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बुधवार, 26 मई 2021
सोमवार, 10 मई 2021
Winging of Scapula एक असाध्य रोग
जब जेनेवा के वेबसाइट पर अपनी तस्वीर दिखाया तब भी किसी को यकीन नहीं हुआ कि मैं वाकई में Winging of Scapula नामक असाध्य बीमारी से जूझ रहा हूँ। मेरी लाइलाज़ बीमारी को बहाना कह कर लोगों ने उड़ाया था मेरा मजाक
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physiopedia.com से डाउनलोड की गयी मेरी तस्वीर |
इसके लिए अपने पूर्व निर्धारित समय पर मैं तो आई.जी ऑफिस में पहुंच ही गया था लेकिन जिनकी सहायता करने के लिए मैंने वह मीटिंग निर्धारित की थी उन्होंने फ़ोन कर के आग्रह किया था कि उनके मामले में मैं जिस अधिकारी से भी मिलुं अपने साथ उन्हें भी जरुर रखूं। उनके इस जिद के कारण निर्धारित समय पर आई.जी के कॉल करने पर भी उनसे भेंट न कर पीड़ित दुखियारिन के आने का इंतजार करता रहा। जब वह पहुंची तब उस आईजी ने हमारे साथ होने वाली मीटिंग कैंसिल कर के अपने विभागीय मीटिंग में व्यस्त हो गया। इसके कारण उस महिला ने इतना हंगामा किया कि आई.जी असीस्टेंट अशोक कुमार सिन्हा ने उन्हें सरकारी कार्य में बाधा उत्पन्न करने के आरोप में गिरफ्तार करने की धमकी देते हुए अपने ऑफिस से खदेड़ दिया था। आईजी ऑफिस के लोग अपने जगह पर सही थें। उन्होंने मदद करने के लिए मुझे हर तरह का आश्वासन दिया था। लेकिन वह महिला पूर्व निर्धारित समय पर नहीं आकर खुद लापरवाही की थी। इसके बावजूद आई जी संजय कुमार सिंह ने 05:00-06:00 बजे के बीच मिलने का दूबारा समय दिया। तब तक गाँधी मैदान थाना और नजदीकी बैंक से सम्बन्धित अन्य लफड़ों को सुलझाने के लिए भी मुझे चलने का आग्रह करते हुए मेरी बाइक पर बैठने लगीं। तब मैंने अपनी बीमारी की जानकारी देते हुए उन्हें बैठाकर बाइक नहीं चला पाने की मजबूरी बताते हुए चार वर्षों के बाद पहली बार उनकी मदद करने के लिए ही बाइक निकालने का कारण और वह बाइक चलाने के कारण बढ़ते जा रहे दर्द की जानकारी भी उन्हें देते हुए माफ़ी माँग लिया था। लेकिन मेरी मजबूरी को अनसुना कर के मेरी बाइक पर जबरन बैठ कर गाँधी मैदान थाना आदि अन्य जगहों पर चलने के लिए जिद करने लगी थीं। मैंने पहली बार एक अनजान महिला को इस तरह जिद करते हुए देखा था। जिसे उनका भोलापन समझ कर न चाहते हुए भी उनको समझाने की कोशिश करना छोड़ दिया और वे जहाँ-जहाँ कहीं वहाँ-वहाँ उनको ढ़ोता रहा। देर रात घर लौटते ही मुझे पेन किलर लेना पड़ा। इसके बावजूद रात भर मुझे नींद नहीं आई। सुबह होने पर मैने महसूस किया कि मेरा हाथ ऊपर नहीं उठ पा रहा है। जरा सी हरकत करने पर भी दर्द से तिलमिला उठता हूँ। तब गुमशुदा लड़की के बारे में पता करने के लिए खुद ही फिल्ड में न जाकर सोशल वर्क और पत्रकारिता से जुड़े अपने मित्रों की मदद से टेलिफ़ोन के द्वारा छानबीन करवाता रहा। जब भी दर्द में कुछ कमी महसूस करता खुद भी अपनी बाइक लेकर निकल जाता था। संयोगवश मेरी मेहनत रंग लाई। मैं अपहरणकर्ता के रूप में आरोपित मुख्य व्यक्ति से सम्पर्क करने में सफल हो गया और उसे कोर्ट में हाजिर होने के लिए दबाव बनाने लगा। तब तक उसके लोकेशन की सूचना अपने मित्रों को देकर उस पर चौतरफा दबाव बनाने लगा तब बाध्य होकर उसने मुझे स्वयं सूचित किया कि मैं स्वयं सरेण्डर करने के लिए तैयार हूँ। इसके लिए अपने वकील से बात कर रहा हूँ।
संयोगवश एक दिन अचानक अयोध्या में बैठे मेरे ग्रुप का ही सेतु सिंह नामक युवक ने मुझे फ़ोन कर के बताया कि मुझे अभी-अभी सूचना मिली है कि अपहृत युवती रचना सिंह को लेकर फरार चल रहा युवक आज कोर्ट में सरेण्डर करने वाला है। इस सूचना के मिलते ही अपहरणकर्ता संजीत कुमार यादव के मुहल्ले में रहने वाले मेरे एक और मित्र ने कॉल कर के सूचित किया कि संजीत और रचना एक घण्टे के अन्दर सीविल कोर्ट में सरेण्डर करने वाला है, वहाँ जल्दी पहुंचिये। इस कॉल के आते ही मुझे पुनः अपनी बाइक से ही कोर्ट की ओर निकलना पड़ा था। इसलिए नहीं कि अपहृत युवती के परिजनों से मुझे प्रेम था और इसलिए भी नहीं कि अपहरण के लिए आरोपित युवक से मेरी दुश्मनी थी। बल्कि इसलिए क्योंकि मेरे कारण कई लोग खुल कर इस मामले के उद्भेदन के लिए मेरी खुल कर मदद कर रहे थे। मेरे वहाँ नहीं जाने से मैं खुद उन लोगों की नजरों से गिर जाता। कोर्ट में पहुंचते ही मैंने देखा कि इस मामले में मेरा साथ दे रहे 7-8 लोग वहाँ पहले ही पहुंच चुके थे। अपहृत कही जा रही युवती जो स्वयं प्रेम प्रसंग के चक्कर में स्वेच्छा से अपने घर से फरार हुई थी, वह भी महिला