सोमवार, 6 सितंबर 2021

ननप्रौफिट चैरिटेबल ट्रस्ट कैसे बनायें



धर्मार्थ या धार्मिक, आतिथ्य और पुनर्वास संस्थानों के लिए ट्रस्ट डीड 
सम्पादित किया गया:  
सितम्बर ०६, २०२१ - ०३:०० अपराह्न

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ट्रस्ट डीड निष्पादित करके धर्मार्थ या धार्मिक, आतिथ्य और पुनर्वास या आतिथ्य और पुनर्वास संस्थानों का गठन किया जा सकता है। ट्रस्ट डीड को सेटलर और ट्रस्टी के बीच निष्पादित किया जाता है। एक सेटलर वह व्यक्ति होता है जो कुछ धर्मार्थ या धार्मिक या आतिथ्य और पुनर्वास उद्देश्यों के लिए ट्रस्ट बनाता है। जबकि ट्रस्टी वे लोग होते हैं जो ट्रस्ट को मैनेज करते हैं। सेटलर वह होता है जो आम तौर पर वैसे ट्रस्टियों को नियुक्त करता है जो ट्रस्ट के नियम के अनुसार प्रभावी ढंग से चल सकते हैं और ईमानदारी पूर्वक काम कर सकते हैं।

"ट्रस्ट डीड तैयार करवाने या नमूना प्रारूप प्राप्त करने के लिए सम्पर्क करें"
 
ट्रस्ट डीड के तहत, सेटलर पहचान योग्य जायज सम्पत्ति को ट्रस्टियों को हस्तान्तरित करता है और ट्रस्टियों के लिए ट्रस्ट डीड में निर्दिष्ट नियमों और शर्तों के अनुसार ट्रस्ट को उसके उद्देश्यों के लिए काम करने और प्रबन्धित करना अनिवार्य बनाता है।

ट्रस्ट डीड के प्रमुख तत्व देखें 
ऑब्जेक्टिव : जिस ऑब्जेक्ट के लिए ट्रस्ट बनाया गया है वह इस क्लॉज में निर्दिष्ट है। यह बहुत महत्वपूर्ण खण्ड है। क्योंकि सभी गतिविधियाँ इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही की जाती हैं।
फण्ड की स्वीकृति : ट्रस्ट किसी भी व्यक्ति, सरकार या किसी अन्य धर्मार्थ संस्थानों से दान, अनुदान, सदस्यता, सहायता या योगदान को नकद या अचल संपत्ति सहित किसी भी तरह से बिना किसी शुल्क या टैक्स दिए स्वीकार कर सकता है। लेकिन वह इस शर्त के साथ प्राप्त किसी भी ऐसे फण्ड को स्वीकार नहीं करेगा जो ट्रस्ट के उद्देश्यों से असंगत है।
निवेश : न्यासियों की यह जिम्मेदारी होती है कि वे न्यास की निधियों का कुशल तरीके से प्रबन्धन करें। वर्तमान जरूरतों को पूरा करने के लिए निकट भविष्य में जिन निधियों की आवश्यकता नहीं है, उन्हें प्रतिभूतियों, बैंकों और अन्य निवेशों में उसी तरह निवेश किया जाना चाहिए जैसे एक विवेकपूर्ण व्यक्ति करेगा।
न्यासियों की शक्ति : ट्रस्टी ऐसा कोई कार्य नहीं कर सकते जो ट्रस्ट डीड में उल्लिखित उनकी शक्तियों से परे हो। ट्रस्टियों को आम तौर पर ट्रस्ट के समग्र आचरण और प्रबन्धन के लिए जो शक्तियां दी जाती हैं वे निम्नलिखित हैं :
कर्मचारियों की नियुक्ति, 
ट्रस्ट सम्पत्तियों को बेचना, बदलना, विवादित मामलों को निपटाना या अलग करना
ट्रस्ट द्वारा संचालित किसी कम्पनी या ट्रस्ट के नाम से और ट्रस्ट की ओर से ही बैंक खाते खोलें। 
ट्रस्ट की ओर से मुकदमा दायर करें। 
किसी भी उपहार, दान या योगदान को स्वीकार करें। 
ट्रस्ट में धन का निवेश करें। 
ट्रस्ट आदि के प्रबन्धन देखें।

लेखा और लेखा परीक्षा :  ट्रस्टियों को ट्रस्ट की सभी संपत्तियों, देनदारियों, आय और व्यय के खातों की उचित पुस्तकों को बनाए रखने की आवश्यकता होती है और चार्टर्ड एकाउण्टेंट द्वारा खातों का लेखा-जोखा भी रखने का व्यवस्था किया जाता है।
डब्ल्यू एण्डिङ्ग अप :  कम्पनी के समापन की स्थिति में, ट्रस्ट की सम्पत्ति ट्रस्टियों को हस्तांतरित नहीं की जाएगी। उन्हें किसी अन्य समान ट्रस्ट या संगठन में स्थानांतरित कर दिया जाएगा, जिनके उद्देश्य इस ट्रस्ट के समान हैं, जो कि चैरिटी कमिश्नर/कोर्ट/किसी अन्य कानून की अनुमति के साथ लागू हो सकते हैं।

शनिवार, 28 अगस्त 2021

आर्यों का देश है अजर्बैज़ान

आर्यों का देश अजर्बैज़ान

अजर्बैज़ान का बाकु है कश्यप ऋषि के प्रपौत्र और सूर्यवंशी राजा इक्ष्वाकु की जन्म भूमि

