उस दुर्घटना के बाद मैं उनके बुलाने पर भी जब दुबारा उनकी मदद करने से इंकार कर दिया था तब एक दिन वे खुद हमारे घर पहुंच गई और क्षेत्रीय होने का वास्ता देते हुए कहने लगी कि "आप ही न कह रहे थे कि आपकी बेटी! मेरी भी बेटी है। अतः किसी भी तरह की परेशानी होगी तो मुझे जरूर बताइएगा। जहाँ तक होगा आपकी मदद जरूर करेंगे। फिर ऐसा क्या हुआ कि आप मेरा कॉल रीसिव करना भी छोड़ दिये? बिना मेरी सूचना के मेरे बैंक एकाउण्ट में से जो पैसे गायब हो गए हैं, सिर्फ़ उसकी रिकवरी करवा दें। फिर आप जितनी कहेंगे उतनी फी आपको दे देंगे।" इस पर मैं उन्हें बार-बार समझाता रहा कि आपके एकाउण्ट का पैसा किसी और ने नहीं बल्कि आपकी अपनी बेटी ने ही निकाला है। ऐसे में बैंक पर दबाव देना उचित नहीं है। लेकिन वे मानने के लिए तैयार नहीं हुई।... और अगले दिन बैंक मैनेजर पर इसके लिए दबाव बनाने का वचन लेने के बाद ही मेरे घर से वापस गयी। मुझे उनकी गिड़गिड़ाहट पर तरस खाकर खुद बीमार होने पर भी उनकी मदद करने के लिए जाना पड़ता था। इसका परिणाम यह हुआ कि मेरी बीमारी और बढ़ गई है तथा मैं फूल टाइम बेडरेस्ट के लिए मजबूर हो गया हूँ।

अब मसाढ़ी के उदय किशोर सिंह की विधवा पत्नी अनामिका किशोर अपनी बेटी की बरामदगी के बाद मुझे इनाम या सम्मान देने के बजाय यह आरोप लगा रही हैं कि मैं उनकी बेटी को भगा कर ले जाने वाले युवक का ही साथ दे रहा हूँ। इसी के कारण उन लोगों के द्वारा बार-बार बुलाने पर भी उन लोगों के पास नहीं जा रहा हूँ। जबकि हकीकत यह है कि मैं वाकई में बहुत ज्यादा परेशान और तनाव में हूँ। अपने स्वास्थ्य कारणों से ही घर से नहीं निकल पा रहा हूँ।

मैं हनुमान तो हूँ नहीं जो सीना चीड़ कर दिखा दूँ। आज तक आप लोगों से अपनी बीमारी के बारे में न बता कर सामाजिक गतिविधियों में इसलिए मग्न रहता था ताकि अपनी जिन्दगी को जी भर के जी सकूं। अन्यथा बीमारी को याद कर-कर के निर्दयी और निष्ठुर हो चुके लोगों से चर्चा करने से मानसिक तनाव और बढ़ेगा ही। जिसके लिए अपने स्वास्थ्य की परवाह किये बगैर तन, मन, धन सब कुछ लगा दिया जब वैसे लोग भी धोखेबाज़ निकल गये तो समाज के अन्य लोगों से क्या आशा करूं?