पुलिसकर्मियों के साथ कोर्ट के बरामदे में अपने कॉल का इंतजार कर रही थी। मैंने उससे मिल कर उसके प्रेमी के बारे में जानकारी देते हुए यह बताया कि वह पहले से ही शादीशुदा और चार बच्चों का बाप है। जिस तरह से पहली पत्नी और बच्चों से पिछले चार वर्षों से कोई मतलब नहीं रखता है उसी तरह किसी और के मिलते ही तुम्हें भी छोड़ देगा। अतः कोर्ट में बयान देते समय यह जरूर कहना की "मैं स्वेच्छा से इनके साथ जरूर भागी थी लेकिन जब विवाह करने के बाद मुझे पता चला कि यह पहले से शादीशुदा और 3-4 बच्चों का बाप है तब मुझे खुद के ठगे जाने का अहसास हुआ। अतः अब इसके साथ नहीं बल्कि अपनी माँ के साथ रहना चाहती हूँ। इसे इसकी धोखाधड़ी करने की सजा मिलनी चाहिए।" बस इसी बयान के आधार पर वह लड़की उसकी माँ को सौंप दी गई। इस तरह एक महीने के अन्दर जिसके साथ उनकी बेटी स्वयं भाग कर गयी थी उससे सम्पर्क स्थापित करने और उन लोगों को समझाने के बाद उनकी बेटी को कोर्ट में हाजिर करवा कर उसके परिजनों तक पहुंचाने का भी काम पूरा कर दिया था।
इस दौरान चार वर्षों से बेरोजगार होकर घर में बैठने की मजबूरी के बावजूद तमाम सरकारी सुविधाओं से भी वंचित होने के बाद भी अपनी जमा पूँजी निकाल-निकाल कर जिस विधवा की सहायता करने के लिए भाग-दौड़ करता रहा उसने अपने अन्य लम्बित मामलों के निपटारे के लिए भी मुझसे मदद करने का आग्रह करने लगी तब मैंने उन्हें स्पष्ट कह दिया कि "मैंने लड़की के अपहरण का मामला समझ कर आपकी मदद किया था।" मुझे आपके कारण ही वह बाइक चलाना पड़ा जिसके कारण मेरी बीमारी फिर से बढ़ गयी है। इसके इलाज के लिए पैसे की जरूरत है। अतः मैं आपका काम तो करवा दुंगा लेकिन अब इसके लिए फी देना होगा। इस मामले से पहले मेरा यही प्रोफेशन था और इसके लिए मैं भारत सरकार के द्वारा रजिस्टर्ड हूँ। तब उन्होंने मुझे वचन दिया की आपकी जो भी फी होगी ले लीजिएगा लेकिन मेरा काम करवा दीजिए। चुकी मेरे एकाउण्ट के लगभग सभी पैसे खत्म हो गये थे इसके कारण मैंने उनसे एडवांस में कुछ पैसे जमा करने का आग्रह किया तो वे बहाने बना कर चली गई थीं। तब मैंने भी अपने स्वास्थ्य कारणों से कहीं आना-जाना बन्द कर दिया था। मुझे बार-बार फोन कर के घर में आकर भेंट करने के लिए बुलाने पर भी जब मैं विधवा महिला अनामिका किशोर के यहाँ नहीं गया तब एक दिन उनका बेटा मेरे घर में आकर माँ की मदद करने का आग्रह किया। तब न चाहते हुए भी उनकी माँ की कई लम्बित मामलों की पैरवी करने के लिए लगातार दो-तीन दिनों तक समय दिया। लेकिन जैसे ही पैसे की बात करता वे बहाने बनाने लगती। मैं समझ गया था कि वे लोग जरूरत से ज्यादा चालाक हैं। यही कारण है कि हर जगह उनका आसानी से होने वाला काम भी फँस जाता है। चुकि वह महिला मेरे ग्रामीण क्षेत्र की ही निकल गई थी जिसके कारण मैं उन पर पैसे के लिए दबाव नहीं बना पा रहा था। लेकिन उन्हें भी तो मेरी परेशानी समझनी चाहिए थी। एक दिन उनके जिद के कारण मुझे इतनी भीड़-भाड़ वाली गली में बाइक लेकर जाना पड़ गया जहाँ अपने दाहिने हाथ में हो रहे दर्द के कारण बाइक की हैण्डल नहीं सम्भाल पाया और दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। उसके कारण मेरी गाड़ी और हेलमेट तो क्षतिग्रस्त हुआ ही पहले से ही Winging of scapula से सबसे ज्यादा पीड़ित दाहिने हाथ में ही दुबारा चोट लगने से हमारी परेशानी और बढ़ गई थी। जिसका इलाज़ करवाने के लिए डॉक्टर का फी देने तक का पैसा अपने पास नहीं होने के कारण जब मैंने उस महिला से उनकी मदद करने के लिए किया गया खर्च माँगने लगा तब मोच बैठाने वाले से दिखवा देने की जिद कर के मुझे Pain Relief Spray लाकर दे दी। जबकि मैं जानता था कि मोच से नहीं बल्कि किसी और बीमारी से परेशान था और चोट लगने के कारण मेरी बीमारी विकराल रूप धारण करने वाली थी।
उस दुर्घटना के बाद मैं उनके बुलाने पर भी जब दुबारा उनकी मदद करने से इंकार कर दिया था तब एक दिन वे खुद हमारे घर पहुंच गई और क्षेत्रीय होने का वास्ता देते हुए कहने लगी कि "आप ही न कह रहे थे कि आपकी बेटी! मेरी भी बेटी है। अतः किसी भी तरह की परेशानी होगी तो मुझे जरूर बताइएगा। जहाँ तक होगा आपकी मदद जरूर करेंगे। फिर ऐसा क्या हुआ कि आप मेरा कॉल रीसिव करना भी छोड़ दिये? बिना मेरी सूचना के मेरे बैंक एकाउण्ट में से जो पैसे गायब हो गए हैं, सिर्फ़ उसकी रिकवरी करवा दें। फिर आप जितनी कहेंगे उतनी फी आपको दे देंगे।" इस पर मैं उन्हें बार-बार समझाता रहा कि आपके एकाउण्ट का पैसा किसी और ने नहीं बल्कि आपकी अपनी बेटी ने ही निकाला है। ऐसे में बैंक पर दबाव देना उचित नहीं है। लेकिन वे मानने के लिए तैयार नहीं हुई।... और अगले दिन बैंक मैनेजर पर इसके लिए दबाव बनाने का वचन लेने के बाद ही मेरे घर से वापस गयी। मुझे उनकी गिड़गिड़ाहट पर तरस खाकर खुद बीमार होने पर भी उनकी मदद करने के लिए जाना पड़ता था। इसका परिणाम यह हुआ कि मेरी बीमारी और बढ़ गई है तथा मैं फूल टाइम बेडरेस्ट के लिए मजबूर हो गया हूँ।