हरिवंश पुराण में वैशम्पायन ऋषि के द्वारा वर्णित एक कथा और महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत नामक ग्रन्थ में वर्णित प्रसंग के अनुसार सूर्यवंशी राजा इक्ष्वाकु के वंश में उत्पन्न एक दुराचारी राजा ने अपने छोटे भाई हर्यश्व को अपने राज्य (बाकु) से निकाल दिया था। तब वे वनों में भटकते हुए पूरब के देश की ओर चले गए थे। वहीं उनकी भेंट दानव राज मधु की बेटी मधुमती से हुआ। जो इनके रूप और पौरुष से आकर्षित होकर विवाह करने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन राज्यहीन हो चुके हर्यश्व ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। तब मधुमती ने यह कह कर स्त्री अपने जीवन में एक ही पुरुष की कामना करती है, मैंने आपको पति मान लिया है तो अब आपके अलावा किसी अन्य पुरुष की कल्पना भी नहीं कर सकती। ऐसे में यदि आप मुझे ठुकरा देंगे तो मैं आजीवन कुवांरी रह लुंगी। इस पर हर्यश्व ने राजकुमारी मधुमती के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिये और उनके साथ वन में ही रहने लगे। कई दिनों से वन में रहने के बाद राजकुमारी ने अपने पिता का आशीर्वाद लेने की इच्छा से उन्हें लेकर अपने जन्मभूमि आभीर देश में चली गई तथा अपने पिता को अपने विवाह से लेकर राजकुंवर हर्यश्व के कुल और वंश के बारे में बताते हुए पूरी आपबीती सुना दी। तब दयालु स्वभाव के दानव राज मधु ने अपने राज्य का आधा भाग जो गिरनार और रैवतक पर्वत से घिरा हुआ था अपनी बेटी को सौंप कर हर्यश्व को वहाँ के राजा बना दिए और आधा भाग अपने बेटे लवण को देकर तपोवन में चले गए। राजा हर्यश्व ने अपने राज्य को नये निर्माण से इतना सजाया की वह अपने सुन्दरता के कारण दूर-दूर तक सुराष्ट्र के नाम से जाना जाने लगा। जो कालान्तर में सौराष्ट्र के नाम से भी विख्यात हुआ। इसी सौराष्ट्र के निवासी पूरी दुनियां की जानकारी रखने वाले कौशिक गोत्रीय ब्राह्मणों के साथ व्यापार करने के लिए इक्ष्वाकु और हर्यश्व नामक अपनी ने पूर्वजों की जन्मभूमि पर जब भी आते थे इसी स्थान पर विश्राम करते तथा अपनी शान्ति और सुरक्षा के लिए सभी देवी-देवताओं में श्रेष्ठ माने जाने वाले कौशिक विश्वामित्र भगवान के पुत्र अग्निदेव के प्रतीक अग्नि कुण्ड में हवन (होम) कर के नटराज शिव और विघ्नविनाशक गणेश-कार्तिकेय की पूजा करते थे। सौराष्ट्रियन व्यापारियों के द्वारा निर्मित बाकु के इस आरामगाह में आगंतुुक लोगों के विश्राम के लिए हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध थी। फायर टेम्पल नामक बाकु के इस मन्दिर में नटराज शिव और गणेश भगवान की प्रतिमा सहित भोजन और विश्राम करने के जगह को भी दिखाया गया है। इसके बावजूद वह मन्दिर वहां के स्थानीय लोगों में पौराणिक विश्राम गृह के बजाए Ateshgah temple के नाम से ही प्रसिद्ध है। यह पुरातात्विक स्थान न केवल एक ऐतिहासिक स्थल है बल्कि दो राष्ट्रों के संस्कृतियों का संगम स्थल और सामाजिक सौहार्द का भी प्रमाण है। यकीनन यह इस्लाम और क्रिश्चियनिटी धर्म के अभ्युदय के पूर्व की संस्कृतियों के लोगों के अनुपम प्रेम और विश्वास का ऐतिहासिक स्मारक ही है। देखें आर्यों के देश अजर्बैज़ान में स्थित बाकु नामक प्रान्त और बाकु में स्थित सौराष्ट्रियन लोगो के द्वारा निर्मित आरामगाह और होम करने के लिए निर्मित अग्निदेव के मन्दिर की तस्वीरें :
नटराज शिव की आकृतियुक्त दीपक


विघ्न विनाशक गणेश की मूर्ति
अग्नि का प्राकृतिक कुण्ड
 
कुम्भी बैस कहलाने वाले ब्राह्मणशाही कौशिकों का पारम्परिक भित्तिचित्र
 
अग्नि मन्दिर के प्रवेश द्वार पर पर्शियन लिपि में लिखा हुआ शिलालेख














गुगल मैप पर अजर्बैज़ान में स्थित पुरातात्विक महत्व के इस जगह को देखने के लिए संलग्न लिंक पर क्लिक करें : 
https://maps.app.goo.gl/gdz8s8cxaFmY627V6 
Check out this review of Ateshgah temple on Google Map
https://goo.gl/maps/FQAqZTYHM7sFLjzK9

शनिवार, 21 अगस्त 2021

कविता : सवर्ण अछूत

हमको देखो हम सवर्ण हैं 
भारत माँ के पूत हैं,
लेकिन दुःख है अब भारत में,
हम सब 'नए अछूत' हैं।