फत्तेपुर वासी सतीश जी की माँ पटना के NMCH में इलाज़रत हैं। उन्हें डॉक्टरों का सहयोग नहीं मिल पा रहा है, इसके लिए सतीश जी ने Bargayan Warriors are नामक हमारे व्हाट्सएप ग्रुप के सदस्यों से मदद की गुहार लगाये थे। लेकिन यह पहला अवसर है जब चाह कर भी उनकी मदद नहीं कर पाया। इसके कारण वे नाराज़ होकर मुझसे आग्रह किया हैं कि "प्रसेनजित जी! जब मेरी मदद नहीं कर सकते हैं तो इस ग्रुप से मुझे बाहर कर दीजिए।" लेकिन बहुत ही दुख की बात है कि इस ग्रुप के लोग उन्हें मदद करना तो दूर सांत्वना देना भी जरूरी नहीं समझे और दूसरे लोगों के अनावश्यक सन्देश भेज-भेज कर अपनी विद्वता का बखान करते रहे। अतः बन्धुओं से आग्रह है कि कृप्या संकटग्रस्त लोगों की मजबूरियों को भी समझें। उनके दुःख में साथ दें। मैं चाहता था कि मेरे मरने के बाद कोई भी व्यक्ति यह न कहे कि प्रसेनजित ने बूरे समय में मेरा साथ नहीं दिया है। लेकिन लगता है कि काल को अब यही मंजूर है। विशेष क्या कहूँ? जिन्दा रहा तो फिर मिलेंगे।

किश्तियां बह जाती हैं जब तूफां चले आते हैं।
यादें रह जाती हैं जब इंसां चले जाते हैं।। ✍️


गुरुवार, 6 मई 2021

मन्दिरों के सीढ़ियों पर क्यों बैठते हैं हिन्दु

दर्शनोपरान्त मन्दिरों के सीढ़ियों पर बैठने की परम्परा क्यों है हिन्दुओं में ? 

✍️ प्रसेनजित सिंह उर्फ़ स्वामी जी

हिन्दु समाज में बहुत से ऐसे रीती-रिवाज़ हैं, जिन्हे हम सभी ने अपने जीवन में देखा है, ऐसा ही एक रिवाज़ है मन्दिर से निकलते समय मन्दिर की सीढ़ी, पेड़ी या ड्योढ़ी पर बैठने का रिवाज़। आइये जानते हैं की इसका मूल कारण। 



आपने बड़े-बुजुर्ग को कहते और करते देखा होगा कि जब भी किसी मन्दिर में दर्शन के लिए जाते हैं तब दर्शन करने के बाद बाहर आकर मन्दिर की सीढ़ी, पेड़ी, ड्योढ़ी, ओसारा या ऑटले पर थोड़ी देर बैठते हैं ।
आजकल तो लोग मन्दिर की सीढ़ी पर बैठकर अपने घर की व्यापार की राजनीति की चर्चा करते हैं परन्तु यह प्राचीन परम्परा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई थी। वास्तव में मन्दिर की सीढ़ी या पैड़ी पर बैठ कर अपने ध्यान को आज्ञा चक्र में तिरोहित करके परमेश्वर के प्रति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ पूरे मनोयोग से एक श्लोक बोलना चाहिए। यह श्लोक वर्तमान पीढ़ी के लोग भूल गए हैं। अतः आप इस श्लोक को पढ़े और आने वाली पीढ़ी को भी इसे बतायें। 

यह श्लोक इस प्रकार है -
अनायासेन न मरणम्, बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।

"अनायासेन न मरणम्" अर्थात अनायास हमारी मृत्यु हो, बिना तकलीफ़ के हम मरें। हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर न पड़ें, कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त न हों चलते-फिरते ही हमारे प्राण निकल जाए। 

"बिना देन्येन जीवनम्" अर्थात परवशता का जीवन ना हो, मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित और लाचार हो जाता है वैसे परवश या बेबस न हों, बस इतनी सी कृपा कर दो। आपकी कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके ।

"देहांते तव सानिध्यम" अर्थात् जब भी मृत्यु हो तब भगवान हमारे सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। भीष्म पितामह ने प्रभु श्री कृष्ण के दर्शन करते हुए प्राण त्यागे थे। 
 
