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शनिवार, 21 अगस्त 2021

कविता : सवर्ण अछूत

हमको देखो हम सवर्ण हैं 
भारत माँ के पूत हैं,
लेकिन दुःख है अब भारत में,
हम सब 'नए अछूत' हैं।

सारे नियम सभी कानूनों
ने हमको ही मारा है,
भारत का निर्माता देखो,
अपने घर में हारा है।
नहीं हमारे लिए नौकरी,
नहीं सीट विद्यालय में।
ना अपनी कोई सुनवाई,
संसद या न्यायालय में।
हम भविष्य थे भारत माँ के,
आज बने हम भूत हैं।
बेहद दुःख है अब भारत में
हम सब 'नए अछूत' हैं।

दलित महज़ आरोप लगा दे,
हमें जेल में जाना है।
हम-निर्दोष! नहीं हैं दोषी,
यह सबूत भी लाना है।
हम जिनको सत्ता में लाये,
छुरा उन्हीं ने भोंका है।
काले कानूनों की भट्ठी,
में हम सब को झोंका है।
किनको चुनें, किन्हें हरायें?
सारे पाप के दूत हैं।
बेहद दुःख है अब भारत में
हम सब 'नए अछूत' हैं।

प्राण त्यागते हैं सीमा पर,
लड़ कर मरते हम ही हैं।
अपनी मेधा से भारत की,
सेवा करते हम ही हैं।
हर सवर्ण इस भारत माँ का,
एक अनमोल नगीना है।
इसके हर बच्चे-बच्चे का,
छप्पन इंची सीना है।
भस्म हमारी शिवशंकर से,
लिपटी हुई भभूत है।
लेकिन दुःख है अब भारत में,
हम सब 'नए अछूत' हैं।

देकर खून पसीना अपना,
इस गुलशन को सींचा है।
डूबा देश रसातल में जब,
हमने बाहर खींचा है।
हमने ही भारत भूमि में,
धर्म-ध्वजा लहराई है।
सोच हमारी नभ को चूमे
बातों में गहराई है।
हम हैं त्यागी, हम बैरागी,
हम ही तो अवधूत हैं।
बेहद दुःख है अब भारत में,
हम सब 'नए अछूत' है। 

- कविता शीर्षक #सवर्ण_अछूत नामक यह रचना उदासी सन्त, कवि और समाजसेवी प्रसेनजित सिंह कौशिक उर्फ़ स्वामी सत्यानन्द के द्वारा स्वरचित मौलिक रचना है तथा उनकी कविता संग्रह "मेरा मन यायावर" से उद्धृत है।  राष्ट्रीय एकता तथा सामाजिक समरसता में बाधक बन रहे जाति, धर्म और लिंग आधारित आरक्षण के बजाए आर्थिक और सामाजिक स्थिति के आधार पर आरक्षण के कानून बनवाने के लिए इच्छुक लोगों से आग्रह है कि जात-पात आधारित वर्तमान क़ानूनों के कारण होने वाली आपबीती या अपने आस-पास के लोगों के साथ हो रहे परेशानियों को गद्य और पद्य में लिख कर या वीडियो रिकार्डिंग कर के मुझे जरूर भेजें। ताकि उन्हें इस ब्लॉग या हमारे संगठन की स्मारिका में जन जागरुकता हेतु सम्मिलित कर आपके सन्देशों को प्रचारित-प्रसारित किया जा सके। कृप्या यह सन्देश सवर्ण समाज के अपने मित्रों को जरूर फारवर्ड या अग्रसारित जरूर करें।

