गुरुवार, 15 अप्रैल 2021

वारङ्गियन गार्ड्स का सच : Varangian guards in Veda & Harivansh Puran


वाराङ्गियन का पौराणिक इतिहास

वाराङ्गियन गार्ड्स के नाम से मशहूर जिन लोगों के पूर्वज़ रोमन साम्राज्य के मुख्य सैन्य अधिकारी के रूप में काम करते हुए पूरी दुनियां में अपनी बहादुरी का डंका बजवायें, ये लोग कौन हैं? इनका कैसा सम्बन्ध है कौशिक गोत्रीय ब्राह्मणशाही राजकुमार विजयपोरस के वंशज़ों द्वारा रोमन साम्राज्य को अपने अधीन कर के विश्व का सबसे बड़ा साम्राज्य खड़ा करने वाले विजयन्तियम् साम्राज्य के राजवंश के साथ? आयें आज बताते हैं इनके बारे में पौराणिक ग्रन्थों में वर्णित गौरवशाली इतिहास।

आदिग्रन्थ महाभारत और हरिवंश पुराण की कथाओं में कश्यप नन्दन वज्राङ्ग और वाराङ्गी नामक उनकी पत्नी से सम्बन्धित एक रोचक कथा का उल्लेख किया गया है। वह कथा कश्यप ऋषि की १३ पत्नियों में से ज्येष्ठ पत्नी दिती परमेश्वरी से डाह रखने वाली दूसरी पत्नी देवी अदिति के पुत्रों के द्वारा दिती परमेश्वरी के पुत्रों के साथ किये जाने वाले साजिश और प्रपञ्च का खुलासा करने वाला एक सत्य कथा है। इस कथा को काल्पनिक और मनगढ़ंत कहने वाले लोग कथा के पात्रों को भी काल्पनिक कहते थे। लेकिन मुझे जैसे ही पश्चिमी देशों में रहने वाले वाराङ्गियन गार्ड्स के नाम से प्रसिद्ध एक जातिय समुदाय के बारे में पता चला, उनके रीति-रिवाज़ों और रहन-सहन के तौर-तरीकों के बारे में विस्तृत जानकारी जुटाने से खुद को रोक नहीं पाया। मैंने जब उन लोगों को करीब से जाना तब मुझे पक्का यकीन हो गया की ये लोग उसी वज्राङ्ग के वंशज़ हैं, जिनके नील नामक पुत्र के अंश से वज्राङ्ग बलि के नाम से प्रसिद्ध वीर हनुमान का जन्म हुआ था। ये हनुमान! देवी वाराङ्गी के गर्भ से उत्पन्न ४९ (उञ्चास) मरुद्गणों में से नील नामक मरुत के पुत्र होने के कारण ही मारुति कहलाये तथा किस्किंधा के राजा सुग्रीव के मित्र और अवध के राजकुमार श्री रामचन्द्रजी के सहायक बने थे। निश्चित रूप से वीर हनुमान और बजरङ्ग बलि के नाम से हिन्दुओं के द्वारा पूजे जाने वाले अंजनी नन्दन के पूर्वज़ों के ही वंशज़ हैं पश्चिमी देशों में रहने वाले ये वाराङ्गियन। इनके पूर्वज़ों के साथ इन्द्र, वरूण, मित्र, सूर्य और विष्णु आदि आदित्यों ने किस-किस तरह के अत्याचार किये थे उसका भी मार्मिक वर्णन किया गया है पौराणिक कथाओं में। इन्हें इनकी मूल भूमि से खदेड़ कर रसातल में बसने के लिए मजबूर किया गया था। पौराणिक ग्रन्थों में वर्णित रसातल ही वर्तमान रसिया या रूस की धरती है। इसी धरती पर स्थित कजाखस्तान! कौशिक गोत्रीय ब्राह्मणों की मूल भूमि है। यूची के नाम से प्रसिद्ध लोग कौशिक गोत्रीय ब्राह्मण परिवार के लोग ही थे। इन लोगों के साथ वहाँ से पश्चिमी देशों की ओर पलायन करने वाले लोगों में ये वाराङ्गियन समुदाय के लोग भी शामिल थे। 

हरिवंश पुराण के अध्याय ....... ✍️ क्रमशः 

वाराङ्गियन गार्ड्स के गीत

Turisus - The march of the Varangian guard [Lyrics]


 
Varangians are the dynasty of Vaidic Emparor Vajrang and her wife Varangi which are the Roman catholic family members. 

