बुधवार, 21 अप्रैल 2021

आर्थिक आधार पर आरक्षण का सच

किस्सा आर्थिक आधार पर आरक्षण के शुरूआत की


केन्द्र की एनडीए सरकार द्वारा आर्थिक आधार पर सरकारी नौकरी व शिक्षण संस्थानों में आरक्षण देने की अधिसूचना जारी कर दी थी। इसके लिए केन्द्र सरकार ने जो मापदण्ड तैयार किये हैं उसमें राज्य सरकारों को बदलाव करने के अधिकार दिए गए हैं। राष्ट्रपति की मञ्जूरी के बाद यह केन्द्र सरकार की नौकरियों में इसके लागू होने की घोषणा होते ही गुजरात और झारखण्ड सरकार ने भी इसे लागू करने की घोषणा कर दी थी। जबकि बिहार सरकार द्वारा इसके लिए मन्थन किया जा रहा था।

गरीब सवर्णों सहित आर्थिक आरक्षण से वञ्चित लोगों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के लिए संसद में विधेयक लाने की प्रक्रिया की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस आश्वासन के बाद शुरू हो गया था जब उन्होंने ट्विटर पोस्ट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए जवाब में लिखा था कि "आपके इस प्रस्ताव पर गम्भीरता पूर्वक विचार करने की कोशिश करूंगा।" दरअसल इस प्रक्रिया की शुरुआत उसी समय हो गई थी जब मैंने वैवाहिक विज्ञापनों में दिए गए सवर्ण समाज के मोबाइल फोन नम्बर्स पर आर्थिक आरक्षण की माँग करने के लिए अपने सन्देश एसएमएस के जरिये भेजने का अभियान शुरू किया था। इसके लिए मङ्गलवार और शुक्रवार को वैवाहिक विज्ञापन प्रकाशित करने वाले सभी अखबारों को खरीदने का प्रयास करता और जो अखबार नहीं खरीद पाता उसकी व्यवस्था लोगों से माँग कर कर लेता था। उसके बाद उन अखबारों में प्रकाशित सवर्ण समाज के सभी विज्ञापनदाताओं के मोबाइल फोन नम्बर्स को कलेक्ट करता और उन नम्बरों पर एसएमएस के द्वारा अपने सन्देश भेज-भेज कर आरक्षण से वञ्चित गरीब और असहाय सवर्णों को आन्दोलन छेड़ने के लिए प्रेरक सन्देशों को भेजता रहता था। मेरा इस अभियान का उद्देश्य नहीं जानने वाले लोग मुझे पागल और सनकी कह कर मजाक उड़ाया करते थे, जबकि मैं इसे जन जागरूकता के लिए किया जाने वाला मौन क्रान्ति कहता थ। आखिरकार साल बीतते-बीतते मेरा यह अभियान अपना रंग दिखाने लगा और जगह-जगह पर उपेक्षित सवर्णों के द्वारा आर्थिक आधार पर आरक्षण का कानून बनाने की माँग को लेकर धरना, प्रदर्शन और गोष्ठियों का आयोजन किया जाने लगा था। बाद में इस अभियान में और गति लाने के लिए मैंने अपने ट्विटर पेज़ और फेसबुक का भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था। मेरे द्वारा दिया गया नारा इतना प्रचारित हुआ कि मुझे नहीं जानने वाले लोग भी मेरे द्वारा दिए गए नारा को अपने ग्रुप्स में फारवर्ड करने लगे थे। 