बुधवार, 21 अप्रैल 2021

आर्थिक आधार पर आरक्षण का सच

किस्सा आर्थिक आधार पर आरक्षण के शुरूआत की


केन्द्र की एनडीए सरकार द्वारा आर्थिक आधार पर सरकारी नौकरी व शिक्षण संस्थानों में आरक्षण देने की अधिसूचना जारी कर दी थी। इसके लिए केन्द्र सरकार ने जो मापदण्ड तैयार किये हैं उसमें राज्य सरकारों को बदलाव करने के अधिकार दिए गए हैं। राष्ट्रपति की मञ्जूरी के बाद यह केन्द्र सरकार की नौकरियों में इसके लागू होने की घोषणा होते ही गुजरात और झारखण्ड सरकार ने भी इसे लागू करने की घोषणा कर दी थी। जबकि बिहार सरकार द्वारा इसके लिए मन्थन किया जा रहा था।

गरीब सवर्णों सहित आर्थिक आरक्षण से वञ्चित लोगों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के लिए संसद में विधेयक लाने की प्रक्रिया की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस आश्वासन के बाद शुरू हो गया था जब उन्होंने ट्विटर पोस्ट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए जवाब में लिखा था कि "आपके इस प्रस्ताव पर गम्भीरता पूर्वक विचार करने की कोशिश करूंगा।" दरअसल इस प्रक्रिया की शुरुआत उसी समय हो गई थी जब मैंने वैवाहिक विज्ञापनों में दिए गए सवर्ण समाज के मोबाइल फोन नम्बर्स पर आर्थिक आरक्षण की माँग करने के लिए अपने सन्देश एसएमएस के जरिये भेजने का अभियान शुरू किया था। इसके लिए मङ्गलवार और शुक्रवार को वैवाहिक विज्ञापन प्रकाशित करने वाले सभी अखबारों को खरीदने का प्रयास करता और जो अखबार नहीं खरीद पाता उसकी व्यवस्था लोगों से माँग कर कर लेता था। उसके बाद उन अखबारों में प्रकाशित सवर्ण समाज के सभी विज्ञापनदाताओं के मोबाइल फोन नम्बर्स को कलेक्ट करता और उन नम्बरों पर एसएमएस के द्वारा अपने सन्देश भेज-भेज कर आरक्षण से वञ्चित गरीब और असहाय सवर्णों को आन्दोलन छेड़ने के लिए प्रेरक सन्देशों को भेजता रहता था। मेरा इस अभियान का उद्देश्य नहीं जानने वाले लोग मुझे पागल और सनकी कह कर मजाक उड़ाया करते थे, जबकि मैं इसे जन जागरूकता के लिए किया जाने वाला मौन क्रान्ति कहता थ। आखिरकार साल बीतते-बीतते मेरा यह अभियान अपना रंग दिखाने लगा और जगह-जगह पर उपेक्षित सवर्णों के द्वारा आर्थिक आधार पर आरक्षण का कानून बनाने की माँग को लेकर धरना, प्रदर्शन और गोष्ठियों का आयोजन किया जाने लगा था। बाद में इस अभियान में और गति लाने के लिए मैंने अपने ट्विटर पेज़ और फेसबुक का भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था। मेरे द्वारा दिया गया नारा इतना प्रचारित हुआ कि मुझे नहीं जानने वाले लोग भी मेरे द्वारा दिए गए नारा को अपने ग्रुप्स में फारवर्ड करने लगे थे। 