सारे नियम सभी कानूनों
ने हमको ही मारा है,
भारत का निर्माता देखो,
अपने घर में हारा है।
नहीं हमारे लिए नौकरी,
नहीं सीट विद्यालय में।
ना अपनी कोई सुनवाई,
संसद या न्यायालय में।
हम भविष्य थे भारत माँ के,
आज बने हम भूत हैं।
बेहद दुःख है अब भारत में
हम सब 'नए अछूत' हैं।

दलित महज़ आरोप लगा दे,
हमें जेल में जाना है।
हम-निर्दोष! नहीं हैं दोषी,
यह सबूत भी लाना है।
हम जिनको सत्ता में लाये,
छुरा उन्हीं ने भोंका है।
काले कानूनों की भट्ठी,
में हम सब को झोंका है।
किनको चुनें, किन्हें हरायें?
सारे पाप के दूत हैं।
बेहद दुःख है अब भारत में
हम सब 'नए अछूत' हैं।

प्राण त्यागते हैं सीमा पर,
लड़ कर मरते हम ही हैं।
अपनी मेधा से भारत की,
सेवा करते हम ही हैं।
हर सवर्ण इस भारत माँ का,
एक अनमोल नगीना है।
इसके हर बच्चे-बच्चे का,
छप्पन इंची सीना है।
भस्म हमारी शिवशंकर से,
लिपटी हुई भभूत है।
लेकिन दुःख है अब भारत में,
हम सब 'नए अछूत' हैं।

देकर खून पसीना अपना,
इस गुलशन को सींचा है।
डूबा देश रसातल में जब,
हमने बाहर खींचा है।
हमने ही भारत भूमि में,
धर्म-ध्वजा लहराई है।
सोच हमारी नभ को चूमे
बातों में गहराई है।
हम हैं त्यागी, हम बैरागी,
हम ही तो अवधूत हैं।
बेहद दुःख है अब भारत में,
हम सब 'नए अछूत' है। 

- कविता शीर्षक #सवर्ण_अछूत नामक यह रचना उदासी सन्त, कवि और समाजसेवी प्रसेनजित सिंह कौशिक उर्फ़ स्वामी सत्यानन्द के द्वारा स्वरचित मौलिक रचना है तथा उनकी कविता संग्रह "मेरा मन यायावर" से उद्धृत है।  राष्ट्रीय एकता तथा सामाजिक समरसता में बाधक बन रहे जाति, धर्म और लिंग आधारित आरक्षण के बजाए आर्थिक और सामाजिक स्थिति के आधार पर आरक्षण के कानून बनवाने के लिए इच्छुक लोगों से आग्रह है कि जात-पात आधारित वर्तमान क़ानूनों के कारण होने वाली आपबीती या अपने आस-पास के लोगों के साथ हो रहे परेशानियों को गद्य और पद्य में लिख कर या वीडियो रिकार्डिंग कर के मुझे जरूर भेजें। ताकि उन्हें इस ब्लॉग या हमारे संगठन की स्मारिका में जन जागरुकता हेतु सम्मिलित कर आपके सन्देशों को प्रचारित-प्रसारित किया जा सके। कृप्या यह सन्देश सवर्ण समाज के अपने मित्रों को जरूर फारवर्ड या अग्रसारित जरूर करें।

