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मंगलवार, 27 अक्टूबर 2020

कुम्भी बैस कहलाने वाले कुम्भी जाति का मूल निवास स्थान



वैज्ञानिकों का दावा है कि अफ्रीका की जाम्बेजी (कुम्भी) नदी के दक्षिणी क्षेत्र में दो लाख साल पहले रहते थे होमो सैपियंस। 

आधुनिक मानव की उत्पत्ति कहाँ हुई  इसे लेकर अभी तक कई दावे किए जा चुके हैं। लेकिन सटीक स्थल का पता अभी तक नहीं चला है। वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि जम्बेजी नदी के किनारे उत्तरी बोत्सवाना में दो लाख वर्ष पहले आधुनिक मानव की उत्पत्ति हुई थी। यह मनुष्य के पूर्वजों की भूमि के बारे में सबसे अहम दावा है।

लम्बे समय से माना जा रहा है कि आधुनिक मानव! होमो सैपियंस की उत्पत्ति अफ्रीका में हुई थी। वैज्ञानिक अभी तक यह बताने में असमर्थ हैं कि हमारी प्रजाति की असली उत्पत्ति स्थल कहाँ है। वैज्ञानिकों के अंतरराष्ट्रीय दल ने नामीबिया और बोत्सवाना सहित जाम्बिया और जिम्बाब्वे में खोएसान कहलाने वाले 200 अफ्रीकी लोगों के डीएनए सैंपल लेकर परीक्षण किये थे। जिसका परीक्षण करने के बाद इतिहासकारों ने इस बात को स्वीकार किया कि यह क्षेत्र जातीय समूह एल. के रूप में ज्ञात डीएनए की शाखा के बहुत बड़े हिस्सा के लिए जाना जाता है।  इसके बाद वैज्ञानिकों ने डीएनए सैम्पल का भौगोलिक वितरण, पुरातात्विक और जलवायु परिवर्तन के आंकड़ों के साथ मिलान किया। तब जाकर सामने आए परिणाम के आधार पर वैज्ञानिकों ने बोत्सवाना में जाम्बेजी नदी के दक्षिणी क्षेत्र में दो लाख साल पहले की अवधि का पता लगाया। 

हो भी सकता है कि जम्बेजी नदी के आस-पास के क्षेत्रों सम्पन्न सभ्यताओं वाले खोएसान जातियों का प्रादुर्भाव २००००० (दो लाख) साल पहले हुआ हो। ऐसे भी वैदिक ग्रन्थों में ग्रह, उपग्रह, नक्षत्र, राशि, अस्त्र, शस्त्र, यान, विमान, औषधी, उपकरण तथा शल्य चिकित्सा तक की सूक्ष्म जानकारी देने वाले जिन ग्रन्थों से सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण तक की अवधि की सटिक जानकारी हमें आज तक मिलती है, उन ग्रन्थों के रचना काल के समय हमारा विज्ञान आज के वैज्ञानिकों की कल्पना से भी अधिक विकसित सभ्यता वाला हो। गायत्री मन्त्र के द्रष्टा कौशिक विश्वामित्र भगवान द्वारा रचित ऋग्वेद में श्रृष्टि की आयु सहस्त्र कोटी युग बताया गया है। जिसे हम आज भी गायत्री स्तवन मन्त्र का जप करते हुए बोलते हैं - 

"ॐ नमोऽस्तवनन्ताय सहस्त्रमूर्तये, सहस्त्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे।

सहस्त्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटीयुगधारिणे नमः।।" 

