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शनिवार, 21 अगस्त 2021

कविता : सवर्ण अछूत

हमको देखो हम सवर्ण हैं 
भारत माँ के पूत हैं,
लेकिन दुःख है अब भारत में,
हम सब 'नए अछूत' हैं।

सारे नियम सभी कानूनों
ने हमको ही मारा है,
भारत का निर्माता देखो,
अपने घर में हारा है।
नहीं हमारे लिए नौकरी,
नहीं सीट विद्यालय में।
ना अपनी कोई सुनवाई,
संसद या न्यायालय में।
हम भविष्य थे भारत माँ के,
आज बने हम भूत हैं।
बेहद दुःख है अब भारत में
हम सब 'नए अछूत' हैं।

दलित महज़ आरोप लगा दे,
हमें जेल में जाना है।
हम-निर्दोष! नहीं हैं दोषी,
यह सबूत भी लाना है।
हम जिनको सत्ता में लाये,
छुरा उन्हीं ने भोंका है।
काले कानूनों की भट्ठी,
में हम सब को झोंका है।
किनको चुनें, किन्हें हरायें?
सारे पाप के दूत हैं।
बेहद दुःख है अब भारत में
हम सब 'नए अछूत' हैं।

प्राण त्यागते हैं सीमा पर,
लड़ कर मरते हम ही हैं।
अपनी मेधा से भारत की,
सेवा करते हम ही हैं।
हर सवर्ण इस भारत माँ का,
एक अनमोल नगीना है।
इसके हर बच्चे-बच्चे का,
छप्पन इंची सीना है।
भस्म हमारी शिवशंकर से,
लिपटी हुई भभूत है।
लेकिन दुःख है अब भारत में,
हम सब 'नए अछूत' हैं।

देकर खून पसीना अपना,
इस गुलशन को सींचा है।
डूबा देश रसातल में जब,
हमने बाहर खींचा है।
हमने ही भारत भूमि में,
धर्म-ध्वजा लहराई है।
सोच हमारी नभ को चूमे
बातों में गहराई है।
हम हैं त्यागी, हम बैरागी,
हम ही तो अवधूत हैं।
बेहद दुःख है अब भारत में,
हम सब 'नए अछूत' है। 

- कविता शीर्षक #सवर्ण_अछूत नामक यह रचना उदासी सन्त, कवि और समाजसेवी प्रसेनजित सिंह कौशिक उर्फ़ स्वामी सत्यानन्द के द्वारा स्वरचित मौलिक रचना है तथा उनकी कविता संग्रह "मेरा मन यायावर" से उद्धृत है।  राष्ट्रीय एकता तथा सामाजिक समरसता में बाधक बन रहे जाति, धर्म और लिंग आधारित आरक्षण के बजाए आर्थिक और सामाजिक स्थिति के आधार पर आरक्षण के कानून बनवाने के लिए इच्छुक लोगों से आग्रह है कि जात-पात आधारित वर्तमान क़ानूनों के कारण होने वाली आपबीती या अपने आस-पास के लोगों के साथ हो रहे परेशानियों को गद्य और पद्य में लिख कर या वीडियो रिकार्डिंग कर के मुझे जरूर भेजें। ताकि उन्हें इस ब्लॉग या हमारे संगठन की स्मारिका में जन जागरुकता हेतु सम्मिलित कर आपके सन्देशों को प्रचारित-प्रसारित किया जा सके। कृप्या यह सन्देश सवर्ण समाज के अपने मित्रों को जरूर फारवर्ड या अग्रसारित जरूर करें।

बुधवार, 21 अप्रैल 2021

आर्थिक आधार पर आरक्षण का सच

किस्सा आर्थिक आधार पर आरक्षण के शुरूआत की


केन्द्र की एनडीए सरकार द्वारा आर्थिक आधार पर सरकारी नौकरी व शिक्षण संस्थानों में आरक्षण देने की अधिसूचना जारी कर दी थी। इसके लिए केन्द्र सरकार ने जो मापदण्ड तैयार किये हैं उसमें राज्य सरकारों को बदलाव करने के अधिकार दिए गए हैं। राष्ट्रपति की मञ्जूरी के बाद यह केन्द्र सरकार की नौकरियों में इसके लागू होने की घोषणा होते ही गुजरात और झारखण्ड सरकार ने भी इसे लागू करने की घोषणा कर दी थी। जबकि बिहार सरकार द्वारा इसके लिए मन्थन किया जा रहा था।

गरीब सवर्णों सहित आर्थिक आरक्षण से वञ्चित लोगों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के लिए संसद में विधेयक लाने की प्रक्रिया की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस आश्वासन के बाद शुरू हो गया था जब उन्होंने ट्विटर पोस्ट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए जवाब में लिखा था कि "आपके इस प्रस्ताव पर गम्भीरता पूर्वक विचार करने की कोशिश करूंगा।" दरअसल इस प्रक्रिया की शुरुआत उसी समय हो गई थी जब मैंने वैवाहिक विज्ञापनों में दिए गए सवर्ण समाज के मोबाइल फोन नम्बर्स पर आर्थिक आरक्षण की माँग करने के लिए अपने सन्देश एसएमएस के जरिये भेजने का अभियान शुरू किया था। इसके लिए मङ्गलवार और शुक्रवार को वैवाहिक विज्ञापन प्रकाशित करने वाले सभी अखबारों को खरीदने का प्रयास करता और जो अखबार नहीं खरीद पाता उसकी व्यवस्था लोगों से माँग कर कर लेता था। उसके बाद उन अखबारों में प्रकाशित सवर्ण समाज के सभी विज्ञापनदाताओं के मोबाइल फोन नम्बर्स को कलेक्ट करता और उन नम्बरों पर एसएमएस के द्वारा अपने सन्देश भेज-भेज कर आरक्षण से वञ्चित गरीब और असहाय सवर्णों को आन्दोलन छेड़ने के लिए प्रेरक सन्देशों को भेजता रहता था। मेरा इस अभियान का उद्देश्य नहीं जानने वाले लोग मुझे पागल और सनकी कह कर मजाक उड़ाया करते थे, जबकि मैं इसे जन जागरूकता के लिए किया जाने वाला मौन क्रान्ति कहता थ। आखिरकार साल बीतते-बीतते मेरा यह अभियान अपना रंग दिखाने लगा और जगह-जगह पर उपेक्षित सवर्णों के द्वारा आर्थिक आधार पर आरक्षण का कानून बनाने की माँग को लेकर धरना, प्रदर्शन और गोष्ठियों का आयोजन किया जाने लगा था। बाद में इस अभियान में और गति लाने के लिए मैंने अपने ट्विटर पेज़ और फेसबुक का भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था। मेरे द्वारा दिया गया नारा इतना प्रचारित हुआ कि मुझे नहीं जानने वाले लोग भी मेरे द्वारा दिए गए नारा को अपने ग्रुप्स में फारवर्ड करने लगे थे। 

अपने साथ होने वाले घरेलु प्रताड़ना और अपनी चरित्रहीन पत्नी के द्वारा किये गये झूठे केस-मुकदमों से ऊब कर घर-परिवार छोड़ कर मैं अक्सर अनजान जगहों की यात्रा पर निकल जाता था। घर छोड़ते समय मुझे खुद ही पता नहीं रहता था कि मुझे कहाँ जाना है। बस लोगों से यह पता कर लेता था कि इस ट्रेन की अन्तिम स्टेशन कहाँ है?.. और रुपये-पैसे की व्यवस्था किये बिना ही किसी अनजान लोगों के व्यवहार, संस्कार, आवश्यकताओं और परेशानियों का समझते हुए अनजान जगह की यात्रा पर निकल जाता था। इस देश की जेलों में अमीर लोग ज्यादा कैद हैं या गरीब लोग, इसकी जानकारी के लिए भी इस देश की अधिक से अधिक जेलों की यात्रा करने की इच्छा होने के कारण भी मैं अक्सर बिदाउट टिकट ही यात्रा करता था। लेकिन पकड़े जाने के बाद भी टीटी या मजिस्ट्रेट मेरी फक्कर वाली दशा देख कर छोड़ देता था। पास में पैसे न होने के कारण मुझे कई-कई दिनों तक भूखे रहने की आदत पड़ गई थी। ग्रामीण क्षेत्रों की यात्रा के दौरान कुछ लोग आग्रह कर के जबरन खाना खिलाते और मेरी कथाओं को भी तन्मयता पूर्वक सुनते थे। कई जगहों पर तो अगले सफर पर निकलते समय दो-तीन समय का भोजन और नाश्ता भी दे देते और दूबारा आने की आग्रह भी करते थे। सिर्फ़ पंजाब और राजस्थान के अतिरिक्त अन्य जगहों पर मैंने सिर्फ़ गरीब किसान और मजदूरों को ही साधु-सन्तों और असहाय लोगों की मदद करते हुए देखा है। जबकि अमीरों को हर जगह गरीब-गुरबों के साथ दुर्व्यवहार और अत्याचार करते हुए ही मैंने देखा है। फिर भी सरकार तमाम सुविधाएं अमीरों को ही दे रखी है।