रविवार, 6 जून 2021

सनातन धर्म की रक्षा के लिए अम्बेर रियासत का योगदान

24 नवंबर 1675 की तारीख गवाह बनी थी कुम्भी बैस वंशीय एक सिख सरदार के सरदार बने रहने की। दोपहर का समय और जगह चाँदनी चौक दिल्ली में लाल किले के सामने जब मुगलिया सल्तनत के सबसे नीच शासक की क्रूरता देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था, तब भी उस सनकी शासक के डर से लोग चुपचाप फैसले का इंतजार कर रहे थे। वह शासक मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा की छल पूर्वक हत्या करवाने वाला वह कायर था, जिसने सल्तनत के लिए अपने भाईयों की हत्या कर के अपने पिता और पुत्र तक को कारागार में डाल दिया था। वह नराधम इस्लाम के विस्तार के नाम पर अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए बाधक बन रहे सिखों के गुरू श्री तेग बहादुर सिंह जी के खिलाफ़ जो फैसला सुनाने वाला था, उसे जानने के लिए लोगों का जमघट काज़ी के उस मंच की ओर लगा हुआ था, जहाँ तेग बहादुर जी का फैसला होने वाला था। सबकी साँसे उस परिणाम को जानने के लिए अटकी हुई थी जिसके मुताबिक अगर गुरु तेग बहादुर जी इस्लाम कबूल कर लेते तब बिना किसी खून-खराबे के सभी सिखों को मुस्लिम बनना पड़ता। औरंगजेब के लिए भी उस दिन का फैसला इज्ज़त का सवाल था। क्या मुसलमान और क्या सिख? तेग बहादुर सिंह जी की पत्नी गुजरी मइया और उनके पोतों को काज़ी के हवाले करने वाले धूर्त ब्राह्मणों के साथ अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी राजपूतों पर छोड़ कर अपनी रोजी-रोटी में लिप्त निःशेष हिन्दुओं की भी सांसे उस दिन का फैसला सुनने के लिए अटकी हुई थी। अपने भाईयों के खून से हाथ धोने वाले बादशाह को देख कर भी सिखों के गुरु तेग बहादुर जी अपने आसन से नहीं उठे। सिखों के कारण मुसलमानों को अपना धर्म खतरे में दिख रहा था। छल, छद्म और क्रूरता के बल पर अपने धर्म के अनुयायियों का विस्तार करने वाले इस्लामिक हुकूमत का अस्तित्व खतरे में था तो दूसरी तरफ एक धर्म का सब कुछ दाव पर लगा हुआ था। ना कहते ही तेग बहादुर जी की गर्दन धर से अलग कर देने के लिए तैयार जल्लाद, काज़ी और औरंगजेब सहित हिन्दुस्तान को हिन्दुत्व विहीन कर देने के लिए तैयार नर पिशाचों से घिरे होने के बाद भी तेग बहादुर जी बेखौफ़ होकर आने वाले फैसले का इंतजार कर रहे थे। तय समय पर अदालती कारवाई शुरू हुआ और काज़ी ने सवाल किया-"तुम्हें हमारी शर्तें मंजूर हैं या नहीं? यदि तुम इस्लाम कबूल कर लोगे तब हमारी तरह ही तुम भी अपनी जमात के अगुआ बने रहोगे। तुम्हारी शान में कोई कमी नहीं आएगी। लेकिन अपनी जिद पर अड़े रहोगे तब काफ़िरों की तरह ही मारे जाओगे। तुम्हारे कारण तुम्हारा साथ देने वाले लोगों का भी यही अंजाम होगा। लेकिन यदि तुम इस्लाम को कबूल कर लोगे तब तुम्हारे साथ आने वाले लोग भी अपनी बर्बादी से बच जायेंगे। इसके लिए तुम्हें सल्तनत में एक ऊँचे ओहदे के साथ इनाम-इकराम भी दिलवा दूँगा। इसलिए सोच-समझकर जवाब दो। तुम्हें शाही जिन्दगी चाहिए या मौत? अपना जवाब हाँ या नहीं में देना। तुम्हें इस्लाम कबूल है या नहीं?" उस दिन की अदालती कारवाई का निर्णय तेग बहादुर जी के हाँ या ना पर निर्भर था। काज़ी सहित उस जगह पर स्थित कई शाही दरबारियों ने भी उन्हें हाँ कह देने के लिए मनाना चाहा था, मगर अम्बेर (आमेर) के राजा राम सिंह जिन्हें औरंगजेब के कारण ही अपने ज्येष्ठ पुत्र सरदार किशन सिंह बहादुर जी को बागी घोषित कर के सारे सम्बन्ध त्यागने के बाद भी अपनी रियासत से हाथ धोना पड़ा था, उनकी पकड़ तलवार की मूठ पर कसती जा रही थी। लेकिन परिस्थिति के कारण मजबूर होकर उन्हें भी काज़ी के फैसले का इंतजार करना पड़ा था। आखिर तेगबहादुर जी के इस्लाम स्वीकार करने से इंकार करते ही काज़ी ने उनका सिर कलम करने का फैसला लेते हुए उस पर तुरन्त अमल करने का आदेश दे दिया था। लेकिन तेग बहादुर सिंह जी परम प्रकाश के ध्यान में लीन होकर अपने धर्म पर अडिग रहे। आदेश सुनते ही आये दिन लोगों की कत्ल करने वाला जल्लाद भी अपनी मौत से बेपरवाह तेगबहादुर सिंह को बेखौफ़ ईश्वर के ध्यान में लीन देख कर तलवार उठाते समय काँप गया था। तेग बहादुर जी का सिर कटते ही अम्बेर के राजा राम सिंह! मुगलिया सल्तनत के साथ किये गये अपने पूर्वज़ों की सन्धि को तोड़ने का निर्णय ले चुके थे। ऐसे भी इसके लिए उन्हें औरंगजेब ने ही मजबूर किया था। पहले तो उसने सल्तनत के बादशाह शाहजहाँ के आदेश से दारा शूकोह का साथ देने के कारण उनके निर्दोष बेटे किशन सिंह जी को बागी घोषित कर उनकी जागीर और मालो-मकान सहित अम्बेर रियासत पर भी कब्जा कर के उनके पूर्वज़ों का महल खाली करने के लिए मजबूर कर दिया था। फिर उनके पिता मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा को ही अपने पौत्र किशन सिंह जी और दारा शूकोह को गिरफ्तार करने का आदेश देकर चारों दिशाओं में दौड़ा-दौड़ा कर परेशान किया था। फिर औरंगजेब ने ही दक्षिण अभियान में राजा जय सिंह जी के साथ भेजे हुए अपने आदमी के द्वारा उनके रात्रि भोजन में जहर डलवा कर छल पूर्वक हत्या करवाया था। उस घटना के पहले शाहजहाँ ने जब अपने पिता के खिलाफ़ बगावत किया था तब बादशाह जहाँगीर के आदेश पर मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा ने खुर्रम (शाहजहाँ) को गिरफ्तार कर के दरबार में पेश किया था। राजा जय सिंह बाबा के साथ हुए जंग में पराजित होकर गिरफ्तार किए जाने से हुई शर्मिन्दगी का बदला लेने के लिए शहजादा खुर्रम ने सल्तनत की बादशाहत हाथ में आते ही मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा के हाथों हुई हार का बदला लेने के लिए साजिशें रचने लगा था। मिर्ज़ा राजा जय सिंह जी के विरोध के बावजूद दुल्हे राय के नाम से मशहूर उनके पूर्वज़ राजा तेजकरण की याद में उनके पूर्वज़ों के द्वारा बनवाये गये तेजू महल पर जबरन कब्जा कर के शाहजहाँ नामक नामुराद ने उसमें अपनी बेगम का कब्रगाह बना दिया था।
