Kaushik लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Kaushik लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, 8 नवंबर 2021

Information services of KCIB

Personal Investigation Services/व्यक्तिगत जांच सेवाएं

Personal Investigation Service

व्यक्तिगत जांच सेवाएं :
भारत में तलाक के मामलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। सम्पत्ति विवाद, पारिवारिक उत्पीड़न, लापता लोगों की तलाश, ठगी, रंगदारी और पुलिसकर्मियों द्वारा दुर्व्यवहार आदि ऐसे क्षेत्र हैं जहां गहन जांच सेवाओं की आवश्यकता होती है। ऐसे किसी भी मामले में व्यक्तिगत जांच सेवाएं या प्राइवेट डिटेक्टिव सर्विस प्राप्त करने के लिए आप "कौशिक कंसल्टेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो" पर भरोसा कर सकते हैं। क्योंकि इस कम्पनी के संचालक अपराध संवाददाता, प्रूफ़रीडर, डिप्टी एडीटर और क्रियेटिव राइटर सहित खोज़ी पत्रकारिता का कार्य करते हुए विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक संगठनों में वार्ड से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक के दायित्वों का सफलतापूर्वक निर्वहन कर चुके हैं। इतना ही नहीं बल्कि इस दौरान प्राइवेट डिटेक्टिव की तरह खोज़ी पत्रकारिता का काम करते हुए कई केस-मुकदमों का निपटारा करवाने के कारण इंफॉर्मेशन सर्विस के क्षेत्र में 20 वर्षों से भी अधिक समय तक काम करने के अनुभवी हैं। वर्ष 2019 में ISO 2001-2008 सर्टिफाइड आर्गनाइजेशन भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु एवम् मध्यम उद्यम मंत्रालय द्वारा इंफार्मेशन सर्विस एण्ड न्यू्‍ज़ एजेंसी एक्टिविटीज़ के लिए पंजीकृत होने के बाद भी इस कम्पनी के द्वारा एक से बढ़कर एक पेचीदे और अनसुलझे मामलों का निपटारा कर के कौशिक कंसल्टेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो ने अपने क्लाइंट्स को सन्तुष्ट कर चुका है। अतः आप भी सभी प्रकार के व्यक्तिगत मामलों के लिए हमारी कम्पनी के द्वारा Personal Investigation Service अर्थात व्यक्तिगत खोजी सेवाएं प्राप्त कर सकते हैं।


विवाह पूर्व लड़का/लड़की का चरित्र परिक्षण

विवाह पूर्व जाँच व दूल्हा/दुल्हन का चरित्र परीक्षण :
आजकल दहेज़ प्रताड़ना के जूठे केस-मुकदमों के कारण सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी, आपराधिक छबि बनने के कारण हुई बदनामी, हत्या, आत्महत्या, गृहत्याग और सामाजिक विरक्ति की बढ़ती हुई घटनाओं को देखते हुए जिस परिवार के साथ वैवाहिक सम्बन्ध बनाने की सोच रहे हैं उसके पृष्ठभूमि की जांच करना नितान्त आवश्यक है। इसके बिना शादी करना आपकी भयंकर गलती साबित हो सकती है। इस मामले में लापरवाही बरतने के कारण घरेलू हिंसा और धोखाधड़ी के शिकार आप भी हो सकते हैं। आजकल फर्जी विवाह करवाने वाले गैङ्ग भी काफ़ी सक्रिय हैं। खासकर राजस्थान जैसे वैसे राज्यों में ऐसी घटनाएं ज्यादा हो रही हैं जहां लड़कियों की घटती संख्या के कारण विवाह करने के लिए लड़कियों की खरीद-फरोख्त की जाती है। राजस्थान के अलावा अन्य राज्यों के शहरी इलाकों में भी आपके या आपके रिश्तेदारों के पड़ोसी या मित्र बनकर आपको आसानी से शिकार बना सकते हैं। ..और ऐसा हो भी रहा है। ऐसे कार्यों के लिये लोग औनलाइन विवाह एजेंसियों और सोशल नेटवर्किंग साइट्स का भी दुरुपयोग करते हैं। विवाह के लिए वर या वधु का झूठा बायोडाटा और झूठी पारिवारिक पृष्ठभूमि बता कर भी लोग अपने शिकार को फंसाते हैं।
ऐसे मामले पश्चिमी देशों के साथ-साथ भारत में भी तेजी से बढ़ रहे हैं। अभी हाल ही में राजस्थान के गुलाबी शहर के नाम से प्रसिद्ध जयपुर सिटी में जब ऐसे गिरोह के पकड़े जाने का मामला अखबारों में आया तब ठगी करने वाली युवती की तस्वीर देख कर कई लोगों ने पुलिस के सामने आकर यह स्वीकार किया कि यह लड़की मुझसे भी शादी करने के बाद गहने-जेवर सहित फरार हो गई थी। ऐसी खबर "पत्रिका" नामक एक न्यूज़ लेटर पर भी आयी थी, जिसे आप संलग्न लिंक पर क्लिक कर के देख सकते हैं।
✍️ https://m.patrika.com/jaipur-news/many-cases-of-fraud-through-marriage-in-the-city-2138647/


ऐसी खबरें अक्सर समाचारों में दिखाने के बाद भी लोगों में जागरूकता नहीं आई और फर्ज़ी शादी के बाद लुट-पाट की घटनायें लगातार बढ़ते जा रहे हैं। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए विवाह पूर्व जांच करवाना नितान्त आवश्यक है। यदि आप भी ऐसे लोगों के चंगुल में फँसने से बचना चाहते हैं तो हमारी कम्पनी KCIB (कौशिक कंसल्टेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो) के प्राइवेट इंवेस्टिगेटर के द्वारा विवाह पूर्व वर/वधु के पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में गुप्त रूप से जांच करवा सकते हैं। क्योंकि विवाहोपरान्त दहेज़ प्रताड़ना के झूठे मुकदमों में फँसा कर ब्लैकमेल करने वाले लोगों, विवाहोपरान्त घर के गहने-जेवर लेकर फरार होने वाले लोगों और विवाहोपरान्त लूटपाट करने के लिए पारिवारिक सदस्यों की हत्या तक कर देने वाले लोगों के चंगुल में फँसने से बचने के लिए आप हमारी कम्पनी के द्वारा विवाह पूर्व जांच-पड़ताल करवा सकते हैं। क्योंकि ऐसे भावी समस्याओं से बचने का सबसे अच्छा तरीका यही है। इस तरह की जांच सेवाएं हमारी कम्पनी के अलावा अन्य कोई भी दूसरी कम्पनी नहीं देती है। हालांकि कुछ कम्पनियां दक्षिण भारतीय राज्यों सहित दिल्ली और कलकत्ता में सक्रिय जरूर हैं लेकिन उनकी सर्विस हमारी सर्विस की तरह कारगर और भरोसेमंद नहीं है। क्योंकि हमारे एजेंट्स भ्रष्टाचार और उत्पीड़न के खिलाफ़ काम करने वाले वैसे सामाजिक संगठनों में भी शामिल हैं जो विभिन्न राज्यों में सक्रिय रूप से कार्यरत हैं। अतः ऐसी जांच-पड़ताल करवाने के लिए आप निःसंकोच होकर हमारी सेवाएं ले सकते हैं।


विवाहोपरान्त संदिग्ध जीवनसाथी का चरित्र परीक्षण :
अगर आप अपनी पत्नी या अपने पति का किसी अन्य के साथ चलने वाले अफेयर की शंका का समाधान तलाश रहे हैं, यदि आप ऐसे नाजायज़ सम्बन्धों को साबित करने के लिए सबूत इकट्ठा करना चाहते हैं या अपनी पत्नी या अपने पति का ससुराल वालों के साथ मिलकर किसी तरह की साजिश रचने या धोखाधड़ी करने के कारण परेशान हैं, मगर उनके खिलाफ़ किसी तरह का ठोस सबूत नहीं है तो उसकी व्यवस्था करवाने के लिए हमारी कम्पनी "केसीआईबी" की सेवा ले सकते हैं। केसीआईबी का ही पूरा नाम है कौशिक कंसल्टेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो।
आपकी केस लेते ही हमारी कम्पनी के प्राइवेट इंवेस्टिगेटर गोपनीय तरीके से जांच शुरू कर देते हैं। वह इतनी गुप्त रहती है कि संदिग्ध लोगों को इसकी भनक तक नहीं लग पाती है। यदि आपका सन्देह सही साबित हुआ तो उसके साक्ष्य उपलब्ध करवायेंगे। लेकिन यदि झूठा और निराधार साबित हुआ तो आपके साथी या उसके परिवार को इसकी भनक तक नहीं लगने देंगे। इसके बाद आप चाहें तो निश्चिंत होकर अपने जीवनसाथी के साथ रह सकते हैं या उसकी पसन्द के अनुसार खुद को समायोजित कर सकते हैं। इस काम के लिए भी हमारी कम्पनी से जुड़े हुए समाजसेवियों की टीम काउंसिलिंग का काम करते हैं। क्योंकि हमारा उद्देश्य सिर्फ़ पैसे कमाना नहीं बल्कि पारिवारिक सम्बन्धों में आये दरार को पाट कर समाज में एक सौहार्दपूर्ण माहौल बनाना भी है। इसके कारण आप हम पर भरोसा कर सकते हैं।