"देहि में परमेश्वरम्" हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना ।

अपने अराध्य से क्या करें प्रार्थना :
गाड़ी, लाड़ी, लड़का, लड़की, पति, पत्नी, घर, धन यह नहीं माँगें यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं। इसीलिए अपने आराध्य का दर्शन करने के बाद कुछ देर मन्दिर के दरवाजे के बाहर बैठकर प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए। विदित हो कि प्रार्थना में अपने अराध्य से की प्रिती पाने के लिए एक प्यास होती है। अपने अराध्य के लिए समर्पण का भाव होता है। जबकि सांसारिक भोगों की प्राप्ति के लिए अपने अराध्य से की गई विनती! याचना होता है। अधिकांश लोग याचना करने के लिए ही धार्मिक स्थलों पर जाते हैं। अर्थात भौतिक पदार्थों यथा - घर, व्यापार, नौकरी, पुत्र, पति, स्वास्थ्य सुख और धन आदि का सुख माँगने जाते हैं। जो भक्ति नहीं बल्कि भीख है। 

यही कारण है कि अपने भौतिक सुख की प्राप्ति की कामना के बजाए निस्वार्थ होकर परमेश्वर की सेवा में जायें। ऐसी भक्ति ही उत्तम कहलाती है। श्रेष्ठ और विशिष्ट कहलाती है। ऐसी भक्ति को ही प्रार्थना कहते हैं। क्योंकि प्रार्थना का विशेष अर्थ होता है विशिष्ट, श्रेष्ठ। अर्थात् निवेदन। अपने अराध्य या अराध्या के ध्यान में लीन होकर उनकी प्रार्थना करें और प्रार्थना क्या अपने अन्तःकरण से उनका ध्यान करें।


जब हम मन्दिर में दर्शन करने जाते हैं तो खुली आंखों से भगवान को देखना चाहिए, उनकी सुन्दरता और भव्यता को निहारना चाहिए। उनके मनोहर छवि के दर्शन करने चाहिए। जबकि कुछ लोग वहाँ आँखे बन्द करके खड़े रहते हैं। आँखे बन्द क्यों करना हम तो दर्शन करने आए हैं। भगवान के स्वरूप का, उनके श्री चरणों का, मुखारविन्द का, श्रृंगार का। उनके साकार रूप का आपादमस्तक दर्शन करें। उनकी छवि को निहारते हुए अपने स्मृति पटल में बसाने का प्रयास करें। न की आँखे बन्द करके खड़े रहें। अपनी आँखों में भर लें अपने प्रियतम के स्वरूप को। जी भर कर उनका दर्शन करें और दर्शन करने के बाद जब बाहर आकर बैठें, तब जिनके साकार स्वरूप का दर्शन कर चुके हैं उनके निराकार स्वरूप का ध्यान करें। मन्दिर में नेत्र नहीं बन्द करना। बाहर आने के बाद सीढ़ी, पैड़ी या चबुतरा पर बैठकर जब अपने अराध्य का ध्यान करें तब नेत्र बन्द करें और अगर अपने अराध्य या अराध्या का स्वरूप ध्यान में न आए तब दोबारा मन्दिर में जाएं और उनके स्वरूप का पुनः दर्शन करें। इस प्रक्रिया का उन्नत रूप त्राटक कहलाता है। नेत्रों को बन्द करने के पश्चात निम्ननलिखित श्लोक का मनन करते हुए पाठ करें। ताकि नये भक्तों को भी सिद्ध साधु-सन्तों की तरह ईश्वर के अस्तित्व की अनुभूति हो सके। 

अनायासेन न मरणम्, बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।

मैं त्राटक के बारे में भी विस्तृत चर्चा जरूर करेंगे। अतः हमेें फॉलो करते रहें। ताकि पूजा करने की असली विधी की जानकारी आपको हो सके। ताकि बढ़ते पाखण्ड के कारण सनातन धर्म को भूलते जा रहे लोगों को पुनः अपनी संस्कृति के प्रति आकर्षण को बढाया जा सके।... ॐ 

