गुरुवार, 29 अक्टूबर 2020

समसामयिक कविता

 

बेवफाओं के शौहर (कविता) 



बेवफाओं के शौहर नहीं होते हैं।

न ही घर उसके बसते, न प्यार मिलते हैं।

जिस जवानी पे अपने गुमां करती है,

बन के बिस्तर हमेशा मजे करती है।

उम्र जब बीत जाता जवानी का तो,

उसके एक भी दिवाने नहीं मिलते हैं।

बेवफाओं के शौहर नहीं होते हैं

न ही घर उसके बसते, न प्यार मिलते हैं।

खाट धर कर जब अपने वो गिर जाती है,

तब ही उसको किये पाप याद आते हैं।

जिसको धोखा दिया, जिनपे जुल्म किया

बाद बिस्तर पकड़ने पे याद आते हैं।

बेवफाओं के शौहर नहीं होते हैं

न ही घर उसके बसते, न प्यार मिलते हैं।

आँसुओं के सिवा फिर न बचता है कुछ 

रुपये होने पे भी काम न आते हैं।

जबकि जो जिन्दगी में निभाते वफा

उनके मरते समय भी हजार आते हैं।

बेवफाओं के शौहर नहीं होते हैं 

न ही घर उसके बसते, न प्यार मिलते हैं।

कोठियां कर ले चाहे हजारों खड़ा

दर्जनों नौकरों को खटाये यहाँ।

चाहे सोने के क्यों न महल हों उसे

उसकी कीमत है क्या जिसके शौहर नहीं।

बेवफाओं के शौहर नहीं होते हैं 

न ही घर उसके बसते, न प्यार मिलते हैं।

जिनको आशिक समझती जवानी में तुम

वे सभी मौज़-मस्ती में ही साथ हैं।

एक बार गिर के उनको दिखाओ कभी

आशिकी सब की झूठी निकल जायेगी।

तब ही कहता कभी भी जफा न करो

ताकि मरते समय भी कोई पास हो।।

जब करोगी वफ़ा, तब मिलेगा वफ़ा

वर्ना कोई न तेरे निकट आयेगा।

जिसको चाहोगी दिल से निभाओगी साथ

वह मरते समय भी लिपट जाएगा।

बेवफाओं के शौहर नहीं होते हैं 

न ही घर उसके बसते, न प्यार मिलते हैं।

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नेता चरित (कविता)


कोई मतदाता न छूटे, 
मास्क पहनकर बूथ पे जायें। 
खुद तो जायें औरों को भी 
अपने साथ में लेते जायें।
वोट सुरक्षित पाकर के ही 
सुरक्षित जो हो पाएंगे। 
जीत के फिर से सत्ता की 
कुर्सी का मजा ले पायेंगे।
आप खायें कुछ, या न खायें 
उसकी चिन्ता नहीं करेंगे।
जैसे भी हो पहले जाकर
निज मतदान जरुर करेंगे।
हक की बातें जैसे हैं भूले
वैसे ही उस दिन भूले रहेंगे। 
दाना-पानी, रुपया-पैसा 
के चक्कर में नहीं पड़ेंगे।
गाँव, जवार और अपनी चिन्ता 
छोड़ के पहले वोट करेंगे। 
जो है देश का असली दुश्मन 
उसको चुन कर फिर गौण रहेंगे।
अब तक जैसे मौन रहे हैं 
उस दिन भी वैसे मौन रहेंगे। 
अपमान सहें या हक को छोड़ें 
पर मतदान जरुर करेंगे।
जो हैं देश के दुश्मन सारे 
उनको विजित जरूर करेंगे।
चुनाव होते जो न दिख पायें
अपनी दुनियाँ में फिर से रमेंगे।
जो संकट में साथ न देंंगे 
रिश्वत बिन नहीं काम करेंगे। 
ऐसे लोगों को ही चुन कर
कुर्सी पर जरूर बिठायेंगे।
जिनसे मिलना हो कभी जरूरी 
फिर भी मिल नहीं पायेंगे। 
चाहे साथ में जो हो जाए
उनको विजय दिलायेंगे। 
नहीं जिताने से जो रुठेंगे
एसीड से नहला देंंगे।
ऐसे ही रंगदारों को मिल
निश्चित विजयी बनायेंगे।
जैसे भी हो पहले जाकर
निज मतदान जरुर करेंगे।

 - प्रसेनजित सिंह उर्फ स्वामी सत्यानन्द दास 


लूटे के अजादी बा✍️

हम हूँ लूटींऽ, तू हूँ लूटऽ,

लूटे के आजादी बा।

जइसे बन्द बाऽ बिहार में दारू

अउसहीं घुसबोऽ बन्देऽ बाऽ।।

जिन कर घरवा फुसवा के हल

अब कोठवन के मालिक बाऽ।

ई सम्भव भेल मोर विकास से 

तब ही तऽ नेतवन झूमत बाऽ।।

भांड़ में जाए जनता आँधर

जे विकास ना देखत बाऽ।

साइकिल से मर्सिडीज लेबाइल

तब हूं न उनका लउकत बाऽ।। 

शहर में भी रोड बनतऽ न रहे

अब चौंढन में भी रोड बाऽ।

जहाँ पे पुल-पुलिया ना रहे

उहां पे पुल रोज़ ढ़हत बाऽ।। 

फिर भी कइसे कहे ले दुनियाँ

बिहार के जनता रोबतऽ बा।

हम हूँ लूटीं, तू हूं लूटऽ

लूटे के आजादी बाऽ।।

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आवश्यक सूचना

सउदी अरब में पारा पहुंचा 

62° से भी पार।

अँधाधूंध वृक्ष कट रहे, 

उसी से है यह उष्ण अपार।।

खड़ी धूप में जो गाड़ी है 

उसका है जब ऐसा हाल।

तब क्या मानव को छोडे़गा 

मानव से पैदा यह काल।।

जरा ध्यान से देख ले फोटो 

कितनी यहाँ पे गर्मी है।

हम सब बचे हुए हैं क्योंकि 

अपने तन में नरमी है।।

लेकिन अब यह नहीं बचेगा, 

ज्यादा दिन यह सुन लो आज।

जल्दी डग-डग वृक्ष लगाने 

की कर दो शुरू घर-घर काज।। 


निस दिन हम एक पेड़ लगाएं। 

उष्ण धरा को हरित बनाएं।।


इस अभियान में हमारा साथ देने के लिए इच्छुक लोग मेरे फेसबुक पेज़ को रेटिंग देकर हमारा मनोबल बढ़ायें। निवेदक : उदासी सन्त, कवि और पत्रकार

प्रसेनजीत सिंह, सम्पादक :

कौशिक कंसल्टेंसी एण्ड इंटेलिजेंस ब्यूरो, भारत



मैं ही हूँ सलमान (कविता)

सुनो ऐ जाहिलों की जात,

तुम्हारी क्या है अब औकात।

तुम्हारे घर में ही रह कर,

हैं करते आज भी हम राज।।

तुम्हारीऽ छीन कर दौलतऽ

तुम्हें! बर्बाद मैंने की। 

तुम्हारेऽ देश में ही

रह के जगऽ आबाद मैंने की।।

किया हूँ टुकड़े तेरे देश का

फिर भी यहीं हूँ मैं। 

यहाँ पर चल रहे कानून में भी

मैं ही हूँ छाया।। 

तुम्हारी क्या है अब औकात

सुन लेऽ मैं ही हूँ सलमान। 

तेरे घर-बार की दौलत

समझता जेब का सामान।। 

कहीं ऐसा न हो जाए

तेरा घर-बार छिन जाए। 

समझते हो जिसे अपना,

वो अपने ही बहक जाएं।। 

तभी मैं कहता हूँ कि भाग ले तूऽ

हिन्दी फिल्मों से। 

नहीं तो तोड़ दूँगा सपने तेरेऽ

अपनी जुल्मों से।।

तुम्हारे जैसे लोगों की

मैं रखताऽ नब्ज़ मुट्ठी में। 

जिसे बस सोचते ही मैं

मसल देता हूँ चुटकी में।। 

मेरा तुम क्या बिगाड़ोगे 

चाह कर भी भारत में। 

जहाँ कानून ने भी है किया,

तेरे जान को सस्ती।। 

जो मरते हैं यहाँ भूखे

उसे भी पूछती न ये,

जो बङ्गलों में ठहरते हैं

उन्हीं को भीख जो देती।।

यकीं गर है नहीं तुमको

तो देखो गाँव में जाकर।

न जिनको रोजी-रोटी कुछ

वे भी अगड़े कहाते हैं।।

जो हैं बेहाल फिर भी

भीख लेने में लजाते हैं। 

न जिनके पास एक रूपया 

न धन-दौलत न कुटिया है।

उन्हें भी देश के कानून ये

सम्पन्न दिखाते हैं।

है जिनका छिन चुका घर-बार

उनके साथ न कोई। 

अगर कहना न मानोगे

तो तेरा हाल वही होगा।

सम्भल जा अब भी तुमको मैं 

यहाँ आगाह करता हूँ। 

वर्ना मरने से भी ज्यादा मैं

बर्बाद करता हूँ।।


- सुशान्त सिंह राजपूत के द्वारा आत्महत्या करने के पहले भी कई लोगों आत्महत्या किया है। लेकिन उनमें सर्वाधिक संख्या सवर्ण जाति की तथा उन लोगों में भी विवाहित पुरुषों की ही होती है। इसके बावजूद इस देश में पुरुष वर्ग और सवर्ण जाति के मौलिक मानवाधिकारों की रक्षा करने वाला कोई आयोग नहीं है। इस देश में विश्व की सर्वाधिक आबादी वाले लोगों के लिए अल्पसंख्यक आयोग तो है लेकिन बौद्ध धर्म के अनुयायियों से भी कम आबादी वाले हिन्दुओं की सुरक्षा के लिए कोई आयोग नहीं है। किसी समाज को बर्बाद करने के लिए उसकी एकजुटता को खत्म करना जरूरी है और इसके लिए जाति, धर्म और लिंग आधारित भेद-भाव को बढ़ावा देने वाले लोगों ने आरक्षण का कानून बनाया था। जिसमें ये सफल होते हुए दिख रहे हैं।

