आरक्षण का दर्द
✍️ By प्रसेनजित सिंह
एकांकी : 01
पति एक दरगाह पर माथा टेककर घर लौटा, तो पत्नी ने बगैर नहाए घर में घुसने नहीं दी और बरस पड़ी।
पत्नी : जब अपने चाचा को शमशान में जलाकर आये थे, तब तो खूब रगड़-रगड़ के नहाये थे। आज एक मुसलमान की लाश पर माथा टेक कर आ रहे हो तब नहीं नहाओगे?
पति: किसकी लाश की बात कह रही हो? अरी बावरी, वो तो समाधी है।
पत्नी: समाधि? समाधि कैसे हो गया वह? जब उसे जलाया ही नहीं गया? जलायेगा तभी तो समाधी बनेगी। उसमें तो अभी लाश ही पड़ी है।
पति: अरे ऐसा नहीं कहते, वे तो देवता बन गये हैं।
पत्नी: तो तुम्हारे चाचा क्या राक्षस थे? इन्हें देवी-देवताओं से इतना ही प्रेम रहता तो हमारे देवी-देवताओं की पूजा का विरोध नहीं करते। उनकी मूर्तियों को नहीं तोड़ते।
पति: अरी मुझे तो दोस्त अब्दुल ले गया था। नहीं जाते तो बुरा मान लेता।
पत्नी: तो उस अब्दुल को सामने वाले हनुमान मन्दिर में मत्था टेकवाने के लिए ले जाना। कल मंगलवार भी है।
पति: वहाँ तो वह कभी नहीं जाएगा। ऐसे भी मन्दिरों को वे लोग काफ़ीरों की इबादतगाह समझते हैं। 🤔
ला तू पानी की बाल्टी दे-दे। नहीं तो मेरा भेजा खा जाओगी।
पत्नी: तो चलिए कान पकड़ के कीरिया खाइये कि आज के बाद हिन्दुओं को काफ़ीर समझने वाले लोगों से कोई मतलब नहीं रखेंगे। उनके मजारों पर मत्था नहीं टेकेंगे।
हम ईश्वर की सन्तान हैं तो हम लोग ही देवी और देवता हैं। राम और कृष्ण हमारे पूर्वज़ और हमारा घर ही एक मन्दिर है। तो अपने मन्दिर को छोड़ कर हिन्दुओं को काफ़ीर कहने वाले लोगों के दरवाजे पर सिर झुकाने क्यों जायें। जबकि पूर्वज़ों ने हमेशा यही सिखाया है कि दुश्मन के सामने सिर कभी भी झुकने मत देना। हमारे घर में रहने वाले हमारे परिजन ही देवी और देवता हैं। जब वे लोग हमारे सामने सिर नहीं झुकाते हैं तो आप क्यों ऐसा कर के अपनी नामर्दगी दिखाते हैं। तभी तो ये मुसलमान हम हिन्दुओं को आरे से चिरवा देते और बन्दा बहादुर माधो दास जैसे लोगों की भी बोटी-बोटी कर के हत्या करते हैं। ऐसे ही निर्दयी और क्रूर लोगों की आदि शक्ति ने संहार किया था। तब तुम आदि शक्ति और महादेव के विरोधियों के आगे सिर कैसे झुकाने लगे? अपने पितरों और देवी-देवताओं को नाराज़ कर के कभी भी घर में शान्ति और बरक्कत नहीं पाओगे।
पति : हाँ! आज भी इस सृष्टी पर आदि शक्ति और महादेव की ही मर्जी चलती है। इसे तो मैं भूल ही गया था। 🌹🙏🌹
हम सुख में हों तब भी और दुख में हों तब भी
#जय_सनातन_धर्म_की 💞
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एकांकी : 02
सेकुलर नेता : अरे वाह! देखो तो कितना तेज़ है यह। यह हरिजन होते हुए भी ३५ नम्बर ले आया और एक था भोदक्कर! जो राजपूत होते हुए भी मात्र ८४ नम्बर ही लाया था। साले! इन लफ्फुओं को अपने किस्मत पर रोने से फुर्सत मिलेगा तब नऽ हम रीजर्वेशन वालों की तरह मन लगा कर पढ़ेगा?