बुधवार, 21 अप्रैल 2021

आर्थिक आधार पर आरक्षण का सच

किस्सा आर्थिक आधार पर आरक्षण के शुरूआत की


केन्द्र की एनडीए सरकार द्वारा आर्थिक आधार पर सरकारी नौकरी व शिक्षण संस्थानों में आरक्षण देने की अधिसूचना जारी कर दी थी। इसके लिए केन्द्र सरकार ने जो मापदण्ड तैयार किये हैं उसमें राज्य सरकारों को बदलाव करने के अधिकार दिए गए हैं। राष्ट्रपति की मञ्जूरी के बाद यह केन्द्र सरकार की नौकरियों में इसके लागू होने की घोषणा होते ही गुजरात और झारखण्ड सरकार ने भी इसे लागू करने की घोषणा कर दी थी। जबकि बिहार सरकार द्वारा इसके लिए मन्थन किया जा रहा था।

गरीब सवर्णों सहित आर्थिक आरक्षण से वञ्चित लोगों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के लिए संसद में विधेयक लाने की प्रक्रिया की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस आश्वासन के बाद शुरू हो गया था जब उन्होंने ट्विटर पोस्ट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए जवाब में लिखा था कि "आपके इस प्रस्ताव पर गम्भीरता पूर्वक विचार करने की कोशिश करूंगा।" दरअसल इस प्रक्रिया की शुरुआत उसी समय हो गई थी जब मैंने वैवाहिक विज्ञापनों में दिए गए सवर्ण समाज के मोबाइल फोन नम्बर्स पर आर्थिक आरक्षण की माँग करने के लिए अपने सन्देश एसएमएस के जरिये भेजने का अभियान शुरू किया था। इसके लिए मङ्गलवार और शुक्रवार को वैवाहिक विज्ञापन प्रकाशित करने वाले सभी अखबारों को खरीदने का प्रयास करता और जो अखबार नहीं खरीद पाता उसकी व्यवस्था लोगों से माँग कर कर लेता था। उसके बाद उन अखबारों में प्रकाशित सवर्ण समाज के सभी विज्ञापनदाताओं के मोबाइल फोन नम्बर्स को कलेक्ट करता और उन नम्बरों पर एसएमएस के द्वारा अपने सन्देश भेज-भेज कर आरक्षण से वञ्चित गरीब और असहाय सवर्णों को आन्दोलन छेड़ने के लिए प्रेरक सन्देशों को भेजता रहता था। मेरा इस अभियान का उद्देश्य नहीं जानने वाले लोग मुझे पागल और सनकी कह कर मजाक उड़ाया करते थे, जबकि मैं इसे जन जागरूकता के लिए किया जाने वाला मौन क्रान्ति कहता थ। आखिरकार साल बीतते-बीतते मेरा यह अभियान अपना रंग दिखाने लगा और जगह-जगह पर उपेक्षित सवर्णों के द्वारा आर्थिक आधार पर आरक्षण का कानून बनाने की माँग को लेकर धरना, प्रदर्शन और गोष्ठियों का आयोजन किया जाने लगा था। बाद में इस अभियान में और गति लाने के लिए मैंने अपने ट्विटर पेज़ और फेसबुक का भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था। मेरे द्वारा दिया गया नारा इतना प्रचारित हुआ कि मुझे नहीं जानने वाले लोग भी मेरे द्वारा दिए गए नारा को अपने ग्रुप्स में फारवर्ड करने लगे थे। 