अपनी यात्रा के दौरान मैंने आरक्षण प्राप्त जाति के पूंजीपति और दबंग लोगों के घरों में में बेगारी करने वाले उसी की जाति के वैसे लोगों को भी देखा है, जिसे सरकारी सहायता लेने से उसकी जाति के ही दबंगों के द्वारा इसलिए रोक दिया जाता है, ताकि उसके घर में सिर्फ़ भर पेट भोजन के बदले बेगारी करने वाले लोग भाग न जाएं। इसी तरह के अत्याचार सवर्ण जाति के गरीब-गुरबों के साथ भी सभी जातियों के पूंजीपतियों के द्वारा किये जाते हैं। गरीब-गुरबों के आवेदन पर पुलिस-प्रशासन भी ध्यान नहीं देता है, जबकि पूंजीपति लोगों के नाजायज कामों को करने के लिए भी सरकारी और गैरसरकारी से लेकर समाज के लगभग सभी वर्गों के लोग तैयार हो जाते हैं। इसके बावजूद घोर गरीबी में जीवन-यापन करने के लिए मजबूर सवर्ण जातियों के गरीब-गुरबों को भगवान भरोसे छोड़ कर सिर्फ़ जाति विशेष के लोगों को ही आरक्षण का लाभ देने वाले कानून सवर्ण जातियों के दबे-कुचले और असहाय लोगों के साथ अन्याय है। 

इस देश में विधि-व्यवस्था और सामाजिक न्याय का सच जानने के साथ अपने पूर्वज़ों की धरती की तलाश में मैंने जिस यात्रा की शुरुआत की थी उस यात्रा के दौरान मैं जहाँ भी गया, घोर गरीबी में जीवन-यापन करने के लिए मजबूर होने के बाद भी आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाने के कारण दुखी लोगों में देश और देश के नेताओं के प्रति जो नफ़रत का भाव दिखाई दिया उससे यही प्रतीत हुआ कि इस देश में सवर्ण जातियों के गरीब-गुरबों की स्थिति गुलामों की तरह ही है।

अपनी यात्रा के दौरान १६५९ ईस्वी में राजस्थान से विस्थापित अपने पूर्वज़ों की धरती की तलाश में भटकते हुए बेघर, बेरोजगार और असहाय होने के कारण मठों, मन्दिरों और गाँव-कस्बों में यायावर की तरह घूमते हुए जहाँ भी दोषपूर्ण कानून-व्यवस्था के कारण पीड़ित लोगों को देखा, वहाँ कुछ दिनों के लिए रुक कर लोगों को सामाजिक समानता के लिए जागरूक करते हुए घुमता रहा। घोर गरीबी में जीने के लिए मजबूर होते हुए भी अपनी जातिय स्वाभिमान के कारण चाह कर भी लोगों से मदद नहीं माँग पाता था। लेकिन एक दुर्घटना के कारण "विंगिंग औफ स्कैपुला" नामक असाध्य गम्भीर बीमारी से ग्रसित होने के बाद मुझे मजबूर होकर जब लोगों के सामने हाथ फैलाने पर भी मदद नहीं मिला तब मेरे जीवन का लक्ष्य ही बदल गया था। अपने इलाज के लिए खुद को समाज सेवी कहने वाले पुंजीपति मित्रों, एनजीओ संचालकों, भाजपा सांसदों और विधायकों के द्वारा भी जब मदद नहीं दिया गया तब मुझे पता चला कि गम्भीर बिमारियों के इलाज के लिए निम्न आय वाले लोगों को बिहार सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय आर्थिक मदद करता है। जिसमें केन्द्र सरकार की भी सहभागिता होती है। इस बात की घोषणा करते हुए बिहार सरकार ने सरकारी अस्पतालों में जगह-जगह विशालकाय होर्डिंग लगा रखा था। उस होर्डिंग पर दिए गए कस्टमर केयर नम्बर पर कॉल करते ही उनसे उनकी जाति पूछी गई थी और यह जानते ही कि फ़ोन करने वाला व्यक्ति राजपूत जाति का है, उसने यह कहते हुए फ़ोन को डिस्कनेक्ट कर दिया था कि "सवर्ण जातियों के लिये यह योजना नहीं है। तुम राजपूत हो न? तब कहाँ गया तुम्हारा हाथी-घोड़ा? जाकर अपना राज सम्भालो।" बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग के सूचना विभाग में पदस्थापित कर्मचारी से अपमानित होने के बाद सम्बन्धित विभाग में जाकर शिकायत करने पर भी मदद करने से इंकार कर दिया गया था। तब जाकर मुझे समझ में आया कि इस देश में समरस समाज के नाम पर सवर्ण जाति के लोगों को कैसे मूर्ख बनाया जा रहा है। अपनी इसी अनुभूति के बाद मैंने शुरू किया था आर्थिक आरक्षण के लिए जन-जागरूकता अभियान। आखिरकार एक दिन मेरे ट्विटर पेज़ पर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का वह सन्देश इन्हें प्राप्त हुआ जिसमें यह लिखा हुआ था - "स्वामी जी! आपका यह प्रस्ताव लोक मानस के हित में है। अतः इस पर गम्भीरता पूर्वक विचार करने का वचन देता हूँ। इस विषय की ओर ध्यानाकर्षण के लिए धन्यवाद।

प्रधानमंत्री की ओर से मिले उस आश्वासन से मुझे पहली बार लगा था कि इस देश में आम लोगों की भी बातों को गम्भीरता से लेने वाले लोग रहते हैं। मगर इनकी संख्या इतनी कम है कि स्वार्थी और धूर्त लोगों की भीड़ में छुप जाते हैं। हमें ऐसे लोगों को ही ढूंढ कर बाहर लाने की जरूरत है। क्योंकि ऐसे ही लोगों से यह देश और समाज बचेगा।

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आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू करने की अधिसूचना जारी करने के बाद भी गरीब सवर्णों को क्यों नहीं दिया जा रहा है आरक्षण का लाभ? आयें तलाशते हैं इसका जवाब




सवर्ण आयोग का सच

सवर्णों को दरकिनार कर सत्ता में आने वालों का दलाल बना सवर्ण आयोग

✍️By प्रसेनजित सिंह


उपसम्पादक, प्रसेनजित सिंह उर्फ स्वामी सत्यानन्द, सुनामी टाइम्स, फरवरी २०१४

७४ के आन्दोलन के बाद जैसे-जैसे समय बीतता गया सत्ता में सवर्णों की भागीदारी का प्रतिशत घटता गया। जगन्नाथ मिश्र की सरकार के बाद जितनी भी सरकार बनी सवर्णों की लाशों पर समाधि का खेल ही साबित हुआ है। लालू सरकार में देखे गए भूराबाल के सफाये का सपना नीतिश कुमार पूरा कर रहे हैं। उन पर किसी को शक न हो इसके लिए अपने मातहत पिट्ठुओं की जमात को सवर्ण आयोग का लम्बरदार बना कर सवर्णों को मुर्ख बनाने का काम शुरू कर दिया है। हालांकि इस आयोग का गठन करवाते समय ही मुख्यमन्त्री ने कहा था कि समता मूलक समरस समाज की स्थापना के लिए इस आयोग का गठन किया गया है। लेकिन ऐसा समाज बनेगा तब ही न इसके स्थापना का उद्देश्य पूरा होगा।