अपने साथ होने वाले घरेलु प्रताड़ना और अपनी चरित्रहीन पत्नी के द्वारा किये गये झूठे केस-मुकदमों से ऊब कर घर-परिवार छोड़ कर मैं अक्सर अनजान जगहों की यात्रा पर निकल जाता था। घर छोड़ते समय मुझे खुद ही पता नहीं रहता था कि मुझे कहाँ जाना है। बस लोगों से यह पता कर लेता था कि इस ट्रेन की अन्तिम स्टेशन कहाँ है?.. और रुपये-पैसे की व्यवस्था किये बिना ही किसी अनजान लोगों के व्यवहार, संस्कार, आवश्यकताओं और परेशानियों का समझते हुए अनजान जगह की यात्रा पर निकल जाता था। इस देश की जेलों में अमीर लोग ज्यादा कैद हैं या गरीब लोग, इसकी जानकारी के लिए भी इस देश की अधिक से अधिक जेलों की यात्रा करने की इच्छा होने के कारण भी मैं अक्सर बिदाउट टिकट ही यात्रा करता था। लेकिन पकड़े जाने के बाद भी टीटी या मजिस्ट्रेट मेरी फक्कर वाली दशा देख कर छोड़ देता था। पास में पैसे न होने के कारण मुझे कई-कई दिनों तक भूखे रहने की आदत पड़ गई थी। ग्रामीण क्षेत्रों की यात्रा के दौरान कुछ लोग आग्रह कर के जबरन खाना खिलाते और मेरी कथाओं को भी तन्मयता पूर्वक सुनते थे। कई जगहों पर तो अगले सफर पर निकलते समय दो-तीन समय का भोजन और नाश्ता भी दे देते और दूबारा आने की आग्रह भी करते थे। सिर्फ़ पंजाब और राजस्थान के अतिरिक्त अन्य जगहों पर मैंने सिर्फ़ गरीब किसान और मजदूरों को ही साधु-सन्तों और असहाय लोगों की मदद करते हुए देखा है। जबकि अमीरों को हर जगह गरीब-गुरबों के साथ दुर्व्यवहार और अत्याचार करते हुए ही मैंने देखा है। फिर भी सरकार तमाम सुविधाएं अमीरों को ही दे रखी है।

अपनी यात्रा के दौरान मैंने आरक्षण प्राप्त जाति के पूंजीपति और दबंग लोगों के घरों में में बेगारी करने वाले उसी की जाति के वैसे लोगों को भी देखा है, जिसे सरकारी सहायता लेने से उसकी जाति के ही दबंगों के द्वारा इसलिए रोक दिया जाता है, ताकि उसके घर में सिर्फ़ भर पेट भोजन के बदले बेगारी करने वाले लोग भाग न जाएं। इसी तरह के अत्याचार सवर्ण जाति के गरीब-गुरबों के साथ भी सभी जातियों के पूंजीपतियों के द्वारा किये जाते हैं। गरीब-गुरबों के आवेदन पर पुलिस-प्रशासन भी ध्यान नहीं देता है, जबकि पूंजीपति लोगों के नाजायज कामों को करने के लिए भी सरकारी और गैरसरकारी से लेकर समाज के लगभग सभी वर्गों के लोग तैयार हो जाते हैं। इसके बावजूद घोर गरीबी में जीवन-यापन करने के लिए मजबूर सवर्ण जातियों के गरीब-गुरबों को भगवान भरोसे छोड़ कर सिर्फ़ जाति विशेष के लोगों को ही आरक्षण का लाभ देने वाले कानून सवर्ण जातियों के दबे-कुचले और असहाय लोगों के साथ अन्याय है। 

इस देश में विधि-व्यवस्था और सामाजिक न्याय का सच जानने के साथ अपने पूर्वज़ों की धरती की तलाश में मैंने जिस यात्रा की शुरुआत की थी उस यात्रा के दौरान मैं जहाँ भी गया, घोर गरीबी में जीवन-यापन करने के लिए मजबूर होने के बाद भी आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाने के कारण दुखी लोगों में देश और देश के नेताओं के प्रति जो नफ़रत का भाव दिखाई दिया उससे यही प्रतीत हुआ कि इस देश में सवर्ण जातियों के गरीब-गुरबों की स्थिति गुलामों की तरह ही है।