अब मसाढ़ी के उदय किशोर सिंह की विधवा पत्नी अनामिका किशोर अपनी बेटी की बरामदगी के बाद मुझे इनाम या सम्मान देने के बजाय यह आरोप लगा रही हैं कि मैं उनकी बेटी को भगा कर ले जाने वाले युवक का ही साथ दे रहा हूँ। इसी के कारण उन लोगों के द्वारा बार-बार बुलाने पर भी उन लोगों के पास नहीं जा रहा हूँ। जबकि हकीकत यह है कि मैं वाकई में बहुत ज्यादा परेशान और तनाव में हूँ। अपने स्वास्थ्य कारणों से ही घर से नहीं निकल पा रहा हूँ।
मैं हनुमान तो हूँ नहीं जो सीना चीड़ कर दिखा दूँ। आज तक आप लोगों से अपनी बीमारी के बारे में न बता कर सामाजिक गतिविधियों में इसलिए मग्न रहता था ताकि अपनी जिन्दगी को जी भर के जी सकूं। अन्यथा बीमारी को याद कर-कर के निर्दयी और निष्ठुर हो चुके लोगों से चर्चा करने से मानसिक तनाव और बढ़ेगा ही। जिसके लिए अपने स्वास्थ्य की परवाह किये बगैर तन, मन, धन सब कुछ लगा दिया जब वैसे लोग भी धोखेबाज़ निकल गये तो समाज के अन्य लोगों से क्या आशा करूं?
फत्तेपुर वासी सतीश जी की माँ पटना के NMCH में इलाज़रत हैं। उन्हें डॉक्टरों का सहयोग नहीं मिल पा रहा है, इसके लिए सतीश जी ने Bargayan Warriors are नामक हमारे व्हाट्सएप ग्रुप के सदस्यों से मदद की गुहार लगाये थे। लेकिन यह पहला अवसर है जब चाह कर भी उनकी मदद नहीं कर पाया। इसके कारण वे नाराज़ होकर मुझसे आग्रह किया हैं कि "प्रसेनजित जी! जब मेरी मदद नहीं कर सकते हैं तो इस ग्रुप से मुझे बाहर कर दीजिए।" लेकिन बहुत ही दुख की बात है कि इस ग्रुप के लोग उन्हें मदद करना तो दूर सांत्वना देना भी जरूरी नहीं समझे और दूसरे लोगों के अनावश्यक सन्देश भेज-भेज कर अपनी विद्वता का बखान करते रहे। अतः बन्धुओं से आग्रह है कि कृप्या संकटग्रस्त लोगों की मजबूरियों को भी समझें। उनके दुःख में साथ दें। मैं चाहता था कि मेरे मरने के बाद कोई भी व्यक्ति यह न कहे कि प्रसेनजित ने बूरे समय में मेरा साथ नहीं दिया है। लेकिन लगता है कि काल को अब यही मंजूर है। विशेष क्या कहूँ? जिन्दा रहा तो फिर मिलेंगे।
गुरुवार, 6 मई 2021
मन्दिरों के सीढ़ियों पर क्यों बैठते हैं हिन्दु
दर्शनोपरान्त मन्दिरों के सीढ़ियों पर बैठने की परम्परा क्यों है हिन्दुओं में ?
हिन्दु समाज में बहुत से ऐसे रीती-रिवाज़ हैं, जिन्हे हम सभी ने अपने जीवन में देखा है, ऐसा ही एक रिवाज़ है मन्दिर से निकलते समय मन्दिर की सीढ़ी, पेड़ी या ड्योढ़ी पर बैठने का रिवाज़। आइये जानते हैं की इसका मूल कारण।
आपने बड़े-बुजुर्ग को कहते और करते देखा होगा कि जब भी किसी मन्दिर में दर्शन के लिए जाते हैं तब दर्शन करने के बाद बाहर आकर मन्दिर की सीढ़ी, पेड़ी, ड्योढ़ी, ओसारा या ऑटले पर थोड़ी देर बैठते हैं ।आजकल तो लोग मन्दिर की सीढ़ी पर बैठकर अपने घर की व्यापार की राजनीति की चर्चा करते हैं परन्तु यह प्राचीन परम्परा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई थी। वास्तव में मन्दिर की सीढ़ी या पैड़ी पर बैठ कर अपने ध्यान को आज्ञा चक्र में तिरोहित करके परमेश्वर के प्रति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ पूरे मनोयोग से एक श्लोक बोलना चाहिए। यह श्लोक वर्तमान पीढ़ी के लोग भूल गए हैं। अतः आप इस श्लोक को पढ़े और आने वाली पीढ़ी को भी इसे बतायें।
यह श्लोक इस प्रकार है -
अनायासेन न मरणम्, बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।
"अनायासेन न मरणम्" अर्थात अनायास हमारी मृत्यु हो, बिना तकलीफ़ के हम मरें। हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर न पड़ें, कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त न हों चलते-फिरते ही हमारे प्राण निकल जाए।
"बिना देन्येन जीवनम्" अर्थात परवशता का जीवन ना हो, मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित और लाचार हो जाता है वैसे परवश या बेबस न हों, बस इतनी सी कृपा कर दो। आपकी कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके ।
"देहांते तव सानिध्यम" अर्थात् जब भी मृत्यु हो तब भगवान हमारे सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। भीष्म पितामह ने प्रभु श्री कृष्ण के दर्शन करते हुए प्राण त्यागे थे।