"ऊँची जातियों के लिये गठित आयोग को गाँव से लेकर राजधानी तक के लोगों से सम्पर्क कर उनकी समस्याओं के समाधान के लिए प्रयास करना चाहिए।"

न्यायमूर्ति डी. के. त्रिवेदी की अध्यक्षता में गठित सवर्ण आयोग के गठन के समय ही नीतिश कुमार ने कहा था कि "ऊँची जातियों के लिये गठित आयोग को गाँव से लेकर राजधानी तक के लोगों से सम्पर्क कर उनकी समस्याओं के समाधान के लिए प्रयास करना चाहिए।" लेकिन उनकी सोची-समझी साजिश का ही परिणाम है कि सवर्ण आयोग के सदस्य से लेकर पदाधिकारी तक में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जिसने सवर्णों के अधिकार के लिए आन्दोलन करने वाले किसी संस्था या समूह का प्राथमिक सदस्य भी रहा हो। जिसमें सवर्णों के लिए के लिए कोई भावना तक उत्पन्न हो सका वैसे लोगों के बूते सवर्णों के स्वाभिमान की रक्षा करने का ड्रामा शोषित सवर्णों का मजाक उड़ाना नहीं तो और क्या है?

सवर्ण आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति डी. के. त्रिवेदी हों या इस आयोग के सदस्य अब्बास फरहत या पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी जी के खाश सागिर्द संजय मयूख! ये सभी ऐसे लोग हैं जिन्होंने न तो गरीबी देखी है और न ही गरीबी-बेरोजगारी से जूझते सवर्णों की पीड़ा को महसूस किया है। जिसे दर्द का एहसास ही नहीं है वह मर्ज क्या तलाशेगा? यही कारण है कि सवर्ण आयोग के गठन के बाद से आज तक ये शतरंजी मोहरें सवर्णों के अधिकार के लिए एक भी योजना बनाने में नाकाम रही है।

समता मूलक समरस समाज की स्थापना के उद्देश्य से सरकारी सेवाओं में जातीय आरक्षण हटाने के लिए चल रहे एक न्यायिक मामले में अनुसूचित जाति एवम् जनजाति कल्याण विभाग के द्वारा दिए गए प्रतिवेदन के आलोक में सर्वोच्च न्यायालय ने जिस समय आरक्षण को पूर्ववत् चालू रखने का निर्णय सुनाया था, उस समय भी सवर्ण आयोग के कठपुतली सदस्य मूक दर्शक बने रहे। ये लोग न तो जातिय विद्वेष उत्पन्न करने वाले उक्त प्रतिवेदन का विरोध किये और न ही शोषित सवर्णों के पक्ष को मजबूती से रखने के लिए कोई ठोस और प्रमाणिक प्रतिवेदन प्रस्तुत कर सके।

सवर्णों के खिलाफ़ आने वाले इस निर्णय से हमें यह नहीं समझना चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय! सवर्णों के खिलाफ़ है, बल्कि सवर्ण विरोधी निर्णय लाने का मूल कारण अनुसूचित जाति और जनजाति कल्याण विभाग के कार्यों तथा उद्देश्यों के प्रति ईमानदारी पूर्वक समर्पित होकर काम करने वाले वे पदाधिकारीगण हैं जो एम. नागराज एवम् अन्य बनाम सर्वोच्च न्यायालय के आलोक में दिए गए अपने प्रतिवेदन में मजबूती के साथ अपनी बात को रख कर न्यायालय को अपने पक्ष में निर्णय लेने के लिए बाध्य कर सके।

जातिय आरक्षण का समर्थन करने वाले उस विभाग ने अपने प्रतिवेदन में स्पष्ट रूप से यह लिखा था कि "वर्तमान आरक्षण के विधान को विलोपित करने से एससी-एसटी और पिछड़ा वर्ग के लोगों की सरकारी सेवाओं में प्रतिनिधित्व, दक्षता और सामाजिक विकास पर बूरा असर पड़ने की सम्भावना है। अतः अनुसूचित जाति (एससी) एवम् अनुसूचित जनजाति (एसटी) के सरकारी सेवकों को पूर्व की भांति आरक्षण एवम् परिणामी वरीयता मिलता रहे।"

SC-ST कल्याण विभाग, महादलित विकास मिशन और पिछड़ा वर्ग आयोग को राज्य सरकार ने अनुदान दिया मगर सवर्ण आयोग को कोई अनुदान नहीं मिल पाया।

अनुसूचित जाति एवम् अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग के द्वारा मजबूती से अपना पक्ष रखने का ही परिणाम है कि पूर्व निर्धारित आरक्षण को पूर्ववत् लागू रखते हुए राज्य सरकार! महादलित विकास मिशन को अनुदान के रूप में २०७.७५ करोड़ रुपये ,अनुसूचित जाति एवम् जनजाति आयोग के अध्यक्ष, सदस्य एवम् कर्मचारियों को वेतन आदि के लिए १.९० करोड़ रुपये तथा पिछड़ा वर्ग आयोग के लिए १.४० करोड़ रुपये अनुदान को स्वीकृत कराते हुए योजनाओं को वर्ष २०१४-१५ तक चालू रखने की मंजूरी दे दी थी। जबकि गरीब सवर्णों के उत्थान के लिए सवर्ण आयोग को कोई अनुदान नहीं मिल पाया।

इसके लिए सरकार से ज्यादा सवर्ण आयोग के पदाधिकारी बनें सवर्ण जाति के ही वे लोग जिम्मेदार हैं जिन्होंने सवर्ण जाति के गरीब-गुरबों के अधिकार के लिए आवाज़ उठाने के बजाय सत्ता में आने के लिए पहले से आरक्षण लेने वाले जातियों में अपनी लोकप्रियता घटने की आशंका के डर से मौन रहना ही बेहतर समझा। कहते हैं कि इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय में सवर्ण आयोग के द्वारा गरीब सवर्णों के अधिकारों के लिए अपना पक्ष नहीं रख पाने के कारण बिहार सरकार ने सवर्ण आयोग के सदस्य पदाधिकारियों को इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर के सवर्ण आयोग को भङ्ग कर दिया था।

सवर्ण जाति के लोगों को भी एससी-एसटी की तरह सभी सरकारी सेवाओं एवम् योजनाओं में समान रूप से प्रतिनिधित्व हो, सवर्ण जाति के लोग गरीबी, भुखमरी, बीमारी, बेरोजगारी, बेघर, भूमिहीन और असहाय होते हुए भी सरकार की जात-पात आधारित कानून के कारण सरकारी मदद नहीं मिल पाने के कारण अन्य जातियों की अपेक्षा ज्यादा आत्महत्या करते हैं। जबकि एससी-एसटी वर्ग के साधन-सम्पन्न लोगों को भी आरक्षण के पक्षपातपूर्ण कानून के कारण देश का खजाना ५०% अनुदान के नाम पर एससी-एसटी कहलाने वाले लोगों को दे-दे कर सवर्णों के खिलाफ़ खुलेआम अभियान चलाया जा रहा है।

ग्रामीण परिवहन विभाग के द्वारा ही हरेक साल बेरोजगार लोगों को रोजगार दिलाने के लिए सभी पंचायतों में से दस लोगों को दोपहिया वाहन से लेकर दसपहिया वाहन तक खरीदने के लिए ५०% अनुदान देता है। इसके लिए इच्छुक लोगों में से ६ एससी-एसटी जाति के लोगों को और ४ अल्पसंख्यक और पिछड़ा वर्ग में शामिल जातियों का ही चयन कर के सवर्ण जातियों से भी वसूले गए टैक्स की रकम से अर्जित राजकोष में से खरीदे गए वाहनों का ५०% मूल्य सरकार देता है। अनुदान कहलाने वाला यह राशि सरकार आरक्षण पाने वाले लोगों को वाहन खरीदने के लिए दे देता है लेकिन भूखमरी से निजात दिलाने के लिए सवर्ण जाति के लोगों को एक समय की रोटी तक नहीं देता है।