विदित हो कि नामीबिया और जाम्बिया के पास रहने वाले खोएसान जाति के जिन २०० लोगों के शोधकर्ताओं ने डीएनए लिये थे, वे लोग कुशान या कौशिकायन नामक जातिय समुह के ही लोग हैं। यह जाति हरिवंश पुराण में वर्णित बलकाश्व नन्दन कुश के वंशज़ों की जाति है। चन्द्रवंश में उत्पन्न कुश नामक राजा के पुत्रों कुशिक, कुशनाभ, कुशाम्ब और मूर्तिमान के वंशज़ ही अफ्रीकी देशों में खोएसान तो पूर्वोत्तर भारत में कुशान और कुषाण के नाम से विख्यात हुए। इसी वंश में उत्पन्न राजा कुशिक के पुत्र गाधि जो तीनों लोकों के राजा होने के कारण महेन्द्र गाधि भी कहलाते थे ये कौशिक गाधि और मघवा के नाम से भी विख्यात थे। कौशिक गाधि के इकलौते पुत्र विश्वामित्र भगवान भी राजा कुशिक के वंशज़ होने के कारण कौशिक विश्वामित्र के नाम से विख्यात हुए। अफ्रीकी लोक कथाओं के अनुसार दक्षिणी सूडान पहले कुश देश का राजधानी कहलाता था। यह देश इतने विशाल भौगोलिक क्षेत्र में फैला हुआ था कि हरिवंश पुराण में वर्णित राजा रेचक के द्वारा छोड़े हुए जिस जन शुन्य द्वीप पर वासुदेव कृष्ण के द्वारा द्वारका बसाने की चर्चा की गई है, उस द्वीप को कुश देश के पूर्वी सीमा पर स्थित द्वीप बताया गया है। अर्थात इरान सहित सम्पूर्ण अरबी देश भी कुश देश का ही भाग था। खोएसान कहलाने वाले कुश के वंशज़ों का यह जातीय समूह आज भी दक्षिण अफ्रीका के नामीबिया, जिम्बाब्वे, जाम्बिया, तंज़ानिया और केन्या तथा उत्तरी अफ्रीका के मोरक्को (मॉरिटानिया), अल्जीरिया, सुडान, मिश्र (इजिप्ट) और माली में रहता है। लेकिन दक्षिण अफ्रीकी देशों में इस जाति की अच्छी आबादी है। जिस समय उन देशों पर विश्व की सबसे सम्पन्न सभ्यता फल-फूल रही थी उस समय अफ्रीका और अरब की धरती आज की तरह रेगिस्तान और उजाड़ नहीं थी बल्कि हरी-भरी और वन-उपवन से आच्छादित थी। 


कौन हैं कुम्भी बैस : 

जाम्बिया, ज़िम्बाब्वे और मोज़ाम्बिक के स्थानीय लोगों में प्रचलित लोक कथाओं के अनुसार जम्बेजी नदी के नाम से विख्यात नदी पहले कौम्ब (Coumb) नदी कहलाती थी। इसी नदी के किनारे रहने वाले मूल निवासी विभिन्न दिशाओं में जाकर बसने के बाद कौम्बे बैस और कुम्भी बैस कहलाये। सम्भवतः पौराणिक ग्रंथों में वर्णित प्रजापति कुम्भ और बाणासुर के महामन्त्री कुम्भाण्ड के नाम पर ही मेरूगिरी के दक्षिणी दिशा में स्थित कुम्भी नदी ही अफ्रीकी लोगों में जम्बेजी नदी के नाम से विख्यात वह नदी है जिसका प्राचीन नाम वहाँ के स्थानीय लोग कॉम्बै नदी बतलाते हैं। 


आधुनिक मनुष्यों का उद्गम स्थल :

इस अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने एक आनुवांशिक मैप बनाया। इसमें दिखाया गया था कि प्रागैतिहासिक मानव लगभग 70,000 वर्षों तक इस क्षेत्र में रहते थे और 1,30, 000 साल पहले उन्होंने चरम मौसमी आपदाओं के चलते मजबूरन दुनियाँ के दूसरे हिस्सों में फैलना शुरू कर दिये थे। बाइबिल, कुरआन और इसकी रचना से हजारों वर्ष पहले रचित पौराणिक कथाओं में वर्णित जल प्रलय और अग्नि की वर्षा का प्रसंग वैज्ञानिकों के इस दावे को प्रमाणित करता है। यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी और गार्सन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च के वेनेसा हेस ने कहा, ‘हम जानते हैं कि आधुनिक मनुष्यों की उत्पत्ति लगभग दो लाख साल पहले अफ्रीका में हुई थी। लेकिन हमें यह नहीं पता कि उनके वास्तविक आवास किस स्थान पर हैं।’ 


वेदों से पता किये आधुनिक मनुष्यों का उद्गम स्थल :