देश और समाज को बचाना है तो हमें जाति, धर्म और लिंग आधारित आरक्षण के बजाए आर्थिक आधार पर आरक्षण का कानून बनवाने के लिए आन्दोलन करना चाहिए। इसी में देश और समाज का हित है।...ॐ 




हम रहे थे सन्त जब तक 

पन्थ यह आसान था ।

जब चले सामान्य बनने 

हर तरफ बेईमान था।।


अब तलक हम जी रहे थे

मन्दिरों के दान पर।

जब से उस दुनियाँ को छोड़ा

लोग पड़ गए जान पर ।।


कुछ समझ नहीं आता अब मैं

जाऊँ तो जाऊँ कहाँ।

अब नहीं इंसान का है

ठौर या इज्ज़त यहाँ।।

मंगलवार, 27 अक्टूबर 2020

कुम्भी बैस कहलाने वाले कुम्भी जाति का मूल निवास स्थान



वैज्ञानिकों का दावा है कि अफ्रीका की जाम्बेजी (कुम्भी) नदी के दक्षिणी क्षेत्र में दो लाख साल पहले रहते थे होमो सैपियंस। 

आधुनिक मानव की उत्पत्ति कहाँ हुई  इसे लेकर अभी तक कई दावे किए जा चुके हैं। लेकिन सटीक स्थल का पता अभी तक नहीं चला है। वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि जम्बेजी नदी के किनारे उत्तरी बोत्सवाना में दो लाख वर्ष पहले आधुनिक मानव की उत्पत्ति हुई थी। यह मनुष्य के पूर्वजों की भूमि के बारे में सबसे अहम दावा है।

लम्बे समय से माना जा रहा है कि आधुनिक मानव! होमो सैपियंस की उत्पत्ति अफ्रीका में हुई थी। वैज्ञानिक अभी तक यह बताने में असमर्थ हैं कि हमारी प्रजाति की असली उत्पत्ति स्थल कहाँ है। वैज्ञानिकों के अंतरराष्ट्रीय दल ने नामीबिया और बोत्सवाना सहित जाम्बिया और जिम्बाब्वे में खोएसान कहलाने वाले 200 अफ्रीकी लोगों के डीएनए सैंपल लेकर परीक्षण किये थे। जिसका परीक्षण करने के बाद इतिहासकारों ने इस बात को स्वीकार किया कि यह क्षेत्र जातीय समूह एल. के रूप में ज्ञात डीएनए की शाखा के बहुत बड़े हिस्सा के लिए जाना जाता है।  इसके बाद वैज्ञानिकों ने डीएनए सैम्पल का भौगोलिक वितरण, पुरातात्विक और जलवायु परिवर्तन के आंकड़ों के साथ मिलान किया। तब जाकर सामने आए परिणाम के आधार पर वैज्ञानिकों ने बोत्सवाना में जाम्बेजी नदी के दक्षिणी क्षेत्र में दो लाख साल पहले की अवधि का पता लगाया। 

हो भी सकता है कि जम्बेजी नदी के आस-पास के क्षेत्रों सम्पन्न सभ्यताओं वाले खोएसान जातियों का प्रादुर्भाव २००००० (दो लाख) साल पहले हुआ हो। ऐसे भी वैदिक ग्रन्थों में ग्रह, उपग्रह, नक्षत्र, राशि, अस्त्र, शस्त्र, यान, विमान, औषधी, उपकरण तथा शल्य चिकित्सा तक की सूक्ष्म जानकारी देने वाले जिन ग्रन्थों से सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण तक की अवधि की सटिक जानकारी हमें आज तक मिलती है, उन ग्रन्थों के रचना काल के समय हमारा विज्ञान आज के वैज्ञानिकों की कल्पना से भी अधिक विकसित सभ्यता वाला हो। गायत्री मन्त्र के द्रष्टा कौशिक विश्वामित्र भगवान द्वारा रचित ऋग्वेद में श्रृष्टि की आयु सहस्त्र कोटी युग बताया गया है। जिसे हम आज भी गायत्री स्तवन मन्त्र का जप करते हुए बोलते हैं - 

"ॐ नमोऽस्तवनन्ताय सहस्त्रमूर्तये, सहस्त्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे।

सहस्त्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटीयुगधारिणे नमः।।" 

विदित हो कि नामीबिया और जाम्बिया के पास रहने वाले खोएसान जाति के जिन २०० लोगों के शोधकर्ताओं ने डीएनए लिये थे, वे लोग कुशान या कौशिकायन नामक जातिय समुह के ही लोग हैं। यह जाति हरिवंश पुराण में वर्णित बलकाश्व नन्दन कुश के वंशज़ों की जाति है। चन्द्रवंश में उत्पन्न कुश नामक राजा के पुत्रों कुशिक, कुशनाभ, कुशाम्ब और मूर्तिमान के वंशज़ ही अफ्रीकी देशों में खोएसान तो पूर्वोत्तर भारत में कुशान और कुषाण के नाम से विख्यात हुए। इसी वंश में उत्पन्न राजा कुशिक के पुत्र गाधि जो तीनों लोकों के राजा होने के कारण महेन्द्र गाधि भी कहलाते थे ये कौशिक गाधि और मघवा के नाम से भी विख्यात थे। कौशिक गाधि के इकलौते पुत्र विश्वामित्र भगवान भी राजा कुशिक के वंशज़ होने के कारण कौशिक विश्वामित्र के नाम से विख्यात हुए। अफ्रीकी लोक कथाओं के अनुसार दक्षिणी सूडान पहले कुश देश का राजधानी कहलाता था। यह देश इतने विशाल भौगोलिक क्षेत्र में फैला हुआ था कि हरिवंश पुराण में वर्णित राजा रेचक के द्वारा छोड़े हुए जिस जन शुन्य द्वीप पर वासुदेव कृष्ण के द्वारा द्वारका बसाने की चर्चा की गई है, उस द्वीप को कुश देश के पूर्वी सीमा पर स्थित द्वीप बताया गया है। अर्थात इरान सहित सम्पूर्ण अरबी देश भी कुश देश का ही भाग था। खोएसान कहलाने वाले कुश के वंशज़ों का यह जातीय समूह आज भी दक्षिण अफ्रीका के नामीबिया, जिम्बाब्वे, जाम्बिया, तंज़ानिया और केन्या तथा उत्तरी अफ्रीका के मोरक्को (मॉरिटानिया), अल्जीरिया, सुडान, मिश्र (इजिप्ट) और माली में रहता है। लेकिन दक्षिण अफ्रीकी देशों में इस जाति की अच्छी आबादी है। जिस समय उन देशों पर विश्व की सबसे सम्पन्न सभ्यता फल-फूल रही थी उस समय अफ्रीका और अरब की धरती आज की तरह रेगिस्तान और उजाड़ नहीं थी बल्कि हरी-भरी और वन-उपवन से आच्छादित थी। 


कौन हैं कुम्भी बैस : 

जाम्बिया, ज़िम्बाब्वे और मोज़ाम्बिक के स्थानीय लोगों में प्रचलित लोक कथाओं के अनुसार जम्बेजी नदी के नाम से विख्यात नदी पहले कौम्ब (Coumb) नदी कहलाती थी। इसी नदी के किनारे रहने वाले मूल निवासी विभिन्न दिशाओं में जाकर बसने के बाद कौम्बे बैस और कुम्भी बैस कहलाये। सम्भवतः पौराणिक ग्रंथों में वर्णित प्रजापति कुम्भ और बाणासुर के महामन्त्री कुम्भाण्ड के नाम पर ही मेरूगिरी के दक्षिणी दिशा में स्थित कुम्भी नदी ही अफ्रीकी लोगों में जम्बेजी नदी के नाम से विख्यात वह नदी है जिसका प्राचीन नाम वहाँ के स्थानीय लोग कॉम्बै नदी बतलाते हैं। 


आधुनिक मनुष्यों का उद्गम स्थल :

इस अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने एक आनुवांशिक मैप बनाया। इसमें दिखाया गया था कि प्रागैतिहासिक मानव लगभग 70,000 वर्षों तक इस क्षेत्र में रहते थे और 1,30, 000 साल पहले उन्होंने चरम मौसमी आपदाओं के चलते मजबूरन दुनियाँ के दूसरे हिस्सों में फैलना शुरू कर दिये थे। बाइबिल, कुरआन और इसकी रचना से हजारों वर्ष पहले रचित पौराणिक कथाओं में वर्णित जल प्रलय और अग्नि की वर्षा का प्रसंग वैज्ञानिकों के इस दावे को प्रमाणित करता है। यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी और गार्सन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च के वेनेसा हेस ने कहा, ‘हम जानते हैं कि आधुनिक मनुष्यों की उत्पत्ति लगभग दो लाख साल पहले अफ्रीका में हुई थी। लेकिन हमें यह नहीं पता कि उनके वास्तविक आवास किस स्थान पर हैं।’ 