शनिवार, 28 नवंबर 2020

कविता : मेरा मन यायावर

बेवफा

देखा था तुम्हें जिस दिन मैने
समझा था कि तुम बड़ी भोली हो।
तुम हँसी तो हो, नादां भी कुछ 
मनमोहनी और हमजोली हो।
यह सोच के दिल मैं दे बैठा 
तेरे इश्क में पागल होकर मैं। 
पर अब यह सोच के रोता हूँ 
क्या देख के तुम से प्यार किया। 
तुम नादां हो इसको तुम में
मैंने पहले ही देखा था। 
पर जालिम हो और कातिल भी
इस को मैने नहीं समझा था। 
आखिर तुम क्यों मेरे दिल में बस
मन मोह लिया दिल जीत लिया। 
फिर क्या आखिर मजबूरी थी
यह दिल तूने क्यों तोड़ दिया।
तुम्हें जहाँ भी रहना वहीं रहो
पर अब ऐसा फिर मत करना।
वर्ना तेरे कारण नारी पर
फिर से कभी यकीं नहीं होगा।
नहीं इश्क करेंगे कोई कहीं
बर्बाद गुलिस्तां यह होगा



 


बुधवार, 4 नवंबर 2020

आँसुओं का समुन्दर


 
माफ़ी का महत्व

(दहेज़ उत्पीड़न कानून से पीड़ित परिवार की सत्य कथा

राधिका और नवीन को आज तलाक के कागज मिल गए थे। दोनो साथ ही कोर्ट से बाहर निकले। दोनो के परिजन साथ थे और उनके चेहरे पर विजय और सुकून के निशान साफ झलक रहे थे। चार साल की लंबी लड़ाई के बाद आज फैसला हो गया था।

दस साल हो गए थे शादी को मग़र साथ मे छः साल ही रह पाए थे। 

चार साल तो तलाक की कार्यवाही में लग गए।

राधिका के हाथ मे दहेज के समान की लिस्ट थी जो अभी नवीन के घर से लेना था और नवीन के हाथ मे गहनों की लिस्ट थी जो राधिका से लेने थे।

साथ मे कोर्ट का यह आदेश भी था कि नवीन  दस लाख रुपये की राशि एकमुश्त राधिका को चुकाएगा।

राधिका और नवीन दोनो एक ही टेम्पो में बैठकर नवीन के घर पहुंचे।  दहेज में दिए समान की निशानदेही राधिका को करनी थी।

इसलिए चार वर्ष बाद ससुराल जा रही थी। आखरी बार बस उसके बाद कभी नही आना था उधर।

सभी परिजन अपने अपने घर जा चुके थे। बस तीन प्राणी बचे थे।नवीन, राधिका और राधिका की माता जी।

नवीन घर मे अकेला ही रहता था।  मां-बाप और भाई आज भी गांव में ही रहते हैं। 

राधिका और नवीन का इकलौता बेटा जो अभी सात वर्ष का है कोर्ट के फैसले के अनुसार बालिग होने तक वह राधिका के पास ही रहेगा। नवीन महीने में एक बार उससे मिल सकता है।

घर मे परिवेश करते ही पुरानी यादें ताज़ी हो गई। कितनी मेहनत से सजाया था इसको राधिका ने। एक एक चीज में उसकी जान बसी थी। सब कुछ उसकी आँखों के सामने बना था।एक एक ईंट से  धीरे धीरे बनते घरोंदे को पूरा होते देखा था उसने।

सपनो का घर था उसका। कितनी शिद्दत से नवीन ने उसके सपने को पूरा किया था।

नवीन थकाहारा सा सोफे पर पसर गया। बोला "ले लो जो कुछ भी चाहिए मैं तुझे नही रोकूंगा"

राधिका ने अब गौर से नवीन को देखा। चार साल में कितना बदल गया है। बालों में सफेदी झांकने लगी है। शरीर पहले से आधा रह गया है। चार साल में चेहरे की रौनक गायब हो गई।