सल्तनत के लिए हुए शहजादों की जंग में कई जंगों के अनुभवी और विजेता रह चुके उनके पिता राजा जय सिंह जी का ओहदा कम कर के उम्र में काफ़ी छोटे और अनुभवहीन जसवंत सिंह, सुलेमान शूकोह और दारा शूकोह जैसे लोगों के अधीन कर दिया था। सत्ता के लिए शाहजहाँ के शहजादों की जंग में अनुभवहीन और अहंकारी लोगों के अधीन रह कर शुजा, मुराद और औरंगजेब के विरुद्ध चलाये गये युद्ध अभियान में गलत नीतियों के कारण हुए हार का दोषारोपण भी उनके पिता मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा पर ही थोप कर उनको लगातार अपमानित करने का काम भी मुगलिया सल्तनत के लोगों ने ही किया था। पहले शाहजहाँ, दारा शूकोह और सुलेमान शुकोह और फिर औरंगजेब के द्वारा भी अपने पिता के अपमान की घटनाओं को याद करते हुए राजा राम सिंह भी अपने बेटे किशन सिंह की राह पर ही चलने का मन बना लिये थे। कहते हैं कि सिखों के गुरु तेग बहादुर सिंह की शहीदी की खबर सुनते ही औरंगजेब खुद चल कर उस जगह पर गया था, जहाँ गुरु तेग बहादुर जी का शीष कट कर गिरा हुआ था। जिस जगह पर तेग बहादुर जी का शीष कट कर गिरा था वहाँ पर आज शीषगंज गुरुद्वारा बना दिया गया है। जिस मस्जिद से कुरान की आयतें पढ़ कर यातना देने का फतवा जारी किया जाता था, वह मस्जिद भी उसी जगह पर है। दिल्ली के चाँदनी चौक में स्थित गुरुद्वारा शीष गंज कभी पूरे इस्लाम के लिये प्रतिष्ठा का विषय था। आखिरकार जब इस्लाम कबूल करवाने की जिद पर इसलाम ना कबूलने का हौसला अडिग रहा तब जल्लाद की तलवार चली थी और प्रकाश अपने स्त्रोत में समा कर लीन हो गया था। यह घटना भारत के इतिहास का एक ऐसा मोड़ था जिसने पूरे हिंदुस्तान का भविष्य बदलने से रोक दिया था। सिखों के गुरु तेग बहादुर जी जिन्होंने हिन्द की चादर बनकर तिलक और जनेऊ की रक्षा की थी उनके पुत्र और सिखों के अन्तिम गुरु गोविन्द सिंह जी के कहने पर सिखों ने अन्ततः जनेऊ को उतार फेंका तेग बहादुर सिंह तक को मूगलों के खिलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए प्रेरित करने वाले किशन सिंह बहादुर को इतिहासकारों ने भुला दिया है। मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा के पौत्र और राम सिंह के ज्येष्ठ पुत्र किशन सिंह धोला रियासत के जागिरदार और आमेर रियासत के उत्तराधिकारी तो थे ही दारा शूकोह के मित्र और मुख्य सेवक भी थे। अपने अदम्य साहस से औरंगजेब के खिलाफ़ धर्म युद्ध छेड़ने वाले वे पहले योद्धा थे, जिन्होंने धरमत की लड़ाई में औरंगजेब से पराजित होकर युद्ध क्षेत्र से भागे हुए दारा शूकोह का साथ देने के लिए शाहजहाँ के द्वारा मदद माँगने और अपने पिता के द्वारा शाहजहाँ की मदद करने के आदेश का पालन करने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था। आज तेग बहादुर सिंह जी और उनके पुत्र गुरु गोविन्द सिंह जी के वंश में कोई नहीं बचा है, जबकि दरगाही बाबा और लङ्गरा बाबा के नाम से प्रसिद्ध सरदार किशन सिंह बहादुर जी के वंशज़ अपनी जनेऊ और अपने परम्परिक रीति-रिवाजों के साथ आज भी आबाद हैं। धर्म रक्षार्थ जिस राजकुमार ने अपना सर्वस्व त्याग दिया, उन्हें अपनी जनेऊ पर इतराने वाले हिन्दुओं ने भी भुला दिया है। इनकी समाधि पटना में गङ्गा नदी के किनारे गाय घाट में स्थित श्री चन्द्र उदासी मठ के मुख्य द्वार के सामने आज भी स्थित है और स्थानीय लोगों में दरगाही बाबा की समाधि के नाम से प्रसिद्ध है। शाहजहाँ के दरबार में अपने पिता राजा राम सिंह के वकील के रूप में नियुक्त किये जाने के कारण ये आम लोगों में दरगाही बाबा के नाम से तो अपने साथी हिन्दुओं के लिए लङ्गर लगाने के कारण लङ्गरा बाबा के नाम से भी पहचाने जाते हैं। मैं इन्हीं का वंशज़ हूँ तथा आज भी हमारे वंशजों का घराना! लङ्गरा बाबा किशन सिंह का घराना कहलाता है। दादर के सूबेदार मलिक जीवन की हवेली के पास दारा शूकोह के साथ गिरफ्तार हुए किशन सिंह जी को मलिक जीवन और मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा की मदद से मुक्त कर के अपने परिवार के साथ भगा दिया गया था। 1659 ईस्वी में नांदेड़ से होते हुए पटना की ओर आते समय बाबा किशन सिंह जी के ज्येष्ठ पुत्र भेदिया के रूप में घुम रहे औरंगजेब के गुप्तचरों से बचने-बचाने के प्रयास में अपनी टोली से भटक कर नांदेड़ में स्थित अपने पूर्वज़ महाराजा भगवन्त दास के छोटे भाई भगवान दास की हवेली में शरण लिये थे। संयोग से वहीं पर गुरु गोविन्द सिंह से मुलाकात होने के बाद पटना में रह रहे अपने परिजनों के बारे में जानकारी मिल पायी थी। उस दौरान मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा और राजा राम सिंह जी के द्वारा भी गुप्त रूप से इन लोगों को आर्थिक सहायता दी जाती थी। जिसकी सूचना मिलने पर औरंगजेब ने उन दोनों के पीछे अपना गुप्तचर लगा दिया था। उन गुप्तचरों में एक ब्राह्मण जाति का वह कर्मचारी भी था जो मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा का भोजन बनाने और पड़ोसने की जिम्मेवारी सम्भालता था। उसी ने मध्यप्रदेश के बुरहानपुर में रात्रि भोजन के समय मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा को विषयुक्त भोजन परोस दिया था। जिसे खाते ही उनकी तबीयत खराब हुई और भोर होते-होते मौत के आगोश में चले गए थे। जात-पात और ऊँच-नीच के नाम पर हिन्दुओं की धार्मिक एकता को कमजोर करने वालों को आज भी होश नहीं आया है। 24 नवम्बर का यह इतिहास सभी को पता होना चाहिए। इतिहास के वो पृष्ठ जो पढ़ाए नहीं गये वाहे गुरु जी दी खालसा वाहे गुरूजी दी फ़तेह 🙏