वेदों से पता किये आधुनिक मनुष्यों का उद्गम स्थल :

आधुनिक मनुष्यों के उद्गम स्थल के बारे में स्वामी सत्यानन्द दास के नाम से विख्यात कौशिक गोत्रीय राजवंश के वंशज और कौशिक कंसल्टेंसी इंटेलिजेंस ब्यूरो के निदेशक प्रसेनजित सिंह का दावा है कि हरिवंश पुराण में वर्णित द्वारका से शोणितपुर में स्थित बाण नगर जाने के दौरान कृष्ण को दूर से ही आग उगलने वाले पर्वतों से घिरा हुआ मेरूगिरी दिखाई दिया था। जम्बू के वनों से घिरे हुए जिस मेरूगिरी पर प्रजापति कुम्भ का वास कहा गया है, उसके चारों ओर सवर्ण कणों से युक्त जलधारा बहने का प्रसंग वेद व्यास कृत महाभारत नामक ग्रंथ में किया गया है। बाणासुर की उषा नामक जिस बेटी ने कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध का हरण करवाया था, उसके नाम पर मेरूगिरी के दक्षिणी दिशा में आरूषा नामक नदी का होना तथा कुम्भ में रह कर देवी गङ्गा के द्वारा शिवपुत्र कार्तिकेय को जन्म देने का पौराणिक प्रसंग की सच्चाई को आरूषा नदी के पास ही स्थित गङ्गा नदी का भी होना यह प्रमाणित करता है कि अफ्रीका के मध्यपूर्वी भाग में ही प्रथम मानव सभ्यता का विकास हुआ था। पौराणिक कथाओं में वर्णित शोणितपुर नामक प्रदेश के नाम पर स्थित शोणघर नामक एक प्रागैतिहासिक स्थान आरूषा नदी और मेरूगिरी के पश्चिमी दिशा में स्थित है। भारत में रहने वाले कुम्भी बैसों में प्रचलित उनकी कुल देवी बन्दी मइया! अम्बिका भवानी और जमबाई माता के नाम से भी पहचानी जाती हैं जबकि जाम्बिया, मोज़ाम्बिक और जिम्बाब्वे में प्रवाहित होने वाली जो जम्बेजी नदी अफ्रीकी लोक कथाओं के अनुसार पहले कम्बौ नदी कहलाती थी, उससे भारत सहित विश्व के विभिन्न देशों में बसे कुम्भी बैस कहलाने वाले मानव समुदाय से गहरा नाता है। केन्या में माउण्ट मेरू के नाम से विख्यात मेरूगिरी के दक्षिणी दिशा में प्रवाहित आरूषा नदी का नामकरण आर्य और उषा के योग से प्रतीत होता है। चुकी आर्य समाज का अर्थ मूल समाज होता है। अतः आरूषा नदी के अर्थ के आधार पर मध्यपूर्वी अफ्रीकी क्षेत्र भी आर्यों का मूल निवास स्थान है। 


झीलों के किनारे रहते थे आधुनिक मानव :

शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन में उसे क्षेत्र का पता लगाने का दावा किया है। उन्होंने कहा, ‘इस क्षेत्र को मैकगादिकगाडी-ओकवाङ्गो कहा जाता था, जहाँ बड़े पैमाने पर झीलें थीं। यह क्षेत्र आधुनिक विक्टोरिया झील के नाम से विख्यात कुम्भी झील का लगभग दोगुना था और यहाँ आज बहुत बड़ा रेगिस्तान है।


ऐसे हुआ आबादी का विभाजन :

नेचर जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, लगभग दो लाख साल पहले भूगर्भिक प्लेटों के खिसकने से यह झील टूट गई थी, जिसके बाद यहाँ एक बहुत बड़ा वेटलैंड बन गया था। शोधकर्ताओं ने कहा कि इस क्षेत्र में न केवल मानव रहते थे बल्कि शेर और जिराफ जैसे कई अन्य जीवों के लिए भी यह सबसे उपयुक्त जगह थी। इसके 70 हजार वर्षों बाद पहली बार आनुवांशिक विभाजन शुरू हुआ और कुम्भी बैस कहलाने वाले कौशिकों का एक समूह उत्तर-पूर्व की ओर हिमालयी क्षेत्र में जाकर कम्बोज़ नामक साम्राज्य को स्थापित किया था। इसके 20 हजार साल बाद हिमालयी क्षेत्र में बसने वाले आधुनिक मनुष्यों का एक समूह दक्षिण की ओर बढ़ते हुए नर्मदा, गोदावरी और कृष्णा आदि नदियों के आसपास जाकर बस गया था। शिव पुराण में वर्णित है कि नर्मदा नदी के किनारे स्थित नर्मपुर नामक गाँव की नागवंशी कन्या चक्षुस्मति से कौशिक विश्वामित्र भगवान ने विवाह किया था और उनसे उत्पन्न पुत्र अग्निदेव! गृहपति के रूप में भी विख्यात हुए थे। प्रजापति कुम्भ और देवी सरस्वती की बेटियां स्वाहा, स्वधा और विशाखा से विवाह करने के बाद अग्निदेव! अपने ससुर के लोक कुम्भलोक में ही उनकी बेटी को खोइंछा में दी गई भूमि पर ही वस गये थे। जिसके कारण अग्निदेव के बेटे सरवा, विसरवा और नैगमेय के वंशज़ कुम्भी बैस कहलाये। सरवा के वंशज़ भगवती स्वाहा की सन्तान होने के कारण सरवाह, सरवाहन और स्वाहिया भी कहलाते हैं। अफ्रीका में आज भी रहने वाले कौशिक गोत्रीय अग्निवंशियों की मुख्य भाषा स्वाहिली कहलाती है तो उनकी जाति खोएसान कहलाती है। इसी तरह 650 ईसापूर्व तक कुश देश में ही स्थित मिश्र में रहने वाले लोगों को बाइबिल नामक ग्रन्थ में  यहोवा द्वारा कनानी, हित्ति और गिर्गिशियों को कसदिओं के उर नगर से मुक्त करवाने की जो कहानी वर्णित है उसके अनुसार कौशिक विश्वामित्र भगवान और उनके पिता कौशिक गाधी के पूर्वज़ बलकाश्व नन्दन प्रजापति कुश के नाम पर उनके वंशज़ों को Kushdeo का अपभ्रंशित नाम कसदियों कहा गया है। बाइबिल के पृष्ठ संख्या 534 के नहेमायाह 8:10 नामक अध्याय की आयत संख्या 9:7 में स्पष्ट लिखा है - "मिश्र में रहने वाले कसदियों (Kushdeo) के उर नगर से यहोवा ने अब्राम को चुन कर फीरोन की बन्धुआगिरी से बाहर निकाला और उन्हें इब्राहिम नाम दिया। तूने मिश्र में हमारे पूर्वज़ों के दुःख पर दृष्टि डाली और कनानियों, हित्तियों, गिर्गिशियों को उनके पूर्वज़ों के देश पर अधिकार सौंपने का वचन दिया गया।... तूने वचन पूरा भी किया। इसलिए तू वाकई में महान है।" यह प्रार्थना फीरौन की बनधुआगिरी से मुक्त होकर इस्राइल जा पहुंचे लोगों के द्वारा किया गया है। बाइबिल के इस आयत से भगवान चन्द्रदेव के पौत्र पुरुरवा की उर्वशी नामक पत्नी के निवास स्थान और कसदियों के मिश्र देश की स्थिति स्पष्ट हो जाती है। उर्वशी नामक अप्सरा जिन्हें वैदिक शास्त्रों में उर पुर की वासी कहा गया है, उनका निवास स्थान मिश्र में रहने वाले कसदियों के उर नगर में है अर्थात् उर नगर की मूल भूमि मिश्र मे है। जबकि आधुनिक समाज के इतिहासकारों के द्वारा उर नगर को सउदी अरब में दिखलाया जाता है। जिसका अर्थ है कि सउदी अरब भी पहले कुशिक साम्राज्य या मिश्र का ही अंग था।  

बाद में इन्हीं वंशज़ों के द्वारा सौराष्ट्र के पावागढ़ के पास खोदी गई नदी विश्वामित्री नदी और बहुत बाद में इसी वंश में उत्पन्न मद्र देशीय लोगों से आबाद मद्रास में भी स्थित एक नदी कौशिक नदी कहलायी।

शोध एवम् प्रकाशन : 