वह स्टोर रूम की तरफ बढ़ी जहाँ उसके दहेज का अधिकतर  समान पड़ा था। सामान ओल्ड फैशन का था इसलिए कबाड़ की तरह स्टोर रूम में डाल दिया था। मिला भी कितना था उसको दहेज। प्रेम विवाह था दोनो का। घर वाले तो मजबूरी में साथ हुए थे। 

प्रेम विवाह था तभी तो नजर लग गई किसी की। क्योंकि प्रेमी जोड़ी को हर कोई टूटता हुआ देखना चाहता है। 

बस एक बार पीकर बहक गया था नवीन। हाथ उठा बैठा था उसपर। बस वो गुस्से में मायके चली गई थी। 

फिर चला था लगाने सिखाने का दौर । इधर नवीन के भाई भाभी और उधर राधिका की माँ। नोबत कोर्ट तक जा पहुंची और तलाक हो गया।

न राधिका लोटी और न नवीन लाने गया। 

राधिका की माँ बोली" कहाँ है तेरा सामान? इधर तो नही दिखता। बेच दिया होगा इस शराबी ने ?"

"चुप रहो माँ" 

राधिका को न जाने क्यों नवीन को उसके मुँह पर शराबी कहना अच्छा नही लगा।

फिर स्टोर रूम में पड़े सामान को एक एक कर लिस्ट में मिलाया गया। 

बाकी कमरों से भी लिस्ट का सामान उठा लिया गया।

राधिका ने सिर्फ अपना सामान लिया नवीन के समान को छुवा भी नही।  फिर राधिका ने नवीन को गहनों से भरा बैग पकड़ा दिया। 

नवीन ने बैग वापस राधिका को दे दिया " रखलो, मुझे नही चाहिए काम आएगें तेरे मुसीबत में ।"

गहनों की किम्मत 15 लाख से कम नही थी। 

"क्यूँ, कोर्ट में तो तुम्हरा वकील कितनी दफा गहने-गहने चिल्ला रहा था" 

"कोर्ट की बात कोर्ट में खत्म हो गई, राधिका। वहाँ तो मुझे भी दुनिया का सबसे बुरा जानवर और शराबी साबित किया गया है।"

सुनकर राधिका की माँ ने नाक भों चढ़ाई।

"नही चाहिए। 

वो दस लाख भी नही चाहिए"

 "क्यूँ?" कहकर नवीन सोफे से खड़ा हो गया।

"बस यूँ ही" राधिका ने मुँह फेर लिया।

"इतनी बड़ी जिंदगी पड़ी है कैसे काटोगी? ले जाओ,,, काम आएगें।"

इतना कह कर नवीन ने भी मुंह फेर लिया और दूसरे कमरे में चला गया। शायद आंखों में कुछ उमड़ा होगा जिसे छुपाना भी जरूरी था।

राधिका की माता जी गाड़ी वाले को फोन करने में व्यस्त थी।

राधिका को मौका मिल गया। वो नवीन के पीछे उस कमरे में चली गई।

वो रो रहा था। अजीब सा मुँह बना कर।  जैसे भीतर के सैलाब को दबाने दबाने की जद्दोजहद कर रहा हो। राधिका ने उसे कभी रोते हुए नही देखा था। आज पहली बार देखा न जाने क्यों दिल को कुछ सुकून सा मिला।

मग़र ज्यादा भावुक नही हुई।

सधे अंदाज में बोली "इतनी फिक्र थी तो क्यों दिया तलाक?"

"मैंने नही तलाक तुमने दिया" 

"दस्तखत तो तुमने भी किए"

"माफी नही माँग सकते थे?"

"मौका कब दिया तुम्हारे घर वालों ने। जब भी फोन किया काट दिया।"

"घर भी आ सकते थे"?

"हिम्मत नही थी?"