अपनी यात्रा के दौरान १६५९ ईस्वी में राजस्थान से विस्थापित अपने पूर्वज़ों की धरती की तलाश में भटकते हुए बेघर, बेरोजगार और असहाय होने के कारण मठों, मन्दिरों और गाँव-कस्बों में यायावर की तरह घूमते हुए जहाँ भी दोषपूर्ण कानून-व्यवस्था के कारण पीड़ित लोगों को देखा, वहाँ कुछ दिनों के लिए रुक कर लोगों को सामाजिक समानता के लिए जागरूक करते हुए घुमता रहा। घोर गरीबी में जीने के लिए मजबूर होते हुए भी अपनी जातिय स्वाभिमान के कारण चाह कर भी लोगों से मदद नहीं माँग पाता था। लेकिन एक दुर्घटना के कारण "विंगिंग औफ स्कैपुला" नामक असाध्य गम्भीर बीमारी से ग्रसित होने के बाद मुझे मजबूर होकर जब लोगों के सामने हाथ फैलाने पर भी मदद नहीं मिला तब मेरे जीवन का लक्ष्य ही बदल गया था। अपने इलाज के लिए खुद को समाज सेवी कहने वाले पुंजीपति मित्रों, एनजीओ संचालकों, भाजपा सांसदों और विधायकों के द्वारा भी जब मदद नहीं दिया गया तब मुझे पता चला कि गम्भीर बिमारियों के इलाज के लिए निम्न आय वाले लोगों को बिहार सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय आर्थिक मदद करता है। जिसमें केन्द्र सरकार की भी सहभागिता होती है। इस बात की घोषणा करते हुए बिहार सरकार ने सरकारी अस्पतालों में जगह-जगह विशालकाय होर्डिंग लगा रखा था। उस होर्डिंग पर दिए गए कस्टमर केयर नम्बर पर कॉल करते ही उनसे उनकी जाति पूछी गई थी और यह जानते ही कि फ़ोन करने वाला व्यक्ति राजपूत जाति का है, उसने यह कहते हुए फ़ोन को डिस्कनेक्ट कर दिया था कि "सवर्ण जातियों के लिये यह योजना नहीं है। तुम राजपूत हो न? तब कहाँ गया तुम्हारा हाथी-घोड़ा? जाकर अपना राज सम्भालो।" बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग के सूचना विभाग में पदस्थापित कर्मचारी से अपमानित होने के बाद सम्बन्धित विभाग में जाकर शिकायत करने पर भी मदद करने से इंकार कर दिया गया था। तब जाकर मुझे समझ में आया कि इस देश में समरस समाज के नाम पर सवर्ण जाति के लोगों को कैसे मूर्ख बनाया जा रहा है। अपनी इसी अनुभूति के बाद मैंने शुरू किया था आर्थिक आरक्षण के लिए जन-जागरूकता अभियान। आखिरकार एक दिन मेरे ट्विटर पेज़ पर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का वह सन्देश इन्हें प्राप्त हुआ जिसमें यह लिखा हुआ था - "स्वामी जी! आपका यह प्रस्ताव लोक मानस के हित में है। अतः इस पर गम्भीरता पूर्वक विचार करने का वचन देता हूँ। इस विषय की ओर ध्यानाकर्षण के लिए धन्यवाद।

प्रधानमंत्री की ओर से मिले उस आश्वासन से मुझे पहली बार लगा था कि इस देश में आम लोगों की भी बातों को गम्भीरता से लेने वाले लोग रहते हैं। मगर इनकी संख्या इतनी कम है कि स्वार्थी और धूर्त लोगों की भीड़ में छुप जाते हैं। हमें ऐसे लोगों को ही ढूंढ कर बाहर लाने की जरूरत है। क्योंकि ऐसे ही लोगों से यह देश और समाज बचेगा।

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आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू करने की अधिसूचना जारी करने के बाद भी गरीब सवर्णों को क्यों नहीं दिया जा रहा है आरक्षण का लाभ? आयें तलाशते हैं इसका जवाब




एकांकी संग्रह : आरक्षण का दर्द

आरक्षण का दर्द

✍️ By प्रसेनजित सिंह

एकांकी : 01

पति एक दरगाह पर माथा टेककर घर लौटा, तो पत्नी ने बगैर नहाए घर में घुसने नहीं दी और बरस पड़ी। 
पत्नी : जब अपने चाचा को शमशान में जलाकर आये थे, तब तो खूब रगड़-रगड़ के नहाये थे। आज एक मुसलमान की लाश पर माथा टेक कर आ रहे हो तब नहीं नहाओगे?