इसी अन्याय के कारण जन मुक्ति संघर्ष समिति के तत्वावधान में सनातन संस्कृति अनुसन्धान एवम् जागृति परिषद् नामक संघ गठित कर के बिहार के दलित जातियों के बीच यह जानने के लिए सर्वे करवाया था कि असली जरूरतमंदों को आरक्षण का लाभ मिल रहा है कि नहीं। उस सर्वेक्षण के दौरान माउन्टेन मैन के नाम से प्रसिद्ध दशरथ माँझी के गाँव गहलौर, वजीर गंज और सकरदास नवादा के आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों सहित पटना सिटी और गुलज़ार बाग के झुग्गियों में रहने वाले लोगों से भी हमारे वोलेंटियर्स ने घर-घर जाकर एक फार्म भरवाया था। उस फार्म में पूछे गए वस्तुनिष्ठ सवालों के जवाब में एससी-एसटी जाति के ८५% से भी अधिक लोगों ने सरकार के द्वारा गरीब लोगों की उपेक्षा करने की शिकायत करते हुए गरीबी आधारित आरक्षण का कानून बनाने की इच्छा जताई थी।

उस रिपोर्ट के सुनामी टाइम्स नामक स्थानीय अखबार में प्रकाशित करवाने के तत्काल बाद सवर्ण फैंस क्लब का गठन कर के गरीब सवर्णों को भी आरक्षण दिलाने के लिए गरीबी आधारित आरक्षण का कानून बनवाने की माँग को लेकर जन-जागरूकता अभियान शुरू कर दिया था। उसी दौरान मासिक पत्रिका "सुनामी टाइम्स" और साप्ताहिक समाचार पत्र "सुनामी एक्सप्रेस" के सम्पादक अजय दूबे ने मुझे सम्पादकीय सहायता के लिए आमंत्रित कर के अपने समाचार समूह में प्रूफ़रीडिंग और उपसम्पादन का दायित्व दिया था। उस पत्रिका से जुड़ते ही सवर्ण जातियों के द्वारा संचालित कई समाचार पत्र-पत्रिकाओं के द्वारा मुझे आमंत्रित किया जाने लगा था। जिसका लाभ उठाते हुए गरीबी आधारित आरक्षण का कानून बनवाने के लिए वर्ष २०१४-१६ में सवर्णों के साथ होने वाले अत्याचारों पर आधारित समाचारों को ही ज्यादा से ज्यादा प्रकाशित करवाया था। उस दौरान सोशल मीडिया के द्वारा भी गरीबी आधारित आरक्षण का कानून बना कर सवर्ण आयोग का गठन करवाने की माँग करने के लिए जन-जागरूकता अभियान चलाता रहा। लेकिन सवर्ण आयोग के सदस्य और पदाधिकारी चुप्पी साधे सवर्णों के साथ होने वाले अत्याचारों को देखते हुए भी सत्ताधारी नेताओं की चरण वन्दना करते रहे।

नेताओं की चरण वन्दना करने में माहिर होने का लाभ यह हुआ कि सवर्ण आयोग के सदस्यों में से सबसे ज्यादा चुप्पी साधने वाले सदस्य की चमचागिरी से खुश होकर भाजपा के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी जी ने संजय मयूख को बिहार विधान परिषद का सदस्य बना दिया। जबकि सवर्णों के लिए यदा-कदा आवाज़ उठाने की कोशिश करने वाले सवर्ण आयोग के सदस्य सुभाष चन्द्र सिंह जैसे लोगों को दूध में गिरी हुई मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया गया। जबकि ये शख्स भाजपा नेता संजय मयूख से ज्यादा लोकप्रिय और अनुभवी थे। वर्ष २०१८ में जब मेरी इनसे मुलाकात हुई थी तब ये ७४ वर्ष के थे। आज ये जीवित हैं या नहीं इसकी कोई सूचना नहीं है, मगर भूमिहार जाति के सुभाष चन्द्र जी! पटना के विक्रम थाना क्षेत्र के मूल निवासी और भारतीय जनता पार्टी में पटना ग्रामीण के जिलाध्यक्ष होने के साथ स्थानीय लोगों में इनकी अच्छी पकड़ थी। सुभाष जी ने ही मुझे बताया था कि इनके साथ सवर्ण आयोग के सभी सदस्यों और पदाधिकारियों को इस्तीफा देने के लिए मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने मजबूर किया था। सभी सदस्यों से इस्तीफा लेने के बाद के बाद सवर्ण आयोग का नाम बदल कर "उच्च जातियों के लिए राज्य आयोग" कर दिया गया। लेकिन भंग कर दिये गये कमिटी का पुनर्गठन नहीं किया गया। बिहार में सवर्ण समाज के लिए इससे ज्यादा कुछ भी नहीं किया है बिहार सरकार ने। भारत सरकार की भी यही दशा है। उसने गरीबी आधारित आरक्षण का कानून बना तो दिया मगर उस कानून को राज्य सरकार की इच्छा के बगैर लागू नहीं करवा सकती है। राज्य सरकारें इस कानून को अपने राज्य में लागू करेगी या नहीं करेगी, यह राज्य सरकार की इच्छा पर निर्भर करता है। राज्य सरकारें इसे अविलम्ब लागू करे इसके लिए सवर्ण समाज को एकजुट होकर अपने राज्य सरकारों पर दबाव बनाने की जरूरत है। तभी आपकी स्थिति सुधरेगी। अन्यथा वह समय बहुत जल्द आने वाला है जब तुम्हें भीख भी नहीं मिलेगी।

सोमवार, 2 नवंबर 2020

Introduction of Sawarn Fans Club

Swami Prasenjeet with his friends in the Seminar of Sawarn Fans Club


जाति, धर्म और लिंग आधारित भेद-भाव को बढ़ावा देने वाले विभिन्न कानूनों के कारण विकास की मुख्य धाराओं से वंचित कर दिए गए सवर्ण समाज को एकजुट करने के उद्देश्य से बनाया गया है सवर्ण फैंस क्लब नामक यह सामाजिक समुह। इस समूह का मुख्य उद्देश्य है गरीबी आधारित आरक्षण का कानून बनवाना। लेकिन सिर्फ़ यही उद्देश्य नहीं है बल्कि विश्व को आधुनिक मानव सभ्यता के साथ लोकतत्र की भी सीख देने वाले हमारे देश भारत की गिरती हुई दशा को सम्भालने के लिए जन-जागरूकता अभियान चलाने के लिए भी बनाया गया है यह कलब। भारतीय संविधान के अनुच्छेद ४४ में यह वर्णित है कि सभी राज्य अपने यहाँ समान नागरिक संहिता लागू करे, मगर यह कानून उन पर बाध्यकारी नहीं है। यह कैसा संविधान है? इतना कमजोर और लचर संविधान के कारण ही यहाँ जोर-जबरदस्ती का कानून चलता है। जिसकी लाठी, उसकी भैंस के तर्ज पर गठित कानून के कारण ही यहाँ महिला उत्पीड़न कानून की गैर जमानती धारा 498 अ के द्वारा स्वाभिमानी पुरुषों को भी पौरुषहीन बना दिया गया है।


जैसे हर औरत अबला नहीं होती वैसे ही हर पुरुष अत्याचारी नहीं होता है। इसके बावजूद घर-गृहस्थी की नींव समझे जाने वाले पुरुष वर्ग को ही कमजोर करने के लिए राष्ट्रीय एकता के दुश्मनों के द्वारा सबसे पहले महिला उत्पीड़न कानून की गैर जमानती धारा 498 अ बनाकर इस देश को पौरुषहीन बनाने का कुचक्र चालू किया गया, इसके बाद राष्ट्रीय स्वाभिमान की रक्षा के लिए हर समय आत्म बलिदान के लिए भी तत्पर रहने वाले सवर्ण समाज को कमजोर करने के लिए इन्हें शिक्षण-प्रशिक्षण, नियुक्ति-प्रोन्नत्ति, ऋण-अनुदान आदि हरेक मामलों में लगातार उपेक्षित किया जाने लगा। यह साजिश उपेक्षित सवर्णों को राष्ट्र द्रोह के लिए प्रेरित करवाने का स्वप्न देखने वाले गद्दारों के द्वारा रचा जा रहा है। ताकि आर्थिक अक्षमता, शारीरिक विकलांगता और शैक्षिक योग्यता के बजाए सिर्फ़ खास जाति, खास धर्म और खास लिंग के लोगों को ही आरक्षण देकर सवर्ण कहलाने वाले स्वाभिमानी जाति को उग्रवाद की आग में झोंक कर आसानी से खत्म किया जा सके। 


ऐसा सिर्फ इसलिए किया जा रहा है ताकि हम सवर्णों के नेस्तनाबूद हो जाने के बाद इस देश पर दूबारा विदेशी झण्डे फहराने का ख्वाब देखने वाले लोगों को निःशेष भारतीयों को कुचलने में ज्यादा मेहनत न करना पड़े। ऐसे ही स्वप्न देखने वाले गद्दारों की मूर्खता से इस देश की रक्षा के लिए सवर्ण फैंस क्लब नामक यह ग्रुप बनाया गया है। ताकि राष्ट्रीय एकता में बाधक बन रहे जाति, धर्म और लिंग आधारित आरक्षण को विलोपित करवाकर गरीबी आधारित आरक्षण का कानून बनवाने के लिए संघर्षरत सवर्ण समाज की गतिविधियों को आपस में साझा किया जा सके।  


सवर्ण फैंस क्लब नामक इस ग्रुप में सामाजिक समरसता हेतु गरीबी आधारित आरक्षण को समर्थन देने के लिए तत्पर हमारे सभी सदस्यों और सदस्य संगठनों की संघर्ष समाचारों व समस्याओं को प्रमुखता से प्रकाशित-प्रसारित किया जाएगा। देश के अन्य ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा करने के बजाए इस ग्रुप में सिर्फ़ सवर्ण समाज की समस्याओं और संघर्षों पर केन्द्रित फीचर, चर्चित विश्लेषकों और टिप्पणीकारों की राय, प्रेरक प्रसंग, यात्रा संस्मरण, स्वास्थ्य-शिक्षा, वैदिक सभ्यता-संस्कृति तथा आध्यात्मिक जागृति से सम्बंधित ज्ञानप्रद लेखों और वृत्तचित्रों को सम्मिलित किया जा सकेगा। 


किसी भी हालत में इस ग्रुप में अश्लील एमएमएस, विडियो या भाषा का प्रयोग नहीं किया जा सकेगा। यही नहीं द्विअर्थी भाषा या वाक्यांशों के प्रयोग पर भी रोक रहेगा। ऐसा पाये जाने पर दोषी व्यक्ति की सदस्यता अविलम्ब समाप्त कर दी जाएगी। इसके लिए दोषी पाए गए सदस्य या सदस्यों को बिना किसी पूर्व सूचना के कभी भी निष्कासित किया जा सकेगा। 


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हम रहे थे सन्त जब तक 
पन्थ यह आसान था ।
जब चले सामान्य बनने 
हर तरफ बेईमान था।।

अब तलक हम जी रहे थे
मन्दिरों के दान पर।
जब से उस दुनियाँ को छोड़ा
लोग पड़ गए जान पर ।।

कुछ समझ नहीं आता अब मैं
जाऊँ तो जाऊँ कहाँ।
अब नहीं इंसान का है
ठौर या इज्ज़त यहाँ।।

सोमवार, 15 अगस्त 2016

सुशील कुमार मोदी बनाम बिहार भाजपा


बिहार गौरव सुशील कुमार मोदी

सन्यास लेने के बाद मुझे जदयू ने भी सम्मानित करते हुए आमंत्रित किया था,
मगर भाजपा को भुला नहीं पाने के कारण दूबारा राजनीति में नहीं लौटा

अब तो भाजपा भी बनता जा रहा है अपराधियों का अड्डा! मगर सुशील कुमार मोदी आज भी हैं हीरा
✍️प्रसेनजित सिंह

जून 2006 में बिहार भाजपा में युवा मोर्चा के प्रदेश महामंत्री मंगल पाण्डेय का भगिना रविशंकर पाण्डेय के द्वारा जब अरूण कुमार सिंह नामक एक इलेक्ट्रिशियन की नाबालिग बेटी के साथ विवाह करनेेे की मंशा जाहिर करने पर उस बच्ची ने विरोध जताया था तब आरोपित युवक ने रिवाल्वर के बल पर उसे जबरदस्ती उठाने की धमकी देने लगा था। इसके कारण इलेक्ट्रिशियन की पत्नी उत्तमी देवी ने मदद के लिए शोर मचातेे हुए उस युवक को लोहे के रड से मार कर जख्मी कर दिया था। शोरगुल सुनकर आस-पास के लोगों को आते देख कर उस समय तो वह अपराधी भाग गया था। लेकिन जाते-जाते उसे उठा लेने की धमकी देता गया था। उस घटना की सूचना मिलते ही अरूण मिस्त्री ने मुझे इस घटना के बारे में बताते हुए आरोपित युवक रविशंकर पाण्डेय के अभिभावकों से उस घटना की शिकायत करने के लिए उसके घर पर चलने का आग्रह किया था। लेकिन अपने घर में शिकायत करने के लिए पहुंचे हुए लोगों को देखते ही रविशंकर पाण्डेय ने न सिर्फ़ हम लोगों को धक्के देते हुए भगा दिया था, बल्कि थोड़ी देर बाद ही दो-तीन लोगों के साथ पिस्टल लेकर इलेक्ट्रिशियन अरूण कुमार सिंह के घर में जाकर गाली-गलौज करने लगा था। बात सिर्फ़ इतनी ही होती तब भी इस मामले को भुलाया जा सकता था लेकिन उसने इलेक्ट्रिशियन की बेटी को जबरन उठा लेने की धमकी देते हुए हाथापाई करने लगा था। घटना स्थल पर मौजूद लोगों ने बीच-बचाव की कोशिश करने पर भी जब यह महसूस किया कि हाथों में पिस्टल लिए हुए ये लोग कुछ भी कर सकते हैं, तब मैंने पुलिस को खबर कर दिया था। मगर जैसा कि आमतौर पर होता है खबर करने के बाद भी जब पुलिस नहीं पहुंची तो आक्रोशित भीड़ ने पिस्टलधारी युवकों को घेर कर धुनाई कर दिया। संयोगववश उसी समय पुलिस के आ जानेेे से लोगों से पिट रहा मुख्य अभियुक्त तो गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन अन्य दो अभियुक्तों के बारे में पूछने पर यह बताया गया कि आप लोगों के पहुंचते ही भीड़ का फायदा उठा कर वे लोग फरार हो गये। लोगों से पिट रहे युवक के साथ कितने लोग थे मैं नहीं जानता हूँ, न ही उसके हाथ में मैंने कोई हथियार देखा था। इसके बावजूद पिस्टल लेकर घर में घुसने का आरोप लगा कर ५०-६० लोगों की भीड़ के द्वारा उस युवक को बूरी तरह मारते हुए देखते ही किसी अनहोनी की आशंका को रोकने के लिए मैंने स्थानीय पुलिस स्टेशन से लेकर वरीय आरक्षी अधीक्षक तक को फोन कर के उक्त घटनास्थल पर अविलम्ब पहुंचने का आग्रह किया था। इस मामले में आरोपित युवक ने अरुण कुमार सिंह नामक इलेक्ट्रिशियन की बेटी के साथ वाकई में जबर्दस्ती किया था की किसी पुरानी दुश्मनी का बदला लेने के लिए मनगढ़ंत कहानी रचा था मैं इसके बारे में भी नहीं जानता। लेकिन अपना घरेलू मिस्त्री होने के कारण इलेक्ट्रिशियन अरुण कुमार सिंह के द्वारा मदद माँगने पर मैं भी उनके साथ कथित अभियुक्त रविशंकर पाण्डेय के घर पर बीच-बचाव करने के लिए जरूर गया था। वहाँ जाते ही उसके अभिभावकों को ढूँढने पर रविशंकर पाण्डेय के द्वारा मुझे भी अपने घर से धक्के देतेहुए जिस तरह से भगाया गया था उससे मैं समझ गया था कि इस मामले में कुछ न कुछ सच्चाई जरूर है। जिसे आरोपित युवक अपने परिजनों से छुपाना चाह रहा है। 