राधिका की माँ आ गई। वो उसका हाथ पकड़ कर बाहर ले गई। "अब क्यों मुँह लग रही है इसके? अब तो रिश्ता भी खत्म हो गया"

मां-बेटी बाहर बरामदे में सोफे पर बैठकर गाड़ी का इंतजार करने लगी। 

राधिका के भीतर भी कुछ टूट रहा था। दिल बैठा जा रहा था। वो सुन्न सी पड़ती जा रही थी। जिस सोफे पर बैठी थी उसे गौर से देखने लगी। कैसे कैसे बचत कर के उसने और नवीन ने वो सोफा खरीदा था। पूरे शहर में घूमी तब यह पसन्द आया था।"

फिर उसकी नजर सामने तुलसी के सूखे पौधे पर गई। कितनी शिद्दत से देखभाल किया करती थी। उसके साथ तुलसी भी घर छोड़ गई।

घबराहट और बढ़ी तो वह फिर से उठ कर भीतर चली गई। माँ ने पीछे से पुकारा मग़र उसने अनसुना कर दिया। नवीन बेड पर उल्टे मुंह पड़ा था। एक बार तो उसे दया आई उस पर। मग़र  वह जानती थी कि अब तो सब कुछ खत्म हो चुका है इसलिए उसे भावुक नही होना है। 

उसने सरसरी नजर से कमरे को देखा। अस्त व्यस्त हो गया है पूरा कमरा। कहीं कंही तो मकड़ी के जाले झूल रहे हैं।

कितनी नफरत थी उसे मकड़ी के जालों से?

फिर उसकी नजर चारों और लगी उन फोटो पर गई जिनमे वो नवीन से लिपट कर मुस्करा रही थी।

कितने सुनहरे दिन थे वो।

इतने में माँ फिर आ गई। हाथ पकड़ कर फिर उसे बाहर ले गई।

बाहर गाड़ी आ गई थी। सामान गाड़ी में डाला जा रहा था। राधिका सुन सी बैठी थी। नवीन गाड़ी की आवाज सुनकर बाहर आ गया। 

अचानक नवीन कान पकड़ कर घुटनो के बल बैठ गया।

बोला-" मत जाओ, माफ कर दो"

शायद यही वो शब्द थे जिन्हें सुनने के लिए चार साल से तड़प रही थी। सब्र के सारे बाँध एक साथ टूट गए। राधिका ने कोर्ट के फैसले का कागज निकाला और फाड़ दिया । 

और मां कुछ कहती उससे पहले ही लिपट गई नवीन से। साथ मे दोनो बुरी तरह रोते जा रहे थे।

दूर खड़ी राधिका की माँ समझ गई कि 

कोर्ट का आदेश दिलों के सामने कागज से ज्यादा कुछ नही।

काश उनको पहले मिलने दिया होता?


🙏🙏 अगर माफी मांगने से ही रिश्ते टूटने से बच जाए, तो माफी माँग लेनी चाहिए। मगर जब माफी माँगने के बाद भी पत्नी की अकड़ कम न हो तो पुरुषों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए "पुरूष आयोग" का गठन करवाने के प्रयास में लग जाना चाहिए।

सोमवार, 2 नवंबर 2020

Introduction of Sawarn Fans Club

Swami Prasenjeet with his friends in the Seminar of Sawarn Fans Club


जाति, धर्म और लिंग आधारित भेद-भाव को बढ़ावा देने वाले विभिन्न कानूनों के कारण विकास की मुख्य धाराओं से वंचित कर दिए गए सवर्ण समाज को एकजुट करने के उद्देश्य से बनाया गया है सवर्ण फैंस क्लब नामक यह सामाजिक समुह। इस समूह का मुख्य उद्देश्य है गरीबी आधारित आरक्षण का कानून बनवाना। लेकिन सिर्फ़ यही उद्देश्य नहीं है बल्कि विश्व को आधुनिक मानव सभ्यता के साथ लोकतत्र की भी सीख देने वाले हमारे देश भारत की गिरती हुई दशा को सम्भालने के लिए जन-जागरूकता अभियान चलाने के लिए भी बनाया गया है यह कलब। भारतीय संविधान के अनुच्छेद ४४ में यह वर्णित है कि सभी राज्य अपने यहाँ समान नागरिक संहिता लागू करे, मगर यह कानून उन पर बाध्यकारी नहीं है। यह कैसा संविधान है? इतना कमजोर और लचर संविधान के कारण ही यहाँ जोर-जबरदस्ती का कानून चलता है। जिसकी लाठी, उसकी भैंस के तर्ज पर गठित कानून के कारण ही यहाँ महिला उत्पीड़न कानून की गैर जमानती धारा 498 अ के द्वारा स्वाभिमानी पुरुषों को भी पौरुषहीन बना दिया गया है।