आधुनिक मनुष्यों के उद्गम स्थल के बारे में स्वामी सत्यानन्द दास के नाम से विख्यात कौशिक गोत्रीय राजवंश के वंशज और कौशिक कंसल्टेंसी इंटेलिजेंस ब्यूरो के निदेशक प्रसेनजित सिंह का दावा है कि हरिवंश पुराण में वर्णित द्वारका से शोणितपुर में स्थित बाण नगर जाने के दौरान कृष्ण को दूर से ही आग उगलने वाले पर्वतों से घिरा हुआ मेरूगिरी दिखाई दिया था। जम्बू के वनों से घिरे हुए जिस मेरूगिरी पर प्रजापति कुम्भ का वास कहा गया है, उसके चारों ओर सवर्ण कणों से युक्त जलधारा बहने का प्रसंग वेद व्यास कृत महाभारत नामक ग्रंथ में किया गया है। बाणासुर की उषा नामक जिस बेटी ने कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध का हरण करवाया था, उसके नाम पर मेरूगिरी के दक्षिणी दिशा में आरूषा नामक नदी का होना तथा कुम्भ में रह कर देवी गङ्गा के द्वारा शिवपुत्र कार्तिकेय को जन्म देने का पौराणिक प्रसंग की सच्चाई को आरूषा नदी के पास ही स्थित गङ्गा नदी का भी होना यह प्रमाणित करता है कि अफ्रीका के मध्यपूर्वी भाग में ही प्रथम मानव सभ्यता का विकास हुआ था। पौराणिक कथाओं में वर्णित शोणितपुर नामक प्रदेश के नाम पर स्थित शोणघर नामक एक प्रागैतिहासिक स्थान आरूषा नदी और मेरूगिरी के पश्चिमी दिशा में स्थित है। भारत में रहने वाले कुम्भी बैसों में प्रचलित उनकी कुल देवी बन्दी मइया! अम्बिका भवानी और जमबाई माता के नाम से भी पहचानी जाती हैं जबकि जाम्बिया, मोज़ाम्बिक और जिम्बाब्वे में प्रवाहित होने वाली जो जम्बेजी नदी अफ्रीकी लोक कथाओं के अनुसार पहले कम्बौ नदी कहलाती थी, उससे भारत सहित विश्व के विभिन्न देशों में बसे कुम्भी बैस कहलाने वाले मानव समुदाय से गहरा नाता है। केन्या में माउण्ट मेरू के नाम से विख्यात मेरूगिरी के दक्षिणी दिशा में प्रवाहित आरूषा नदी का नामकरण आर्य और उषा के योग से प्रतीत होता है। चुकी आर्य समाज का अर्थ मूल समाज होता है। अतः आरूषा नदी के अर्थ के आधार पर मध्यपूर्वी अफ्रीकी क्षेत्र भी आर्यों का मूल निवास स्थान है। 


झीलों के किनारे रहते थे आधुनिक मानव :

शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन में उसे क्षेत्र का पता लगाने का दावा किया है। उन्होंने कहा, ‘इस क्षेत्र को मैकगादिकगाडी-ओकवाङ्गो कहा जाता था, जहाँ बड़े पैमाने पर झीलें थीं। यह क्षेत्र आधुनिक विक्टोरिया झील के नाम से विख्यात कुम्भी झील का लगभग दोगुना था और यहाँ आज बहुत बड़ा रेगिस्तान है।


ऐसे हुआ आबादी का विभाजन :