अपने साथ होने वाले घरेलु प्रताड़ना और अपनी चरित्रहीन पत्नी के द्वारा किये गये झूठे केस-मुकदमों से ऊब कर घर-परिवार छोड़ कर मैं अक्सर अनजान जगहों की यात्रा पर निकल जाता था। घर छोड़ते समय मुझे खुद ही पता नहीं रहता था कि मुझे कहाँ जाना है। बस लोगों से यह पता कर लेता था कि इस ट्रेन की अन्तिम स्टेशन कहाँ है?.. और रुपये-पैसे की व्यवस्था किये बिना ही किसी अनजान लोगों के व्यवहार, संस्कार, आवश्यकताओं और परेशानियों का समझते हुए अनजान जगह की यात्रा पर निकल जाता था। इस देश की जेलों में अमीर लोग ज्यादा कैद हैं या गरीब लोग, इसकी जानकारी के लिए भी इस देश की अधिक से अधिक जेलों की यात्रा करने की इच्छा होने के कारण भी मैं अक्सर बिदाउट टिकट ही यात्रा करता था। लेकिन पकड़े जाने के बाद भी टीटी या मजिस्ट्रेट मेरी फक्कर वाली दशा देख कर छोड़ देता था। पास में पैसे न होने के कारण मुझे कई-कई दिनों तक भूखे रहने की आदत पड़ गई थी। ग्रामीण क्षेत्रों की यात्रा के दौरान कुछ लोग आग्रह कर के जबरन खाना खिलाते और मेरी कथाओं को भी तन्मयता पूर्वक सुनते थे। कई जगहों पर तो अगले सफर पर निकलते समय दो-तीन समय का भोजन और नाश्ता भी दे देते और दूबारा आने की आग्रह भी करते थे। सिर्फ़ पंजाब और राजस्थान के अतिरिक्त अन्य जगहों पर मैंने सिर्फ़ गरीब किसान और मजदूरों को ही साधु-सन्तों और असहाय लोगों की मदद करते हुए देखा है। जबकि अमीरों को हर जगह गरीब-गुरबों के साथ दुर्व्यवहार और अत्याचार करते हुए ही मैंने देखा है। फिर भी सरकार तमाम सुविधाएं अमीरों को ही दे रखी है।

अपनी यात्रा के दौरान मैंने आरक्षण प्राप्त जाति के पूंजीपति और दबंग लोगों के घरों में में बेगारी करने वाले उसी की जाति के वैसे लोगों को भी देखा है, जिसे सरकारी सहायता लेने से उसकी जाति के ही दबंगों के द्वारा इसलिए रोक दिया जाता है, ताकि उसके घर में सिर्फ़ भर पेट भोजन के बदले बेगारी करने वाले लोग भाग न जाएं। इसी तरह के अत्याचार सवर्ण जाति के गरीब-गुरबों के साथ भी सभी जातियों के पूंजीपतियों के द्वारा किये जाते हैं। गरीब-गुरबों के आवेदन पर पुलिस-प्रशासन भी ध्यान नहीं देता है, जबकि पूंजीपति लोगों के नाजायज कामों को करने के लिए भी सरकारी और गैरसरकारी से लेकर समाज के लगभग सभी वर्गों के लोग तैयार हो जाते हैं। इसके बावजूद घोर गरीबी में जीवन-यापन करने के लिए मजबूर सवर्ण जातियों के गरीब-गुरबों को भगवान भरोसे छोड़ कर सिर्फ़ जाति विशेष के लोगों को ही आरक्षण का लाभ देने वाले कानून सवर्ण जातियों के दबे-कुचले और असहाय लोगों के साथ अन्याय है। 

इस देश में विधि-व्यवस्था और सामाजिक न्याय का सच जानने के साथ अपने पूर्वज़ों की धरती की तलाश में मैंने जिस यात्रा की शुरुआत की थी उस यात्रा के दौरान मैं जहाँ भी गया, घोर गरीबी में जीवन-यापन करने के लिए मजबूर होने के बाद भी आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाने के कारण दुखी लोगों में देश और देश के नेताओं के प्रति जो नफ़रत का भाव दिखाई दिया उससे यही प्रतीत हुआ कि इस देश में सवर्ण जातियों के गरीब-गुरबों की स्थिति गुलामों की तरह ही है।

अपनी यात्रा के दौरान १६५९ ईस्वी में राजस्थान से विस्थापित अपने पूर्वज़ों की धरती की तलाश में भटकते हुए बेघर, बेरोजगार और असहाय होने के कारण मठों, मन्दिरों और गाँव-कस्बों में यायावर की तरह घूमते हुए जहाँ भी दोषपूर्ण कानून-व्यवस्था के कारण पीड़ित लोगों को देखा, वहाँ कुछ दिनों के लिए रुक कर लोगों को सामाजिक समानता के लिए जागरूक करते हुए घुमता रहा। घोर गरीबी में जीने के लिए मजबूर होते हुए भी अपनी जातिय स्वाभिमान के कारण चाह कर भी लोगों से मदद नहीं माँग पाता था। लेकिन एक दुर्घटना के कारण "विंगिंग औफ स्कैपुला" नामक असाध्य गम्भीर बीमारी से ग्रसित होने के बाद मुझे मजबूर होकर जब लोगों के सामने हाथ फैलाने पर भी मदद नहीं मिला तब मेरे जीवन का लक्ष्य ही बदल गया था। अपने इलाज के लिए खुद को समाज सेवी कहने वाले पुंजीपति मित्रों, एनजीओ संचालकों, भाजपा सांसदों और विधायकों के द्वारा भी जब मदद नहीं दिया गया तब मुझे पता चला कि गम्भीर बिमारियों के इलाज के लिए निम्न आय वाले लोगों को बिहार सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय आर्थिक मदद करता है। जिसमें केन्द्र सरकार की भी सहभागिता होती है। इस बात की घोषणा करते हुए बिहार सरकार ने सरकारी अस्पतालों में जगह-जगह विशालकाय होर्डिंग लगा रखा था। उस होर्डिंग पर दिए गए कस्टमर केयर नम्बर पर कॉल करते ही उनसे उनकी जाति पूछी गई थी और यह जानते ही कि फ़ोन करने वाला व्यक्ति राजपूत जाति का है, उसने यह कहते हुए फ़ोन को डिस्कनेक्ट कर दिया था कि "सवर्ण जातियों के लिये यह योजना नहीं है। तुम राजपूत हो न? तब कहाँ गया तुम्हारा हाथी-घोड़ा? जाकर अपना राज सम्भालो।" बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग के सूचना विभाग में पदस्थापित कर्मचारी से अपमानित होने के बाद सम्बन्धित विभाग में जाकर शिकायत करने पर भी मदद करने से इंकार कर दिया गया था। तब जाकर मुझे समझ में आया कि इस देश में समरस समाज के नाम पर सवर्ण जाति के लोगों को कैसे मूर्ख बनाया जा रहा है। अपनी इसी अनुभूति के बाद मैंने शुरू किया था आर्थिक आरक्षण के लिए जन-जागरूकता अभियान। आखिरकार एक दिन मेरे ट्विटर पेज़ पर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का वह सन्देश इन्हें प्राप्त हुआ जिसमें यह लिखा हुआ था - "स्वामी जी! आपका यह प्रस्ताव लोक मानस के हित में है। अतः इस पर गम्भीरता पूर्वक विचार करने का वचन देता हूँ। इस विषय की ओर ध्यानाकर्षण के लिए धन्यवाद।

प्रधानमंत्री की ओर से मिले उस आश्वासन से मुझे पहली बार लगा था कि इस देश में आम लोगों की भी बातों को गम्भीरता से लेने वाले लोग रहते हैं। मगर इनकी संख्या इतनी कम है कि स्वार्थी और धूर्त लोगों की भीड़ में छुप जाते हैं। हमें ऐसे लोगों को ही ढूंढ कर बाहर लाने की जरूरत है। क्योंकि ऐसे ही लोगों से यह देश और समाज बचेगा।

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आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू करने की अधिसूचना जारी करने के बाद भी गरीब सवर्णों को क्यों नहीं दिया जा रहा है आरक्षण का लाभ? आयें तलाशते हैं इसका जवाब




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