मंगलवार, 1 जून 2021

IMA द्वारा स्वामी रामदेव पर लगाया गया देशद्रोह का आरोप कितना सच

क्या पतञ्जलि के संस्थापक और विश्वविख्यात योगाचार्य स्वामी रामदेव ने एलोपैथिक डॉक्टरों और IMA के अध्यक्ष को बन्दूक की नोक पर लूटा है? या आयुर्वेदाचार्य बालकृष्ण और स्वामी रामदेव ने डॉक्टरों की जेबें काटी है?
क्या इन दोनों आचार्यों द्वारा स्थापित संगठन पतञ्जली ने भयंकर दुष्प्रभाव उत्पन्न करने वाले रसायन से युक्त उत्पाद बेच कर उपभोक्ताओं को संकट में डाला है? या लेड युक्त मैगी की तरह नूडल्स, चटनी, समोसा, ताबीज, गण्डा, भभूत या झाड़-फूक के नाम पर लोगों से पैसे ठगा है? तब  के डॉक्टर्स योगााचार्य स्वामी रामदेव को लूंगी और लंगोटी वाला कह कर व्यंग्य करते हुए देशद्रोही कह कर क्यों अपमानित किया जा रहा है? 


क्या 200 देशों में वैदिक चिकित्सा विज्ञान के अभिन्न अंग माने जाने वाले योग को पहुंचाने के बाद लगातार बढ़ती जा रही अच्छी गुणवत्ता वाले आयुर्वेदिक उत्पादों की भी बढ़ती श्रृंखला के कारण हानिकारक रसायन युक्त उत्पादों की घटती माँग से बौखलाए हुए लोगों के द्वारा स्वामी रामदेव के खिलाफ़ साजिश शुरू कर दिया गया है। इन साजिशकर्ताओं में अहम भूमिका निभाने वाले लोगों में सबसे ऊपर फार्मा कम्पनियों के बदौलत अपनी रोजी-रोटी चलाने वाले IMA के डॉक्टरों का नाम आया है। 
पतञ्जली के आयुर्वेदिक उत्पादों की बढ़ती माँग के कारण एलोपैथिक डॉक्टरों के घटते कारोबार से होने वाले नुकसान की भरपाई करने के लिए IMA के अध्यक्ष इतने गिर गये हैं कि झूठे आरोप लगा कर पतञ्जली योग पीठ के संस्थापक स्वामी रामदेव जी से 10000 करोड़ रुपये का मुआवजा देने की माँग तक कर दिया है। सिर्फ़ इतना ही नहीं बल्कि एलोपैथिक दवाओं का इस्तेमाल करने से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में अपने शिष्यों को बताने की घटना को एलोपैथ के विरुद्ध दुष्प्रचार और एलोपैथिक डॉक्टरों का अपमान कह कर स्वामी रामदेव जी को कोर्ट में घसीटने की चुनौती भी दे डाली है। हद तो तब हो गया जब केन्द्रीय स्वास्थ्य मन्त्री हर्षवर्धन ने भी IMA के अध्यक्ष के कहने पर पक्षपात पूर्ण रवइया अपनाते हुए स्वामी रामदेव जी के विरुद्ध नोटिस जारी कर दिया था। जबकि खुद भी चिकित्सक रह चुके हर्षवर्धन ने एलोपैथिक दवाओं के दुष्प्रभाव को जानते हुए भी स्वामी रामदेव जी के विरुद्ध कारवाई करने की नोटिस जारी कर के डॉक्टर हर्षवर्द्धन ने वैदिक संस्कृति प्रेमी भाजपाइयों का विश्वास खो दिया है। इसका खामियाजा आगामी चुनाव में उन्हें जरूर भोगना पड़ेगा। आखिर अपनी मेहनत और लगन के बदौलत अपने देश को विश्व गुरु के रूप में पदारूढ़ करने की कोशिश में लगातार सफल होते जा रहे रामदेव जी की पतञ्जली योग पीठ ने हाफिज सईद व दाऊद इब्राहिम जैसा गुनाह कैसे कर दिया था कुछ समझ में नहीं आ रहा है।