"देहि में परमेश्वरम्" हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना ।
अपने अराध्य से क्या करें प्रार्थना :
गाड़ी, लाड़ी, लड़का, लड़की, पति, पत्नी, घर, धन यह नहीं माँगें यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं। इसीलिए अपने आराध्य का दर्शन करने के बाद कुछ देर मन्दिर के दरवाजे के बाहर बैठकर प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए। विदित हो कि प्रार्थना में अपने अराध्य से की प्रिती पाने के लिए एक प्यास होती है। अपने अराध्य के लिए समर्पण का भाव होता है। जबकि सांसारिक भोगों की प्राप्ति के लिए अपने अराध्य से की गई विनती! याचना होता है। अधिकांश लोग याचना करने के लिए ही धार्मिक स्थलों पर जाते हैं। अर्थात भौतिक पदार्थों यथा - घर, व्यापार, नौकरी, पुत्र, पति, स्वास्थ्य सुख और धन आदि का सुख माँगने जाते हैं। जो भक्ति नहीं बल्कि भीख है।
यही कारण है कि अपने भौतिक सुख की प्राप्ति की कामना के बजाए निस्वार्थ होकर परमेश्वर की सेवा में जायें। ऐसी भक्ति ही उत्तम कहलाती है। श्रेष्ठ और विशिष्ट कहलाती है। ऐसी भक्ति को ही प्रार्थना कहते हैं। क्योंकि प्रार्थना का विशेष अर्थ होता है विशिष्ट, श्रेष्ठ। अर्थात् निवेदन। अपने अराध्य या अराध्या के ध्यान में लीन होकर उनकी प्रार्थना करें और प्रार्थना क्या अपने अन्तःकरण से उनका ध्यान करें।
जब हम मन्दिर में दर्शन करने जाते हैं तो खुली आंखों से भगवान को देखना चाहिए, उनकी सुन्दरता और भव्यता को निहारना चाहिए। उनके मनोहर छवि के दर्शन करने चाहिए। जबकि कुछ लोग वहाँ आँखे बन्द करके खड़े रहते हैं। आँखे बन्द क्यों करना हम तो दर्शन करने आए हैं। भगवान के स्वरूप का, उनके श्री चरणों का, मुखारविन्द का, श्रृंगार का। उनके साकार रूप का आपादमस्तक दर्शन करें। उनकी छवि को निहारते हुए अपने स्मृति पटल में बसाने का प्रयास करें। न की आँखे बन्द करके खड़े रहें। अपनी आँखों में भर लें अपने प्रियतम के स्वरूप को। जी भर कर उनका दर्शन करें और दर्शन करने के बाद जब बाहर आकर बैठें, तब जिनके साकार स्वरूप का दर्शन कर चुके हैं उनके निराकार स्वरूप का ध्यान करें। मन्दिर में नेत्र नहीं बन्द करना। बाहर आने के बाद सीढ़ी, पैड़ी या चबुतरा पर बैठकर जब अपने अराध्य का ध्यान करें तब नेत्र बन्द करें और अगर अपने अराध्य या अराध्या का स्वरूप ध्यान में न आए तब दोबारा मन्दिर में जाएं और उनके स्वरूप का पुनः दर्शन करें। इस प्रक्रिया का उन्नत रूप त्राटक कहलाता है। नेत्रों को बन्द करने के पश्चात निम्ननलिखित श्लोक का मनन करते हुए पाठ करें। ताकि नये भक्तों को भी सिद्ध साधु-सन्तों की तरह ईश्वर के अस्तित्व की अनुभूति हो सके।
अनायासेन न मरणम्, बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।
मैं त्राटक के बारे में भी विस्तृत चर्चा जरूर करेंगे। अतः हमेें फॉलो करते रहें। ताकि पूजा करने की असली विधी की जानकारी आपको हो सके। ताकि बढ़ते पाखण्ड के कारण सनातन धर्म को भूलते जा रहे लोगों को पुनः अपनी संस्कृति के प्रति आकर्षण को बढाया जा सके।... ॐ
बुधवार, 21 अप्रैल 2021
आर्थिक आधार पर आरक्षण का सच
किस्सा आर्थिक आधार पर आरक्षण के शुरूआत की
केन्द्र की एनडीए सरकार द्वारा आर्थिक आधार पर सरकारी नौकरी व शिक्षण संस्थानों में आरक्षण देने की अधिसूचना जारी कर दी थी। इसके लिए केन्द्र सरकार ने जो मापदण्ड तैयार किये हैं उसमें राज्य सरकारों को बदलाव करने के अधिकार दिए गए हैं। राष्ट्रपति की मञ्जूरी के बाद यह केन्द्र सरकार की नौकरियों में इसके लागू होने की घोषणा होते ही गुजरात और झारखण्ड सरकार ने भी इसे लागू करने की घोषणा कर दी थी। जबकि बिहार सरकार द्वारा इसके लिए मन्थन किया जा रहा था।
गरीब सवर्णों सहित आर्थिक आरक्षण से वञ्चित लोगों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के लिए संसद में विधेयक लाने की प्रक्रिया की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस आश्वासन के बाद शुरू हो गया था जब उन्होंने ट्विटर पोस्ट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए जवाब में लिखा था कि "आपके इस प्रस्ताव पर गम्भीरता पूर्वक विचार करने की कोशिश करूंगा।" दरअसल इस प्रक्रिया की शुरुआत उसी समय हो गई थी जब मैंने वैवाहिक विज्ञापनों में दिए गए सवर्ण समाज के मोबाइल फोन नम्बर्स पर आर्थिक आरक्षण की माँग करने के लिए अपने सन्देश एसएमएस के जरिये भेजने का अभियान शुरू किया था। इसके लिए मङ्गलवार और शुक्रवार को वैवाहिक विज्ञापन प्रकाशित करने वाले