आरोपित युवक की गिरफ्तारी के बाद केस उठाने के लि‍ए स्थानीय अपराधियों के द्वारा पीड़िता बच्ची के पिता पर दबाव बनाया जाने लगा था। इससे डर कर वह मेरे घर में छुप कर रह रहा था। पीड़ित बच्ची के पिता की मदद न करने के लिए जब मुझे भी स्थानीय अपराधियों के द्वारा धमकी दिया जाने लगा तब मैंने आरक्षी उपाधीक्षक से लेकर तत्कालीन आरक्षी अधीक्षक कुन्दन कृष्णन तक से पीड़ित युवती के परिवार को सुरक्षा दिलाने के साथ धमकी देने वाले अपराधियों की भी शिकायत दर्ज कराया था। उसके बाद अपराधियों की धमकी मिलना तो बन्द हो गया था लेकिन शरणागत की हर हाल में मदद करने की मेरी हठधर्मिता से बौखलाये मोतिहारी के एडीएम वशिष्ठ नारायण पाण्डेय जो आरोपित रविशंकर पाण्डेय का फूफा था, कुछ पुलिसकर्मियों के साथ सीविल ड्रेस में मेरे घर में आकर मुझे अरूण के मामले में हस्तक्षेप करने पर मनमाना केस लाद कर जिन्दगी बर्बाद करने की धमकी देने लगा था। 


जब एडीएम ने मुझसे कहा कि तुम्हारी औकात क्या है,
एक लाख रुपये तो हम रोज़ लेते हैं 

घर में लगे सीसीटीवी कैमरे में उसकी धमकियों की बातें औनलाइन रिकॉर्ड होने की सूचना देते हुए मैंने जैसे ही उसे अपने खानदान का परिचय दिया, वह ठण्डा होकर सुलह करवाने की बातें करते हुए चुपचाप लौट गया था। मुझे रविशंकर पाण्डेय से कोई दुश्मनी नहीं थी, मैं तो उसे जानता तक नहीं था। सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक नाबालिग लड़की के डरे-सहमे परिवार को शरण देकर मैंने कोई गुनाह नहीं किया था। इसके बावजूद खुद को जातियों में भी सबसे ऊँची जाति का बताते हुए एक एडीएम के द्वारा तीन थानों के पुलिस अधिकारियों के साथ मेरे घर में आकर मुझे धमकी देना अपमान जनक ही नहीं बल्कि अक्षम्य भी था। मैं भी कौशिक विश्वामित्र भगवान का वंशज हूँ। मेरे अन्दर भी मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा और फर्ज़न्द बहादुर महाराजा मान का रक्त बह रहा है। ऐसे में मेरा उस अभिमानी ब्राह्मण की धमकियों से डर जाना हमारे पुरखों का अपमान था। अतः मैने भी ठान लिया था कि पीड़ितों के परिजनों को आँच तक आने नहीं दूँगा। मैं इसके लिए एडीएम वशिष्ठ नारायण पाण्डेय के उस धमकी के कारण दृढ़ संकल्पित हो गया था जो आज भी मेरे कानों में गूँजती है। उसने कहा था कि "क्या औकात है तुम्हारी? एक लाख रुपये तो हम रोज़ रिश्वत लेते हैं। कुछ पैसे ले लो और केस खत्म कराओ।" 



जब अपराधियों का साथ देने से इंकार करने पर मुझे प्रान्तीय पदाधिकारियों के आदेश की अवमानना के आरोप में भाजपा से निष्कासित करने की धमकी मिली

अरूण कुमार सिंह की मदद करने से ज्यादा मेरा उद्देश्य एक अहंकारी और भ्रष्ट व्यक्ति को उसकी औकात दिखाना था। उसे यह बताना था कि सच्चाई के रास्ते पर चलने वाले की देर से ही सही मगर जीत जरूर होती है। वह केस मेरे लिए एक धर्म युद्ध बन गया था। ऐसे भी मैंने पीड़ित परिवार के द्वारा मदद माँगने पर ही उस मामले में हस्तक्षेप किया था। पीड़िता के पिता जदयू के नेता थे तो मैं भाजपा का नेता। भाजपा तकनीकी मंच, बिहार प्रदेश में कार्यकारिणी समिति के सदस्य सह पटना महानगर के जिला महामन्त्री होने के नाते भी मैं गठबन्धन के धर्म का निर्वहन कर रहा था। इस मामले की शिकायत अपने नेता सुशील कुमार मोदी और गिरीराज जी से करने पर जब वशिष्ठ नारायण पाण्डेय को निलम्बित कर दिया गया, तब जाकर मंगल पाण्डेय को पता चला कि जिस मामले में वह मेरा साथ दे रहा था, उस मामले का मुख्य अभियुक्त उसका भगिना ही है। इसकी सूचना मिलते ही कि मेरे हस्तक्षेप के कारण ही उसके भगिना की गिरफ़्तारी और उसके रिश्तेदार का निलम्बन हुआ है, भाजपा के प्रदेश महामंत्री गिरिराज सिंह से फोन करवा कर मुझे उस मामले से हट जाने की धमकी दिलवाया था। उस फोन के पहले मुझे भी इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि अभियुक्त रविशंकर पाण्डेय से मंगल पाण्डेय की कोई रिश्तेदारी है। यही बात यदि मंगल पाण्डेय ने बताया होता तो उस मामले को पारिवारिक विवाद की तरह सुलझाने का प्रयास अवश्य करता। लेकिन केस खत्म नहीं करवाने पर अंजाम भुगतने की धमकी और औकात को चुनौती देने की बात करने के कारण मैंने भी पीछे नहीं हटने की कसम खा ली थी। उसके बाद उस मामले को अपने केस की तरह देखने लगा था। इससे नाराज़ होकर भाजपा के मुख्य सचेतक सह कुम्हरार विधान सभा क्षेत्र के विधायक अरुण कुमार सिन्हा और बिहार भाजपा के तत्कालीन महामंत्री गिरीराज सिंह ने भी प्रान्तीय नेताओं के आदेश की अवमानना का आरोप लगाकर मुझे भाजपा से निष्कासित करने की धमकी तक दे डाला था। 

गिरिराज सिंह! जिन्हें मैं अपने सगे भाई से कम नहीं समझता था, उन्होंने मंगल पाण्डेय को खुश करने के लिए मुझे धमकी देते हुए कहा था कि "ज्यादा तिस्मार खां मत बनो। अभी इतने बड़े नेता नहीं बने हो कि जिसे चाहो उसे नचा दो। मंगल के भगिना को क्यों फँसा दिये हो?" बस इतना सुनना था कि मैं भी उन पर बिफर पड़ा था। मैैंने भी गरजते हुुए बोला था कि "आज मुुझे पता चला कि नेता का मतलब होता है जिसे चाहो उसे नचाने वाला? मैं नहीं जानता था कि आप भी ऐसे ही लोगों में शामिल हैं। वर्ना मैं आपके जैसे घटिया आदमी को कभी भइया नहीं कहता। मंत्रालय में आपको जगह नहीं मिला था तब यही सुनने के लिए क्या मैंने प्रदेश कार्यालय में हंगामा करवाया था? यदि मुझे आपके बारे में पता होता तो मैं इस मामले में पड़ता ही नहीं। लेकिन अब चाहे जो हो जाए मैं पीछे नहीं हटुंगा। आप बिहार में मनमानी कीजिएगा तो मैं दिल्ली में आपके खिलाफ़ आवाज़ उठाऊंगा। एक अपराधी की मदद करने के लिए किसी बेकसूर समाजसेवी को भाजपा में भी बली का बकरा बनाया जा सकता है, ऐसा मैंने नहीं सोचा था। लेकिन आपके जैसे लोग भी साधु यादव जैसा ही करेंगे, इसे देख कर मुझे खुद को भाजपायी कहने में शर्म आ रही है। जिस तरह आप मंगल के कहने पर मुझे धमकी दे रहे हैं, उसी तरह से मैं भी अपने पड़ोसी से मदद माँगने पर ही उसकी मदद कर रहा हूँ। लेकिन अब आपको जो उखाड़ना है उखाड़ लीजिए, मैं भी जीते-जी पीछे नहीं हटुंगा।"

रविशंकर पाण्डेय के विरूद्ध पटना जिलान्तर्गत अगमकुआँ थाना काण्ड संख्या 298/2006 के तहत दर्ज किये गये उस मामले को रफा-दफ़ा करवाने के लिए सत्ताधारी दल के प्रांतीय नेताओं ने फ़ायदा उठाकर पुलिस-अपराधी गठबन्धन का जमकर इस्तेमाल किया था। गिरिराज सिंह से धमकी मिलने के बाद स्थानीय चोर-पॉकेटमार जैसे लोग मुझे राह चलते केस खत्म करवाने की धमकी देने लगे तो घर में आकर और फोन कर-कर के भी मुझे धमकियां देते थे। मगर जन मुक्ति संघर्ष समिति नामक अपने संगठन के बेखौफ साथियों के बदौलत मैंने अपने सामने किसी की दाल नहीं गलने दिया। राजद समर्थित जिस बूथ लूटेरे ने मुझ पर बहादुरपुर हाउसिंग कॉलोनी में बमबारी करवाया था उसे अपना गिरोह छोड़ने के लिए मजबूर कर के एक रिटायर्ड कर्नल का ड्राइवर बनवा दिया तो जिसके इशारे पर मेरी हत्या करवाने की कोशिश की गई थी उसे साधु यादव के द्वारा ही आर्थिक नुकसान दिला कर राजद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था। राजद को वोट दिलाने वाले ठेकेदारों ने मुझ पर इसलिए हमला करवाया था क्योंकि मेरे रहते वे लोग मतदाताओं को वोट देने से नहीं रोक पाते थे। इसके बावजूद मुझे निशाना बना कर किये गये बमबारी में कई लोगों के जख्मी होने के बाद भी मेरे बाल-बाल बचने की सूचना पर पार्टी के स्तर पर कोई कारवाई करने के बजाए नामर्द विधायक अरुण कुमार सिन्हा ने मुझे अपने साथ लेकर दूसरे क्षेत्र में चला गया और मुझे कुछ दिनों के लिए गाँव चले जाने की सलाह देकर हमलावरों के विरुद्ध FIR तक दर्ज करवाने में मदद नहीं किया था। चुनाव परिणाम के बाद सत्ता में आते ही घटित इस घटना के कारण यही अरुण कुमार सिन्हा जिसके कारण मुझ पर एक ही दिन में तीन-चार बार जानलेवा हमला किया गया था, राजद नेताओं के द्वारा मामले को दबाने के लिए स्थानीय अगमकुआँ थाना के प्रभारी के द्वारा ही मीडिया कर्मियों को खुलेआम रुपये बांटे गए थे, उस विधायक ने मुझसे इस्तीफ़ा देने की माँग किया था। जबकि जिस व्यक्ति ने मुझ पर बमबारी करवाया था उसे भाजपा किसान मोर्चा की पटना महानगर का जिलाध्यक्ष बना कर सम्मानित किया था। ऐसे वफादार हैं बिहार भाजपा में हावी प्रांतीय नेता। ऐसे लोगों के कारण ही आम लोगों का भी भाजपा के ऊपर से विश्वास उठता जा रहा है। इसके अधिकांश जनप्रतिनिधियों को भी आम आदमी पसन्द नहीं करते हैं, मगर सिर्फ़ आरएसएस समर्थित उम्मीदवार होने के कारण न चाहते हुए भी मजबूर होकर वोट देते हैं। कुम्हरार में स्थित दाउद बिगहा के बूथ लूटेरों के इस मामले को तो दबा ही दिया गया था, लेकिन रिवाल्वर के बल पर जबरन विवाह करने के लिए एक नाबालिग लड़की को धमकी देने वाले भाजपा समर्थित अपराधी का मामला पटना से प्रकाशित होने वाले लगभग सभी प्रमुख अखबारों में प्रकाशित हुआ था।

अगमकुआँ थाना काण्ड संख्या 268/2006 के इस मामले की सूचना पटना से प्रकाशित होने वाले लगभग सभी प्रमुख अखबारों में दिनांक 02.08.2006 और 03.08.2006 को भी छपी थी। उस घटना के कुछ ही दिनों बाद बिहार की सत्ता से सटे पूंजीपति सवर्णों की टोली ने दिनांक 15.08.2006 को अपनी आजादी का जमकर जश्न मनाया। जबकी शरणागत की रक्षा करने के अपने क्षात्र धर्म को निभाने की कोशिश में शासन और प्रशासन द्वारा संरक्षित अपराधियों से बचने के लिए मुझे भूमिगत होना पड़ा था, जिसके कारण चारों ओर से दुश्मनों से बचने के लिए मुझ जैसे कर्तव्यनिष्व्ठ  क्रान्तिकारी के परिवार को 15 अगस्त को भी भूखे रहना पड़ा था। उस दिन मुझे विश्वास हो गया था कि इस देश में ग़रीब, ईमानदार और देशभक्त लोग नहीं बल्कि सिर्फ़ अमीर, बेईमान और धूर्त लोग ही आज़ाद हुए हैं। 

23.06.2010 दैनिक जागरण, पटना
समाजसेवा की यह सनक कुछ समय के लिए तब शान्त हो गया था जब अरूण कुमार सिंह नामक उस इलेक्ट्रिशियन ने मेरा साथ देनेे से इंकार कर दिया था जिसके कारण मैने अपने परििजनों से भी अधिक प्यारा भाजपा परिवार से नाता तोड़ कर मदद कििया था। जिस शरणागत की मदद करने की जिद में मैंने न सिर्फ़ भाजपायी मित्रों से सभी पुराने सम्बन्धों को त्याग कर राजनीति से सन्यास ले लिया था। अरुण कुमार सिंह नामक धूूर्त इलेक्ट्रिशियन ने मेरा उस समय साथ देने इंकार कर दिया था जब मुझे अचानक एक जमानतदार की जरूरत पड़ गयी थी। उस धूर्त ने मेरी मदद करने से इंकार करते हुए साफ़ कह दिया था कि "आप सक्षम थे तो मेरी मदद किये, लेकिन हम सक्षम नहीं हैं।" हालांकि बाद में मुझे भाजपा के उन पुराने साथियों को ही याद करना पड़ा था जिनका पुतला दहन कर के मैने राजनीति से सन्यास लिया था। वे मददगार थे बिहार के उपमुख्यमंत्री माननीय सुशील कुमार मोदी जी। उन्होंने सिर्फ़ एक फोन पर ही मेरी मदद की थी, वह भी उस स्थिति में जब मैंने मोदी जी का ही पुतला दहन कर के भाजपा से नाता तोड़ लिया था। लेकिन जिस दिन एक फोन पर ही मोदी जी ने मेरी मदद की थी, उस दिन मुझे यकीन हो गया था कि मैंने भाजपा कार्यालय में जाना भले ही छोड़ दिया था लेकिन मेरी आत्मा भाजपा के साथ जुड़ी हुई थी। न तो मैंने भाजपा को छोड़ा था और न ही मोदी जी ने मेरा परित्याग किया था। यह तो मोदी जी की महानता थी कि उन्होंने नकारात्मक बातों को भुला कर के संकट में फँसे हुए एक भाई की तरह मेरी मदद की थी। इनके जैसे व्यवहार वाले नेता बिहार में दूसरा कोई नहीं है। वाकई में बिहार के गौरव हैं सुशील कुमार मोदी जी। जिस दिन मेरे एक कॉल मात्र से इन्होंने मुझे नालन्दा के एसपी के चंगुल से मुक्त करवाया था, उसी दिन मुझे विश्वास हो गया था कि असली परिवार वही है जो बूरे समय में साथ देता है। अतः गैरों के लिए अपने परिवार से भूल कर भी सम्बन्ध खराब नहीं करना चाहिए। 