Kaushik Consultancy Intelligence Bureau 

सम्पादन : प्रसेनजीत सिंह

http://www.facebook.com/swamiprasenjeet 

सौजन्य : संजय पोखरियाल, एएफपी, पेरिस

कुम्भ पूजा क्यों होता है देवी-देवताओं से पहले

✍️By प्रसेनजित सिंह




हिंदू धर्म में ऐसे बहुत से देवी-देवता हैं जिनकी लोग पूजा-अर्चना करते हैं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश को त्रिदेवों के रूप में जाना जाता है। ब्रह्मा जी को संसार के रचियता माना गया है, तो वहीं भगवान विष्णु को पालनहार और भोलेनाथ को संहारक माना गया है। इस पृथ्वी पर भगवान विष्णु और शिव के बहुत से मन्दिर और मन्दिरों के अवशेष देखने को मिलते हैं। लेकिन ब्रह्मा जी के मन्दिर पूरे संसार में केवल 3 ही हैं। उनमें से भी दक्षिणी भारत और थाईलैण्ड में स्थित ब्रह्मा के मन्दिर आदि ब्रह्मा का मन्दिर नहीं है बल्कि ताड़कासुर के द्वारा ब्रह्मा के पद पर आरूढ़ किये गये प्रह्लाद नन्दन कुम्भ के मन्दिर हैं। विदित हो कि हिरण्यकशिपु नन्दन प्रह्लाद के तीन पुत्रों वीरोचन, कुम्भ और निकुम्भ में से दैत्य राज प्रह्लाद के द्वारा वीरोचन को दैत्यों का अधिपति बनाया गया था, जबकि उनके छोटे भाई कुम्भ को महामंत्री और निकुम्भ सेनापति का पद दिया गया था। जबकि दितिनन्दन वज्राङ्ग की पत्नी वाराङ्गी के गर्भ से उत्पन्न ताड़क ने श्री बड़ी देवी के नाम से विख्यात दिती परमेश्वरी के आग्रह पर उन्हें और उनकी माता को भी अपमानित करने वाले इन्द्र का दमन करने का संकल्प लेकर पारिजात पर्वत पर जाकर कठोर तपस्या किये थे। अपनी तपस्या से शिवजी को प्रसन्न कर के करोड़ों वर्षों तक तीनों लोकों पर राज करने का वरदान पाने के बाद इन्द्र को परास्त कर के तीनों लोकों पर धर्म पूर्वक राज करने लगे थे।

वर्तमान में भारतीय राज्य उड़ीसा में जिस स्थान पर महानदी समुद्र में मिलती है, उसी संगम स्थल पर वाराङ्गी नन्दन तारकासुर अपनी राजधानी बना कर रहने लगे। वे अपने सहयोगियों को उनके सामर्थ्य के अनुसार जिस समय पद और अधिकार दे रहे थे, उसी समय प्रह्लाद नन्दन महात्मा कुम्भ को ब्रह्मा के पद पर प्रतिष्ठित किया गया था। ब्रह्मा जी के पद पर प्रतिष्ठित कुम्भ की नीतियों के कारण तारक ने बन्दीगृह से सभी देवताओं को मुक्त कर दिया था। उनके राज्य में उनकी माता को अपमानित करने वाले इन्द्र और उसे उकसाने वाले देवों के अतिरिक्त कोई दुखी नहीं था। जबकि कुम्भ के द्वारा सबको समान रूप से आदर देने के कारण ये सब के प्रिय बने और देवों के लिए भी पूजनीय बने। प्रजापति कुम्भ के पूर्वज़ विराज भगवान के नाम से विख्यात ब्रह्मा जी स्वार्थ के लिए छल, और झूठ का सहारा लेने के कारण एक बार भगवान शिव के द्वारा और एक बार अपनी अर्धांगनी सावित्री देवी के द्वारा भी शापित होने के कारण भी प्रजापति कुम्भ की तरह नहीं पू़जे जाते हैं। इनकी विस्तृत कथा शिव पुराण और हरिवंश पुराण आदि ग्रन्थों में पढ़ सकते हैं। 

कई लोगों के मन में यह सवाल जरूर उठता है कि आखिर जिसने इस संसार की रचना की उनका मन्दिर सिर्फ़ पुष्कर में ही क्यों है? शिव, विष्णु, अग्निदेव, वरूण, इन्द्र, मित्र और पवन आदि देवों की तरह इनकी पूजा क्यों नहीं होती है? अगर आप लोग भी इसके बारे में अञ्जान हैं तो हम आपको इसके पीछे की पौराणिक कथा के बारे में बताते हैं। 

पुराणों के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी ने पृथ्वी की भलाई के लिए यज्ञ का विचार किया और यज्ञ की जगह का चुनाव करने के लिए उन्होंने आकाश से ही अपने एक कमल को पृथ्वी लोक में भेजा और जिस स्थान पर वह कमल गिरा, उसी जगह को यज्ञ के लिए उचित जगह समझ कर यज्ञशाला बनवाने लगे। किवदिंतियों के अनुसार जिस जगह उनका ब्रह्मकमल गिरा था, उसी जगह पर ब्रह्मा जी का मंदिर बना दिया गया और वह स्थान आज भी राजस्थान के पुष्कर शहर में है। कहा जाता है कि जहाँ पर वह पुष्प गिरा था वहाँ एक तालाब बन गया था। उस तालाब के किनारे यज्ञ करने के लिए ब्रह्मा जी पुष्कर पहुंच गए, लेकिन उनकी पत्नी सावित्री नहीं पहुंचीं। यज्ञ स्थल पर सभी देवी-देवता पहुंच चुके थे, लेकिन देवी सावित्री का कुछ पता नहीं था। उनका इन्तजार करते-करते जब लोगों ने देखा कि यज्ञ अनुष्ठान के लिए निर्धारित शुभ मुहूर्त का समय बीतता जा रहा है तब कोई उपाय न देखकर ब्रह्मा जी ने देवी नन्दिनी गाय के मुख से उत्पन्न गायत्री को प्रकट किये और उनसे विवाह कर यज्ञ अनुष्ठान शुरू कर दिये। इस 

यज्ञ आरम्भ होने के कुछ समय बाद देवी सावित्री यज्ञ स्थल पर पहुंचीं तो वहां ब्रह्मा जी के बगल में किसी और स्त्री को बैठे देख कर वे क्रोधित हो गईं। गुस्से में उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दे दिया और कहा कि जाओ इस पृथ्वी लोक में तुम्हारी कहीं पूजा नहीं होगी। हालांकि बाद में जब उनका गुस्सा शांत हुआ और देवताओं ने उनसे श्राप वापस लेने की प्रार्थना की तो उन्होंने कहा कि मैं अपने श्राप वापस तो नहीं ले सकती मगर धरती पर सिर्फ़ इस पुष्कर में ही ब्रह्मा जी की पूजा होगी। इसके अलावा जो कोई भी आपका दूसरा मंदिर बनाएगा, उसका विनाश हो जाएगा। तब से ब्रह्मा जी का मन्दिर कोई नहीं बनाता है। जबकि इस घटना के बाद ताड़कासुर के द्वारा ब्रह्मा के पद पर प्रतिष्ठित कुम्भ की पूजा घर-घर में की जाती है। 

ब्रह्मा के पद पर आरूढ़ प्रजापति कुम्भ ने सरस्वती देवी के अंश से उत्पन्न अपनी तीन पुत्रियों स्वाहा, स्वधा और वषट् का विवाह कौशिक विश्वामित्र नन्दन भगवान अग्निदेव के साथ करने के बाद अग्निदेव को ही यज्ञ भाग का मुख्य अधिकारी बना दिया था। नर्मपुर वासिनी नागकन्या देवी चक्षुस्मति के गर्भ से उत्पन्न कौशिक नन्दन अग्निदेव की पत्नियों स्वाहा से उन्होंने स्वाहाकार अग्नि, स्वधा से स्वधाकार अग्नियों और वषट् से वषटाकार अग्नियों (अध्याय २२, श्लोक संख्या ३०-३३, श्री महाभारते खिलभागे) को उत्पन्न कर सम्पूर्ण जगत में होने वाले यज्ञों के लिए प्राप्त पोषक तत्वों से देवी-देवताओं का भी पोषण करने लगे और देव-दानव, सुर-असुर सब को एक ही वंश से उत्पन्न होने के कारण समान भाव से व्यवहार करते हुए तीनों लोकों पर राज करने लगे। बाद में रूद्र आदि देवों का जन्म भी इन्हीं अग्निदेव के वंश में कुम्भी माताओं के गर्भ से हुआ था। इसके कारण अग्निदेव के वंश में उत्पन्न रूद्रों के वंशज़ कुम्भी बैस और कुम्भरार कहलाये। विदित हो कि लोक तंत्र की जननी कहलाने वाली भूमि पर स्थित बिहार की वर्तमान राजधानी पटना में आज भी कुम्हरार नामक ग्राम स्थित है। यहाँ पर कुम्भी बैस वंशीय राज परिवार में ही उत्पन्न सम्राट अशोक की राजधानी स्थित थी, जिसका भग्नावशेष आज भी स्थित है।


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किसके वंशज़ हैं कुम्भी बैस कहलाने वाले सूर्यवंशी? 

कुम्भी बैस कहलाने वाले कौशिक गोत्रीय लोगों के बारे में एक और कथा प्रचलित है। इसके अनुसार खुद को कुम्भी बैस कहने वाले वैसे समुदाय के लोग भी हैं जो अपना गोत्र कौशिक तो बताते हैं, लेकिन खुद को कौशिक विश्वामित्र भगवान की तरह चन्द्रवंशी कहने के बजाए सूर्यवंशी बताते हैं। जबकि कश्यप वंशीय जिस प्रजापति कुम्भ से सम्बन्धित होने के कारण लोग कुम्भी कहलाते हैं उनसे या चन्द्रवंश में उत्पन्न कौशिक विश्वामित्र भगवान में से कोई भी सूर्यवंशी नहीं हैं। इसके बावजूद किसके वंशज़ हैं वे लोग जो अपने वंश की पहचान सूर्य, चन्द्र और कश्यप वंशीय प्रजापति कुम्भ से सम्बन्धित कुम्भी बैस के रूप में देते हैं? 