सभी अखबारों को खरीदने का प्रयास करता और जो अखबार नहीं खरीद पाता उसकी व्यवस्था लोगों से माँग कर कर लेता था। उसके बाद उन अखबारों में प्रकाशित सवर्ण समाज के सभी विज्ञापनदाताओं के मोबाइल फोन नम्बर्स को कलेक्ट करता और उन नम्बरों पर एसएमएस के द्वारा अपने सन्देश भेज-भेज कर आरक्षण से वञ्चित गरीब और असहाय सवर्णों को आन्दोलन छेड़ने के लिए प्रेरक सन्देशों को भेजता रहता था। मेरा इस अभियान का उद्देश्य नहीं जानने वाले लोग मुझे पागल और सनकी कह कर मजाक उड़ाया करते थे, जबकि मैं इसे जन जागरूकता के लिए किया जाने वाला मौन क्रान्ति कहता थ। आखिरकार साल बीतते-बीतते मेरा यह अभियान अपना रंग दिखाने लगा और जगह-जगह पर उपेक्षित सवर्णों के द्वारा आर्थिक आधार पर आरक्षण का कानून बनाने की माँग को लेकर धरना, प्रदर्शन और गोष्ठियों का आयोजन किया जाने लगा था। बाद में इस अभियान में और गति लाने के लिए मैंने अपने ट्विटर पेज़ और फेसबुक का भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था। मेरे द्वारा दिया गया नारा इतना प्रचारित हुआ कि मुझे नहीं जानने वाले लोग भी मेरे द्वारा दिए गए नारा को अपने ग्रुप्स में फारवर्ड करने लगे थे।
अपने साथ होने वाले घरेलु प्रताड़ना और अपनी चरित्रहीन पत्नी के द्वारा किये गये झूठे केस-मुकदमों से ऊब कर घर-परिवार छोड़ कर मैं अक्सर अनजान जगहों की यात्रा पर निकल जाता था। घर छोड़ते समय मुझे खुद ही पता नहीं रहता था कि मुझे कहाँ जाना है। बस लोगों से यह पता कर लेता था कि इस ट्रेन की अन्तिम स्टेशन कहाँ है?.. और रुपये-पैसे की व्यवस्था किये बिना ही किसी अनजान लोगों के व्यवहार, संस्कार, आवश्यकताओं और परेशानियों का समझते हुए अनजान जगह की यात्रा पर निकल जाता था। इस देश की जेलों में अमीर लोग ज्यादा कैद हैं या गरीब लोग, इसकी जानकारी के लिए भी इस देश की अधिक से अधिक जेलों की यात्रा करने की इच्छा होने के कारण भी मैं अक्सर बिदाउट टिकट ही यात्रा करता था। लेकिन पकड़े जाने के बाद भी टीटी या मजिस्ट्रेट मेरी फक्कर वाली दशा देख कर छोड़ देता था। पास में पैसे न होने के कारण मुझे कई-कई दिनों तक भूखे रहने की आदत पड़ गई थी। ग्रामीण क्षेत्रों की यात्रा के दौरान कुछ लोग आग्रह कर के जबरन खाना खिलाते और मेरी कथाओं को भी तन्मयता पूर्वक सुनते थे। कई जगहों पर तो अगले सफर पर निकलते समय दो-तीन समय का भोजन और नाश्ता भी दे देते और दूबारा आने की आग्रह भी करते थे। सिर्फ़ पंजाब और राजस्थान के अतिरिक्त अन्य जगहों पर मैंने सिर्फ़ गरीब किसान और मजदूरों को ही साधु-सन्तों और असहाय लोगों की मदद करते हुए देखा है। जबकि अमीरों को हर जगह गरीब-गुरबों के साथ दुर्व्यवहार और अत्याचार करते हुए ही मैंने देखा है। फिर भी सरकार तमाम सुविधाएं अमीरों को ही दे रखी है।
अपनी यात्रा के दौरान मैंने आरक्षण प्राप्त जाति के पूंजीपति और दबंग लोगों के घरों में में बेगारी करने वाले उसी की जाति के वैसे लोगों को भी देखा है, जिसे सरकारी सहायता लेने से उसकी जाति के ही दबंगों के द्वारा इसलिए रोक दिया जाता है, ताकि उसके घर में सिर्फ़ भर पेट भोजन के बदले बेगारी करने वाले लोग भाग न जाएं। इसी तरह के अत्याचार सवर्ण जाति के गरीब-गुरबों के साथ भी सभी जातियों के पूंजीपतियों के द्वारा किये जाते हैं। गरीब-गुरबों के आवेदन पर पुलिस-प्रशासन भी ध्यान नहीं देता है, जबकि पूंजीपति लोगों के नाजायज कामों को करने के लिए भी सरकारी और गैरसरकारी से लेकर समाज के लगभग सभी वर्गों के लोग तैयार हो जाते हैं। इसके बावजूद घोर गरीबी में जीवन-यापन करने के लिए मजबूर सवर्ण जातियों के गरीब-गुरबों को भगवान भरोसे छोड़ कर सिर्फ़ जाति विशेष के लोगों को ही आरक्षण का लाभ देने वाले कानून सवर्ण जातियों के दबे-कुचले और असहाय लोगों के साथ अन्याय है।
इस देश में विधि-व्यवस्था और सामाजिक न्याय का सच जानने के साथ अपने पूर्वज़ों की धरती की तलाश में मैंने जिस यात्रा की शुरुआत की थी उस यात्रा के दौरान मैं जहाँ भी गया, घोर गरीबी में जीवन-यापन करने के लिए मजबूर होने के बाद भी आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाने के कारण दुखी लोगों में देश और देश के नेताओं के प्रति जो नफ़रत का भाव दिखाई दिया उससे यही प्रतीत हुआ कि इस देश में सवर्ण जातियों के गरीब-गुरबों की स्थिति गुलामों की तरह ही है।
अपनी यात्रा के दौरान १६५९ ईस्वी में राजस्थान से विस्थापित अपने पूर्वज़ों की धरती की तलाश में भटकते हुए बेघर, बेरोजगार और असहाय होने के कारण मठों, मन्दिरों और गाँव-कस्बों में यायावर की तरह घूमते हुए जहाँ भी दोषपूर्ण कानून-व्यवस्था के कारण पीड़ित लोगों को देखा, वहाँ कुछ दिनों के लिए रुक कर लोगों को सामाजिक समानता के लिए जागरूक करते हुए घुमता रहा। घोर गरीबी में जीने के लिए मजबूर होते हुए भी अपनी जातिय स्वाभिमान के कारण चाह कर भी लोगों से मदद नहीं माँग पाता था। लेकिन एक दुर्घटना के कारण "विंगिंग औफ स्कैपुला" नामक असाध्य गम्भीर बीमारी से ग्रसित होने के बाद मुझे मजबूर होकर जब लोगों के सामने हाथ फैलाने पर भी मदद नहीं मिला तब मेरे जीवन का लक्ष्य ही बदल गया था। अपने इलाज के लिए खुद को समाज सेवी कहने वाले पुंजीपति मित्रों, एनजीओ संचालकों, भाजपा सांसदों और विधायकों के द्वारा भी जब मदद नहीं दिया गया तब मुझे पता चला कि गम्भीर बिमारियों के इलाज के लिए निम्न आय वाले लोगों को बिहार सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय आर्थिक मदद करता है। जिसमें केन्द्र सरकार की भी सहभागिता होती है। इस बात की घोषणा करते हुए बिहार सरकार ने सरकारी अस्पतालों में जगह-जगह विशालकाय होर्डिंग लगा रखा था। उस होर्डिंग पर दिए गए कस्टमर केयर नम्बर पर कॉल करते ही उनसे उनकी जाति पूछी गई थी और यह जानते ही कि फ़ोन करने वाला व्यक्ति राजपूत जाति का है, उसने यह कहते हुए फ़ोन को डिस्कनेक्ट कर दिया था कि "सवर्ण जातियों के लिये यह योजना नहीं है। तुम राजपूत हो न? तब कहाँ गया तुम्हारा हाथी-घोड़ा? जाकर अपना राज सम्भालो।" बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग के सूचना विभाग में पदस्थापित कर्मचारी से अपमानित होने के बाद सम्बन्धित विभाग में जाकर शिकायत करने पर भी मदद करने से इंकार कर दिया गया था। तब जाकर मुझे समझ में आया कि इस देश में समरस समाज के नाम पर सवर्ण जाति के लोगों को कैसे मूर्ख बनाया जा रहा है। अपनी इसी अनुभूति के बाद मैंने शुरू किया था आर्थिक आरक्षण के लिए जन-जागरूकता अभियान। आखिरकार एक दिन मेरे ट्विटर पेज़ पर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का वह सन्देश इन्हें प्राप्त हुआ जिसमें यह लिखा हुआ था - "स्वामी जी! आपका यह प्रस्ताव लोक मानस के हित में है। अतः इस पर गम्भीरता पूर्वक विचार करने का वचन देता हूँ। इस विषय की ओर ध्यानाकर्षण के लिए धन्यवाद।"
प्रधानमंत्री की ओर से मिले उस आश्वासन से मुझे पहली बार लगा था कि इस देश में आम लोगों की भी बातों को गम्भीरता से लेने वाले लोग रहते हैं। मगर इनकी संख्या इतनी कम है कि स्वार्थी और धूर्त लोगों की भीड़ में छुप जाते हैं। हमें ऐसे लोगों को ही ढूंढ कर बाहर लाने की जरूरत है। क्योंकि ऐसे ही लोगों से यह देश और समाज बचेगा।
सवर्ण आयोग का सच
सवर्णों को दरकिनार कर सत्ता में आने वालों का दलाल बना सवर्ण आयोग
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उपसम्पादक, प्रसेनजित सिंह उर्फ स्वामी सत्यानन्द, सुनामी टाइम्स, फरवरी २०१४ |
७४ के आन्दोलन के बाद जैसे-जैसे समय बीतता गया सत्ता में सवर्णों की भागीदारी का प्रतिशत घटता गया। जगन्नाथ मिश्र की सरकार के बाद जितनी भी सरकार बनी सवर्णों की लाशों पर समाधि का खेल ही साबित हुआ है। लालू सरकार में देखे गए भूराबाल के सफाये का सपना नीतिश कुमार पूरा कर रहे हैं। उन पर किसी को शक न हो इसके लिए अपने मातहत पिट्ठुओं की जमात को सवर्ण आयोग का लम्बरदार बना कर सवर्णों को मुर्ख बनाने का काम शुरू कर दिया है। हालांकि इस आयोग का गठन करवाते समय ही मुख्यमन्त्री ने कहा था कि समता मूलक समरस समाज की स्थापना के लिए इस आयोग का गठन किया गया है। लेकिन ऐसा समाज बनेगा तब ही न इसके स्थापना का उद्देश्य पूरा होगा।
"ऊँची जातियों के लिये गठित आयोग को गाँव से लेकर राजधानी तक के लोगों से सम्पर्क कर उनकी समस्याओं के समाधान के लिए प्रयास करना चाहिए।"
न्यायमूर्ति डी. के. त्रिवेदी की अध्यक्षता में गठित सवर्ण आयोग के गठन के समय ही नीतिश कुमार ने कहा था कि "ऊँची जातियों के लिये गठित आयोग को गाँव से लेकर राजधानी तक के लोगों से सम्पर्क कर उनकी समस्याओं के समाधान के लिए प्रयास करना चाहिए।" लेकिन उनकी सोची-समझी साजिश का ही परिणाम है कि सवर्ण आयोग के सदस्य से लेकर पदाधिकारी तक में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जिसने सवर्णों के अधिकार के लिए आन्दोलन करने वाले किसी संस्था या समूह का प्राथमिक सदस्य भी रहा हो। जिसमें सवर्णों के लिए के लिए कोई भावना तक उत्पन्न हो सका वैसे लोगों के बूते सवर्णों के स्वाभिमान की रक्षा करने का ड्रामा शोषित सवर्णों का मजाक उड़ाना नहीं तो और क्या है?
सवर्ण आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति डी. के. त्रिवेदी हों या इस आयोग के सदस्य अब्बास फरहत या पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी जी के खाश सागिर्द संजय मयूख! ये सभी ऐसे लोग हैं जिन्होंने न तो गरीबी देखी है और न ही गरीबी-बेरोजगारी से जूझते सवर्णों की पीड़ा को महसूस किया है। जिसे दर्द का एहसास ही नहीं है वह मर्ज क्या तलाशेगा? यही कारण है कि सवर्ण आयोग के गठन के बाद से आज तक ये शतरंजी मोहरें सवर्णों के अधिकार के लिए एक भी योजना बनाने में नाकाम रही है।
समता मूलक समरस समाज की स्थापना के उद्देश्य से सरकारी सेवाओं में जातीय आरक्षण हटाने के लिए चल रहे एक न्यायिक मामले में अनुसूचित जाति एवम् जनजाति कल्याण विभाग के द्वारा दिए गए प्रतिवेदन के आलोक में सर्वोच्च न्यायालय ने जिस समय आरक्षण को पूर्ववत् चालू रखने का निर्णय सुनाया था, उस समय भी सवर्ण आयोग के कठपुतली सदस्य मूक दर्शक बने रहे। ये लोग न तो जातिय विद्वेष उत्पन्न करने वाले उक्त प्रतिवेदन का विरोध किये और न ही शोषित सवर्णों के पक्ष को मजबूती से रखने के लिए कोई ठोस और प्रमाणिक प्रतिवेदन प्रस्तुत कर सके।
सवर्णों के खिलाफ़ आने वाले इस निर्णय से हमें यह नहीं समझना चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय! सवर्णों के खिलाफ़ है, बल्कि सवर्ण विरोधी निर्णय लाने का मूल कारण अनुसूचित जाति और जनजाति कल्याण विभाग के कार्यों तथा उद्देश्यों के प्रति ईमानदारी पूर्वक समर्पित होकर काम करने वाले वे पदाधिकारीगण हैं जो एम. नागराज एवम् अन्य बनाम सर्वोच्च न्यायालय के आलोक में दिए गए अपने प्रतिवेदन में मजबूती के साथ अपनी बात को रख कर न्यायालय को अपने पक्ष में निर्णय लेने के लिए बाध्य कर सके।
जातिय आरक्षण का समर्थन करने वाले उस विभाग ने अपने प्रतिवेदन में स्पष्ट रूप से यह लिखा था कि "वर्तमान आरक्षण के विधान को विलोपित करने से एससी-एसटी और पिछड़ा वर्ग के लोगों की सरकारी सेवाओं में प्रतिनिधित्व, दक्षता और सामाजिक विकास पर बूरा असर पड़ने की सम्भावना है। अतः अनुसूचित जाति (एससी) एवम् अनुसूचित जनजाति (एसटी) के सरकारी सेवकों को पूर्व की भांति आरक्षण एवम् परिणामी वरीयता मिलता रहे।"
SC-ST कल्याण विभाग, महादलित विकास मिशन और पिछड़ा वर्ग आयोग को राज्य सरकार ने अनुदान दिया मगर सवर्ण आयोग को कोई अनुदान नहीं मिल पाया।
अनुसूचित जाति एवम् अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग के द्वारा मजबूती से अपना पक्ष रखने का ही परिणाम है कि पूर्व निर्धारित आरक्षण को पूर्ववत् लागू रखते हुए राज्य सरकार! महादलित विकास मिशन को अनुदान के रूप में २०७.७५ करोड़ रुपये ,अनुसूचित जाति एवम् जनजाति आयोग के अध्यक्ष, सदस्य एवम् कर्मचारियों को वेतन आदि के लिए १.९० करोड़ रुपये तथा पिछड़ा वर्ग आयोग के लिए १.४० करोड़ रुपये अनुदान को स्वीकृत कराते हुए योजनाओं को वर्ष २०१४-१५ तक चालू रखने की मंजूरी दे दी थी। जबकि गरीब सवर्णों के उत्थान के लिए सवर्ण आयोग को कोई अनुदान नहीं मिल पाया।
इसके लिए सरकार से ज्यादा सवर्ण आयोग के पदाधिकारी बनें सवर्ण जाति के ही वे लोग जिम्मेदार हैं जिन्होंने सवर्ण जाति के गरीब-गुरबों के अधिकार के लिए आवाज़ उठाने के बजाय सत्ता में आने के लिए पहले से आरक्षण लेने वाले जातियों में अपनी लोकप्रियता घटने की आशंका के डर से मौन रहना ही बेहतर समझा। कहते हैं कि इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय में सवर्ण आयोग के द्वारा गरीब सवर्णों के अधिकारों के लिए अपना पक्ष नहीं रख पाने के कारण बिहार सरकार ने सवर्ण आयोग के सदस्य पदाधिकारियों को इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर के सवर्ण आयोग को भङ्ग कर दिया था।
सवर्ण जाति के लोगों को भी एससी-एसटी की तरह सभी सरकारी सेवाओं एवम् योजनाओं में समान रूप से प्रतिनिधित्व हो, सवर्ण जाति के लोग गरीबी, भुखमरी, बीमारी, बेरोजगारी, बेघर, भूमिहीन और असहाय होते हुए भी सरकार की जात-पात आधारित कानून के कारण सरकारी मदद नहीं मिल पाने के कारण अन्य जातियों की अपेक्षा ज्यादा आत्महत्या करते हैं। जबकि एससी-एसटी वर्ग के साधन-सम्पन्न लोगों को भी आरक्षण के पक्षपातपूर्ण कानून के कारण देश का खजाना ५०% अनुदान के नाम पर एससी-एसटी कहलाने वाले लोगों को दे-दे कर सवर्णों के खिलाफ़ खुलेआम अभियान चलाया जा रहा है।
ग्रामीण परिवहन विभाग के द्वारा ही हरेक साल बेरोजगार लोगों को रोजगार दिलाने के लिए सभी पंचायतों में से दस लोगों को दोपहिया वाहन से लेकर दसपहिया वाहन तक खरीदने के लिए ५०% अनुदान देता है। इसके लिए इच्छुक लोगों में से ६ एससी-एसटी जाति के लोगों को और ४ अल्पसंख्यक और पिछड़ा वर्ग में शामिल जातियों का ही चयन कर के सवर्ण जातियों से भी वसूले गए टैक्स की रकम से अर्जित राजकोष में से खरीदे गए वाहनों का ५०% मूल्य सरकार देता है। अनुदान कहलाने वाला यह राशि सरकार आरक्षण पाने वाले लोगों को वाहन खरीदने के लिए दे देता है लेकिन भूखमरी से निजात दिलाने के लिए सवर्ण जाति के लोगों को एक समय की रोटी तक नहीं देता है।
इसी अन्याय के कारण जन मुक्ति संघर्ष समिति के तत्वावधान में सनातन संस्कृति अनुसन्धान एवम् जागृति परिषद् नामक संघ गठित कर के बिहार के दलित जातियों के बीच यह जानने के लिए सर्वे करवाया था कि असली जरूरतमंदों को आरक्षण का लाभ मिल रहा है कि नहीं। उस सर्वेक्षण के दौरान माउन्टेन मैन के नाम से प्रसिद्ध दशरथ माँझी के गाँव गहलौर, वजीर गंज और सकरदास नवादा के आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों सहित पटना सिटी और गुलज़ार बाग के झुग्गियों में रहने वाले लोगों से भी हमारे वोलेंटियर्स ने घर-घर जाकर एक फार्म भरवाया था। उस फार्म में पूछे गए वस्तुनिष्ठ सवालों के जवाब में एससी-एसटी जाति के ८५% से भी अधिक लोगों ने सरकार के द्वारा गरीब लोगों की उपेक्षा करने की शिकायत करते हुए गरीबी आधारित आरक्षण का कानून बनाने की इच्छा जताई थी।
उस रिपोर्ट के सुनामी टाइम्स नामक स्थानीय अखबार में प्रकाशित करवाने के तत्काल बाद सवर्ण फैंस क्लब का गठन कर के गरीब सवर्णों को भी आरक्षण दिलाने के लिए गरीबी आधारित आरक्षण का कानून बनवाने की माँग को लेकर जन-जागरूकता अभियान शुरू कर दिया था। उसी दौरान मासिक पत्रिका "सुनामी टाइम्स" और साप्ताहिक समाचार पत्र "सुनामी एक्सप्रेस" के सम्पादक अजय दूबे ने मुझे सम्पादकीय सहायता के लिए आमंत्रित कर के अपने समाचार समूह में प्रूफ़रीडिंग और उपसम्पादन का दायित्व दिया था। उस पत्रिका से जुड़ते ही सवर्ण जातियों के द्वारा संचालित कई समाचार पत्र-पत्रिकाओं के द्वारा मुझे आमंत्रित किया जाने लगा था। जिसका लाभ उठाते हुए गरीबी आधारित आरक्षण का कानून बनवाने के लिए वर्ष २०१४-१६ में सवर्णों के साथ होने वाले अत्याचारों पर आधारित समाचारों को ही ज्यादा से ज्यादा प्रकाशित करवाया था। उस दौरान सोशल मीडिया के द्वारा भी गरीबी आधारित आरक्षण का कानून बना कर सवर्ण आयोग का गठन करवाने की माँग करने के लिए जन-जागरूकता अभियान चलाता रहा। लेकिन सवर्ण आयोग के सदस्य और पदाधिकारी चुप्पी साधे सवर्णों के साथ होने वाले अत्याचारों को देखते हुए भी सत्ताधारी नेताओं की चरण वन्दना करते रहे।
नेताओं की चरण वन्दना करने में माहिर होने का लाभ यह हुआ कि सवर्ण आयोग के सदस्यों में से सबसे ज्यादा चुप्पी साधने वाले सदस्य की चमचागिरी से खुश होकर भाजपा के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी जी ने संजय मयूख को बिहार विधान परिषद का सदस्य बना दिया। जबकि सवर्णों के लिए यदा-कदा आवाज़ उठाने की कोशिश करने वाले सवर्ण आयोग के सदस्य सुभाष चन्द्र सिंह जैसे लोगों को दूध में गिरी हुई मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया गया। जबकि ये शख्स भाजपा नेता संजय मयूख से ज्यादा लोकप्रिय और अनुभवी थे। वर्ष २०१८ में जब मेरी इनसे मुलाकात हुई थी तब ये ७४ वर्ष के थे। आज ये जीवित हैं या नहीं इसकी कोई सूचना नहीं है, मगर भूमिहार जाति के सुभाष चन्द्र जी! पटना के विक्रम थाना क्षेत्र के मूल निवासी और भारतीय जनता पार्टी में पटना ग्रामीण के जिलाध्यक्ष होने के साथ स्थानीय लोगों में इनकी अच्छी पकड़ थी। सुभाष जी ने ही मुझे बताया था कि इनके साथ सवर्ण आयोग के सभी सदस्यों और पदाधिकारियों को इस्तीफा देने के लिए मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने मजबूर किया था। सभी सदस्यों से इस्तीफा लेने के बाद के बाद सवर्ण आयोग का नाम बदल कर "उच्च जातियों के लिए राज्य आयोग" कर दिया गया। लेकिन भंग कर दिये गये कमिटी का पुनर्गठन नहीं किया गया। बिहार में सवर्ण समाज के लिए इससे ज्यादा कुछ भी नहीं किया है बिहार सरकार ने। भारत सरकार की भी यही दशा है। उसने गरीबी आधारित आरक्षण का कानून बना तो दिया मगर उस कानून को राज्य सरकार की इच्छा के बगैर लागू नहीं करवा सकती है। राज्य सरकारें इस कानून को अपने राज्य में लागू करेगी या नहीं करेगी, यह राज्य सरकार की इच्छा पर निर्भर करता है। राज्य सरकारें इसे अविलम्ब लागू करे इसके लिए सवर्ण समाज को एकजुट होकर अपने राज्य सरकारों पर दबाव बनाने की जरूरत है। तभी आपकी स्थिति सुधरेगी। अन्यथा वह समय बहुत जल्द आने वाला है जब तुम्हें भीख भी नहीं मिलेगी।