वफादारी परीक्षण :
यदि आप यह जांचना चाहते हैं कि आपके पारिवारिक सदस्य, रिश्तेदार, मित्र, कर्मचारी, सहकर्मी या साथी आपके प्रति वफादार हैं या नहीं, तो हमारी कम्पनी केसीआईबी के एजेण्ट उसका पता लगाते हैं। जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं, हमारे टीम के प्राइवेट इंवेस्टिगेटर्स उन गोपनीय तरीकों का इस्तेमाल कर के आपके लिए इंवेस्टिगेशन का काम करते हैं। इसके लिए परीक्षणों की जो श्रृंखला बनाते हैं वह किसी फिल्म स्क्रिप्ट से कम नहीं होता है, बल्कि कामयाब और सराहनीय होता है। कुछ केस ऐसे भी होते हैं जिसके पोजिटिव परिणाम आम लोगों के लिए आश्चर्यजनक रूप से अकल्पनीय होता है। डिटेक्टिव स्टोरी वाले फिल्मी कहानियों की अपेक्षा हमारे संघर्ष की कहानियां ज्यादा जीवन्त और रोमाञ्चक होती हैं क्योंकि हमारे एजेण्ट्स असली हीरो होते हैं। वे इस दुनियां के असली रंगमंच पर असली खतरों का सामना करते हुए संकटग्रस्त लोगों की सहायता करने का असली काम करते हैं। इसके बावजूद फिल्मी दुनियां में काम करने वाले नकली हीरो की अपेक्षा बहुत कम फी लेकर भी आपके लिए डिटेक्टिव का काम करते हैं। जो काम न तो आपके द्वारा सम्भव है और न ही पुलिस-प्रशासन के द्वारा। हम उन्हें तमाम खतरों के बावज़ूद सम्पन्न कर के न सिर्फ़ आपको रिपोर्ट देते हैं बल्कि सन्तुष्ट भी करते हैं। कभी-कभी आपके लिए सबूतों की व्यवस्था करने के लिए हमें गैरकानूनी तरीके का इस्तेमाल करने का खतरा भी उठाना पड़ता है, जिसके चंगुल में फँसने पर हमारी कम्पनी सहित हमारे एजेण्ट्स को भी भारी क्षति का सामना करना पड़ता है। यहाँ तक कि इंवेस्टिगेशन के दौरान पकड़े जाने पर हमारे एजेण्ट्स की जान जाने का भी खतरा बना होता है। इसके बावजूद हम अपने कस्टमर्स के लिए गोपनीय जानकारी उपलब्ध कराने का काम करते रहते हैं। अतः आप सुन्दर समाज बनाने का सपना लेकर काम करने वाली हमारी इस कम्पनी से निःसंकोच होकर अपनी समस्याएं बतायें। आपकी जानकारी को पूरी तरह से गोपनीय रखने की गारंटी देते हैं।


गुमशुदा व फरार लोगों की ट्रैकिंग :
क्या आपको अपने स्कूल या कॉलेज के किसी सहपाठी प्रेमी, प्रेमिका, मित्र या दुश्मन के घर का पता ढूंढने की जरूरत है? धोखाधड़ी कर के फरार या अपराधिक घटना को अंजाम देकर फरार लोगों की तलाश करने की ज़रूरत है? क्या आप अपने घर से लापता हुए पारिवारिक सदस्य के बारे में पता करवाना चाहते हैं? क्या आपका अपने किसी परिवारिक रिश्तेदार से सम्पर्क टूट गया है और आप उन्हें ढूंढना चाहते हैं? क्या किसी वाहन दुर्घटना के कारण आपके किसी पारिवारिक सदस्य की मृत्यु होने या गम्भीर रूप से घायल होने के बाद विकलांगता की समस्या उत्पन्न होने के कारण दोषी व्यक्ति का पता लगवा कर मुआवजा वसुलना चाहते हैं? यदि आपका जवाब हाँ है तो उन्हें ढुंढने में हम आपकी मदद कर सकते हैं। अक्सर ऐसे मामलों में अपने स्तर से छानबीन करने पर भी जब कुछ पता नहीं चल पाता है तब लोग मानसिक अवसाद के शिकार होकर घुटते रहते हैं या आत्महत्या कर लेते हैं। इनमें से कुछ ही लोग ऐसे होते हैं जो पुलिसकर्मियों के पास मदद करने की गुहार लेकर जाते हैं। क्योंकि अक्सर सीधे-साधे लोगों के साथ दुर्व्यवहार करने वाले पुलिसकर्मियों के कारण अधिकांश लोगों में पुलिस का चेहरा रक्षक के बजाए भक्षक का बन चुका है। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वीकारा है। इसके बावजूद पुलिसकर्मी अधिकांश मामलों में सिर्फ़ रिश्वत देने वालों का ही काम करते हैं। पुलिसकर्मियों के असहयोगी रवैये के कारण मजबूर होकर रिश्वत देने वाले लोग यदि सीधे-साधे होते हैं तो उनसे रुपये लेने के बाद भी ऐसे अधिकांश मामलों को मनगढ़ंत और झूठा जांच रिपोर्ट बनाकर रफा-दफा कर देते हैं। ऐसे में भ्रष्ट पुलिसकर्मियों के खिलाफ़ दर्ज करवाये गये अधिकांश मामलों को भी रफा-दफा कर दिये जाने के कारण हरेक साल हजारों लोगों का शासन-प्रशासन से विश्वास उठता जा रहा है। ऐसी स्थिति के कारण निराश और हताश लोगों सहित संकटग्रस्त, जरुरतमंद और असहाय लोगों की सहायता करने के लिए कौशिक सोसाइटी के अध्यक्ष ने वर्ष 94-1995 में ही समाजसेवा का काम शुरू किया था। मगर ऐसे कार्य करने वाले सभी संगठनों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को पंजीकृत करने के लिये सरकारी दबाव के कारण वर्ष 2019 में "कौशिक कंसल्टेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो" के नाम से पंजीकृत किया गया था। कौशिक कंसल्टेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो नामक यह कम्पनी अपने सौर्ट नेम "केसीआईबी" के नाम से जाना जाता है। जो अपने कार्यों और उपलब्धियों के कारण प्राइवेट डिटेक्टिव की सर्विस देने वाली बिहार की सबसे विश्वसनीय कम्पनी बन गई है। अतः लापता और फरार लोगों की तलाश करवाने के लिए आप भी हमारी कम्पनी की सेवा ले सकते हैं।


निगरानी :
कौशिक कंसल्टेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो नामक हमारा संगठन मोबाइल सिक्युरिटी और वाचमैन के कार्यों सहित स्पाई कैमरों के द्वारा संदिग्ध लोगों की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी की सेवा भी प्रदान करता है। ताकि किसी आपराधिक घटना के घटने पर दोषी लोगों की पहचान करने के लिए संदिग्ध लोगों से पूछताछ किया जा सके। व्यक्तिगत सिक्युरिटी चाहने वाले लोगों के भीड़भाड़ वाले कार्यक्रमों में संदिग्ध लोगों सहित संदिग्ध गतिविधियों पर भी नज़र रखने के लिए सिविल ड्रेस की तरह दिखने वाले खास ड्रेस कोड पहने केसीआईबी के एजेण्ट्स के द्वारा गुप्त रूप से निगरानी करने की सेवा सहित विडियोग्राफी और फोटोग्राफी की सेवा भी प्रदान करते हैं। जरूरत पड़ने पर स्पाई कैमरों का भी इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे काम अन्य लोगों को जानकारी दिए बगैर गुप्त रूप से किये जाते हैं। ताकि संदेहास्पद लोगों को रंगे हाथ पकड़ा जा सके।


प्रेस कॉन्फ्रेंस और एडीटिंग सर्विस :
हमारी यह कम्पनी अपने क्लाइंट्स को सिर्फ़  डिटेक्टिव सर्विस ही नहीं देती है बल्कि भारत सरकार के द्वारा इंफार्मेशन सर्विस एण्ड न्यू्‍ज़ एजेंसी एक्टिविटीज के लिए पंजीकृत होने के कारण न्यू्‍ज़ पेपर्स और न्यूज़ चैनल्स को स्पेशल न्यूज़, क्राइम रिपोर्ट्स और इंवेस्टिगेटेड न्यू्‍ज़ भी उपलब्ध कराता है। अपने क्लाइंट्स की बातों को मीडिया के माध्यम से सरकारी अधिकारियों, जन प्रतिनिधियों और आम नागरिकों तक पहुंचाने के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस की सुविधा उपलब्ध कराता है। विभिन्न हिन्दीभाषी समाचार पत्र-पत्रिकाओं के लिए अपनी एजेंसी से जुड़े हुए अनुभवी पत्रकारों को प्रूफ़रीडर और एडिटर का काम करने के लिए कॉन्ट्रैक्ट पर उपलब्ध करवाने के साथ ट्रेनी संवाददाताओं को प्रशिक्षित करने का काम भी करता है। इन विशेेषताओं के कारण हमारी कम्पनी के द्वारा डिटेक्टिव सर्विस लेने वाले लोग हम पर ज्यादा भरोसा करते हैं। अतः अपनी समस्याओं के समाधान के लिए हमसे निःसंकोच होकर मिलें।

 