जैसे हर औरत अबला नहीं होती वैसे ही हर पुरुष अत्याचारी नहीं होता है। इसके बावजूद घर-गृहस्थी की नींव समझे जाने वाले पुरुष वर्ग को ही कमजोर करने के लिए राष्ट्रीय एकता के दुश्मनों के द्वारा सबसे पहले महिला उत्पीड़न कानून की गैर जमानती धारा 498 अ बनाकर इस देश को पौरुषहीन बनाने का कुचक्र चालू किया गया, इसके बाद राष्ट्रीय स्वाभिमान की रक्षा के लिए हर समय आत्म बलिदान के लिए भी तत्पर रहने वाले सवर्ण समाज को कमजोर करने के लिए इन्हें शिक्षण-प्रशिक्षण, नियुक्ति-प्रोन्नत्ति, ऋण-अनुदान आदि हरेक मामलों में लगातार उपेक्षित किया जाने लगा। यह साजिश उपेक्षित सवर्णों को राष्ट्र द्रोह के लिए प्रेरित करवाने का स्वप्न देखने वाले गद्दारों के द्वारा रचा जा रहा है। ताकि आर्थिक अक्षमता, शारीरिक विकलांगता और शैक्षिक योग्यता के बजाए सिर्फ़ खास जाति, खास धर्म और खास लिंग के लोगों को ही आरक्षण देकर सवर्ण कहलाने वाले स्वाभिमानी जाति को उग्रवाद की आग में झोंक कर आसानी से खत्म किया जा सके। 


ऐसा सिर्फ इसलिए किया जा रहा है ताकि हम सवर्णों के नेस्तनाबूद हो जाने के बाद इस देश पर दूबारा विदेशी झण्डे फहराने का ख्वाब देखने वाले लोगों को निःशेष भारतीयों को कुचलने में ज्यादा मेहनत न करना पड़े। ऐसे ही स्वप्न देखने वाले गद्दारों की मूर्खता से इस देश की रक्षा के लिए सवर्ण फैंस क्लब नामक यह ग्रुप बनाया गया है। ताकि राष्ट्रीय एकता में बाधक बन रहे जाति, धर्म और लिंग आधारित आरक्षण को विलोपित करवाकर गरीबी आधारित आरक्षण का कानून बनवाने के लिए संघर्षरत सवर्ण समाज की गतिविधियों को आपस में साझा किया जा सके।  


सवर्ण फैंस क्लब नामक इस ग्रुप में सामाजिक समरसता हेतु गरीबी आधारित आरक्षण को समर्थन देने के लिए तत्पर हमारे सभी सदस्यों और सदस्य संगठनों की संघर्ष समाचारों व समस्याओं को प्रमुखता से प्रकाशित-प्रसारित किया जाएगा। देश के अन्य ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा करने के बजाए इस ग्रुप में सिर्फ़ सवर्ण समाज की समस्याओं और संघर्षों पर केन्द्रित फीचर, चर्चित विश्लेषकों और टिप्पणीकारों की राय, प्रेरक प्रसंग, यात्रा संस्मरण, स्वास्थ्य-शिक्षा, वैदिक सभ्यता-संस्कृति तथा आध्यात्मिक जागृति से सम्बंधित ज्ञानप्रद लेखों और वृत्तचित्रों को सम्मिलित किया जा सकेगा। 


किसी भी हालत में इस ग्रुप में अश्लील एमएमएस, विडियो या भाषा का प्रयोग नहीं किया जा सकेगा। यही नहीं द्विअर्थी भाषा या वाक्यांशों के प्रयोग पर भी रोक रहेगा। ऐसा पाये जाने पर दोषी व्यक्ति की सदस्यता अविलम्ब समाप्त कर दी जाएगी। इसके लिए दोषी पाए गए सदस्य या सदस्यों को बिना किसी पूर्व सूचना के कभी भी निष्कासित किया जा सकेगा। 


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हम रहे थे सन्त जब तक 
पन्थ यह आसान था ।
जब चले सामान्य बनने 
हर तरफ बेईमान था।।

अब तलक हम जी रहे थे
मन्दिरों के दान पर।
जब से उस दुनियाँ को छोड़ा
लोग पड़ गए जान पर ।।

कुछ समझ नहीं आता अब मैं
जाऊँ तो जाऊँ कहाँ।
अब नहीं इंसान का है
ठौर या इज्ज़त यहाँ।।