गुरुवार, 29 अक्टूबर 2020

समसामयिक कविता

 

बेवफाओं के शौहर (कविता) 



बेवफाओं के शौहर नहीं होते हैं।

न ही घर उसके बसते, न प्यार मिलते हैं।

जिस जवानी पे अपने गुमां करती है,

बन के बिस्तर हमेशा मजे करती है।

उम्र जब बीत जाता जवानी का तो,

उसके एक भी दिवाने नहीं मिलते हैं।

बेवफाओं के शौहर नहीं होते हैं

न ही घर उसके बसते, न प्यार मिलते हैं।

खाट धर कर जब अपने वो गिर जाती है,

तब ही उसको किये पाप याद आते हैं।

जिसको धोखा दिया, जिनपे जुल्म किया

बाद बिस्तर पकड़ने पे याद आते हैं।

बेवफाओं के शौहर नहीं होते हैं

न ही घर उसके बसते, न प्यार मिलते हैं।

आँसुओं के सिवा फिर न बचता है कुछ 

रुपये होने पे भी काम न आते हैं।

जबकि जो जिन्दगी में निभाते वफा

उनके मरते समय भी हजार आते हैं।

बेवफाओं के शौहर नहीं होते हैं 

न ही घर उसके बसते, न प्यार मिलते हैं।

कोठियां कर ले चाहे हजारों खड़ा

दर्जनों नौकरों को खटाये यहाँ।

चाहे सोने के क्यों न महल हों उसे

उसकी कीमत है क्या जिसके शौहर नहीं।

बेवफाओं के शौहर नहीं होते हैं 

न ही घर उसके बसते, न प्यार मिलते हैं।

जिनको आशिक समझती जवानी में तुम

वे सभी मौज़-मस्ती में ही साथ हैं।

एक बार गिर के उनको दिखाओ कभी

आशिकी सब की झूठी निकल जायेगी।

तब ही कहता कभी भी जफा न करो

ताकि मरते समय भी कोई पास हो।।

जब करोगी वफ़ा, तब मिलेगा वफ़ा

वर्ना कोई न तेरे निकट आयेगा।

जिसको चाहोगी दिल से निभाओगी साथ

वह मरते समय भी लिपट जाएगा।

बेवफाओं के शौहर नहीं होते हैं 

न ही घर उसके बसते, न प्यार मिलते हैं।

===================


नेता चरित (कविता)


कोई मतदाता न छूटे, 
मास्क पहनकर बूथ पे जायें। 
खुद तो जायें औरों को भी 
अपने साथ में लेते जायें।
वोट सुरक्षित पाकर के ही 
सुरक्षित जो हो पाएंगे। 
जीत के फिर से सत्ता की 
कुर्सी का मजा ले पायेंगे।
आप खायें कुछ, या न खायें 
उसकी चिन्ता नहीं करेंगे।
जैसे भी हो पहले जाकर
निज मतदान जरुर करेंगे।
हक की बातें जैसे हैं भूले
वैसे ही उस दिन भूले रहेंगे। 
दाना-पानी, रुपया-पैसा 
के चक्कर में नहीं पड़ेंगे।
गाँव, जवार और अपनी चिन्ता 
छोड़ के पहले वोट करेंगे। 
जो है देश का असली दुश्मन 
उसको चुन कर फिर गौण रहेंगे।
अब तक जैसे मौन रहे हैं 
उस दिन भी वैसे मौन रहेंगे। 
अपमान सहें या हक को छोड़ें 
पर मतदान जरुर करेंगे।
जो हैं देश के दुश्मन सारे 
उनको विजित जरूर करेंगे।
चुनाव होते जो न दिख पायें
अपनी दुनियाँ में फिर से रमेंगे।
जो संकट में साथ न देंंगे 
रिश्वत बिन नहीं काम करेंगे। 
ऐसे लोगों को ही चुन कर
कुर्सी पर जरूर बिठायेंगे।
जिनसे मिलना हो कभी जरूरी 
फिर भी मिल नहीं पायेंगे। 
चाहे साथ में जो हो जाए
उनको विजय दिलायेंगे। 
नहीं जिताने से जो रुठेंगे
एसीड से नहला देंंगे।
ऐसे ही रंगदारों को मिल
निश्चित विजयी बनायेंगे।
जैसे भी हो पहले जाकर
निज मतदान जरुर करेंगे।