एक इलेक्ट्रिशियन की नाबालिग लड़की को अपहृत करने की धमकी देने वाले व्यक्ति का विरोध करने के कारण मेरे क्षेत्रिय विधायक अरुण कुमार सिन्हा, भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेश महामन्त्री मंगल पाण्डेय और बिहार भाजपा के प्रदेश महामन्त्री गिरिराज सिंह से मेरा सम्बन्ध इतना खराब हो गया था कि मेरे लिए किसी भी स्थिति में इन लोगों के साथ बैठना मुझे अपमानजनक लगने लगा था। इसके कारण न चाहते हुए भी मैं खुदको भाजपा से दूर करता गया और मन को अन्य कामों में रमाये रखने के लिए सहारनपुर से प्रकाशित होने वाले भाष्कर दर्शन नामक एक साप्ताहिक अखबार में पटना ग्रामीण के अपराध संवाददाता के रूप में जुड़ कर पत्रकारिता का अपना पुराना काम पुनः शुरू कर दिया था। 2004 में मेरे द्वारा ही गठित किया गया संगठन जन मुक्ति संघर्ष समिति तो मेरे साथ था ही। यदा-कदा उसके भी कार्यक्रम करवाते हुए खाली समय में शोषित और पीड़ित लोगों की मदद करता था। 

जन विरोधी योजनाओं के कारण बढ़ते पुलिसिया गुण्डागर्दी के खिलाफ़
आवाज़ उठातेे जन मुक्ति संघर्ष समिति के कार्यकर्ता


पहले तो बहादुरपुर हाउसिंग कॉलोनी से गरीब-गुरबों को बेघर करने की कोशिश फिर फुटपाथ पर भी दुकान लगाने से रोके जाने के खिलाफ़ विचार गोष्ठी में शामिल समिति के अध्यक्ष प्रसेनजित सिंह 



अवामी पार्टी, बिहार के प्रधान महासचिव के रूप में कार्यकर्ता
सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए समाजसेवी प्रसेनजित सिंह मुन्ना



इसी बीच एक दिन विश्वमोहन चौधरी नामक अपने मित्र की जिद पर मुझे पटना के कालीदास रंगालय नामक कम्युनिटी हॉल में आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल होना पड़ा। जहां आवामी पार्टी नामक एक राजनीतिक संगठन के कार्यक्रम में आयोजित एक सभा को सम्बोधित करते हुए मैं "सुशासन की आड़ में कुशासन का खेल" विषयक अपना व्याख्यान दे रहा था, तब संयोगवश सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता और अवामी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी उस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। मेरे सम्भाषण से प्रभावित होकर उन्होंने उसी समय मुझे अपनी पार्टी में बिहार प्रदेश के प्रधान महासचिव घोषित कर के पटना से चुनाव लड़ने का निमंत्रण दे दिए। उसके बाद अवामी पार्टी में बिहार के प्रधान महासचिव की हैसियत से पटना के कालीदास रंगालय में कार्यकर्ता सम्मेलन का आयोजन कर के गरीबी और बेरोजगारी के कारण अपनी ही जाति के सम्पन्न लोगों के द्वारा शोषित हो रहे सवर्णों को गरीबी आधारित आरक्षण दिलवाने के लिए मैंने सवर्ण फैंस क्लब नामक एक सामाजिक मंच की आधारशीला रखा था। इसके संरक्षक अवामी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता सैय्यद मुशीर अहमद थे। 

दायीं ओर से क्रमशः अवामी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैय्यद मुशीर अहमद, बिहार के
प्रदेश प्रभारी बादल खान तथा प्रधान महासचिव प्रसेनजित सिंह मुन्ना 
  



मंगलवार, 8 जुलाई 2014

Introduction of KCIB

KCIB (केसीआईबी) का परिचय

KCIB का पूरा नाम कौशिक कंसल्टेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो है। यह कम्पनी वर्ष 2013-14 में Socio-economic Reservations के लिए वृहद पैमाने पर सर्वे करवा कर प्राप्त सर्वे रिपोर्ट के आधार पर आवाज़ उठाने वाला पहला संगठन Sawarn Fans Club का ही परिवर्तित नाम है। इसके कारण एक पब्लिक फोरम की तरह काम करने वाला यह कम्पनी भारत सरकार द्वारा उपेक्षित सवर्ण समाज के हितों की रक्षा करने के लिए जन-जागरूकता का काम तो पूर्ववत करता ही रहेगा, अब सवर्ण समाज के गरीब-गुरबों के साथ सहानुभूति रखने वाले सभी जाति, धर्म, मत, सम्प्रदाय और लिंग के शोषित लोगों के मौलिक मानवाधिकारों की रक्षा करने का काम भी करेगा। इसके कारण हमारी कम्पनी KCIB का यह ब्लॉग जाति, धर्म और लिंग आधारित भेद-भाव को बढ़ावा देने वाले कानूनों के कारण उत्पन्न सामाजिक विद्वेष और मानसिक यंत्रणा से जूझ रहे लोगों को अपने तकलीफ़ों से मुक्ति दिलाने के लिए जन-जागरूकता अभियान चलाने वाला एक संवाद मंच की तरह भी काम करेगा।
  • इसका गठन सभी जाति, पंथ, लिंग और सम्प्रदाय के असली जरूरतमंदों को आरक्षण का लाभ दिलवाने के उद्देश्य से जन-जागरूकता अभियान चलाने के लिए किया गया है। हमारा उद्देश्य न सिर्फ़ गरीबी आधारित आरक्षण का कानून बनवाने का प्रयास करना है बल्कि हरिजन एक्ट और महिला उत्पीड़न कानून के बढ़ते दुरुपयोग के कारण प्रताड़ित लोगों के मौलिक मानवाधिकारों की रक्षा हेतु पुरुष आयोग के साथ सवर्ण आयोग का गठन करवाना भी है। 
  • भारतीय संविधान में वर्णित समता के अधिकारों से सम्बन्धित कानून की धारा में शामिल उपधारा 16(4) एवम 16(4क) को विलोपित करवाकर राष्ट्रीय एकता में बाधक बनने वाले कानूनों को खत्म कर के भारतीय समाज के हर वर्ग को समानता का अधिकार दिलाना भी है। 
ताकि जाति और धर्म आधारित आरक्षण के कानून के कारण अश्पृश्यता निवारण अधिनियम 17 की हो रही अवमानना पर पूरी तरह रोक लगा कर न सिर्फ़ भारतीय संविधान के प्रति सभी भारतीय नागरिको में सम्मान और विश्वास को बढ़ावा दिया जा सके, बल्कि सभी जाति के गरीबों को आरक्षण का लाभ दिलाकर समान न्यायिक व्यवस्था वाला सुन्दर, स्वाबलम्बी और खुशहाल नागरिकों का देश बनाने के स्वप्न को साकार किया जा सके।

इस मिशन के रास्ते में आने वाले बाधाओं को दूर करने के लिए प्राइवेट डिटेक्टिव और न्यूज़ एजेंसी एक्टिविटीज़ सहित अपने उपभोक्ताओं को सभी तरह के इंफार्मेशन सर्विस देना भी हमारा मकसद है। इस ब्लॉग पर आने वाले लोगों को सामाजिक भेदभाव और उत्पीड़न से सम्बन्धित मामलों की सच्ची रिपोर्ट, सामयिक वार्ता, आलेख, कविता, कहानी तथा आम लोगों के लिए जरूरी उत्पादों की सूचना उपलब्ध कराने के साथ गरीब और असहाय लोगों के द्वारा उत्पादित सामग्रियों की मार्केटिंग करवाने में मदद करना भी हमारा उद्देश्य है। इसके अलावा बेरोजगार युवाओं को सेल्स और मार्केटिंग के साथ पत्रकारिता की शॉर्ट टर्म ट्रेनिंग व रोजगार देना भी शामिल है।
 भवदीय 
प्रसेनजीत सिंह, निदेशक 
SAWARN FANS CLUB 

Kaushik Consultancy Intelligence Bureau (KCIB)
Kaushik Bhawan, A/4, Bauddh Vihar Colony
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