पब्लिक कंसल्टेंसी कैम्पेन :
विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक संंगठनो सहित समाचार पत्रों, पत्रिकाओं तथा TTSL में काम कर चुके अनुभवी पत्रकार द्वारा संचालित तथा इंफार्मेशन सर्विस एण्ड न्यू्‍ज़ एजेंसी एक्टिविटीज के लिए भारत सरकार के द्वारा पंजीकृत कम्पनी KCIB हर तरह के उपभोक्ताओं के लिए कॉन्ट्रैक्ट पर पब्लिक कंसल्टेंसी कैैम्पन का आयोजन करवाती है। इसके अलावा देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण मानसिक यंत्रणा से जूझ रहे लोगों को सुरक्षा और न्याय दिलाने के लिए जन-जागरूकता अभियान भी चलाता है।

 

हस्तलेखन सत्यापन :
इस बात का प्रमाण चाहिए कि लिखावट मेल खाती है? धोखेबाज़ और घोटालेबाज लोग हर जगह हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कागजात की लिखावट आरोपित व्यक्ति का है या नहीं? इसकाा परीक्षण करने की सुविधा भी निकट भविष्य में दी जाएगी। हमारी लिखावट सत्यापन सेवा आपको प्रामाणिकता का विश्वास दिलाएगा।

हमारी अन्य सेवायें हैं :

क्रियेटिव राइटिंग :

प्रूफ़रीडिंग :

एडिटिंग :

ट्राँसलेटर/अनुवादक :

सर्वेक्षण :

सेल्स एण्ड मार्केटिंग :

"कौशिक कंसल्टेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो" जिसे लोग इसके संक्षिप्त नाम KCIB (केसीआईबी) के नाम से जानते हैं, जरूरतमंद लोगों सहित प्रकाशन के कार्य से जुड़े हुए उद्यमियों को भी उनकी व्यक्तिगत जाँच-पड़ताल की ज़रूरतों में मदद करने के लिए प्रतिबद्ध है।

नि:शुल्क परामर्श के लिये सम्पर्क करें :
Name/नाम*
Sex/लिंग*
Mobile/मोबाइल*
E-mail Id/ईमेल आईडी
Masage/संदेश*

Submit/भेजें

मंगलवार, 27 अक्टूबर 2020

कुम्भी बैस कहलाने वाले कुम्भी जाति का मूल निवास स्थान



वैज्ञानिकों का दावा है कि अफ्रीका की जाम्बेजी (कुम्भी) नदी के दक्षिणी क्षेत्र में दो लाख साल पहले रहते थे होमो सैपियंस। 

आधुनिक मानव की उत्पत्ति कहाँ हुई  इसे लेकर अभी तक कई दावे किए जा चुके हैं। लेकिन सटीक स्थल का पता अभी तक नहीं चला है। वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि जम्बेजी नदी के किनारे उत्तरी बोत्सवाना में दो लाख वर्ष पहले आधुनिक मानव की उत्पत्ति हुई थी। यह मनुष्य के पूर्वजों की भूमि के बारे में सबसे अहम दावा है।

लम्बे समय से माना जा रहा है कि आधुनिक मानव! होमो सैपियंस की उत्पत्ति अफ्रीका में हुई थी। वैज्ञानिक अभी तक यह बताने में असमर्थ हैं कि हमारी प्रजाति की असली उत्पत्ति स्थल कहाँ है। वैज्ञानिकों के अंतरराष्ट्रीय दल ने नामीबिया और बोत्सवाना सहित जाम्बिया और जिम्बाब्वे में खोएसान कहलाने वाले 200 अफ्रीकी लोगों के डीएनए सैंपल लेकर परीक्षण किये थे। जिसका परीक्षण करने के बाद इतिहासकारों ने इस बात को स्वीकार किया कि यह क्षेत्र जातीय समूह एल. के रूप में ज्ञात डीएनए की शाखा के बहुत बड़े हिस्सा के लिए जाना जाता है।  इसके बाद वैज्ञानिकों ने डीएनए सैम्पल का भौगोलिक वितरण, पुरातात्विक और जलवायु परिवर्तन के आंकड़ों के साथ मिलान किया। तब जाकर सामने आए परिणाम के आधार पर वैज्ञानिकों ने बोत्सवाना में जाम्बेजी नदी के दक्षिणी क्षेत्र में दो लाख साल पहले की अवधि का पता लगाया। 

हो भी सकता है कि जम्बेजी नदी के आस-पास के क्षेत्रों सम्पन्न सभ्यताओं वाले खोएसान जातियों का प्रादुर्भाव २००००० (दो लाख) साल पहले हुआ हो। ऐसे भी वैदिक ग्रन्थों में ग्रह, उपग्रह, नक्षत्र, राशि, अस्त्र, शस्त्र, यान, विमान, औषधी, उपकरण तथा शल्य चिकित्सा तक की सूक्ष्म जानकारी देने वाले जिन ग्रन्थों से सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण तक की अवधि की सटिक जानकारी हमें आज तक मिलती है, उन ग्रन्थों के रचना काल के समय हमारा विज्ञान आज के वैज्ञानिकों की कल्पना से भी अधिक विकसित सभ्यता वाला हो। गायत्री मन्त्र के द्रष्टा कौशिक विश्वामित्र भगवान द्वारा रचित ऋग्वेद में श्रृष्टि की आयु सहस्त्र कोटी युग बताया गया है। जिसे हम आज भी गायत्री स्तवन मन्त्र का जप करते हुए बोलते हैं - 

"ॐ नमोऽस्तवनन्ताय सहस्त्रमूर्तये, सहस्त्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे।

सहस्त्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटीयुगधारिणे नमः।।" 

विदित हो कि नामीबिया और जाम्बिया के पास रहने वाले खोएसान जाति के जिन २०० लोगों के शोधकर्ताओं ने डीएनए लिये थे, वे लोग कुशान या कौशिकायन नामक जातिय समुह के ही लोग हैं। यह जाति हरिवंश पुराण में वर्णित बलकाश्व नन्दन कुश के वंशज़ों की जाति है। चन्द्रवंश में उत्पन्न कुश नामक राजा के पुत्रों कुशिक, कुशनाभ, कुशाम्ब और मूर्तिमान के वंशज़ ही अफ्रीकी देशों में खोएसान तो पूर्वोत्तर भारत में कुशान और कुषाण के नाम से विख्यात हुए। इसी वंश में उत्पन्न राजा कुशिक के पुत्र गाधि जो तीनों लोकों के राजा होने के कारण महेन्द्र गाधि भी कहलाते थे ये कौशिक गाधि और मघवा के नाम से भी विख्यात थे। कौशिक गाधि के इकलौते पुत्र विश्वामित्र भगवान भी राजा कुशिक के वंशज़ होने के कारण कौशिक विश्वामित्र के नाम से विख्यात हुए। अफ्रीकी लोक कथाओं के अनुसार दक्षिणी सूडान पहले कुश देश का राजधानी कहलाता था। यह देश इतने विशाल भौगोलिक क्षेत्र में फैला हुआ था कि हरिवंश पुराण में वर्णित राजा रेचक के द्वारा छोड़े हुए जिस जन शुन्य द्वीप पर वासुदेव कृष्ण के द्वारा द्वारका बसाने की चर्चा की गई है, उस द्वीप को कुश देश के पूर्वी सीमा पर स्थित द्वीप बताया गया है। अर्थात इरान सहित सम्पूर्ण अरबी देश भी कुश देश का ही भाग था। खोएसान कहलाने वाले कुश के वंशज़ों का यह जातीय समूह आज भी दक्षिण अफ्रीका के नामीबिया, जिम्बाब्वे, जाम्बिया, तंज़ानिया और केन्या तथा उत्तरी अफ्रीका के मोरक्को (मॉरिटानिया), अल्जीरिया, सुडान, मिश्र (इजिप्ट) और माली में रहता है। लेकिन दक्षिण अफ्रीकी देशों में इस जाति की अच्छी आबादी है। जिस समय उन देशों पर विश्व की सबसे सम्पन्न सभ्यता फल-फूल रही थी उस समय अफ्रीका और अरब की धरती आज की तरह रेगिस्तान और उजाड़ नहीं थी बल्कि हरी-भरी और वन-उपवन से आच्छादित थी। 


कौन हैं कुम्भी बैस : 

जाम्बिया, ज़िम्बाब्वे और मोज़ाम्बिक के स्थानीय लोगों में प्रचलित लोक कथाओं के अनुसार जम्बेजी नदी के नाम से विख्यात नदी पहले कौम्ब (Coumb) नदी कहलाती थी। इसी नदी के किनारे रहने वाले मूल निवासी विभिन्न दिशाओं में जाकर बसने के बाद कौम्बे बैस और कुम्भी बैस कहलाये। सम्भवतः पौराणिक ग्रंथों में वर्णित प्रजापति कुम्भ और बाणासुर के महामन्त्री कुम्भाण्ड के नाम पर ही मेरूगिरी के दक्षिणी दिशा में स्थित कुम्भी नदी ही अफ्रीकी लोगों में जम्बेजी नदी के नाम से विख्यात वह नदी है जिसका प्राचीन नाम वहाँ के स्थानीय लोग कॉम्बै नदी बतलाते हैं। 


आधुनिक मनुष्यों का उद्गम स्थल :