 - प्रसेनजित सिंह उर्फ स्वामी सत्यानन्द दास 


लूटे के अजादी बा✍️

हम हूँ लूटींऽ, तू हूँ लूटऽ,

लूटे के आजादी बा।

जइसे बन्द बाऽ बिहार में दारू

अउसहीं घुसबोऽ बन्देऽ बाऽ।।

जिन कर घरवा फुसवा के हल

अब कोठवन के मालिक बाऽ।

ई सम्भव भेल मोर विकास से 

तब ही तऽ नेतवन झूमत बाऽ।।

भांड़ में जाए जनता आँधर

जे विकास ना देखत बाऽ।

साइकिल से मर्सिडीज लेबाइल

तब हूं न उनका लउकत बाऽ।। 

शहर में भी रोड बनतऽ न रहे

अब चौंढन में भी रोड बाऽ।

जहाँ पे पुल-पुलिया ना रहे

उहां पे पुल रोज़ ढ़हत बाऽ।। 

फिर भी कइसे कहे ले दुनियाँ

बिहार के जनता रोबतऽ बा।

हम हूँ लूटीं, तू हूं लूटऽ

लूटे के आजादी बाऽ।।

🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀

आवश्यक सूचना

सउदी अरब में पारा पहुंचा 

62° से भी पार।

अँधाधूंध वृक्ष कट रहे, 

उसी से है यह उष्ण अपार।।

खड़ी धूप में जो गाड़ी है 

उसका है जब ऐसा हाल।

तब क्या मानव को छोडे़गा 

मानव से पैदा यह काल।।

जरा ध्यान से देख ले फोटो 

कितनी यहाँ पे गर्मी है।

हम सब बचे हुए हैं क्योंकि 

अपने तन में नरमी है।।

लेकिन अब यह नहीं बचेगा, 

ज्यादा दिन यह सुन लो आज।

जल्दी डग-डग वृक्ष लगाने 

की कर दो शुरू घर-घर काज।। 


निस दिन हम एक पेड़ लगाएं। 

उष्ण धरा को हरित बनाएं।।


इस अभियान में हमारा साथ देने के लिए इच्छुक लोग मेरे फेसबुक पेज़ को रेटिंग देकर हमारा मनोबल बढ़ायें। निवेदक : उदासी सन्त, कवि और पत्रकार

प्रसेनजीत सिंह, सम्पादक :

कौशिक कंसल्टेंसी एण्ड इंटेलिजेंस ब्यूरो, भारत



मैं ही हूँ सलमान (कविता)

