शनिवार, 28 नवंबर 2020

कविता : मेरा मन यायावर

बेवफा

देखा था तुम्हें जिस दिन मैने
समझा था कि तुम बड़ी भोली हो।
तुम हँसी तो हो, नादां भी कुछ 
मनमोहनी और हमजोली हो।
यह सोच के दिल मैं दे बैठा 
तेरे इश्क में पागल होकर मैं। 
पर अब यह सोच के रोता हूँ 
क्या देख के तुम से प्यार किया। 
तुम नादां हो इसको तुम में
मैंने पहले ही देखा था। 
पर जालिम हो और कातिल भी
इस को मैने नहीं समझा था। 
आखिर तुम क्यों मेरे दिल में बस
मन मोह लिया दिल जीत लिया। 
फिर क्या आखिर मजबूरी थी
यह दिल तूने क्यों तोड़ दिया।
तुम्हें जहाँ भी रहना वहीं रहो
पर अब ऐसा फिर मत करना।
वर्ना तेरे कारण नारी पर
फिर से कभी यकीं नहीं होगा।
नहीं इश्क करेंगे कोई कहीं
बर्बाद गुलिस्तां यह होगा



 


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