सुमेरु की पुत्री भगवती गङ्गा जो अपने पितृ लोक से ज्यादा मेरूगिरी पर स्थित प्रजापति कुम्भ के लोक में निवास करती थीं, इनका पृथ्वी लोक पर अवतरण की कथा सुनाते हुए कौशिक विश्वामित्र भगवान ने दशरथनन्दन श्रीराम चन्द्र जी को सूर्यवंशी राजा सगर पुत्रों के कुम्भी बैस कहलाने का प्रसंग विस्तार से बताये थे। उन्होंने गङ्गा अवतरन की कथा इस प्रकार सुनाना आरम्भ किया- “पर्वतराज हिमालय की अत्यंत रूपवती, लावण्यमयी एवं सर्वगुण सम्पन्न दो कन्याएँ थीं। हिमवान सुमेरु पर्वत की पुत्री मैना इन कन्याओं की माता थीं। हिमालय की बड़ी पुत्री का नाम गंगा और छोटी पुत्री का नाम उमा था। गंगा अत्यन्त प्रभावशाली और असाधारण दैवीक गुणों से सम्पन्न थी। वह किसी बन्धन को स्वीकार न कर स्वछन्द होकर विचरण करने वाली थीं और निर्भय होकर मनमाने मार्गों का अनुसरण करते हुए सर्वत्र विचरण करती रहती थी। उनकी इस असाधारण प्रतिभा से प्रभावित होकर देव लोग विश्व कल्याण की कामना से उन्हें हिमालय से माँग कर अपने साथ स्वर्ग लोक में ले गये। जबकि पर्वतराज की दूसरी कन्या उमा जो बड़ी तपस्विनी थी, उन्होंने कठोर तप करके महादेव जी को वर रूप में प्राप्त किया।”


कौशिक विश्वामित्र जी के इतना कहते ही दशरथ नन्दन राम ने पूछा, “हे भगवन्! जब गंगा को देव लोग अपने सुर लोक ले गये, तो वह पृथ्वी पर कैसे अवतरित हुई और गंगा को त्रिपथगा क्यों कहते हैं?” इस पर ऋषि विश्वामित्र ने बताया, “महादेव जी का विवाह तो उमा के साथ हो गया था किन्तु सौ वर्ष बीतने पर भी जब भगवती उमा किसी सन्तान की उत्पत्ति नहीं कर पाई। तब शिव पुत्र कार्तिकेय के द्वारा तारकासुर का वध होने के बाद ही स्वर्ग लोक में देवों के पुनर्स्थापित होने की भविष्यवाणी जानने वाले देवेन्द्र ने काफी समय बीतने पर भी कार्य सिद्ध नहीं होते देख, तारकासुर के वध के लिए सुयोग्य वीर का शिव पुत्र के रूप में जन्म लेने की कामना लेकर देवगण ब्रम्हा जी से प्रार्थना करने लगे। उनकी प्रेरणा से काम देव को यह जिम्मेदारी सौंपी गई। जिसके कारण वर्षों बाद महादेव शिव जी के मन में भी सन्तान उत्पन्न करने का विचार आया। लेकिन उमा के साथ विहार करते हुए जब काफी समय व्यतीत होने पर भी देवताओं को अपना अभिष्ट कार्य सम्पन्न होता हुआ नहीं दिखाई पडा़, तो वे चिन्तातुर होकर इन्द्र ने कौशिक विश्वामित्र भगवान की भार्या चक्षुष्मति नन्दन अग्नि देव से कहा कि तुम चतुरता से शिव जी के पास जाकर देखो की वे क्या कर रहे हैं। इस पर भगवान अग्नि देव! कपोत का रूप धारण कर के जैसे ही शिवजी की गुफा में पहुंचे ब्रम्हा, विष्णु और सभी देव गण भी शिव जी की गुफा के सामने स्थित उस वटवृक्ष के पास पहुंच गए, जिसके नीचे शिव जी अक्सर विश्राम करते थे। लेकिन वहाँ अग्निदेव या शिव जी को न देख कर सदाशिव के भवन के द्वार पर गए और उन्हें उच्च स्वर में पुकारे। इस पर शिव जी के गणों ने बताया कि वे काफी समय से गिरिजा जी के पास हैं। तब देवों ने तारकासुर के वध के लिए महादेव शिव के अंश से सुयोग्य वीर के जन्म की कामना से ब्रह्मा जी के साथ विचार करने लगे कि संसार में ऐसी कौन नारी है जो अमित तेजस्वी सदाशिव के तेज को सम्भाल सकता है? उन्होंने अपनी इस शंका को शिव जी के सम्मुख प्रस्तुत करने के लिए अत्यंत आतुर होकर जब महादेव को फिर से पुकारा। तब भक्ति के अधीन रहने वाले शिव जी भगवती गिरजा से विमुख होकर भक्तों के सामने प्रकट हो गये तथा अपने भक्तों के द्वारा यह कहने पर कि आप हमारा अभीष्ट कार्य क्यों नहीं कर रहे? सदाशिव ने कहा कि मैं तुम्हारे ही कार्य में लगा था मगर तुम लोगों के इस तरह अधीर होने से हमारा वीर्य हमारी शैय्या के पास ही गिर गया है। तुम लोगों में से जिसमें क्षमता हो वह उसे धारण कर लो। सदाशिव के इस बात को सुनते ही उस वीर्य की रक्षा करने के लिए विष्णु जी का इशारा पाकर कपोत रूप धारी भगवान अग्नि देव उस वीर्य को अपनी चोंच में धारण कर अपने घर की ओर उड़ गए तथा वशिष्ठ ऋषि की पत्नी देवी अरून्धती के साथ रहने वाली ऋषि पत्नियों में शिव जी के वीर्य को धारण करने के लिए बाँट दिए। ताकि वे शिव पुत्र की माता होने का गौरव पा सकें। लेकिन वे उसके ताप को नहीं सह पायीं तब अग्नि देव ने उसे हिमवान नन्दिनी भगवती उमा की बड़ी बहन देवी गंगा के गर्भ में डाल दिया। समय आने पर भगवती गंगा व्याकुल होकर कुम्भ में चली गई और बड़े जोर से नाद करते हुए सरपत के ढेर पर एक बालक के रूप में कुमार कार्तिकेय को जन्म दिया। देवताओं के द्वारा विहार में बाधा पड़ने से जब उमा शिव पुत्र की माता बनने से वंचित हो गयी तो उन्होंने क्रुद्ध होकर देवताओं को शाप दे दिया कि मुझे गर्भ से वंचित करने वालों! तुम्हीं गर्भ धारण करो और जब वीर्य को मुख में धारण कर ही लिए तो अब से भक्ष्य-अभक्ष्य सभी चीजें खाया करो। भगवती उमा से शापित होते ही गर्भ धारण कर के संसार में लज्जित होने लगे जिससे शिव कृपा से ही उन्हें मुक्ति मिली। इसी बीच सुरलोक में विचरण करती हुई भगवती गंगा से उमा की भेंट हुई। गंगा ने उमा से कहा कि मुझे सुरलोक में विचरण करते हुये बहुत दिन हो गये हैं। मेरी इच्छा है कि मैं अपनी मातृभूमि पृथ्वी पर विचरण करूँ। इस पर उमा ने गंगा को आश्वासन दिया कि मैं इसके लिये कोई उपाय करती हूँ।


पृथ्वी पर भगवती गङ्गा के अवतरण की यह कथा सुनाते हुए विश्वामित्र जी ने दशरथ नन्दन राम से कहा कि “वत्स राम! तुम्हारी ही अयोध्यापुरी में सगर नाम के एक राजा थे। उनके पिता का नाम बाहु और माता का नाम नन्दिनी था। शत्भिषा नक्षत्र और कुम्भ राशि में जन्में महाराजा सगर को कोई पुत्र नहीं था। सगर की पटरानी केशिनी विदर्भ प्रान्त के राजा की पुत्री थी। केशिनी सुन्दर, धर्मात्मा और सत्यपरायण थी। सगर की दूसरी रानी का नाम सुमति था, जो भगवान नेमिनाथ के नाम से विख्यात राजा अरिष्टनेमि की कन्या थी। दोनों रानियों को लेकर महाराज सगर हिमालय के भृगुप्रस्रवण नामक प्रान्त में जाकर पुत्र प्राप्ति के लिये तप करने लगे। उनके तप से प्रसन्न होकर महर्षि भृगु ने उन्हें वर दिया कि तुम्हें बहुत से पुत्रों की प्राप्ति होगी। दोनों रानियों में से एक का केवल एक ही पुत्र होगा जो कि वंश को बढ़ायेगा और दूसरी को साठ हजार पुत्र होंगे। कौन सी रानी कितने पुत्र चाहती है इसका निर्णय वे स्वयं आपस में मिलकर कर लें। केशिनी ने वंश को बढ़ाने वाले एक पुत्र की कामना की तथा राजा विश्वजीत और राजा रक्तमबोज़ की बहन सुमति ने साठ हजार बलवान पुत्रों की।