अपने साथ होने वाले घरेलु प्रताड़ना और अपनी चरित्रहीन पत्नी के द्वारा किये गये झूठे केस-मुकदमों से ऊब कर घर-परिवार छोड़ कर मैं अक्सर अनजान जगहों की यात्रा पर निकल जाता था। घर छोड़ते समय मुझे खुद ही पता नहीं रहता था कि मुझे कहाँ जाना है। बस लोगों से यह पता कर लेता था कि इस ट्रेन की अन्तिम स्टेशन कहाँ है?.. और रुपये-पैसे की व्यवस्था किये बिना ही किसी अनजान लोगों के व्यवहार, संस्कार, आवश्यकताओं और परेशानियों का समझते हुए अनजान जगह की यात्रा पर निकल जाता था। इस देश की जेलों में अमीर लोग ज्यादा कैद हैं या गरीब लोग, इसकी जानकारी के लिए भी इस देश की अधिक से अधिक जेलों की यात्रा करने की इच्छा होने के कारण भी मैं अक्सर बिदाउट टिकट ही यात्रा करता था। लेकिन पकड़े जाने के बाद भी टीटी या मजिस्ट्रेट मेरी फक्कर वाली दशा देख कर छोड़ देता था। पास में पैसे न होने के कारण मुझे कई-कई दिनों तक भूखे रहने की आदत पड़ गई थी। ग्रामीण क्षेत्रों की यात्रा के दौरान कुछ लोग आग्रह कर के जबरन खाना खिलाते और मेरी कथाओं को भी तन्मयता पूर्वक सुनते थे। कई जगहों पर तो अगले सफर पर निकलते समय दो-तीन समय का भोजन और नाश्ता भी दे देते और दूबारा आने की आग्रह भी करते थे। सिर्फ़ पंजाब और राजस्थान के अतिरिक्त अन्य जगहों पर मैंने सिर्फ़ गरीब किसान और मजदूरों को ही साधु-सन्तों और असहाय लोगों की मदद करते हुए देखा है। जबकि अमीरों को हर जगह गरीब-गुरबों के साथ दुर्व्यवहार और अत्याचार करते हुए ही मैंने देखा है। फिर भी सरकार तमाम सुविधाएं अमीरों को ही दे रखी है।

अपनी यात्रा के दौरान मैंने आरक्षण प्राप्त जाति के पूंजीपति और दबंग लोगों के घरों में में बेगारी करने वाले उसी की जाति के वैसे लोगों को भी देखा है, जिसे सरकारी सहायता लेने से उसकी जाति के ही दबंगों के द्वारा इसलिए रोक दिया जाता है, ताकि उसके घर में सिर्फ़ भर पेट भोजन के बदले बेगारी करने वाले लोग भाग न जाएं। इसी तरह के अत्याचार सवर्ण जाति के गरीब-गुरबों के साथ भी सभी जातियों के पूंजीपतियों के द्वारा किये जाते हैं। गरीब-गुरबों के आवेदन पर पुलिस-प्रशासन भी ध्यान नहीं देता है, जबकि पूंजीपति लोगों के नाजायज कामों को करने के लिए भी सरकारी और गैरसरकारी से लेकर समाज के लगभग सभी वर्गों के लोग तैयार हो जाते हैं। इसके बावजूद घोर गरीबी में जीवन-यापन करने के लिए मजबूर सवर्ण जातियों के गरीब-गुरबों को भगवान भरोसे छोड़ कर सिर्फ़ जाति विशेष के लोगों को ही आरक्षण का लाभ देने वाले कानून सवर्ण जातियों के दबे-कुचले और असहाय लोगों के साथ अन्याय है। 

इस देश में विधि-व्यवस्था और सामाजिक न्याय का सच जानने के साथ अपने पूर्वज़ों की धरती की तलाश में मैंने जिस यात्रा की शुरुआत की थी उस यात्रा के दौरान मैं जहाँ भी गया, घोर गरीबी में जीवन-यापन करने के लिए मजबूर होने के बाद भी आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाने के कारण दुखी लोगों में देश और देश के नेताओं के प्रति जो नफ़रत का भाव दिखाई दिया उससे यही प्रतीत हुआ कि इस देश में सवर्ण जातियों के गरीब-गुरबों की स्थिति गुलामों की तरह ही है।