पति:   किसकी लाश की बात कह रही हो? अरी बावरी, वो तो समाधी है।

पत्नी:  समाधि? समाधि कैसे हो गया वह? जब उसे जलाया ही नहीं गया? जलायेगा तभी तो समाधी बनेगी। उसमें तो अभी लाश ही पड़ी है।

पति:    अरे ऐसा नहीं कहते, वे तो देवता बन गये हैं।
पत्नी:  तो तुम्हारे चाचा क्या राक्षस थे? इन्हें देवी-देवताओं से इतना ही प्रेम रहता तो हमारे देवी-देवताओं की पूजा का विरोध नहीं करते। उनकी मूर्तियों को नहीं तोड़ते। 

पति:   अरी मुझे तो दोस्त अब्दुल ले गया था। नहीं जाते तो बुरा मान लेता। 

पत्नी:   तो उस अब्दुल को सामने वाले हनुमान मन्दिर में मत्था टेकवाने के लिए ले जाना। कल मंगलवार भी है।

पति:   वहाँ तो वह कभी नहीं जाएगा। ऐसे भी मन्दिरों को वे लोग काफ़ीरों की इबादतगाह समझते हैं। 🤔
ला तू पानी की बाल्टी दे-दे। नहीं तो मेरा भेजा खा जाओगी। 

पत्नी: तो चलिए कान पकड़ के कीरिया खाइये कि आज के बाद हिन्दुओं को काफ़ीर समझने वाले लोगों से कोई मतलब नहीं रखेंगे। उनके मजारों पर मत्था नहीं टेकेंगे। 
हम ईश्वर की सन्तान हैं तो हम लोग ही देवी और देवता हैं। राम और कृष्ण हमारे पूर्वज़ और हमारा घर ही एक मन्दिर है। तो अपने मन्दिर को छोड़ कर हिन्दुओं को काफ़ीर कहने वाले लोगों के दरवाजे पर सिर झुकाने क्यों जायें। जबकि पूर्वज़ों ने हमेशा यही सिखाया है कि दुश्मन के सामने सिर कभी भी झुकने मत देना। हमारे घर में रहने वाले हमारे परिजन ही देवी और देवता हैं। जब वे लोग हमारे सामने सिर नहीं झुकाते हैं तो आप क्यों ऐसा कर के अपनी नामर्दगी दिखाते हैं। तभी तो ये मुसलमान हम हिन्दुओं को आरे से चिरवा देते और बन्दा बहादुर माधो दास जैसे लोगों की भी बोटी-बोटी कर के हत्या करते हैं। ऐसे ही निर्दयी और क्रूर लोगों की आदि शक्ति ने संहार किया था। तब तुम आदि शक्ति और महादेव के विरोधियों के आगे सिर कैसे झुकाने लगे? अपने पितरों और देवी-देवताओं को नाराज़ कर के कभी भी घर में शान्ति और बरक्कत नहीं पाओगे। 

पति : हाँ! आज भी इस सृष्टी पर आदि शक्ति और महादेव की ही  मर्जी चलती है। इसे तो मैं भूल ही गया था। 🌹🙏🌹

हम सुख में हों तब भी और दुख में हों तब भी 
#जय_सनातन_धर्म_की 💞

📧 swamiprasenjeetjee@blogger.com 



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एकांकी : 02


सेकुलर नेता : अरे वाह! देखो तो कितना तेज़ है यह। यह हरिजन होते हुए भी ३५ नम्बर ले आया और एक था भोदक्कर! जो राजपूत होते हुए भी मात्र ८४ नम्बर ही लाया था। साले! इन लफ्फुओं को अपने किस्मत पर रोने से फुर्सत मिलेगा तब नऽ हम रीजर्वेशन वालों की तरह मन लगा कर पढ़ेगा? 

साम्प्रदायिक कार्यकर्ता (सेकुलर नेता की वेश में) : ठीके कहे नेता जी! जब ई सवर्णबन सब के पहले ही बता दिया गया है कि पास होने के लिए कम से कम ८५ नम्बर लाना जरूरी है। तब तो इन लोगों में बेरोजगारी की समस्या के लिए सरकार की कोई गलती नहीं है। सिर्फ़ एक नम्बर और ले आता तो उसे भी नौकरी मिल जाती। नहींऽ?

सेकुलर नेता : अरे बुर्बक! उसे सरकार की कोई सुविधा नहीं मिले इसीलिए तो यह रीजर्वेशन का कानून बनाया गया है।

साम्प्रदायिक कार्यकर्ता (सेकुलर नेता की वेश में) : क्या? 

सेकुलर नेता : तुम्हें समझ में नहीं आता है कि जिसे ब्लेड भी पकड़ने नहीं आता है, वह सर्जन कैसे बन जाता है? जिसे ठीक से ककहरा और पहाड़ा भी नहीं आता है वह सरकारी टीचर कैसे बन जाता है? चलो जाओ, माथा मत खाओ।

साम्प्रदायिक कार्यकर्ता (सेकुलर नेता की वेश में) : नेता जी! सिर्फ़ एक नम्बर के कारण ही न नौकरी नहीं ले पाया। 

सेकुलर नेता : अरे बुर्बक! तुम्हारी तरह ही उसे भी लगता होगा कि वह मात्र एक नम्बर और ले आता तो नौकरी उसे मिल जाती। लेकिन उस मूर्ख को रीजर्वेशन का पावर अभी नहीं पता है। इस रीजर्वेशन के कारण ही हम जाहिल होते हुए भी उसकी नौकरी छीन लेते हैं। वह कितना भी नम्बर लाएगा जीत हमें ही मिलेगा। वह दरोगा होगा और हम सिपाही होंगे, तब भी उसे ही हम से डरना होगा। वह प्रमोशन पाकर ज्यादा से ज्यादा डीएसपी तक पहुंचेगा लेकिन हम प्रमोशन में भी रीजर्वेशन लेकर डीजीपी बन जायेंगे तब उसकी सारी हेकड़ी निकाल देंगे। ये बात सब सवर्ण जानता है, इसलिए औकात में रहता है। हम लोग यदि उससे आगे नहीं बढ़ पाए तब भी वह जादे अलबलायेगा तो हरिजन एक्ट में लपेट के सब सवर्णगिरी निकाल देंगे।

साम्प्रदायिक कार्यकर्ता (सेकुलर नेता की वेश में): ठीके कह रहे हैं सर। सारा भीख मिलते हुए भी यह ३५ नम्बर ले आया और वह राजपूत! जिसके पूर्वजों से सुनते हैं कि देश की एकता के नाम पर राज-पाट, खेत-खलिहान सब ठग लिया गया, वह बिना कोई सरकारी सुविधा लिए ८५ नम्बर भी नहीं ला पाया है? लेकिन एक बात समझ में नहीं आता है कि यह ८४ नम्बर ज्यादा होता है कि ३५ नम्बर?

सेकुलर नेता : अरे बुर्बक! ज्यादा नम्बर तो ८४ ही होता है। लेकिन उन लोगों को समझ में आता है थोड़े न? वे लोग समझबे करते तो आज तक चुप थोड़े रहते। हाःऽ हाःऽ हाःऽ हाःऽ (जोरदार ठहाका)।

साम्प्रदायिक कार्यकर्ता (सेकुलर नेता की वेश में) : अच्छा नेता जी! एक बात और पूछना चाहते हैं, सरकारी सुविधा और बिना सरकारी सुविधा में क्या अन्तर है? बिना सरकारी सुविधा वाला! सरकारी सुविधा लेने वालों से ज्यादा सुविधाओं वाला होता है क्या? 

सेकुलर नेता : अरे बुर्बक! जिसको सरकार से कोई सुविधा नहीं मिले उसको बिना सरकारी सुविधा वाला कहा जाता है। जिसके पास भर पेट खाना खाने का भी औकात नहीं होता है, फिर भी सरकार से कोई मदद नहीं मिलता है उसे बिना सरकारी सुविधाओं वाला कहा जाता है। जिसे जरूरत होने पर भी सरकारी सुविधा नहीं दिया जाता है उसे बिना सरकारी सुविधा वाला कहा जाता है। 

साम्प्रदायिक कार्यकर्ता (सेकुलर नेता की वेश में) : तब तो यह अन्याय है। बिना कोई सुविधा वाला आदमी कहाँ से महँगा-महँगा किताब खरीदेगा? कैसे कोचिंग सेंटर या ट्यूशन फीस का जोगाड़ करेगा? बिना कोई सुविधा के सरकारी सुविधा लेने वालों से ज्यादा नम्बर लायेगा?

सेकुलर नेता : अरे बुर्बक! किसकी चिन्ता कर रहे हो? उन सवर्णों की? आगे-आगे देखते जाओ। हमारा समता मूलक कानून कैसे सारे सवर्णों को भिखाड़ी बना कर इस देश से खदेड़ देगा। फिर सारा भारत हमारा होगा। 

साम्प्रदायिक कार्यकर्ता (सेकुलर नेता की वेश में) : वाह नेता जी! आपने समता मूलक समाज का बहुत बढ़िया कानून बनवाया है। इनके साथ क्या खेल खेला जा रहा है, इन्हें कुछ समझ में थोड़े न आता है। इनसे अपने यहाँ झाड़ू-पोछा लगवाइये, दरबान और चपरासी बना कर खटबाइये और सिर्फ़ "का हो बाऽबू साहब!" कह दीजिए। ई सब इसी से फुल कर कुप्पा हो जाता है। ...फिर इनका वेतन पचा लीजिए, तब भी कुछ नहीं बोलेगा। क्याऽ ठीक कहे नऽ?

सेकुलर नेता : ठीकेऽ कहा। हाःऽ हाःऽ हाःऽ हाःऽ (ठहाका) ई राजपुतवन-भूमिहरवन के कुछ बुझाता है थोड़े नऽ। ई सब के दिमाग तो तलवार में होता था, जिसे हमनी सब कहिए छीन लिए।

साम्प्रदायिक कार्यकर्ता (सेकुलर का चोला फेंक कर) : नेता जी! अब तलवार के जमाना नहीं रहा, ईऽ रीवाल्वर के जमाना है। आप नेतागिरी करते हैं, तब नेता जी की तरह बनिए। बिना किसी को जाने-पहचाने अनाप-शनाप बकना बन्द कीजिए। जिसे आप भोंदू कह रहे हैं वह ८४ नम्बर लाकर भी इस सरकार की नौकरी नहीं ले पाने वाला रजपुतवा हम ही हैं। अब आपका पोल खुल गया है। मत भूलिए कि अम्बेदकर जी को हमारे ही पूर्वज़ ने सहारा देकर आगे बढ़ाया था। आप जिस लोकतंत्र की दुहाई देकर सेकुलर होने का ड्रामा कर रहे हैं, इस लोक तंत्र को दुनियाँ में फैलाने वाले हम ही हैं। लोकतंत्र का मतलब अँधतंत्र नहीं होता, बल्कि प्रजातंत्र होता है। अच्छा हुआ जो आपने खुद सेकुलरिज्म का अर्थ समझा कर अपनी मंशा बता दिये हैं। आपकी हकीकत जान कर सवर्ण समाज के लोग जरूर जागरूक होंगे और आपके इस सेकुलरवाद को खत्म कर के असली लोक तंत्र को मजबूती के साथ कायम करेंगे। आप भी इस देश की एकता के लिए जाति-धर्म का भेद-भाव छोड़कर आर्थिक आधार पर आरक्षण के लिए आवाज उठाइए। इस से आप ज्यादा बड़ा नेता कहायेंगे। नहीं तो अब हमें और बुर्बक नहीं बना पायेंगे।