दसवें महीने में रानी केशिनी ने असमंजस नामक पुत्र को जन्म दिया। जबकि रानी सुमति के गर्भ से एक तूम्बीनुमा माँस पिण्ड निकला। जिससे जीरे के आकार के छोटे-छोटे साठ हजार भ्रूण निकले। उन सबका पालन-पोषण घी से भरे हुए साठ हजार कुम्भ में रखकर सावधानी पूर्वक किया गया। असमंजस के जन्म लेने के आठ महीनों के बाद कुम्भ में पल रहे सभी साठ हजार पुत्रों ने भी अपना शरीर पाकर जन्म लिया और असमंजस के साथ पलते हुए सभी राजकुमार युवा हो गये। अपेक्षाकृत महाराजा सगर के कुम्भी पुत्रों से आठ माह ज्येष्ठ पुत्र असमंजस बड़ा दुराचारी था और उसे नगर के बालकों को सरयू नदी में फेंक कर डूबते हुये देखने में बड़ा आनन्द आता था। इस दुराचारी पुत्र से दुःखी होकर सगर ने उसे अपने राज्य से निर्वासित कर दिया। असमंजस के अंशुमान नाम का एक पुत्र था। अंशुमान अत्यंत सदाचारी और पराक्रमी था। एक दिन राजा सगर के मन में अश्वमेघ यज्ञ करवाने का विचार आया। यद्यपि वे अपने ज्येष्ठ पुत्र का परित्याग करने से दुःखी तो थे ही, मगर अपने साठ हजार पुत्रों की सहायता से उन्होंने शीघ्र ही अपने इस विचार को कार्यरूप में परिणित कर दिया। 


अश्वमेध यज्ञ की चर्चा सुनते ही राम ने ब्रह्मर्षि विश्वामित्र जी से कहा, “गुरुदेव! मेरी रुचि अपने पूर्वज सगर की यज्ञ गाथा को विस्तारपूर्वक सुनने में है। अतः कृपा करके इसे वृतान्त को सुनाइये।” राम के इस निवेदन से प्रसन्न होकर विश्वामित्र जी कहने लगे, ”राजा सगर ने हिमालय और विन्ध्याचल के बीच की हरी-भरी भूमि पर एक विशाल यज्ञ मण्डप का निर्माण करवाया। फिर अश्वमेघ यज्ञ के लिये श्यामकर्ण घोड़ा छोड़कर उसकी रक्षा के लिये पराक्रमी अंशुमान को सेना के साथ उसके पीछे भेज दिया। यज्ञ की सम्भावित सफलता के परिणाम की आशंका से भयभीत होकर इन्द्र ने उस घोड़े को चुरा कर पृथ्वी के आग्नेय कोण में स्थित सागर तट पर समाधिस्थ कपिल भगवान की कुटिया में उस स्थान पर बाँध दिया जहाँ पर वे अपनी समाधि में लीन थे। घोड़े की चोरी की सूचना पाकर सगर ने अपने साठ हजार पुत्रों को आदेश दिया कि घोड़ा चुराने वाले को पकड़कर या मारकर घोड़ा वापस लाओ। अपहृत अश्व की तलाश करते हुए उन्होंने पृथ्वी को चारों दिशाओं में खोद डाला लेकिन घोड़ा नहीं मिला। इस क्रम में जो भी राज्य, नगर व ग्राम आये उन्हें अपहृत अश्व की तलाश करते हुए विजित भी करते गए। इस कार्य से असंख्य पृथ्वी वासी प्राणी मारे गये। खोदते-खोदते वे आकाश-पाताल सबको जीत लिए, मगर अश्व का कहीं पता नहीं चला। तब सगर नन्दन कुम्भी पुत्रों के नृशंस कृत्य की देवताओं ने ब्रह्मा जी से शिकायत की। इस पर ब्रह्मा जी ने देवताओं से कहा कि "ये राजकुमार क्रोध और मद में अन्धे होकर ऐसा कर रहे हैं। पृथ्वी की रक्षा का दायित्व कपिल भगवान पर है। अतः इन्हें रोकने के लिए वे कुछ न कुछ अवश्य करेंगे।" पूरी पृथ्वी को खोदने के बाद भी जब अश्वमेध यज्ञ के लिए छोड़ा गया घोड़ा और उसको चुराने वाले चोर के बारे में कुछ पता नहीं चल पाया तो निराश होकर राजकुमारों ने इसकी सूचना अपने पिता को दी। अपने पुत्रों से अश्व की तलाश करने के लिए किये गये अभियानों के बारे में विस्तार पूर्वक जानने के बाद महाराजा सगर ने अपने पुत्रों को सावधानी पूर्वक सभी वंचित स्थानों में जाकर एक बार फिर से तलाश करने का आदेश दिया। इस पर महाराजा सगर के कुम्भी पुत्रों में से चार पुत्र बर्हकेतु, सुकेतु, धर्मरथ और शूर सहित असमञ्जस नन्दन राजकुमार अंशुमन दरबार में ही रोक कर सभी शेष पुत्रों को तलाशी से वंचित पृथ्वी के आग्नेय कोण में स्थित सागर के तटवर्ती क्षेत्रों में भेजा गया। उस क्षेत्र में स्थित कपिल भगवान के आश्रम में जिस स्थान पर कुम्भी भाईयों ने अपने अपहृत अश्व को बन्धा हुआ देखा वहाँ एक तपस्वी को समाधिस्थ देख इन्द्र देव की चाल से अनभिज्ञ होने के कारण समाधिस्थ कपिल भगवान को ही अश्व की चोरी करने वाला समझ कर उन्हें दुर्वचन कहते हुए मारने के लिए दौड़े। इस पर अश्व की चोरी की घटना से अनभिज्ञ कपिल मुनि की समाधि भंग हो गई और उन्होंने क्रुद्ध होकर सगर के सभी निर्दोष पुत्रों को अपने नेत्र से निकले दिव्य अग्नि की ज्वाला से जला कर भस्म कर दिये। कपिल भगवान की तपोभूमि के पास स्थित जिस जगह पर महाराजा सगर के कुम्भी पुत्रों की अकाल मृत्यु हुई थी, वह जगह कुम्भकोणम के नाम से विख्यात है। 


कपिल आश्रम में हुई इस दुखद घटना की सूचना पाकर महाराजा सगर उस दिव्याग्नि में भष्म होने से बचे चार कुम्भी पुत्रों और असमञ्जस नन्दन अंशुमन को साथ लेकर कपिल भगवान के आश्रम में गये और अपने पुत्रों के द्वारा अनजाने में हुई भूल के लिए क्षमा याचना कर के उन्हें प्रसन्न किये। तत्पश्चात उनके आश्रम से अपने यज्ञ पशु को मुक्त करवा कर अपने यज्ञ को पूरा किये। मगर अकाल मृत्यु के कारण महाराजा सगर के पुत्रों की आत्मा को शान्ति नहीं मिली। वे अपनी मुक्ति के लिए हाहाकार मचाते हुए भटकती रही। उन आत्माओं की शान्ति देने के लिए देवी गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए अभियान चलाया गया और उनके जल प्रवाह के स्पर्श से उन्हें मुक्ति दिलाया जा सका। 


इस तरह महाराजा सगर के साठ हजार कुम्भी पुत्रों में से चार पुत्र नष्ट होने से बच गए थे। विष्णु भक्त होने के कारण सूर्यवंश में उत्पन्न उन्हीं कुम्भी पुत्रों के वंशज कुम्भी बैस कहलाये। 

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यूं तो महाराजा सगर के कुम्भी पुत्रों के वंशज़ सूर्य वंशी हैं, लेकिन ये अपना गोत्र कौशिक बतलाते हैं जो चन्द्र वंश में उत्पन्न कौशिक गाधि के पुत्र थे। मगर इक्ष्वाकु वंशी सगर नन्दन शुर और सत्यव्रत नन्दन हरिश्चंद्र सहित शिवपुत्र कार्तिकेय और प्रह्लाद नन्दन कुम्भ का गोत्र भी कौशिक ही क्यों कहलाता है? क्या कौशिक गोत्रीय कुम्भी बैस राजा सगर के ही वंशज हैं या ताड़कासुर के द्वारा ब्रह्मा के पद पर आरूढ़ किये गये महात्मा कुम्भ के वंशज़ हैं? मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा के वंश में उत्पन्न कुम्भी बैस वंशीय हमारे इस वंश की कुल देवी बन्दी मइया कहलाती हैं। मगर ये कौन हैं? बन्दी मइया किसे कहते हैं? कुम्भी बैस वंशीय लोग बर्हगायां, बरगाही, वारङ्गियन, कछवाहा और ब्राह्मणशाही क्षत्रिय के नाम से भी मशहूर हैं। मगर इसका क्या कारण है? वंश, गोत्र और प्रवर आदि का क्या अर्थ है? ऐसे कई सवालों का जवाब जानने के लिए हमारे संगठन "कौशिक कंसल्टेंसी इंटेलिजेंस ब्यूरो" के द्वारा प्रेषित सन्देशों को देखते रहें तथा पसन्द आने पर हमारे पेज़ को लाइक कर अधिकाधिक लोगों में शेयर करें। 


कुम्भी बैस वंशीय अच्छी लेखकीय क्षमता वाले हिन्दी भाषी लेखकों, कवियों, गीतकारों, शोधकर्ताओं तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं का भारत सरकार से मान्‍यता प्राप्त हमारे संगठन कौशिक कंसल्टेंसी इंटेलिजेंस ब्यूरो (केसीआईबी) की सदस्यता के लिए स्वागत है। हमारे शोध कार्य तथा ऐतिहासिक महत्व के स्थलों के विकास के कार्यों में सहायता करने के लिए इच्छुक समाज सेवियों से इस वंश से सम्बन्धित पौराणिक ग्रंथ, पाण्डूलिपियां, स्वरचित साहित्यिक कृतियां आदि दान सामग्री आमंत्रित है। 


सोमवार, 26 अक्टूबर 2020

मेरा मन यायावर : कविता संग्रह



मेरा मन यायावर (कविता संग्रह)
रचना - प्रसेनजित सिंह उर्फ स्वामी सत्यानन्द


 यूं गुमां न करो (गज़ल)

साथ में हो तो हँस के भी बोलो जरा।

दूर होते किसे कौन याद आएगा।। 

पास में रह के भी दूर रहते हो क्यों। 

मरने के बाद फिर न ये पल आएगा।।

साथ रहते मेरे पर ये मुँह फेर के। 

बूरे पल में तेरे कौन काम आएगा।। 

सोच लो हाल तेरा क्या होगा सनम। 

जब ये दिल भी अचानक ही छोड़ जाएगा।।

तब ही कहता हूँ मैं यूं गुमां न करो।

यह जवानी तो एक दिन ढ़ल जाएगा।।

हर पहर आग बन कर के रहते होते हैं और क्यों? 