नेचर जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, लगभग दो लाख साल पहले भूगर्भिक प्लेटों के खिसकने से यह झील टूट गई थी, जिसके बाद यहाँ एक बहुत बड़ा वेटलैंड बन गया था। शोधकर्ताओं ने कहा कि इस क्षेत्र में न केवल मानव रहते थे बल्कि शेर और जिराफ जैसे कई अन्य जीवों के लिए भी यह सबसे उपयुक्त जगह थी। इसके 70 हजार वर्षों बाद पहली बार आनुवांशिक विभाजन शुरू हुआ और कुम्भी बैस कहलाने वाले कौशिकों का एक समूह उत्तर-पूर्व की ओर हिमालयी क्षेत्र में जाकर कम्बोज़ नामक साम्राज्य को स्थापित किया था। इसके 20 हजार साल बाद हिमालयी क्षेत्र में बसने वाले आधुनिक मनुष्यों का एक समूह दक्षिण की ओर बढ़ते हुए नर्मदा, गोदावरी और कृष्णा आदि नदियों के आसपास जाकर बस गया था। शिव पुराण में वर्णित है कि नर्मदा नदी के किनारे स्थित नर्मपुर नामक गाँव की नागवंशी कन्या चक्षुस्मति से कौशिक विश्वामित्र भगवान ने विवाह किया था और उनसे उत्पन्न पुत्र अग्निदेव! गृहपति के रूप में भी विख्यात हुए थे। प्रजापति कुम्भ और देवी सरस्वती की बेटियां स्वाहा, स्वधा और विशाखा से विवाह करने के बाद अग्निदेव! अपने ससुर के लोक कुम्भलोक में ही उनकी बेटी को खोइंछा में दी गई भूमि पर ही वस गये थे। जिसके कारण अग्निदेव के बेटे सरवा, विसरवा और नैगमेय के वंशज़ कुम्भी बैस कहलाये। सरवा के वंशज़ भगवती स्वाहा की सन्तान होने के कारण सरवाह, सरवाहन और स्वाहिया भी कहलाते हैं। अफ्रीका में आज भी रहने वाले कौशिक गोत्रीय अग्निवंशियों की मुख्य भाषा स्वाहिली कहलाती है तो उनकी जाति खोएसान कहलाती है। इसी तरह 650 ईसापूर्व तक कुश देश में ही स्थित मिश्र में रहने वाले लोगों को बाइबिल नामक ग्रन्थ में  यहोवा द्वारा कनानी, हित्ति और गिर्गिशियों को कसदिओं के उर नगर से मुक्त करवाने की जो कहानी वर्णित है उसके अनुसार कौशिक विश्वामित्र भगवान और उनके पिता कौशिक गाधी के पूर्वज़ बलकाश्व नन्दन प्रजापति कुश के नाम पर उनके वंशज़ों को Kushdeo का अपभ्रंशित नाम कसदियों कहा गया है। बाइबिल के पृष्ठ संख्या 534 के नहेमायाह 8:10 नामक अध्याय की आयत संख्या 9:7 में स्पष्ट लिखा है - "मिश्र में रहने वाले कसदियों (Kushdeo) के उर नगर से यहोवा ने अब्राम को चुन कर फीरोन की बन्धुआगिरी से बाहर निकाला और उन्हें इब्राहिम नाम दिया। तूने मिश्र में हमारे पूर्वज़ों के दुःख पर दृष्टि डाली और कनानियों, हित्तियों, गिर्गिशियों को उनके पूर्वज़ों के देश पर अधिकार सौंपने का वचन दिया गया।... तूने वचन पूरा भी किया। इसलिए तू वाकई में महान है।" यह प्रार्थना फीरौन की बनधुआगिरी से मुक्त होकर इस्राइल जा पहुंचे लोगों के द्वारा किया गया है। बाइबिल के इस आयत से भगवान चन्द्रदेव के पौत्र पुरुरवा की उर्वशी नामक पत्नी के निवास स्थान और कसदियों के मिश्र देश की स्थिति स्पष्ट हो जाती है। उर्वशी नामक अप्सरा जिन्हें वैदिक शास्त्रों में उर पुर की वासी कहा गया है, उनका निवास स्थान मिश्र में रहने वाले कसदियों के उर नगर में है अर्थात् उर नगर की मूल भूमि मिश्र मे है। जबकि आधुनिक समाज के इतिहासकारों के द्वारा उर नगर को सउदी अरब में दिखलाया जाता है। जिसका अर्थ है कि सउदी अरब भी पहले कुशिक साम्राज्य या मिश्र का ही अंग था।  

बाद में इन्हीं वंशज़ों के द्वारा सौराष्ट्र के पावागढ़ के पास खोदी गई नदी विश्वामित्री नदी और बहुत बाद में इसी वंश में उत्पन्न मद्र देशीय लोगों से आबाद मद्रास में भी स्थित एक नदी कौशिक नदी कहलायी।

शोध एवम् प्रकाशन : 

Kaushik Consultancy Intelligence Bureau 

सम्पादन : प्रसेनजीत सिंह

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सौजन्य : संजय पोखरियाल, एएफपी, पेरिस