इस अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने एक आनुवांशिक मैप बनाया। इसमें दिखाया गया था कि प्रागैतिहासिक मानव लगभग 70,000 वर्षों तक इस क्षेत्र में रहते थे और 1,30, 000 साल पहले उन्होंने चरम मौसमी आपदाओं के चलते मजबूरन दुनियाँ के दूसरे हिस्सों में फैलना शुरू कर दिये थे। बाइबिल, कुरआन और इसकी रचना से हजारों वर्ष पहले रचित पौराणिक कथाओं में वर्णित जल प्रलय और अग्नि की वर्षा का प्रसंग वैज्ञानिकों के इस दावे को प्रमाणित करता है। यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी और गार्सन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च के वेनेसा हेस ने कहा, ‘हम जानते हैं कि आधुनिक मनुष्यों की उत्पत्ति लगभग दो लाख साल पहले अफ्रीका में हुई थी। लेकिन हमें यह नहीं पता कि उनके वास्तविक आवास किस स्थान पर हैं।’ 


वेदों से पता किये आधुनिक मनुष्यों का उद्गम स्थल :

आधुनिक मनुष्यों के उद्गम स्थल के बारे में स्वामी सत्यानन्द दास के नाम से विख्यात कौशिक गोत्रीय राजवंश के वंशज और कौशिक कंसल्टेंसी इंटेलिजेंस ब्यूरो के निदेशक प्रसेनजित सिंह का दावा है कि हरिवंश पुराण में वर्णित द्वारका से शोणितपुर में स्थित बाण नगर जाने के दौरान कृष्ण को दूर से ही आग उगलने वाले पर्वतों से घिरा हुआ मेरूगिरी दिखाई दिया था। जम्बू के वनों से घिरे हुए जिस मेरूगिरी पर प्रजापति कुम्भ का वास कहा गया है, उसके चारों ओर सवर्ण कणों से युक्त जलधारा बहने का प्रसंग वेद व्यास कृत महाभारत नामक ग्रंथ में किया गया है। बाणासुर की उषा नामक जिस बेटी ने कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध का हरण करवाया था, उसके नाम पर मेरूगिरी के दक्षिणी दिशा में आरूषा नामक नदी का होना तथा कुम्भ में रह कर देवी गङ्गा के द्वारा शिवपुत्र कार्तिकेय को जन्म देने का पौराणिक प्रसंग की सच्चाई को आरूषा नदी के पास ही स्थित गङ्गा नदी का भी होना यह प्रमाणित करता है कि अफ्रीका के मध्यपूर्वी भाग में ही प्रथम मानव सभ्यता का विकास हुआ था। पौराणिक कथाओं में वर्णित शोणितपुर नामक प्रदेश के नाम पर स्थित शोणघर नामक एक प्रागैतिहासिक स्थान आरूषा नदी और मेरूगिरी के पश्चिमी दिशा में स्थित है। भारत में रहने वाले कुम्भी बैसों में प्रचलित उनकी कुल देवी बन्दी मइया! अम्बिका भवानी और जमबाई माता के नाम से भी पहचानी जाती हैं जबकि जाम्बिया, मोज़ाम्बिक और जिम्बाब्वे में प्रवाहित होने वाली जो जम्बेजी नदी अफ्रीकी लोक कथाओं के अनुसार पहले कम्बौ नदी कहलाती थी, उससे भारत सहित विश्व के विभिन्न देशों में बसे कुम्भी बैस कहलाने वाले मानव समुदाय से गहरा नाता है। केन्या में माउण्ट मेरू के नाम से विख्यात मेरूगिरी के दक्षिणी दिशा में प्रवाहित आरूषा नदी का नामकरण आर्य और उषा के योग से प्रतीत होता है। चुकी आर्य समाज का अर्थ मूल समाज होता है। अतः आरूषा नदी के अर्थ के आधार पर मध्यपूर्वी अफ्रीकी क्षेत्र भी आर्यों का मूल निवास स्थान है। 


झीलों के किनारे रहते थे आधुनिक मानव :

शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन में उसे क्षेत्र का पता लगाने का दावा किया है। उन्होंने कहा, ‘इस क्षेत्र को मैकगादिकगाडी-ओकवाङ्गो कहा जाता था, जहाँ बड़े पैमाने पर झीलें थीं। यह क्षेत्र आधुनिक विक्टोरिया झील के नाम से विख्यात कुम्भी झील का लगभग दोगुना था और यहाँ आज बहुत बड़ा रेगिस्तान है।


ऐसे हुआ आबादी का विभाजन :

नेचर जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, लगभग दो लाख साल पहले भूगर्भिक प्लेटों के खिसकने से यह झील टूट गई थी, जिसके बाद यहाँ एक बहुत बड़ा वेटलैंड बन गया था। शोधकर्ताओं ने कहा कि इस क्षेत्र में न केवल मानव रहते थे बल्कि शेर और जिराफ जैसे कई अन्य जीवों के लिए भी यह सबसे उपयुक्त जगह थी। इसके 70 हजार वर्षों बाद पहली बार आनुवांशिक विभाजन शुरू हुआ और कुम्भी बैस कहलाने वाले कौशिकों का एक समूह उत्तर-पूर्व की ओर हिमालयी क्षेत्र में जाकर कम्बोज़ नामक साम्राज्य को स्थापित किया था। इसके 20 हजार साल बाद हिमालयी क्षेत्र में बसने वाले आधुनिक मनुष्यों का एक समूह दक्षिण की ओर बढ़ते हुए नर्मदा, गोदावरी और कृष्णा आदि नदियों के आसपास जाकर बस गया था। शिव पुराण में वर्णित है कि नर्मदा नदी के किनारे स्थित नर्मपुर नामक गाँव की नागवंशी कन्या चक्षुस्मति से कौशिक विश्वामित्र भगवान ने विवाह किया था और उनसे उत्पन्न पुत्र अग्निदेव! गृहपति के रूप में भी विख्यात हुए थे। प्रजापति कुम्भ और देवी सरस्वती की बेटियां स्वाहा, स्वधा और विशाखा से विवाह करने के बाद अग्निदेव! अपने ससुर के लोक कुम्भलोक में ही उनकी बेटी को खोइंछा में दी गई भूमि पर ही वस गये थे। जिसके कारण अग्निदेव के बेटे सरवा, विसरवा और नैगमेय के वंशज़ कुम्भी बैस कहलाये। सरवा के वंशज़ भगवती स्वाहा की सन्तान होने के कारण सरवाह, सरवाहन और स्वाहिया भी कहलाते हैं। अफ्रीका में आज भी रहने वाले कौशिक गोत्रीय अग्निवंशियों की मुख्य भाषा स्वाहिली कहलाती है तो उनकी जाति खोएसान कहलाती है। इसी तरह 650 ईसापूर्व तक कुश देश में ही स्थित मिश्र में रहने वाले लोगों को बाइबिल नामक ग्रन्थ में  यहोवा द्वारा कनानी, हित्ति और गिर्गिशियों को कसदिओं के उर नगर से मुक्त करवाने की जो कहानी वर्णित है उसके अनुसार कौशिक विश्वामित्र भगवान और उनके पिता कौशिक गाधी के पूर्वज़ बलकाश्व नन्दन प्रजापति कुश के नाम पर उनके वंशज़ों को Kushdeo का अपभ्रंशित नाम कसदियों कहा गया है। बाइबिल के पृष्ठ संख्या 534 के नहेमायाह 8:10 नामक अध्याय की आयत संख्या 9:7 में स्पष्ट लिखा है - "मिश्र में रहने वाले कसदियों (Kushdeo) के उर नगर से यहोवा ने अब्राम को चुन कर फीरोन की बन्धुआगिरी से बाहर निकाला और उन्हें इब्राहिम नाम दिया। तूने मिश्र में हमारे पूर्वज़ों के दुःख पर दृष्टि डाली और कनानियों, हित्तियों, गिर्गिशियों को उनके पूर्वज़ों के देश पर अधिकार सौंपने का वचन दिया गया।... तूने वचन पूरा भी किया। इसलिए तू वाकई में महान है।" यह प्रार्थना फीरौन की बनधुआगिरी से मुक्त होकर इस्राइल जा पहुंचे लोगों के द्वारा किया गया है। बाइबिल के इस आयत से भगवान चन्द्रदेव के पौत्र पुरुरवा की उर्वशी नामक पत्नी के निवास स्थान और कसदियों के मिश्र देश की स्थिति स्पष्ट हो जाती है। उर्वशी नामक अप्सरा जिन्हें वैदिक शास्त्रों में उर पुर की वासी कहा गया है, उनका निवास स्थान मिश्र में रहने वाले कसदियों के उर नगर में है अर्थात् उर नगर की मूल भूमि मिश्र मे है। जबकि आधुनिक समाज के इतिहासकारों के द्वारा उर नगर को सउदी अरब में दिखलाया जाता है। जिसका अर्थ है कि सउदी अरब भी पहले कुशिक साम्राज्य या मिश्र का ही अंग था।  

बाद में इन्हीं वंशज़ों के द्वारा सौराष्ट्र के पावागढ़ के पास खोदी गई नदी विश्वामित्री नदी और बहुत बाद में इसी वंश में उत्पन्न मद्र देशीय लोगों से आबाद मद्रास में भी स्थित एक नदी कौशिक नदी कहलायी।

शोध एवम् प्रकाशन : 