वक्त की आँधियों में ये बुझ जाएगा।। 

जी लो हँस कर ये पल जब तलक साथ है।

क्या पता साँस यह कब निकल जाएगा।।

साथ में हो तो हँस के भी बोलो जरा।

दूर होते किसे कौन याद आएगा।। 

- प्रसेनजित सिंह उर्फ स्वामी 


तू भी कर यायावरी (कविता) 

खूब लिखी तूने हसरत, यार हँसने के लिए।

पर शरारत क्यों करेगा, कोई फँसने के लिए।।

वो जमाना अब नहीं, जब शायरों का जोर था।

दिल मचलता था समां तक, हुस्न का तब दौर था।।

अब अन्धेरा छा गया है, दिन में भी रात सा।

कुछ नहीं दिखता है अब, ईमान हो गया खाक सा।।

क्या हँसाऊं यार तुमको, बेदिलों के बीच में।

कैसे कलियों को खिलाऊं, बेबसी के बीच में।।

आइना है वक्त ही यह, खुद पे हँसने के लिए।

मत हँसो बेजा बनो, गम्भीर दुनियाँ के लिए।।

गर तुम्हें अच्छी लगे, मेरी मुकम्मल शायरी।

कुछ नया करने का प्रण ले, तू भी कर यायावरी।


- (उदासी सन्त, कवि, पूर्व पत्रकार और समाजसेवी स्वामी सत्यानन्द दास प्रसेनजीत सिंह महाराज द्वारा रचित कविता संग्रह "मेरा मन यायावर" से उद्धृत) 


मासुम (भारत कविता) 

बहुत मासुम लगती हो।

बहुत परेशान लगती हो।

झलकते आँख के आँसू

तेरे तकलीफ़ कहते हैं।। 

सितम कुछ सह रही लेकिन

नहीं मुँह खोलती तुम हो। 

मगर मैं अश्क से ही हूँ

पकड़ता नब्ज हर दिल का।

भले ही दर्द तुम सह लो

मगर यह छुप नहीं पाती।

किनारा जब नहीं मिलता

है किश्ती डूब यह जाती।। 

मगर विश्वास तुम करना

प्रभू के नाम को जपना।

सभी दुख दूर होंगे ही

नहीं तो याद मुझे करना।।


अपना बनाऊँ किसको 

चुपचाप आके तूने, 

मुझे चादर ओढ़ा दिया। 

सपनों में मैं था खोया।

तूने दिल को चुरा लिया।।


महफिल में जब मैं पूछा, 

तूने बांहें छुरा लिया।

गलियों से जब मैं गुजरा, 

तूने फिर क्यों बुला लिया।।


तेरे दिल में बात क्या थी

कभी तूने नहीं कहा।

पर जो तू चाहती थी 

गजरों ने बता दिया।।


चुपचाप आके तूने

मुझे फिर से जो छुआ।

तेरे अधरों की सुरसुरी ने

मुझे पागल बना दिया।।


पर मैं जान बुझ कर

बेसुध सा पड़ा रहा।

तेरे गेसुओं के बादल 

में गुपचुप छुपा रहा।।


पर जब आँख खोला

तब तुम डर चुकी थी।

पर ज्यों ही मुस्कुराया 

शर्मा के हट चुकी थी।।


पर मैं जिद में अपने

फिर से खो गया था।

ईश्वर का नाम लेकर

भक्ति में रम गया था।। 


इस बात से है देखा

तुम्हें छुप के आहें भरते।

खुली खिड़कियों पे आये

बादल से बातें करते।।


मुझे याद आज भी है

गजरों में तेरा सजना।

मेरा निष्ठुर बन के हटना 

तेरा छुप-छुप कर के रोना।।


पर आज दुःख है इसका

तेरा प्यार पा सका न।

न तो राम को ही पाया

न मुकाम पा सका मैं।।


अब जब हूँ मैं अकेला

मन-मन्दिर ढ़ह गया है।

विश्वास अब रहा न

हर कोई गिर गया है।।


तब दिखता नहीं है कोई

दूर तलक मुझको।

किस पर करूँ भरोसा

अपना बनाऊँ किसको।।

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तू भी कर यायावरी

खूब लिखी तूने हसरत, यार हँसने के लिए।

पर शरारत क्यों करेगा, कोई फँसने के लिए।।

वो जमाना अब नहीं, जब शायरों का जोर था।

दिल मचलता था समां तक, हुस्न का तब दौर था।।

अब अन्धेरा छा गया है, दिन में भी रात सा।

कुछ नहीं दिखता है अब, ईमान हो गया खाक सा।।

क्या हँसाऊं यार तुमको, बेदिलों के बीच में।

कैसे कलियों को खिलाऊं, बेबसी के बीच में।।

आइना है वक्त ही यह, खुद पे हँसने के लिए।

मत हँसो बेजा बनो, गम्भीर दुनियाँ के लिए।।

गर तुम्हें अच्छी लगे, मेरी मुकम्मल शायरी।

कुछ नया करने का प्रण ले, तू भी कर यायावरी।।

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फरियादी

मर चुका इंसान यह जो दिख रहा तस्वीर में। 

मुद्दतों के बाद आया आज है मेरे ख्वाब में।। 

जिंदादिल था यह यहाँ जब दोस्त भी हजार थें। 

पर ये मर कर जब से लौटा स्वप्न भी नाराज़ हैं।।

सो नहीं पाता कभी यह दिन में या रात में।

शून्य में कुछ ढूंढता है डूब कर दिन-रात ये।।

पर यहाँ क्या कर रहा है रूहों का संवादी बन।

पूर्वज़ों को न्याय क्यों दिलवा रहा फरियादी बन।। 

जिस्म से निकला था कल भी पर नहीं ऊपर गया।

वंशज़ों के तन में आकर फिर यहीं पर रुक गया।।

तब ही इसको याद है बीते दिनों की दास्तां। 

तब ही इस जीवन के लोगों से न रखता वास्ता।।

लाख कोशिश कर के भी कोई इसे न डिगा सका।

कारण है इसको है पता मरता नहीं कभी आत्मा।। 


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नये प्रीत का गीत

(09:11:2019 / 12:28 am) 

कोई शिक्वा करूं
तो किससे करूं? 
जब दर्द भी है मेरा 
दर्द दाता भी मेरा।। 
बस यही सोच कर
दर्द को मैंने पी ली।
पर नहीं दिख रहा
कोई सहारा मेरा।।
फिर ये कैसे कहूं? 
दर्द अपना ही है।
जिसने इसको दिया
वो भी अपना ही है।।
ये जो दर्द है मिला
मरने देता नहीं। 
दर्द की टीस से 
जीने देता नहीं।।
ऐसे में क्या करूँ? 
राह दिखता नहीं।
मौन कोने में छुप
दिल सिसकता है क्यूं?
जिसने दर्द दिया
उसको भुला न क्यों?
जो भी सपने था देखा
वो मिटता न क्यों?
अब तो ठाना है दिल से 
भुलाऊँगा सबको।
जो दिल का हो सच्चा
ढूँढ लाऊँगा उसको।। 
जो भी रिश्ते हैं झूठे 
क्यों न उसको भूलूं? 
क्यों न जख्मी दिल पे
मैं मलहम लगा लूं? 
क्यों न उदास दिल को
फिर से जवां बना लूं? 
क्यों दर्द सह रहा हूँ
क्यों खुद को मैं जलाऊं? 
क्यों नहीं प्रीत का फिर
मैं नये गीत गाऊं? 

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मन की वीणा

मन की बतिया कोई न जाने

कही हुई बतिया भी न माने।

ऐसे में क्या करूं बता दे

मन की वीणा कोई बजा दे।। 

सागर के तल सा मैं स्थिर

पर लहरों सा मचल रहा हूँ।

पर ये लहर नहीं मैं क्यों कि

मैं अथाह अविचल सागर हूँ।। 

मैं लेखक हूँ मैं शायर हूँ

मोती मूँगों का गागर हूँ।

फिर भी दुनियाँ मुझे न चाहे

क्योंकि मैं कुम्भी नागर हूँ।। 

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बेवफ़ा

देखा था तुम्हें जिस दिन मैने

समझा था कि तुम बड़ी भोली हो।

तुम हँसी तो हो, नादां भी कुछ 

मनमोहनी और हमजोली हो।

यह सोच के दिल मैं दे बैठा 

तेरे इश्क में पागल होकर मैं। 

पर अब यह सोच के रोता हूँ 

क्या देख के तुम से प्यार किया। 

तुम नादां हो इसको तुम में

मैंने पहले ही देखा था। 

पर जालिम हो और कातिल भी

इस को मैने नहीं समझा था। 

आखिर तुम क्यों मेरे दिल में बस

मन मोह लिया दिल जीत लिया। 

फिर क्या आखिर मजबूरी थी

यह दिल तूने यूं तोड़ दिया।

तुम्हें जहाँ भी रहना वहीं रहो

पर अब ऐसा कुछ मत करना।

वर्ना तेरे कारण नारी पर

फिर से कभी यकीं नहीं होगा।

नहीं इश्क करेंगे कोई कहीं

बर्बाद गुलिस्तां यह होगा।


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जन्म दिन

ये जनम दिन मुबारक तुम्हें हो प्रिय! 

रोज़ दिल में जलाना खुशी के दीये।। 

गर मुकद्दर में मेरा न मिलना लिखा। 

भाव में शब्द बन कर ही आना प्रिय।।

शेर बनना तू मेरी या कविता मेरी।

तुझको गाकर ही खो जाऊँ तुझमे प्रिय।।

मैं हूँ शायर तुम्हारा तू कविता मेरी।

मेरी धड़कन में बस जाओ सरगम प्रिय।।



 फिर से भारत को रचें

घर में बच्चे हैं बिलखते

बस दो रोटी के लिए।

दूध के बदले भात का भी 

मार पीने के लिए।।

पर नहीं मिलता वह भी मुझको 

क्यों कि हम कंगाल हैं।

फिर भी नेता रोज़ है कहता

देश मालामाल है।।

सबकी जेबों में सलाना

आय ऊपर चढ़ रहा है।

उसका ही परिणाम है देखो 

पेट हमारा बढ़ रहा है।।

पर मुझको यह समझ न आता

क्या मैं देश का लाल नहीं? 

गर हूँ भारत वासी तो क्यों 

मेरे जेब में माल नहीं।।

क्यों नहीं दिखता है किसी को

मेरा सबसे बुरा हाल। 

कहने को सवर्ण हैं हम

पर हम हैं सबसे कंगाल।।


घर में जो भी धन थे मेरे

देश के हित में दे दिया।

पर नहीं अब है अन्न भी घर में

देश ने हक सब छीन लिया।। 

अब नहीं है जीने का भी

हक किसी इंसान को।

हर तरफ हैवान है दिखता

सुख मिलता बेईमान को।। 

अब हमारा हाल यही है

कहीं नहीं सम्मान है।

और नहीं कुछ धन बचा है

बस बचा ईमान है।।

देह तो है पर माँस बिना हम 

जीवित एक कंकाल हैं।

आँख धंस कर है समाया

भौं के नीचे माथ में।। 

गाल दोनों मिल रहा है

मुँह में के ताल में।

पेट ये लगता सिल गया है 

जैसे सूखे डाल में।।


फिर भी दर-दर ये मैं कहता

कोई मुझको काम दो।

पर नहीं कोई काम देता

कहता पहले दाम दो।।

जब नहीं कोई काम मिलता

फिर वहीं चल देता हूँ। 

भीख अगर कुछ मिल जाता तो

उससे जान बचाता हूँ।।

क्या यही हम सोच कर के

देश हित सब कुछ लुटाये।

जो भी लाये थे कमा कर

देश के हित के लिए लगायें।।

कितने दुःख को झेल कर के

देश को एक बनाये थें। 

गाँधी की बातों में आकर

धन सारा लुटाए थे।।

पर जिनको हमने ही बढ़ाया

उनसे ऐसा धोखा खाया।

कि है लगता ऐसा अब तो

देश ये अपना बना पराया।।


अब है भारत हाय कैसे 

अपना हम स्वीकार लें।

छिन गया घर-बार सारा

क्या गुलामी मान लें।। 

न रहा रहने को अब घर

न ही खेती की भूमि।

राह के फुटपाथ पर भी

कुछ जगह मिलता नहीं।।

गर कहीं हम गिर पड़े

तब भी नहीं मिलता सहारा।

क्या हमारे राज में था

ऐसा ही बिल्कुल नजारा।। 

मैं समझता हूँ नहीं

किसी राज में बिल्कुल नहीं।

बल्कि सदा रक्षा किये

जन हित में सब अर्पित किये।।

फिर भी हमारा हाल यह क्यों

अब भी हम संज्ञान लें। 

मिल के हम फिर जंग करें एक

फिर से भारत को रचें।।

- प्रसेनजित सिंह उर्फ स्वामी सत्यानन्द दास

 

नए अछूत🦜

हमको देखो हम सवर्ण हैं

भारत माँ के पूत हैं,

लेकिन दुःख है अब भारत में,

हम सब 'नए अछूत' हैं। 


सारे नियम सभी कानूनोंऽ ने,

हमको ही मारा है;

भारत का निर्माता देखो,

अपने घर में हारा है। 

नहीं हमारे लिए नौकरी,

नहीं सीट विद्यालय में;

ना अपनी कोई सुनवाई,

संसद और न्यायालय में। 

हम भविष्य थे भारत माँ के,

आज बने हम भूत हैं;

बेहद दुःख है अब भारत में;

हम सब 'नए अछूत' हैं। 


'दलित' महज़ आरोप लगा दे,

हमें जेल में जाना है;

हम-निर्दोष, नहीं हैं दोषी,

ये सबूत भी लाना है। 

हम जिनको सत्ता में लाये,

छुरा उन्हींने भोंका है,

काले कानूनों की भट्ठी,

में हम सब को झोंका है। 

किसको चुनें, किन्हें जितायें?

सारे ही यमदूत हैं;

बेहद दुःख है अब भारत में;

हम सब 'नए अछूत' हैं। 


प्राण त्यागते हैं सीमा पर,

लड़ कर मरते हम ही हैं;

अपनी मेधा से भारत की,

सेवा करते हम ही हैं। 

हर सवर्ण इस भारत माँ का,

एक अनमोल नगीना है;

अपने तो बच्चे-बच्चे का,

छप्पन इंची सीना है। 

भस्म हमारी महाकाल से,

लिपटी हुई भभूत है;

लेकिन दुःख है अब भारत में,

हम सब 'नए अछूत' हैं। 


देकर खून पसीना अपना,

इस गुलशन को सींचा है;

डूबा देश रसातल में जब,

हमने बाहर खींचा है। 

हमने ही भारत भूमि में,

धर्म-ध्वजा लहराई है;

सोच हमारी नभ को चूमे

बातों में गहराई है। 

हम हैं त्यागी, हम बैरागी,

हम ही तो अवधूत हैं;

बेहद दुःख है अब भारत में,

हम सब 'नए अछूत' हैं।

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🏺विश्वास🏺

अडिग विश्वास जब होगा।

प्रभू का साथ तब होगा।। 

भले दुनियाँ तुम्हें छोड़े।

प्रभु तुमको न छोड़ेंगे।। 

यकीं हो गर नहीं तुमको।

तो देखो कर के तुम भी ये।। 

मगर यह तब ही होगा जब।

उन्हें तुम दिल से चाहोगे।।

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🌺 बेघर का लॉक डाउन 🌺

रहने को कोई घर नहीं 

पर सारा जहाँ हमारा है।

पेट है खालीऽ वदन है नंगा

फिर भी मन मतवारा है।। 🇮🇷


प्रभु रखना नज़र उन पर,

जो महलों के दिवाने हैं।

सलामत रखना उनको तुम,

जो धंधों में सयाने हैं।। 🏠


तू मेरी छोड़ मैं क्या हूँ

मैं बेघर और अनाड़ी हूँ।

तू रखना ख्याल उनका ही

मैं उन सा नहीं खिलाड़ी हूँ।। 🎾


मेरा क्या मैं तो नंगा हूँ

बिमारी में भी चंगा हूँ।

भले ही मैं लगूं मैला 

मगर मन से मैं गंगा हूँ।। 😍


मैं तन्हां हूँ भले लेकिन 

मेरा मन साथ हरदम है।

अगर तन छिन गया तो भी

नहीं मुझको कोई गम है।।🛡️


है मन ही मेरा असली धन

ये जब तक साथ मेरे है।

नहीं मैं हार मानूंगा

तुम्हें हर बार चाहूँगा।


मगर तुमसे है एक विनती

जो मेरी कुछ नहीं सुनते

बस उनके दिल में तुम बस कर

....... *......... *......... *........ 


है जिनको ना कहीं कोई घर

जो अपनों के सताये हैं।

था जिनसे छिन चुका दौलत

क्या उनका हक दिला दोगे? 🐍


अगर तुम कर सको ऐसा

तो तुमको माथे पे रख लूं।

फिर अपनेऽ घर में रह कर के

खुद को लॉक डाउन कर लूं।  🏫🔐


मगर मैं जानता हूँ ये

यहाँ कुछ ऐसा न होगा।

जो कहते हम तुम्हारे हैं

हमेशा देंगे वे धोखा।। 😢😩


https://www.facebook.com/groups/1431646760273259/permalink/2734235306681058/

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ठाकरे सरकार

जिहादी सरकार में बने

कानून का परिणाम है,

कि देश प्रेमी और सैनिक

इस देश में बदनाम है।

जो हैं दुश्मन देश के वे

सीना ताने चल रहे,

पर जो सैनिक देश के थे,

देश में ही डर रहे।

चल रही है ऐसी आँधी

कि हवा भी मौन है,

तख्त से चिपका मराठी

फिर भी शासन गौण है। 

रक्त की बून्दें बरसती

आये दिन बाजार में,

क्या पता आगे क्या होगा

ठाकरे सरकार में।

डर रहे क्यों वीर जो हैं 

शासकों के पाप से,

देश पीछे जा रहा क्यों

पूछ अपने आप से। 😢


- प्रसेनजित सिंह उर्फ स्वामी सत्यानन्द दास

 (उदासी सन्त, साहित्यकार एवं समाजसेवी)

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