साम्प्रदायिक कार्यकर्ता (सेकुलर नेता की वेश में) : ठीके कहे नेता जी! जब ई सवर्णबन सब के पहले ही बता दिया गया है कि पास होने के लिए कम से कम ८५ नम्बर लाना जरूरी है। तब तो इन लोगों में बेरोजगारी की समस्या के लिए सरकार की कोई गलती नहीं है। सिर्फ़ एक नम्बर और ले आता तो उसे भी नौकरी मिल जाती। नहींऽ?
सेकुलर नेता : अरे बुर्बक! उसे सरकार की कोई सुविधा नहीं मिले इसीलिए तो यह रीजर्वेशन का कानून बनाया गया है।
साम्प्रदायिक कार्यकर्ता (सेकुलर नेता की वेश में) : क्या?
सेकुलर नेता : तुम्हें समझ में नहीं आता है कि जिसे ब्लेड भी पकड़ने नहीं आता है, वह सर्जन कैसे बन जाता है? जिसे ठीक से ककहरा और पहाड़ा भी नहीं आता है वह सरकारी टीचर कैसे बन जाता है? चलो जाओ, माथा मत खाओ।
साम्प्रदायिक कार्यकर्ता (सेकुलर नेता की वेश में) : नेता जी! सिर्फ़ एक नम्बर के कारण ही न नौकरी नहीं ले पाया।
सेकुलर नेता : अरे बुर्बक! तुम्हारी तरह ही उसे भी लगता होगा कि वह मात्र एक नम्बर और ले आता तो नौकरी उसे मिल जाती। लेकिन उस मूर्ख को रीजर्वेशन का पावर अभी नहीं पता है। इस रीजर्वेशन के कारण ही हम जाहिल होते हुए भी उसकी नौकरी छीन लेते हैं। वह कितना भी नम्बर लाएगा जीत हमें ही मिलेगा। वह दरोगा होगा और हम सिपाही होंगे, तब भी उसे ही हम से डरना होगा। वह प्रमोशन पाकर ज्यादा से ज्यादा डीएसपी तक पहुंचेगा लेकिन हम प्रमोशन में भी रीजर्वेशन लेकर डीजीपी बन जायेंगे तब उसकी सारी हेकड़ी निकाल देंगे। ये बात सब सवर्ण जानता है, इसलिए औकात में रहता है। हम लोग यदि उससे आगे नहीं बढ़ पाए तब भी वह जादे अलबलायेगा तो हरिजन एक्ट में लपेट के सब सवर्णगिरी निकाल देंगे।
साम्प्रदायिक कार्यकर्ता (सेकुलर नेता की वेश में): ठीके कह रहे हैं सर। सारा भीख मिलते हुए भी यह ३५ नम्बर ले आया और वह राजपूत! जिसके पूर्वजों से सुनते हैं कि देश की एकता के नाम पर राज-पाट, खेत-खलिहान सब ठग लिया गया, वह बिना कोई सरकारी सुविधा लिए ८५ नम्बर भी नहीं ला पाया है? लेकिन एक बात समझ में नहीं आता है कि यह ८४ नम्बर ज्यादा होता है कि ३५ नम्बर?
सेकुलर नेता : अरे बुर्बक! ज्यादा नम्बर तो ८४ ही होता है। लेकिन उन लोगों को समझ में आता है थोड़े न? वे लोग समझबे करते तो आज तक चुप थोड़े रहते। हाःऽ हाःऽ हाःऽ हाःऽ (जोरदार ठहाका)।
साम्प्रदायिक कार्यकर्ता (सेकुलर नेता की वेश में) : अच्छा नेता जी! एक बात और पूछना चाहते हैं, सरकारी सुविधा और बिना सरकारी सुविधा में क्या अन्तर है? बिना सरकारी सुविधा वाला! सरकारी सुविधा लेने वालों से ज्यादा सुविधाओं वाला होता है क्या?