क्या स्वामी रामदेव जी ने बेबी केयर प्रोडक्ट्स तैयार करने वाली विश्व प्रसिद्ध फार्मा कम्पनी जॉनसन एण्ड जॉनसन की तरह कैंसर के खतरे को बढ़ाने वाले एस्बेस्टस युक्त टेलकम पाउडर बेचकर ओवेरियन कैंसर और वुहान द्वारा प्रायोजित कोरोना जैसी महामारी फैलाने जैसा वैश्विक अपराध किया है? या वाकई में दाउद इब्राहिम जैसा ही देशद्रोह का काम किये हैं? 

क्या मदर टेरेसा जिसे दो लोगों के बयान के आधार पर बिना किसी साक्ष्य के जीते जी पोप ने यह कह कर चमत्कारी सन्त घोषित किया कि वह रोगी को छूकर ही बीमारी ठीक कर देती हैं, उसकी सच्चाई जानने के लिए किसी ने प्रयास किया? यदि वे इतनी ही चमत्कारी थीं तो उनकी मृत्यु कैंसर के कारण हॉस्पिटल में तड़प-तड़प कर क्यों हुई थी?
नहीं! किसी ने भी मदर टेरेसा के चमत्कारों के बारे में कही गई बातों की सच्चाई जानने की कोशिश नहीं की। खासकर भारतीय लोगों ने झूठ न बोलने की आदत के कारण हर झूठ और अफवाहों को भी सच मान कर मदर टेरेसा की पूजा शुरू कर दिये थे। तो
क्या आचार्य बालकृष्ण या स्वामी रामदेव ने खुद को भगवान, गॉड या अवतार घोषित किया?


क्या हॉस्पिटल खोलना, अनाथालय खोलना, विद्यालय खोलना, धर्मशाला बनाना, शहीदों को सम्मानित करना, लङ्गर चलाना, किसानों के खेत से जड़ी बूटियाँ खरीदकर मिलावट रहित शुद्ध औषधियाँ बनाकर इन लोगों ने पाप किया है?
क्या आचार्य बालकृष्ण और स्वामी रामदेव ने विजय माल्या और नीरव मोदी की तरह अपने देश को लूटने का अपराध किया है?
आप सालों तक अपनी जेब कटवा कर फेयर एण्ड लवली रगड़ते रहे, क्या आप गोरे हो गये?


इस पतञ्जली का पाप यह है कि इसने माँसाहार से घृणा करने वाले लोगों को भी धोखा देकर हड्डियों के चूर्ण के मिश्रण से बने कोलगेट पेस्ट का इस्तेमाल कर रहे लोगों को नीम, तुलसी, पुदीने के मिश्रण से बने पेस्ट थमा कर सनातनी लोगों की धार्मिक आस्था की रक्षा करने का भी काम किया है। वेद, रामायण और महाभारत को काल्पनिक कह कर सनातन संस्कृति का मजाक उड़ाने वाले लोगों के व्यवसायियों के नकली उत्पादों की मार्केट से बाहर कर के शुद्ध और सस्ते उत्पादों के द्वारा लोगों के स्वास्थ्य की भी रक्षा करने का काम किया है।


पतञ्जली के उत्पाद आने के पहले लोग क्लोराइड जैसे हानिकारक रसायन और हड्डियों का चूर्ण रगड़ कर अपने दाँतों और मसूढों को कमजोर कर रहे थे, लेकिन हवाई चप्पल और फटी बनियान पहनने वाले भारतीय आचार्यों ने वेदों में वर्णित योग और आयुर्वेद की शक्ति को पुनर्स्थापित कर के बिना किसी जाति, धर्म और वेशभूषा के भेद-भाव किये सारी दुनियाँ को स्वस्थ रहने का मन्त्र देकर कौन सा वैश्विक अपराध कर दिया है, जो उनके खिलाफ़ राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाने की माँग इस देश के असली गद्दारों के द्वारा किया जा रहा है? 


भारत के देशवासियों के द्वारा देश की सम्पदा को लूटने वाले ठगों के नकली उत्पादों से IMA वालों को कोई दिक्कत नहीं है। क्योंकि हिन्दुस्तान, यूनिलीवर, कोलगेट, नेस्ले जैसी कम्पनियां IMA का गठन करने वाले विदेशी लोगों के द्वारा ही संचालित हैं।