Kaushik Consultancy Intelligence Bureau 

सम्पादन : प्रसेनजीत सिंह

http://www.facebook.com/swamiprasenjeet 

सौजन्य : संजय पोखरियाल, एएफपी, पेरिस

कुम्भ पूजा क्यों होता है देवी-देवताओं से पहले

✍️By प्रसेनजित सिंह




हिंदू धर्म में ऐसे बहुत से देवी-देवता हैं जिनकी लोग पूजा-अर्चना करते हैं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश को त्रिदेवों के रूप में जाना जाता है। ब्रह्मा जी को संसार के रचियता माना गया है, तो वहीं भगवान विष्णु को पालनहार और भोलेनाथ को संहारक माना गया है। इस पृथ्वी पर भगवान विष्णु और शिव के बहुत से मन्दिर और मन्दिरों के अवशेष देखने को मिलते हैं। लेकिन ब्रह्मा जी के मन्दिर पूरे संसार में केवल 3 ही हैं। उनमें से भी दक्षिणी भारत और थाईलैण्ड में स्थित ब्रह्मा के मन्दिर आदि ब्रह्मा का मन्दिर नहीं है बल्कि ताड़कासुर के द्वारा ब्रह्मा के पद पर आरूढ़ किये गये प्रह्लाद नन्दन कुम्भ के मन्दिर हैं। विदित हो कि हिरण्यकशिपु नन्दन प्रह्लाद के तीन पुत्रों वीरोचन, कुम्भ और निकुम्भ में से दैत्य राज प्रह्लाद के द्वारा वीरोचन को दैत्यों का अधिपति बनाया गया था, जबकि उनके छोटे भाई कुम्भ को महामंत्री और निकुम्भ सेनापति का पद दिया गया था। जबकि दितिनन्दन वज्राङ्ग की पत्नी वाराङ्गी के गर्भ से उत्पन्न ताड़क ने श्री बड़ी देवी के नाम से विख्यात दिती परमेश्वरी के आग्रह पर उन्हें और उनकी माता को भी अपमानित करने वाले इन्द्र का दमन करने का संकल्प लेकर पारिजात पर्वत पर जाकर कठोर तपस्या किये थे। अपनी तपस्या से शिवजी को प्रसन्न कर के करोड़ों वर्षों तक तीनों लोकों पर राज करने का वरदान पाने के बाद इन्द्र को परास्त कर के तीनों लोकों पर धर्म पूर्वक राज करने लगे थे।

वर्तमान में भारतीय राज्य उड़ीसा में जिस स्थान पर महानदी समुद्र में मिलती है, उसी संगम स्थल पर वाराङ्गी नन्दन तारकासुर अपनी राजधानी बना कर रहने लगे। वे अपने सहयोगियों को उनके सामर्थ्य के अनुसार जिस समय पद और अधिकार दे रहे थे, उसी समय प्रह्लाद नन्दन महात्मा कुम्भ को ब्रह्मा के पद पर प्रतिष्ठित किया गया था। ब्रह्मा जी के पद पर प्रतिष्ठित कुम्भ की नीतियों के कारण तारक ने बन्दीगृह से सभी देवताओं को मुक्त कर दिया था। उनके राज्य में उनकी माता को अपमानित करने वाले इन्द्र और उसे उकसाने वाले देवों के अतिरिक्त कोई दुखी नहीं था। जबकि कुम्भ के द्वारा सबको समान रूप से आदर देने के कारण ये सब के प्रिय बने और देवों के लिए भी पूजनीय बने। प्रजापति कुम्भ के पूर्वज़ विराज भगवान के नाम से विख्यात ब्रह्मा जी स्वार्थ के लिए छल, और झूठ का सहारा लेने के कारण एक बार भगवान शिव के द्वारा और एक बार अपनी अर्धांगनी सावित्री देवी के द्वारा भी शापित होने के कारण भी प्रजापति कुम्भ की तरह नहीं पू़जे जाते हैं। इनकी विस्तृत कथा शिव पुराण और हरिवंश पुराण आदि ग्रन्थों में पढ़ सकते हैं। 

कई लोगों के मन में यह सवाल जरूर उठता है कि आखिर जिसने इस संसार की रचना की उनका मन्दिर सिर्फ़ पुष्कर में ही क्यों है? शिव, विष्णु, अग्निदेव, वरूण, इन्द्र, मित्र और पवन आदि देवों की तरह इनकी पूजा क्यों नहीं होती है? अगर आप लोग भी इसके बारे में अञ्जान हैं तो हम आपको इसके पीछे की पौराणिक कथा के बारे में बताते हैं। 

पुराणों के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी ने पृथ्वी की भलाई के लिए यज्ञ का विचार किया और यज्ञ की जगह का चुनाव करने के लिए उन्होंने आकाश से ही अपने एक कमल को पृथ्वी लोक में भेजा और जिस स्थान पर वह कमल गिरा, उसी जगह को यज्ञ के लिए उचित जगह समझ कर यज्ञशाला बनवाने लगे। किवदिंतियों के अनुसार जिस जगह उनका ब्रह्मकमल गिरा था, उसी जगह पर ब्रह्मा जी का मंदिर बना दिया गया और वह स्थान आज भी राजस्थान के पुष्कर शहर में है। कहा जाता है कि जहाँ पर वह पुष्प गिरा था वहाँ एक तालाब बन गया था। उस तालाब के किनारे यज्ञ करने के लिए ब्रह्मा जी पुष्कर पहुंच गए, लेकिन उनकी पत्नी सावित्री नहीं पहुंचीं। यज्ञ स्थल पर सभी देवी-देवता पहुंच चुके थे, लेकिन देवी सावित्री का कुछ पता नहीं था। उनका इन्तजार करते-करते जब लोगों ने देखा कि यज्ञ अनुष्ठान के लिए निर्धारित शुभ मुहूर्त का समय बीतता जा रहा है तब कोई उपाय न देखकर ब्रह्मा जी ने देवी नन्दिनी गाय के मुख से उत्पन्न गायत्री को प्रकट किये और उनसे विवाह कर यज्ञ अनुष्ठान शुरू कर दिये। इस 

यज्ञ आरम्भ होने के कुछ समय बाद देवी सावित्री यज्ञ स्थल पर पहुंचीं तो वहां ब्रह्मा जी के बगल में किसी और स्त्री को बैठे देख कर वे क्रोधित हो गईं। गुस्से में उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दे दिया और कहा कि जाओ इस पृथ्वी लोक में तुम्हारी कहीं पूजा नहीं होगी। हालांकि बाद में जब उनका गुस्सा शांत हुआ और देवताओं ने उनसे श्राप वापस लेने की प्रार्थना की तो उन्होंने कहा कि मैं अपने श्राप वापस तो नहीं ले सकती मगर धरती पर सिर्फ़ इस पुष्कर में ही ब्रह्मा जी की पूजा होगी। इसके अलावा जो कोई भी आपका दूसरा मंदिर बनाएगा, उसका विनाश हो जाएगा। तब से ब्रह्मा जी का मन्दिर कोई नहीं बनाता है। जबकि इस घटना के बाद ताड़कासुर के द्वारा ब्रह्मा के पद पर प्रतिष्ठित कुम्भ की पूजा घर-घर में की जाती है। 

ब्रह्मा के पद पर आरूढ़ प्रजापति कुम्भ ने सरस्वती देवी के अंश से उत्पन्न अपनी तीन पुत्रियों स्वाहा, स्वधा और वषट् का विवाह कौशिक विश्वामित्र नन्दन भगवान अग्निदेव के साथ करने के बाद अग्निदेव को ही यज्ञ भाग का मुख्य अधिकारी बना दिया था। नर्मपुर वासिनी नागकन्या देवी चक्षुस्मति के गर्भ से उत्पन्न कौशिक नन्दन अग्निदेव की पत्नियों स्वाहा से उन्होंने स्वाहाकार अग्नि, स्वधा से स्वधाकार अग्नियों और वषट् से वषटाकार अग्नियों (अध्याय २२, श्लोक संख्या ३०-३३, श्री महाभारते खिलभागे) को उत्पन्न कर सम्पूर्ण जगत में होने वाले यज्ञों के लिए प्राप्त पोषक तत्वों से देवी-देवताओं का भी पोषण करने लगे और देव-दानव, सुर-असुर सब को एक ही वंश से उत्पन्न होने के कारण समान भाव से व्यवहार करते हुए तीनों लोकों पर राज करने लगे। बाद में रूद्र आदि देवों का जन्म भी इन्हीं अग्निदेव के वंश में कुम्भी माताओं के गर्भ से हुआ था। इसके कारण अग्निदेव के वंश में उत्पन्न रूद्रों के वंशज़ कुम्भी बैस और कुम्भरार कहलाये। विदित हो कि लोक तंत्र की जननी कहलाने वाली भूमि पर स्थित बिहार की वर्तमान राजधानी पटना में आज भी कुम्हरार नामक ग्राम स्थित है। यहाँ पर कुम्भी बैस वंशीय राज परिवार में ही उत्पन्न सम्राट अशोक की राजधानी स्थित थी, जिसका भग्नावशेष आज भी स्थित है।


=====================================

किसके वंशज़ हैं कुम्भी बैस कहलाने वाले सूर्यवंशी? 

कुम्भी बैस कहलाने वाले कौशिक गोत्रीय लोगों के बारे में एक और कथा प्रचलित है। इसके अनुसार खुद को कुम्भी बैस कहने वाले वैसे समुदाय के लोग भी हैं जो अपना गोत्र कौशिक तो बताते हैं, लेकिन खुद को कौशिक विश्वामित्र भगवान की तरह चन्द्रवंशी कहने के बजाए सूर्यवंशी बताते हैं। जबकि कश्यप वंशीय जिस प्रजापति कुम्भ से सम्बन्धित होने के कारण लोग कुम्भी कहलाते हैं उनसे या चन्द्रवंश में उत्पन्न कौशिक विश्वामित्र भगवान में से कोई भी सूर्यवंशी नहीं हैं। इसके बावजूद किसके वंशज़ हैं वे लोग जो अपने वंश की पहचान सूर्य, चन्द्र और कश्यप वंशीय प्रजापति कुम्भ से सम्बन्धित कुम्भी बैस के रूप में देते हैं? 

सुमेरु की पुत्री भगवती गङ्गा जो अपने पितृ लोक से ज्यादा मेरूगिरी पर स्थित प्रजापति कुम्भ के लोक में निवास करती थीं, इनका पृथ्वी लोक पर अवतरण की कथा सुनाते हुए कौशिक विश्वामित्र भगवान ने दशरथनन्दन श्रीराम चन्द्र जी को सूर्यवंशी राजा सगर पुत्रों के कुम्भी बैस कहलाने का प्रसंग विस्तार से बताये थे। उन्होंने गङ्गा अवतरन की कथा इस प्रकार सुनाना आरम्भ किया- “पर्वतराज हिमालय की अत्यंत रूपवती, लावण्यमयी एवं सर्वगुण सम्पन्न दो कन्याएँ थीं। हिमवान सुमेरु पर्वत की पुत्री मैना इन कन्याओं की माता थीं। हिमालय की बड़ी पुत्री का नाम गंगा और छोटी पुत्री का नाम उमा था। गंगा अत्यन्त प्रभावशाली और असाधारण दैवीक गुणों से सम्पन्न थी। वह किसी बन्धन को स्वीकार न कर स्वछन्द होकर विचरण करने वाली थीं और निर्भय होकर मनमाने मार्गों का अनुसरण करते हुए सर्वत्र विचरण करती रहती थी। उनकी इस असाधारण प्रतिभा से प्रभावित होकर देव लोग विश्व कल्याण की कामना से उन्हें हिमालय से माँग कर अपने साथ स्वर्ग लोक में ले गये। जबकि पर्वतराज की दूसरी कन्या उमा जो बड़ी तपस्विनी थी, उन्होंने कठोर तप करके महादेव जी को वर रूप में प्राप्त किया।”


कौशिक विश्वामित्र जी के इतना कहते ही दशरथ नन्दन राम ने पूछा, “हे भगवन्! जब गंगा को देव लोग अपने सुर लोक ले गये, तो वह पृथ्वी पर कैसे अवतरित हुई और गंगा को त्रिपथगा क्यों कहते हैं?” इस पर ऋषि विश्वामित्र ने बताया, “महादेव जी का विवाह तो उमा के साथ हो गया था किन्तु सौ वर्ष बीतने पर भी जब भगवती उमा किसी सन्तान की उत्पत्ति नहीं कर पाई। तब शिव पुत्र कार्तिकेय के द्वारा तारकासुर का वध होने के बाद ही स्वर्ग लोक में देवों के पुनर्स्थापित होने की भविष्यवाणी जानने वाले देवेन्द्र ने काफी समय बीतने पर भी कार्य सिद्ध नहीं होते देख, तारकासुर के वध के लिए सुयोग्य वीर का शिव पुत्र के रूप में जन्म लेने की कामना लेकर देवगण ब्रम्हा जी से प्रार्थना करने लगे। उनकी प्रेरणा से काम देव को यह जिम्मेदारी सौंपी गई। जिसके कारण वर्षों बाद महादेव शिव जी के मन में भी सन्तान उत्पन्न करने का विचार आया। लेकिन उमा के साथ विहार करते हुए जब काफी समय व्यतीत होने पर भी देवताओं को अपना अभिष्ट कार्य सम्पन्न होता हुआ नहीं दिखाई पडा़, तो वे चिन्तातुर होकर इन्द्र ने कौशिक विश्वामित्र भगवान की भार्या चक्षुष्मति नन्दन अग्नि देव से कहा कि तुम चतुरता से शिव जी के पास जाकर देखो की वे क्या कर रहे हैं। इस पर भगवान अग्नि देव! कपोत का रूप धारण कर के जैसे ही शिवजी की गुफा में पहुंचे ब्रम्हा, विष्णु और सभी देव गण भी शिव जी की गुफा के सामने स्थित उस वटवृक्ष के पास पहुंच गए, जिसके नीचे शिव जी अक्सर विश्राम करते थे। लेकिन वहाँ अग्निदेव या शिव जी को न देख कर सदाशिव के भवन के द्वार पर गए और उन्हें उच्च स्वर में पुकारे। इस पर शिव जी के गणों ने बताया कि वे काफी समय से गिरिजा जी के पास हैं। तब देवों ने तारकासुर के वध के लिए महादेव शिव के अंश से सुयोग्य वीर के जन्म की कामना से ब्रह्मा जी के साथ विचार करने लगे कि संसार में ऐसी कौन नारी है जो अमित तेजस्वी सदाशिव के तेज को सम्भाल सकता है? उन्होंने अपनी इस शंका को शिव जी के सम्मुख प्रस्तुत करने के लिए अत्यंत आतुर होकर जब महादेव को फिर से पुकारा। तब भक्ति के अधीन रहने वाले शिव जी भगवती गिरजा से विमुख होकर भक्तों के सामने प्रकट हो गये तथा अपने भक्तों के द्वारा यह कहने पर कि आप हमारा अभीष्ट कार्य क्यों नहीं कर रहे? सदाशिव ने कहा कि मैं तुम्हारे ही कार्य में लगा था मगर तुम लोगों के इस तरह अधीर होने से हमारा वीर्य हमारी शैय्या के पास ही गिर गया है। तुम लोगों में से जिसमें क्षमता हो वह उसे धारण कर लो। सदाशिव के इस बात को सुनते ही उस वीर्य की रक्षा करने के लिए विष्णु जी का इशारा पाकर कपोत रूप धारी भगवान अग्नि देव उस वीर्य को अपनी चोंच में धारण कर अपने घर की ओर उड़ गए तथा वशिष्ठ ऋषि की पत्नी देवी अरून्धती के साथ रहने वाली ऋषि पत्नियों में शिव जी के वीर्य को धारण करने के लिए बाँट दिए। ताकि वे शिव पुत्र की माता होने का गौरव पा सकें। लेकिन वे उसके ताप को नहीं सह पायीं तब अग्नि देव ने उसे हिमवान नन्दिनी भगवती उमा की बड़ी बहन देवी गंगा के गर्भ में डाल दिया। समय आने पर भगवती गंगा व्याकुल होकर कुम्भ में चली गई और बड़े जोर से नाद करते हुए सरपत के ढेर पर एक बालक के रूप में कुमार कार्तिकेय को जन्म दिया। देवताओं के द्वारा विहार में बाधा पड़ने से जब उमा शिव पुत्र की माता बनने से वंचित हो गयी तो उन्होंने क्रुद्ध होकर देवताओं को शाप दे दिया कि मुझे गर्भ से वंचित करने वालों! तुम्हीं गर्भ धारण करो और जब वीर्य को मुख में धारण कर ही लिए तो अब से भक्ष्य-अभक्ष्य सभी चीजें खाया करो। भगवती उमा से शापित होते ही गर्भ धारण कर के संसार में लज्जित होने लगे जिससे शिव कृपा से ही उन्हें मुक्ति मिली। इसी बीच सुरलोक में विचरण करती हुई भगवती गंगा से उमा की भेंट हुई। गंगा ने उमा से कहा कि मुझे सुरलोक में विचरण करते हुये बहुत दिन हो गये हैं। मेरी इच्छा है कि मैं अपनी मातृभूमि पृथ्वी पर विचरण करूँ। इस पर उमा ने गंगा को आश्वासन दिया कि मैं इसके लिये कोई उपाय करती हूँ।


पृथ्वी पर भगवती गङ्गा के अवतरण की यह कथा सुनाते हुए विश्वामित्र जी ने दशरथ नन्दन राम से कहा कि “वत्स राम! तुम्हारी ही अयोध्यापुरी में सगर नाम के एक राजा थे। उनके पिता का नाम बाहु और माता का नाम नन्दिनी था। शत्भिषा नक्षत्र और कुम्भ राशि में जन्में महाराजा सगर को कोई पुत्र नहीं था। सगर की पटरानी केशिनी विदर्भ प्रान्त के राजा की पुत्री थी। केशिनी सुन्दर, धर्मात्मा और सत्यपरायण थी। सगर की दूसरी रानी का नाम सुमति था, जो भगवान नेमिनाथ के नाम से विख्यात राजा अरिष्टनेमि की कन्या थी। दोनों रानियों को लेकर महाराज सगर हिमालय के भृगुप्रस्रवण नामक प्रान्त में जाकर पुत्र प्राप्ति के लिये तप करने लगे। उनके तप से प्रसन्न होकर महर्षि भृगु ने उन्हें वर दिया कि तुम्हें बहुत से पुत्रों की प्राप्ति होगी। दोनों रानियों में से एक का केवल एक ही पुत्र होगा जो कि वंश को बढ़ायेगा और दूसरी को साठ हजार पुत्र होंगे। कौन सी रानी कितने पुत्र चाहती है इसका निर्णय वे स्वयं आपस में मिलकर कर लें। केशिनी ने वंश को बढ़ाने वाले एक पुत्र की कामना की तथा राजा विश्वजीत और राजा रक्तमबोज़ की बहन सुमति ने साठ हजार बलवान पुत्रों की।


दसवें महीने में रानी केशिनी ने असमंजस नामक पुत्र को जन्म दिया। जबकि रानी सुमति के गर्भ से एक तूम्बीनुमा माँस पिण्ड निकला। जिससे जीरे के आकार के छोटे-छोटे साठ हजार भ्रूण निकले। उन सबका पालन-पोषण घी से भरे हुए साठ हजार कुम्भ में रखकर सावधानी पूर्वक किया गया। असमंजस के जन्म लेने के आठ महीनों के बाद कुम्भ में पल रहे सभी साठ हजार पुत्रों ने भी अपना शरीर पाकर जन्म लिया और असमंजस के साथ पलते हुए सभी राजकुमार युवा हो गये। अपेक्षाकृत महाराजा सगर के कुम्भी पुत्रों से आठ माह ज्येष्ठ पुत्र असमंजस बड़ा दुराचारी था और उसे नगर के बालकों को सरयू नदी में फेंक कर डूबते हुये देखने में बड़ा आनन्द आता था। इस दुराचारी पुत्र से दुःखी होकर सगर ने उसे अपने राज्य से निर्वासित कर दिया। असमंजस के अंशुमान नाम का एक पुत्र था। अंशुमान अत्यंत सदाचारी और पराक्रमी था। एक दिन राजा सगर के मन में अश्वमेघ यज्ञ करवाने का विचार आया। यद्यपि वे अपने ज्येष्ठ पुत्र का परित्याग करने से दुःखी तो थे ही, मगर अपने साठ हजार पुत्रों की सहायता से उन्होंने शीघ्र ही अपने इस विचार को कार्यरूप में परिणित कर दिया। 


अश्वमेध यज्ञ की चर्चा सुनते ही राम ने ब्रह्मर्षि विश्वामित्र जी से कहा, “गुरुदेव! मेरी रुचि अपने पूर्वज सगर की यज्ञ गाथा को विस्तारपूर्वक सुनने में है। अतः कृपा करके इसे वृतान्त को सुनाइये।” राम के इस निवेदन से प्रसन्न होकर विश्वामित्र जी कहने लगे, ”राजा सगर ने हिमालय और विन्ध्याचल के बीच की हरी-भरी भूमि पर एक विशाल यज्ञ मण्डप का निर्माण करवाया। फिर अश्वमेघ यज्ञ के लिये श्यामकर्ण घोड़ा छोड़कर उसकी रक्षा के लिये पराक्रमी अंशुमान को सेना के साथ उसके पीछे भेज दिया। यज्ञ की सम्भावित सफलता के परिणाम की आशंका से भयभीत होकर इन्द्र ने उस घोड़े को चुरा कर पृथ्वी के आग्नेय कोण में स्थित सागर तट पर समाधिस्थ कपिल भगवान की कुटिया में उस स्थान पर बाँध दिया जहाँ पर वे अपनी समाधि में लीन थे। घोड़े की चोरी की सूचना पाकर सगर ने अपने साठ हजार पुत्रों को आदेश दिया कि घोड़ा चुराने वाले को पकड़कर या मारकर घोड़ा वापस लाओ। अपहृत अश्व की तलाश करते हुए उन्होंने पृथ्वी को चारों दिशाओं में खोद डाला लेकिन घोड़ा नहीं मिला। इस क्रम में जो भी राज्य, नगर व ग्राम आये उन्हें अपहृत अश्व की तलाश करते हुए विजित भी करते गए। इस कार्य से असंख्य पृथ्वी वासी प्राणी मारे गये। खोदते-खोदते वे आकाश-पाताल सबको जीत लिए, मगर अश्व का कहीं पता नहीं चला। तब सगर नन्दन कुम्भी पुत्रों के नृशंस कृत्य की देवताओं ने ब्रह्मा जी से शिकायत की। इस पर ब्रह्मा जी ने देवताओं से कहा कि "ये राजकुमार क्रोध और मद में अन्धे होकर ऐसा कर रहे हैं। पृथ्वी की रक्षा का दायित्व कपिल भगवान पर है। अतः इन्हें रोकने के लिए वे कुछ न कुछ अवश्य करेंगे।" पूरी पृथ्वी को खोदने के बाद भी जब अश्वमेध यज्ञ के लिए छोड़ा गया घोड़ा और उसको चुराने वाले चोर के बारे में कुछ पता नहीं चल पाया तो निराश होकर राजकुमारों ने इसकी सूचना अपने पिता को दी। अपने पुत्रों से अश्व की तलाश करने के लिए किये गये अभियानों के बारे में विस्तार पूर्वक जानने के बाद महाराजा सगर ने अपने पुत्रों को सावधानी पूर्वक सभी वंचित स्थानों में जाकर एक बार फिर से तलाश करने का आदेश दिया। इस पर महाराजा सगर के कुम्भी पुत्रों में से चार पुत्र बर्हकेतु, सुकेतु, धर्मरथ और शूर सहित असमञ्जस नन्दन राजकुमार अंशुमन दरबार में ही रोक कर सभी शेष पुत्रों को तलाशी से वंचित पृथ्वी के आग्नेय कोण में स्थित सागर के तटवर्ती क्षेत्रों में भेजा गया। उस क्षेत्र में स्थित कपिल भगवान के आश्रम में जिस स्थान पर कुम्भी भाईयों ने अपने अपहृत अश्व को बन्धा हुआ देखा वहाँ एक तपस्वी को समाधिस्थ देख इन्द्र देव की चाल से अनभिज्ञ होने के कारण समाधिस्थ कपिल भगवान को ही अश्व की चोरी करने वाला समझ कर उन्हें दुर्वचन कहते हुए मारने के लिए दौड़े। इस पर अश्व की चोरी की घटना से अनभिज्ञ कपिल मुनि की समाधि भंग हो गई और उन्होंने क्रुद्ध होकर सगर के सभी निर्दोष पुत्रों को अपने नेत्र से निकले दिव्य अग्नि की ज्वाला से जला कर भस्म कर दिये। कपिल भगवान की तपोभूमि के पास स्थित जिस जगह पर महाराजा सगर के कुम्भी पुत्रों की अकाल मृत्यु हुई थी, वह जगह कुम्भकोणम के नाम से विख्यात है। 


कपिल आश्रम में हुई इस दुखद घटना की सूचना पाकर महाराजा सगर उस दिव्याग्नि में भष्म होने से बचे चार कुम्भी पुत्रों और असमञ्जस नन्दन अंशुमन को साथ लेकर कपिल भगवान के आश्रम में गये और अपने पुत्रों के द्वारा अनजाने में हुई भूल के लिए क्षमा याचना कर के उन्हें प्रसन्न किये। तत्पश्चात उनके आश्रम से अपने यज्ञ पशु को मुक्त करवा कर अपने यज्ञ को पूरा किये। मगर अकाल मृत्यु के कारण महाराजा सगर के पुत्रों की आत्मा को शान्ति नहीं मिली। वे अपनी मुक्ति के लिए हाहाकार मचाते हुए भटकती रही। उन आत्माओं की शान्ति देने के लिए देवी गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए अभियान चलाया गया और उनके जल प्रवाह के स्पर्श से उन्हें मुक्ति दिलाया जा सका। 


इस तरह महाराजा सगर के साठ हजार कुम्भी पुत्रों में से चार पुत्र नष्ट होने से बच गए थे। विष्णु भक्त होने के कारण सूर्यवंश में उत्पन्न उन्हीं कुम्भी पुत्रों के वंशज कुम्भी बैस कहलाये। 

====================================


यूं तो महाराजा सगर के कुम्भी पुत्रों के वंशज़ सूर्य वंशी हैं, लेकिन ये अपना गोत्र कौशिक बतलाते हैं जो चन्द्र वंश में उत्पन्न कौशिक गाधि के पुत्र थे। मगर इक्ष्वाकु वंशी सगर नन्दन शुर और सत्यव्रत नन्दन हरिश्चंद्र सहित शिवपुत्र कार्तिकेय और प्रह्लाद नन्दन कुम्भ का गोत्र भी कौशिक ही क्यों कहलाता है? क्या कौशिक गोत्रीय कुम्भी बैस राजा सगर के ही वंशज हैं या ताड़कासुर के द्वारा ब्रह्मा के पद पर आरूढ़ किये गये महात्मा कुम्भ के वंशज़ हैं? मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा के वंश में उत्पन्न कुम्भी बैस वंशीय हमारे इस वंश की कुल देवी बन्दी मइया कहलाती हैं। मगर ये कौन हैं? बन्दी मइया किसे कहते हैं? कुम्भी बैस वंशीय लोग बर्हगायां, बरगाही, वारङ्गियन, कछवाहा और ब्राह्मणशाही क्षत्रिय के नाम से भी मशहूर हैं। मगर इसका क्या कारण है? वंश, गोत्र और प्रवर आदि का क्या अर्थ है? ऐसे कई सवालों का जवाब जानने के लिए हमारे संगठन "कौशिक कंसल्टेंसी इंटेलिजेंस ब्यूरो" के द्वारा प्रेषित सन्देशों को देखते रहें तथा पसन्द आने पर हमारे पेज़ को लाइक कर अधिकाधिक लोगों में शेयर करें। 