अपनी यात्रा के दौरान १६५९ ईस्वी में राजस्थान से विस्थापित अपने पूर्वज़ों की धरती की तलाश में भटकते हुए बेघर, बेरोजगार और असहाय होने के कारण मठों, मन्दिरों और गाँव-कस्बों में यायावर की तरह घूमते हुए जहाँ भी दोषपूर्ण कानून-व्यवस्था के कारण पीड़ित लोगों को देखा, वहाँ कुछ दिनों के लिए रुक कर लोगों को सामाजिक समानता के लिए जागरूक करते हुए घुमता रहा। घोर गरीबी में जीने के लिए मजबूर होते हुए भी अपनी जातिय स्वाभिमान के कारण चाह कर भी लोगों से मदद नहीं माँग पाता था। लेकिन एक दुर्घटना के कारण "विंगिंग औफ स्कैपुला" नामक असाध्य गम्भीर बीमारी से ग्रसित होने के बाद मुझे मजबूर होकर जब लोगों के सामने हाथ फैलाने पर भी मदद नहीं मिला तब मेरे जीवन का लक्ष्य ही बदल गया था। अपने इलाज के लिए खुद को समाज सेवी कहने वाले पुंजीपति मित्रों, एनजीओ संचालकों, भाजपा सांसदों और विधायकों के द्वारा भी जब मदद नहीं दिया गया तब मुझे पता चला कि गम्भीर बिमारियों के इलाज के लिए निम्न आय वाले लोगों को बिहार सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय आर्थिक मदद करता है। जिसमें केन्द्र सरकार की भी सहभागिता होती है। इस बात की घोषणा करते हुए बिहार सरकार ने सरकारी अस्पतालों में जगह-जगह विशालकाय होर्डिंग लगा रखा था। उस होर्डिंग पर दिए गए कस्टमर केयर नम्बर पर कॉल करते ही उनसे उनकी जाति पूछी गई थी और यह जानते ही कि फ़ोन करने वाला व्यक्ति राजपूत जाति का है, उसने यह कहते हुए फ़ोन को डिस्कनेक्ट कर दिया था कि "सवर्ण जातियों के लिये यह योजना नहीं है। तुम राजपूत हो न? तब कहाँ गया तुम्हारा हाथी-घोड़ा? जाकर अपना राज सम्भालो।" बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग के सूचना विभाग में पदस्थापित कर्मचारी से अपमानित होने के बाद सम्बन्धित विभाग में जाकर शिकायत करने पर भी मदद करने से इंकार कर दिया गया था। तब जाकर मुझे समझ में आया कि इस देश में समरस समाज के नाम पर सवर्ण जाति के लोगों को कैसे मूर्ख बनाया जा रहा है। अपनी इसी अनुभूति के बाद मैंने शुरू किया था आर्थिक आरक्षण के लिए जन-जागरूकता अभियान। आखिरकार एक दिन मेरे ट्विटर पेज़ पर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का वह सन्देश इन्हें प्राप्त हुआ जिसमें यह लिखा हुआ था - "स्वामी जी! आपका यह प्रस्ताव लोक मानस के हित में है। अतः इस पर गम्भीरता पूर्वक विचार करने का वचन देता हूँ। इस विषय की ओर ध्यानाकर्षण के लिए धन्यवाद।

प्रधानमंत्री की ओर से मिले उस आश्वासन से मुझे पहली बार लगा था कि इस देश में आम लोगों की भी बातों को गम्भीरता से लेने वाले लोग रहते हैं। मगर इनकी संख्या इतनी कम है कि स्वार्थी और धूर्त लोगों की भीड़ में छुप जाते हैं। हमें ऐसे लोगों को ही ढूंढ कर बाहर लाने की जरूरत है। क्योंकि ऐसे ही लोगों से यह देश और समाज बचेगा।

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आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू करने की अधिसूचना जारी करने के बाद भी गरीब सवर्णों को क्यों नहीं दिया जा रहा है आरक्षण का लाभ? आयें तलाशते हैं इसका जवाब