सुनो ऐ जाहिलों की जात,

तुम्हारी क्या है अब औकात।

तुम्हारे घर में ही रह कर,

हैं करते आज भी हम राज।।

तुम्हारीऽ छीन कर दौलतऽ

तुम्हें! बर्बाद मैंने की। 

तुम्हारेऽ देश में ही

रह के जगऽ आबाद मैंने की।।

किया हूँ टुकड़े तेरे देश का

फिर भी यहीं हूँ मैं। 

यहाँ पर चल रहे कानून में भी

मैं ही हूँ छाया।। 

तुम्हारी क्या है अब औकात

सुन लेऽ मैं ही हूँ सलमान। 

तेरे घर-बार की दौलत

समझता जेब का सामान।। 

कहीं ऐसा न हो जाए

तेरा घर-बार छिन जाए। 

समझते हो जिसे अपना,

वो अपने ही बहक जाएं।। 

तभी मैं कहता हूँ कि भाग ले तूऽ

हिन्दी फिल्मों से। 

नहीं तो तोड़ दूँगा सपने तेरेऽ

अपनी जुल्मों से।।

तुम्हारे जैसे लोगों की

मैं रखताऽ नब्ज़ मुट्ठी में। 

जिसे बस सोचते ही मैं

मसल देता हूँ चुटकी में।। 

मेरा तुम क्या बिगाड़ोगे 

चाह कर भी भारत में। 

जहाँ कानून ने भी है किया,

तेरे जान को सस्ती।। 

जो मरते हैं यहाँ भूखे

उसे भी पूछती न ये,

जो बङ्गलों में ठहरते हैं

उन्हीं को भीख जो देती।।

यकीं गर है नहीं तुमको

तो देखो गाँव में जाकर।

न जिनको रोजी-रोटी कुछ

वे भी अगड़े कहाते हैं।।

जो हैं बेहाल फिर भी

भीख लेने में लजाते हैं। 

न जिनके पास एक रूपया 

न धन-दौलत न कुटिया है।

उन्हें भी देश के कानून ये

सम्पन्न दिखाते हैं।

है जिनका छिन चुका घर-बार

उनके साथ न कोई। 

अगर कहना न मानोगे

तो तेरा हाल वही होगा।

सम्भल जा अब भी तुमको मैं 

यहाँ आगाह करता हूँ। 

वर्ना मरने से भी ज्यादा मैं

बर्बाद करता हूँ।।


- सुशान्त सिंह राजपूत के द्वारा आत्महत्या करने के पहले भी कई लोगों आत्महत्या किया है। लेकिन उनमें सर्वाधिक संख्या सवर्ण जाति की तथा उन लोगों में भी विवाहित पुरुषों की ही होती है। इसके बावजूद इस देश में पुरुष वर्ग और सवर्ण जाति के मौलिक मानवाधिकारों की रक्षा करने वाला कोई आयोग नहीं है। इस देश में विश्व की सर्वाधिक आबादी वाले लोगों के लिए अल्पसंख्यक आयोग तो है लेकिन बौद्ध धर्म के अनुयायियों से भी कम आबादी वाले हिन्दुओं की सुरक्षा के लिए कोई आयोग नहीं है। किसी समाज को बर्बाद करने के लिए उसकी एकजुटता को खत्म करना जरूरी है और इसके लिए जाति, धर्म और लिंग आधारित भेद-भाव को बढ़ावा देने वाले लोगों ने आरक्षण का कानून बनाया था। जिसमें ये सफल होते हुए दिख रहे हैं।

देश और समाज को बचाना है तो हमें जाति, धर्म और लिंग आधारित आरक्षण के बजाए आर्थिक आधार पर आरक्षण का कानून बनवाने के लिए आन्दोलन करना चाहिए। इसी में देश और समाज का हित है।...ॐ 




हम रहे थे सन्त जब तक 

पन्थ यह आसान था ।

जब चले सामान्य बनने 

हर तरफ बेईमान था।।


अब तलक हम जी रहे थे

मन्दिरों के दान पर।

जब से उस दुनियाँ को छोड़ा

लोग पड़ गए जान पर ।।


कुछ समझ नहीं आता अब मैं

जाऊँ तो जाऊँ कहाँ।

अब नहीं इंसान का है

ठौर या इज्ज़त यहाँ।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

यह लेख कैसा लगा? इसमें उल्लिखित सूचना या विचारों के सम्बन्ध में आपकी कोई शिकायत या राय हो तो अपनी मुझे जरूर बतायें।

हमारे लेखक समुह में शामिल होने के लिए हमें नीचे दिए गए लिंक्स पर ज्वाइन करें :
https://www.linkedin.com/prasenjeet-singh-b40b95226
https://fb.me/kcib.in
या अपनी रचना हमें निम्न पते पर Email करें :
kcib24@blogger.com
swamiprasenjeetjee@gmail.com पर भेजें।🙏