कुम्भी बैस वंशीय अच्छी लेखकीय क्षमता वाले हिन्दी भाषी लेखकों, कवियों, गीतकारों, शोधकर्ताओं तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं का भारत सरकार से मान्‍यता प्राप्त हमारे संगठन कौशिक कंसल्टेंसी इंटेलिजेंस ब्यूरो (केसीआईबी) की सदस्यता के लिए स्वागत है। हमारे शोध कार्य तथा ऐतिहासिक महत्व के स्थलों के विकास के कार्यों में सहायता करने के लिए इच्छुक समाज सेवियों से इस वंश से सम्बन्धित पौराणिक ग्रंथ, पाण्डूलिपियां, स्वरचित साहित्यिक कृतियां आदि दान सामग्री आमंत्रित है। 


सोमवार, 26 अक्टूबर 2020

कौशिक कृत महर्षि भृगु साठिका


 । । महर्षि भृगु साठिका ।।

जिनके सुमिरन से मिटै, सकल कलुष अज्ञान।

सो गणेश शारद सहित, करहु मोर कल्यान।।

वन्दौं सबके चरण रज, परम्परा गुरुदेव।

महामना, सर्वेश्वरा, महाकाल मुनिदेव। ।

बलिश्वर पद वन्दिकर, मुनि श्रीराम उर धारि।

वरनौ ऋषि भृगुनाथ यश, करतल गत फल चारि। ।

🏺🌺🌹🌺🏺🌺🌹🌺🏺🌺🌹🌺🏺

जय भृगुनाथ योग बल आगर।
सकल सिद्धिदायक सुख सागर।। 1।।

विश्व सुमंगल नर तनुधारी।
शुचि गंग तट विपिन विहारी।।2।।

भृगुक्षेत्र सुरसरि के तीरा।
बलिया जनपद अति गम्भीरा। ।3।।

सिद्ध तपोधन दर्दर स्वामी।
मन-वच-क्रम गुरु पद अनुगामी। ।4।।

तेहि समीप भृग्वाश्रम धामा।
भृगुनाथ है पूरन कामा। । 5।।

स्वर्ग धाम निकट अति भाई।
एक नगरिका सुषा सुहाई। । 6।।

ऋषि मरीचि से उद्गम भाई।
यही महॅ कश्यप वंश सुहाई।।7।।

ता कुल भयऊ प्रचेता नेमी।
होय विनम्र संत सुर सेवी।।8।।

तिनकी भार्या वीरणी रानी।
गाथा वेद-पुरान बखानी। ।9।।

तिनके सदन युगल सुत होई।
जनम-जनम के अघ सब खोई। ।10।।

भृगु अंगिरा है दोउ नामा।
तेज प्रताप अलौकिक धामा।। 11।।

तरुण अवस्था प्रविसति भयऊ।
गुरु सेवा में मन दोउ लयऊ। ।12।।

करि हरि ध्यान प्रेम रस पागो।
आत्मज्ञान होवन है लागो।।13।।

परम वीतराग ब्रह्मचारी।
मातु समान लखै पर नारी।।14।।

कंचन को मिट्टी करि जाना।
समदर्शी तुम्ह ज्ञान निधाना।।15।।

दैत्यराज हिरण्य की कन्या।
कोमल गात नाम था दिव्या।।16।।

भृगु-दिव्या की हुई सगाई।
ब्रह्मा-वीरणी मन हरसाई। ।17।।

दानव राज पुलोमा भी आये।
निज सुता पौलमी को लाये।।18।।

सिरजनहार कृपा अब कीजै।
भृगु-पौलमी ब्याह कर लीजै।।19।।

ब्रह्मलोक में खुशियां छाई।
तीनों लोक बजी शहनाई।।20।।

दिव्या-भृगु के सुत दो होई।
त्वष्टा, शुक्र नाम कर जोई।।21।।

भृगु-पौलमी कर युगल प्रमाना।
च्यवन, ऋचीक है जिनके नामा।।22।।

काल कराल समय नियराई।
देव-दैत्य मॅह भई लड़ाई। ।23।।

ब्रह्मानुज विष्णु कर कामा।
देव गणों का करें कल्याना।। 24।।

भृगु भार्या दिव्या गई मारी।
चारु दिशा फैली अँधियारी।।25।।

सुषा छोड़ि मंदराचल आये।
ऋषिन जुटायू से यज्ञ कराये।।26।।

ऋषियन मॅह चिन्ता यह छाई।
कवन बड़ा देवन मॅह भाई।। 27।।

ऋषिन-मुनिन मन जागी इच्छा।
कहे भृगु के करेें परीक्षा।।28।।

गये पितृलोक ब्रह्मा नन्दन।
जहाँ विराज रहे चतुरानन।।29।।

ऋषि-मुनि कारन देव सुखारी।
तिनके कोऊ नाही पुछारी।।30।।

शाप दियो पितु को भृगुनाथा।
ऋषि-मुनिजन का ऊँचा माथा।।31।।

ब्रह्म लोक महिमा घटि जाही।
ब्रह्मा पूज्य होही अब नाही।।32।।

गये शिवलोक भृगु आचारी।
जहाँ विराजत है त्रिपुरारी।।33।।

रुद्रगणों ने दिया भगाई।
भृगु मुनि तब गये रिसिआई।। 34।।

शिव को घोर तामसी माना।
जिनसे हो  सबके कल्याना।।35।।

कुपित भयउ कैलाश विहारी।
रुद्रगणों को तुरत निकारी।।36।।

कर जोरे विनती सब कीन्हा।
मन मुसुकाई आपु चल दीन्हा।।37।।

शिवलोक उत्तर दिशि भाई।
विष्णु लोक अति दिव्य सुहाई।।38।।

क्षीर सागर में करत विहारा।
लक्ष्मी संग जग पालनहारा।।39।।

लीला देखि मुनि गए रिसियाई।
कैसे जगत चले रे भाई।।40।।

विष्णु वक्ष पर कीन्ह प्रहारा।
तीनहूं लोक मचे हहकारा।।41।।

विष्णु ने तब पद गह लीन्हा।
कहा नाथ आप भल कीन्हा।।42।।

आत्म स्वरुप विज्ञ पहचाना।
महिमामय विष्णु को माना।।43।।

दण्डाचार्य मरीचि मुनि आये।
भृगु मुनि को वो दण्ड सुनाये।।44।।

तुम्हने कियो त्रिदेव अपमाना।
नहि कल्यान काल नियराना।।45।।

पाप विमोचन एक अधारा।
विमुक्त भूमि गंगा की धारा।।46।।

हाथ जोरि विनती मुनि कीन्हा।
विमुक्त भूमि का देहू चीन्हा।।47।।

मुदित मरिचि बोले मुसकाई।
तीरथ भ्रमन करौं तुम्ह सांई।।48।।

जहाँ गिरे मृगछाल तुम्हारी।
समझौ भूमि पाप से तारी।।49।।

भ्रमनत भृगुमुनि बलिया आये।
सुरसरि तट पर धूनि रमाये।।50।।

कटि से भू पर गिरी मृगछाला।
भुज अजान बाल घुँघराला।51।।

करि हरि ध्यान प्रेम रस पागे।
विष्णु नाम जप करन लागे।।52।।

सतयुग के वो दिन थे न्यारे।
दर्दर चेला भृगु के प्यारे।।53।।

दर्दर से सरयू मँगवाये।
यहाँ भृगुमुनि यज्ञ कराये।।54।

गंगा-सरयू संगम अविनाशी।
संगम कार्तिक पूरनमासी।।55।।

जुटे करोड़ो देव देह धारी।
अचरज करन लगे नर-नारी।।56।।

जय-जय भृगुमुनि दीन दयाला।
दया सुधा बरसेहूं सब काला।।57।।

सब संकट पल माहि बिलावै।
जे धरि ध्यान हृदय गुन गावैं।।58।।

सब संकल्प सिद्ध हो ताके।
जो जन चरण-शरण गह आके।।59।।

परम दयामय हृदय तुम्हारो।
शरणागत को शीघ्र उबारो।।60।।

आरत भक्तन के हित भाई।
कौशिकेय यह चरित बनाई।।61।। 

🏺🌷🌺🌷🏺🌷🌺🌷🏺🌷🌺🌷🏺

भृगु संहिता रची करि, भक्तन को सुख दीन्ह।

दर्दर को आशीष दे, आपु गमन तब कीन्ह।।

पावन संगम तट मह, कीन्ह देह का त्याग।

माई बन्दी के भक्तन को, देहू अमित वैराग।।

दियो समाधि अवशेष की, भृग्वाश्रम निज धाम।

कर दर्शन भृगु धाम के, सिद्व होय सब काम।

==============================

RELATED BLOG

http://kaushikwarriors.blogspot.com 

FACEBOOK PAGES

http://fb.me/KaushikWarrior 

Kaushik Consultancy Intelligence Bureau
http://fb.me/kcib.in 

RELATED BOOKS

परम सत्य का सार, श्री विश्वकर्मा पुराण, भृगु संहिता,

शिव पुराण, हरिवंश पुराण, भृगु आश्रम