सेकुलर नेता : अरे बुर्बक! जिसको सरकार से कोई सुविधा नहीं मिले उसको बिना सरकारी सुविधा वाला कहा जाता है। जिसके पास भर पेट खाना खाने का भी औकात नहीं होता है, फिर भी सरकार से कोई मदद नहीं मिलता है उसे बिना सरकारी सुविधाओं वाला कहा जाता है। जिसे जरूरत होने पर भी सरकारी सुविधा नहीं दिया जाता है उसे बिना सरकारी सुविधा वाला कहा जाता है।
साम्प्रदायिक कार्यकर्ता (सेकुलर नेता की वेश में) : तब तो यह अन्याय है। बिना कोई सुविधा वाला आदमी कहाँ से महँगा-महँगा किताब खरीदेगा? कैसे कोचिंग सेंटर या ट्यूशन फीस का जोगाड़ करेगा? बिना कोई सुविधा के सरकारी सुविधा लेने वालों से ज्यादा नम्बर लायेगा?
सेकुलर नेता : अरे बुर्बक! किसकी चिन्ता कर रहे हो? उन सवर्णों की? आगे-आगे देखते जाओ। हमारा समता मूलक कानून कैसे सारे सवर्णों को भिखाड़ी बना कर इस देश से खदेड़ देगा। फिर सारा भारत हमारा होगा।
साम्प्रदायिक कार्यकर्ता (सेकुलर नेता की वेश में) : वाह नेता जी! आपने समता मूलक समाज का बहुत बढ़िया कानून बनवाया है। इनके साथ क्या खेल खेला जा रहा है, इन्हें कुछ समझ में थोड़े न आता है। इनसे अपने यहाँ झाड़ू-पोछा लगवाइये, दरबान और चपरासी बना कर खटबाइये और सिर्फ़ "का हो बाऽबू साहब!" कह दीजिए। ई सब इसी से फुल कर कुप्पा हो जाता है। ...फिर इनका वेतन पचा लीजिए, तब भी कुछ नहीं बोलेगा। क्याऽ ठीक कहे नऽ?
सेकुलर नेता : ठीकेऽ कहा। हाःऽ हाःऽ हाःऽ हाःऽ (ठहाका) ई राजपुतवन-भूमिहरवन के कुछ बुझाता है थोड़े नऽ। ई सब के दिमाग तो तलवार में होता था, जिसे हमनी सब कहिए छीन लिए।
साम्प्रदायिक कार्यकर्ता (सेकुलर का चोला फेंक कर) : नेता जी! अब तलवार के जमाना नहीं रहा, ईऽ रीवाल्वर के जमाना है। आप नेतागिरी करते हैं, तब नेता जी की तरह बनिए। बिना किसी को जाने-पहचाने अनाप-शनाप बकना बन्द कीजिए। जिसे आप भोंदू कह रहे हैं वह ८४ नम्बर लाकर भी इस सरकार की नौकरी नहीं ले पाने वाला रजपुतवा हम ही हैं। अब आपका पोल खुल गया है। मत भूलिए कि अम्बेदकर जी को हमारे ही पूर्वज़ ने सहारा देकर आगे बढ़ाया था। आप जिस लोकतंत्र की दुहाई देकर सेकुलर होने का ड्रामा कर रहे हैं, इस लोक तंत्र को दुनियाँ में फैलाने वाले हम ही हैं। लोकतंत्र का मतलब अँधतंत्र नहीं होता, बल्कि प्रजातंत्र होता है। अच्छा हुआ जो आपने खुद सेकुलरिज्म का अर्थ समझा कर अपनी मंशा बता दिये हैं। आपकी हकीकत जान कर सवर्ण समाज के लोग जरूर जागरूक होंगे और आपके इस सेकुलरवाद को खत्म कर के असली लोक तंत्र को मजबूती के साथ कायम करेंगे। आप भी इस देश की एकता के लिए जाति-धर्म का भेद-भाव छोड़कर आर्थिक आधार पर आरक्षण के लिए आवाज उठाइए। इस से आप ज्यादा बड़ा नेता कहायेंगे। नहीं तो अब हमें और बुर्बक नहीं बना पायेंगे।