भारतीय नागरिकों को चूसने वाले जिन विदेशी कम्पनियों के उत्पाद की बिक्री उनकी घटिया गुणवत्ता के कारण लगातार घटती जा रही है उन्हें सिर्फ़ अपने व्यवसाय से मतलब है। जबकि पतञ्जली! अपने व्यवसायिक लाभ का इस्तेमाल वैदिक ज्ञान-विज्ञान से सम्बधित अनुसन्धान और प्रचार-प्रसार में खर्च कर के राष्ट्रीय गौरव को पुनर्स्थापित करने का प्रयास कर रही है बल्कि राष्ट्रीय आपदा के समय प्रधानमन्त्री राहत कोष में भी भेजती है। सिर्फ़ इतना ही नहीं बल्कि यह संगठन अपने स्तर से भी जन कल्याण के लिए कई कार्यक्रमों का संचालन करने के साथ अपने संगठन में हरेक साल सैकड़ों बेरोजगार लोगों को रोजगार देने का काम भी काम कर रही है। तो क्या जो काम भारत के हित में IMA के लोग नहीं कर कर सके वैसे काम पतञ्जली के द्वारा करने के कारण ही पतञ्जली पर राष्ट्र द्रोह का मुकदमा चलाया जाना चाहिए?

क्या आप ने कभी इसके लिए सवाल उठाया कि जब 2500 साल पहले #महर्षि_सुश्रुत 100 तरह की सर्जरी कर सकते थे, तो आज भारत में आयुर्वेद के ऊपर अनुसन्धान क्यों नहीं की होता है?
क्या आपने कभी सवाल उठाया है कि जिस एलोपैथी शब्द का जन्म ही हाल-फिलहाल में हुआ है उसके ऊपर ही भारत में सारा बजट क्यों खर्च कर दिया जाता है?
क्या आपने कभी कश्मीर में पत्थरबाजी करने वाले आतङ्कवादियों पर सवाल उठाया?
क्या आपने आँखों के डॉक्टर को खुद अपनी आँखों पर चश्मा लगा कर इलाज करते देखकर उसके ज्ञान पर सवाल उठाया है?
क्या IMA ने देश के अन्दर लाखों विदेशी कम्पनियों के द्वारा की जा रही लूटपाट के विरोध में कभी सवाल उठाया है?

विश्व प्रसिद्ध फार्मा कम्पनी के इसी उत्पाद के दुष्प्रभाव के कारण
अमेरिका में कैंसर पीड़ितों की संख्या बढ़ गयी थी

#जॉनसन_एण्ड_जॉनसन के उत्पादों के दुष्प्रभाव के कारण कैंसर होने का आरोप लगा कर अमेरिकी ज्यूरी ने उस कम्पनी पर 32000 (बत्तीस हजार) करोड़ रुपये का जुर्माना  लगाया था। यदि आपको इस पर यकीन न हो तो गूगल पर सर्च कर के संलग्न लिंक देख लें। https://m.thewirehindi.com/article/johnson-johnson-talcom-cancer-fine-32000-cr-rupees/50589/amp
हो सकता है कि आपको 199 रुपये के Jio के कारण जुमलेबाज लोग गुमराह करने की कोशिश करें। 


अतः आप पतञ्जली का विरोध करने वाले लोगों से ही पूछ लें कि क्या आपने कभी विदेशी कम्पनियों के विरोध में सवाल उठाया है?
कभी पोस्ट डाला कि भारत में भी Johnson & Johnson को बैन किया जाए?
याद रखिये हम यह विरोध करके पतञ्जली का नहीं भारत का नुकसान कर रहे हैं?
लाला लाजपत राय ने कहा था कि पूरी दुनियाँ में केवल भारतीय हिन्दू ही ऐसी कौम है जो अपने महापुरुषों, अपने व्रत-त्योहारों, परम्पराओं, सांस्कृतिक रीति-रिवाजों और अपने आदि पूर्वज़ के रूप में अराध्य अपने भगवानों को गाली देकर अपमानित करने में ही गर्व महसूस करते हैं?

अपनी संस्कृति को भूल चुके लोगों की नौकरी करने वाले हिन्दुओं ने भी हिन्दुओं पर शासन करने वाले लोगों की नकल कर के होली, दिवाली, करवा चौथ और रक्षाबन्धन जैसे त्योहारों के अवसर पर अपने पूर्वजों राम, कृष्ण और हनुमान जी तक का मजाक उड़ाने में ही अपनी विद्वता समझते हैं। उनके ऊपर चुटकुले बनाकर, उनका मजाक उड़ा कर, उपहास कर के अपमानजनक पोस्ट वायरल करके यह समझते हैं कि हम बहुत पढ़े-लिखे हैं। गले में टाई बाँध कर समझते हैं कि हमने बहुत बड़ा तीर मार लिया और सारे ब्रह्माण्ड को बाँधना सीख लिया।

जो भारतीय! IMA जैसे विदेशी संगठनों के ईशारे पर पतञ्जली के विरुद्ध चलाये जा रहे अभियान से खुश हैं, उन्हें यह जानना चाहिये कि सभी धर्मों का मूल सनातन धर्म और सभी विज्ञान का मूल वेद है। इस वैदिक विज्ञान के उत्थान के लिए प्रयत्नशील भारतीय सन्तों स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण का विरोध सिर्फ़ उनका विरोध नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन का विरोध है। भारतीय संस्कृति और इसके स्वाभिमान का विरोध है। अतः इनके विरोधियों का साथ देने से पहले एक बार विचार अवश्य करें कि इसका क्या परिणाम होगा, किसका फायदा होगा, हम किसके मोहरे बनेंगे।

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🙏भवदीय/निवेदक 🙏
उदासी सन्त स्वामी सत्यानन्द
उर्फ़ प्रसेनजित सिंह, निदेशक,
कौशिक कंसल्टेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो