गुरुवार, 21 जुलाई 2022

हिन्दी की दुर्दशा के कारण और समाधान


कब तक होता रहेगा हिन्दीभाषी लेखकों, अनुवादकों और प्रूफ़रीडर्स से बन्धुआगिरी? 

किस्सा Hindi और English के मिश्रित भाषा "Hinglish" के शुरुआत की


सरकारी उदासीनता के कारण हिन्दी लेखकों को दिहाड़ी करने वाले अशिक्षित मजदूरों से भी कम दिया जाता है पारिश्रमिक

सृजनात्मक लेखन के कार्य आसान नहीं हैैं मगर लेखकों के सहज और स्वभाविक उत्पाद होने के कारण उन्हें इसके लिए उतना मशक्कत नहीं करना पड़ता है जितना उसे प्रकाशित करने योग्य बनाने वाले प्रूफ़रीडर्स और अनुवादको को। दूसरे लेखकों की भावना को समझते हुए उसी तरह के भाव प्रकट करने वाले एक-एक शब्द का दूसरे भाषा में अनुवाद करना कठिन कार्य है। इसके लिए वाकई में हिन्दी भाषा के प्रूफ़रीडर्स और अनुवादकों को जो पारिश्रमिक मिल रहा है वह अपर्याप्त तो है ही हम हिन्दीभाषियों के लिए शर्मनाक भी है। 

मैं अनुवादक (ट्राँसलेटर) तो नहीं हूँ, मगर हिन्दी भाषा का लेखक और प्रूफ़रीडर जरूर हूँ। ट्राँसलेटर की तरह ही प्रूफ़रीडिंग का काम भी कठिन मानसिक परिश्रम करने वाला है। कभी-कभी तो यह इतना ऊबाऊ हो जाता है कि अनावश्यक शब्दों और वाक्यांशों को हटाने के कारण अपनी बेइज्जती समझने वाले लेखकों और सम्पादकों के दबाव के कारण अनावश्यक शब्दों और वाक्यांशों को कहां से उठाकर कहां सेट करना है इसका निर्णय करना प्रूफ़रीडिंग के कार्य करने वाले लोगों के लिए मुश्किल हो जाता है। इसके कारण जिस तरह के श्रम प्रूफ़रीडिंग करने वाले लोगों को करना पड़ता है उसके लायक पारिश्रमिक नहीं मिलने से अधिकांश लोग अपने कार्य में जानबूझ कर लापरवाही बरतने लगते हैं। ऐसा हिन्दी भाषा की अच्छी समझ नहीं रखने वाले उन हिन्दीभाषियों की जिद के कारण हो रहा है जो अन्य विषयों की बड़ी-बड़ी डिग्रियां लेकर खुद को हिन्दी भाषा के भी विद्वान समझने लगते हैं। ऐसे ही विद्वानों की सूची में हैं बिहार के पटना जिला में स्थित Good Man Publications के मालिक प्रो. आर के सिन्हा। 

प्रो. आर के सिन्हा बिहार यूनिवर्सिटी में इंग्लिश से एम.ए. करने के बाद मेरे गाँव के बगल में स्थित ज्योति कुंवर महाविद्यालय नामक ऐसे कॉलेज में प्रोफेसर बन गये जो साल में सिर्फ़ दस दिन ही खुलते हैं। बाकि समय में बेतहाशा कमाई करने के लिए इन्होंने स्वलिखित इंग्लिश ग्रामर एण्ड ट्रान्सलेशन के कई किताब की मार्केटिंग करने के लिए अपना प्रेस भी खोल लिए थे। यहाँ तक तो ठीक है लेकिन इन्होंने हद तब पार कर दिया जब हिन्दी-इंग्लिश दोनों भाषाओं में लिखे गये अपने पुस्तकों में हिन्दी व्याकरण के सम्बन्ध में गलत जानकारी देने लगे। इन्होंने अपने पुस्तकों के द्वारा हिन्दी व्याकरण की बखिया उधेड़ने का काम 1996 ईस्वी में प्रकाशित अपनी पुस्तक "Oxford Junior English TranslationOxford Junior English GrammarOxford Basic English Translation और Oxford Basic English Grammar" से ही कर दिया था। 

संयोगवश मुझे उनके प्रेस में प्रूफ़रीडर के रूप में काम करने का अवसर मिला। लेकिन मेरी नज़र जैसे ही बिहार में सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली व्याकरण की उस पुस्तक में भरे हुए हिन्दी व्याकरण से सम्बन्धित अशुद्धियों और गलत जानकारी पर पड़ा, मैंने ईमानदारी पूर्वक प्रूफ़रीडिंग कर के कम्पोजर से मूल प्रति दिखाने का आग्रह किया था। लेकिन उसका जवाब सुनकर मुझे तब आश्चर्य हुआ जब उसने मुझे यह नसीहत देते हुए कहा कि मैं आपकी बातों से सहमत हूँ, लेकिन आपको अपनी नौकरी बचानी है तो प्रोफेसर साहब के लिखे हुए वाक्यांशों में काट-छांट या फेरबदल न करें। इससे उनके स्क्रिप्ट के अलावा कोई अन्य अशुद्धि दिखे तो सिर्फ़ उसे ही मार्क करें। कम्पोजर के समझाने के बाद भी मैने दिल की बात Good Man (P & T) के प्रोपराइटर और उसके द्वारा प्रकाशित पुस्तकों के लेखक प्रो. आर. के. सिन्हा से कह दिया था। लेकिन उनका जवाब सुनते ही मैं समझ गया था कि अपने भावों और विचारों को हिन्दी भाषा में शुद्ध-शुद्ध लिखने, पढ़ने और बोलने की शिक्षा देने वाले शास्त्र के खिलाफ़ आधुनिक शिक्षा के नाम पर जो दुष्प्रचार और साजिश चल रहा है उसके खिलाफ़ हिन्दीभाषी लेखकों और समाजसेवियों को जगाना होगा। फिर क्या था मैंने वहां से इस्तीफा दिया और हिन्दी लेखकों भुवनेश्वर गुरमैता और नामवर सिंह को चिट्ठी लिख दिया। लेकिन परिणाम वही हुआ - "ढाक के तीन पात"। 

हिन्दीभाषी लेखकों और पत्रकारों के द्वारा हिन्दी के वाक्य के अन्त में पूर्ण विराम के चिन्ह "।" की जगह इंग्लिश में इस्तेमाल होने वाले फूल स्टॉप के चिन्ह "." का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाने लगा। जो प्रो. आर. के. सिन्हा के द्वारा एक प्रयोग के तौर पर 1996 ईस्वी में शुरू किये गये Hindi और English के मिश्रित भाषा "Hinglish" की शुरुआत थी। 

आर. के. सिन्हा जैसे लोगों के पदचिन्हों पर चलने वाले हिन्दीभाषी लोगों के कारण ही आज हिन्दी भाषा के लेखकों और साहित्यकारों को वह सम्मान नहीं मिल रहा है जो हिन्दीभाषी लोगों के देश में इंग्लिश बोलने वाले लोगों को मिलता है। ऐसा सिर्फ इसी देश में है, जहाँ की राष्ट्रभाषा का दर्जा हिन्दी को मिलने के बाद भी खुद सरकारी एजेंसियां ही इंग्लिश में काम करने में गर्व महसुस करती है। ऐसे लोगों के कारण ही क्रियेटिव राइटिंग, प्रूफ़रीडिंग और ट्रांसलेशन के कार्य करने वाले हिन्दीभाषी लोगों को अन्य भाषा में कार्य करने वाले लोगों की अपेक्षा कम पारिश्रमिक दिया जाता है। 

हिन्दी भाषा के प्रूफ़रीडर और ट्रांसलेटर को कम से कम 50 पैसे/शब्द पारिश्रमिक देना चाहिए। यानी प्रति 1000 शब्दों के लिए न्यूनतम 500/- रुपये पारिश्रमिक तो देना ही चाहिए। यही शुल्क हिन्दीभाषी अनुवादकों को भी दिया जाना चाहिए। लेकिन मिलता है 300/- रुपये भी नहीं। इसके लिए देश और दुनियां की जानकारी के लिए बनने वाले देशी-विदेशी वेबसाइटों में मनपसन्द भाषा का चयन करने के लिए दिये जाने वाले आप्शन के रूप में हिन्दी भाषा को सेलेक्ट करने का विकल्प बहुत ही कम दिखाई देता है। इसके लिए भारत सरकार के सूचना, प्रसारण और संचार मंत्रालय को भी पहल करना चाहिये। लेकिन देश भर में हिन्दी दिवस मनाने के नाम पर खानापूर्ति करने के अलावा यह मंत्रालय हिन्दी भाषा के अधिकाधिक प्रयोग करने वाले लोगों को प्रोत्साहित करने या प्रचार-प्रसार के लिए जमीनी स्तर पर कुछ भी नहीं कर रहा है। 

मेरे ख्याल से हिन्दी भाषा के विकास के लिए सरकारी उदासिनता के कारण ही हिन्दी भाषी लेखकों और अनुवादकों के समक्ष भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई है। विदेशी भाषा सीखने और सिखाने के लिए दुनियां की सभी भाषाओं का सहारा लिया जाता है, लेकिन हिन्दीभाषी लोग विदेशी भाषा की शिक्षा हिन्दी भाषा में नहीं ले सकते हैं। इसका कारण है विदेशी भाषाओं को सिखाने वाले पुस्तकों के हिन्दी भाषा में अनुवाद, लेखन और प्रकाशन के कार्य के लिये विदेशी भाषा जानने वाले हिन्दीभाषी लेखकों और सरकार की उपेक्षा। 

वाकई में, हिन्दीभाषी लेखकों और अनुवादकों के प्रति सरकारी उपेक्षा के कारण ही हिन्दी भाषा के अच्छे विद्वान होने के बावजूद इंग्लिश या अन्य विदेशी भाषा नहीं जानने वाले लेखकों के समक्ष भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई है। यदि सरकार इस भाषा के विकास के लिए योजनाएं बना कर सही तरीके से लागू करवाये तो इस देश में बेरोजगारी की समस्या घट कर आधी हो जाएगी। इसके लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा किया था कि "अब हिन्दी भाषा में भी मेडिकल कोर्स कर सकेंगे हिन्दीभाषी लोग"। 

हिन्दी भाषा के विकास के लिए मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान के द्वारा किये गये घोषणा को कार्यान्वित करने के लिए मध्य प्रदेश की सरकार ने पहल शुरू किया या नहीं, इसके बारे में मुझे प्रमाणिक जानकारी नहीं है। लेकिन सच्चाई यही है कि हमारी सभ्यता और संस्कृति का विकास हमारी मूल भाषा में ही अध्ययन-अध्यापन के द्वारा सम्भव है। यही कारण है कि इस देश के अलावा दुनियां के लगभग सभी विकसित देशों में वहाँ की मूल भाषा में ही पढ़ने-पढ़ाने का नियम है और इसे सख्ती के साथ लागू भी करवाया जाता है। लेकिन भारत सरकार के द्वारा अपनी राष्ट्रभाषा के प्रति उदासीनता के कारण ही इस देश की बहुसंख्यक आबादी अपने ऊपर जबरन थोपे जाने वाले अंग्रेजी भाषा की समझ नहीं होने के कारण अच्छी शिक्षा से वंचित रह जाते हैं और उसका खामियाज़ा जिन्दगी भर भुगतने के लिए मजबूर होते हैं।

जिस तरह से फ्रांस में पढ़ने के लिये अच्छी इंग्लिश जानने वाले लोगों को भी वहाँ की फ्रेंच भाषा सीखना पड़ता है, रूस में पढ़ने के लिए इच्छुक लोगों को वहाँ की रसीयन भाषा सीखना पड़ता है, चाइना में पढ़ने के लिये इच्छुक लोगों को वहाँ की स्थानीय भाषा मन्दारी सीखना पड़ता है, उसी तरह से भारत में पढ़ने वाले छात्रों को भी अपनी राष्ट्र भाषा हिन्दी में ही अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था करवाने के लिये हिन्दीभाषी लेखकों को प्रोत्साहित करना चाहिये। कम से कम इसका प्रयास तो करना ही चाहिए। यदि ऐसा हो गया तो यकीनन इस देश की दुर्दशा जरूर खत्म होगी। लेकिन महाराष्ट्र और दक्षिण भारतीय राज्यों में रहने वाले कुछ तथाकथित लोगों के द्वारा हिन्दीभाषी लोगों के विरोध को देखते हुए केन्द्र और राज्य सरकारें हिन्दीभाषी राज्यों में भी हिन्दी भाषा के विकास के मुद्दे पर मौन धारण कर रखा है। हिन्दी और हिन्दीभाषियों के विकास के लिए वहाँ की सरकारें भविष्य में भी कुछ करेगी ऐसा दूर-दूर तक नहीं दिख रहा है। यही कारण है कि हिन्दीभाषी लेखक और भाषाविद् आज 15 पैसे और 20 पैसे प्रति शब्द में भी कार्य करने के लिए मजबूर हो हैं। सच्चाई यही है इस देश के हिन्दीभाषी लेखकों की। इनकी पारिश्रमिक दिहाड़ी मजदूरी करने वाले अशिक्षित लोगों से भी कम है। इसके कारण हिन्दी भाषा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। 

आज हिन्दी भाषा को अवैज्ञानिक और पिछड़े हुए लोगों की भाषा समझने वाले लोगों के कारण ही हिन्दीभाषी पत्र-पत्रिकाओं, ब्लॉग्स और पुस्तकों को पढ़ने वाले लोगों की संख्या लगातार घटती जा रही है। नालन्दा ओपेन यूनिवर्सिटी की सिलेबस से सम्बन्धित हिन्दीभाषी पुस्तकों की घटिया भाषा शैली के कारण ही मैंने उसकी सभी पुस्तकों को कुलपति के समक्ष फाड़कर फेंकने के बाद उस संस्थान में नामांकित होने के बावजूद मैने वह कोर्स सिर्फ़ इसलिए छोड़ दिया था क्योंकि पूरी शुल्क लेने के बाद भी उस यूनिवर्सिटी के पटना में स्थित शाखा के द्वारा मुझे इतना घटिया पाठ्य सामग्री दिया गया था जिसे देखते ही उस यूनिवर्सिटी के द्वारा दी जाने वाली शिक्षा के स्तर को मैं समझ गया था। शिक्षा के नाम पर सिर्फ़ कागज के सर्टिफिकेट बेचने की दुकान मात्र बन कर रह गई है नालन्दा ओपन यूनिवर्सिटी जैसी संस्थायें। 

ट्राँसलेटर तो किसी रचना को अनुवादित कर के प्रकाशक को सौंप देता है, लेकिन उसकी दो-तीन चरणों में कम्पोजिंग और प्रूफ़रीडिंग के कार्य करने के बाद ही कोई पुस्तक या पत्र-पत्रिका प्रकाशित कर के पाठकों तक पहुंचाया जाता है। अनुवादक चाहे लाख अच्छा हो, जो पत्र-पत्रिका और पुस्तक बिना प्रूफ़रीडिंग करवाये प्रकाशित की जाती है, वह सुन्दर से सुन्दर ग्राफिक डिजाइनिंग और पैकिंग के बाद भी पाठकों का विश्वास नहीं जीत पाता है। पाठक का दिमाग कोरा काग़ज़ की तरह बिल्कुल खाली हो तो अधकचरे ज्ञान का सर्टिफिकेट पाकर भी खुद को ज्ञानी समझने लगता है। आजकल ऐसे ही ज्ञानियों का चलन है। क्योंकि उन्हें सही शिक्षा मिली ही नहीं है। अतः हिन्दीभाषी लेखकों, अनुवादकों और प्रूफ़रीडिंग के कार्य करने वाले लोगों को भी अच्छी पारिश्रमिक देने का प्रयास करना चाहिए। तभी लोगों को सही, शुद्ध और विश्वसनीय ज्ञान भण्डार वाले पुस्तक प्राप्त होंगे।


शुक्रवार, 24 जून 2022

क्यों प्रसिद्ध है कटास राज

महाभारत की कथा में वर्णित कटाक्ष तीर्थ का स्थान है कटास राज बनाम कठ गणराज्य, कुम्भी बैस का विस्मृत इतिहास



महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित आदि ग्रन्थ महाभारत के वन पर्व में स्थित एक श्लोक के अनुसार भूनेत्र के नाम से प्रसिद्ध महातीर्थ  "कटाक्ष" वह स्थान है जो सभी पापों को धो देता है। इस महातीर्थ को धारण करने वाले राज्य को लोग कठ गणराज्य के नाम से भी जानते थे। हालांकि कठ गणराज्य का अस्तित्व तो नहीं रहा मगर पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में स्थित चकबल में कल्लर कहार मार्ग पर वह सरोवर आज भी है जहां एक यक्ष के सवालों का जवाब दिए बगैर सरोवर का पानी पीने का प्रयास करने पर पाण्डवों के भाई भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव अचेत कर दिये गये थे। बाद में युधिष्ठिर ने जब यक्ष के सभी सवालों का जवाब देकर यक्ष को सन्तुष्ट कर दिया तभी उस सरोवर का जल पी सके थे। यक्ष के कहने पर जिस सरोवर के अमृत तुल्य जल का छिड़काव कर के युधिष्ठिर ने अचेत पड़े अपने भाईयों की चेतना वापस लाये थे वही सरोवर है चकबल में कटास नामक तीर्थ स्थान में स्थित यह सरोवर। हिन्दुओं के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल कटास में प्रवेश करते ही "कटास राज चौक, श्री कटास राज मन्दिर और कटास राज अमृत कुण्ड" का बोर्ड दूर से ही दिखाई देता है।

कुछ जगहों पर पाकिस्तान सरकार के द्वारा लगवाये गए साइनबोर्ड को आप भी देख सकते हैं कि जिसमें लिखवाये गये सन्देश पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा उर्दू के बजाए भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी और नये युग की अन्तरराष्ट्रीय भाषा में लिखे हुए हैं। ऐसा इसलिए लिखा गया है ताकि भारतीय पर्यटक! खासकर राजस्थान से आने वाले पर्यटक उन सन्देशों को आसानी से समझ सकें।
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एक साइनबोर्ड में स्पष्ट लिखा हुआ है - "महान और पावन तीर्थ धाम श्री कटासराज जी की यात्रा करने के लिए आने पर पाकिस्तान वक्फ़ बोर्ड की ओर से आपका स्वागत है।"
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उस पवित्र तीर्थ धाम के पास वक्फ़ बोर्ड के द्वारा लगवाये गये अन्य साइनबोर्ड में हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू भाषा में भी लिखवाये गये सन्देशों से श्री कटास राज तीर्थ स्थान के बारे में पर्यटकों को जो जानकारी मिलती है उसके अनुसार इतिहासकारों और पुरातत्वविदों ने श्री कटासराज तीर्थ को भगवान शिव का तीर्थ माना है।

🗺️ (कटासराज मन्दिर में स्थित भगवान शिव जी की प्रतिमा और तस्वीरें)

कहते हैं कि माँ पार्वती! अपने पिता प्रजापति दक्ष के द्वारा अपने पति का अपमान नहीं सह पाने के कारण यज्ञ कुण्ड में कूद कर जब सती हो गयी, तब भगवान शिव के आँखों में छलक आये अश्रुबुन्द जिन दो जगहों पर गिरे थे, वहाँ पर पवित्र अमृत कुण्ड बन गये थे। भगवान शिव की आँखों में छलक आये आँसू के एक बुन्द राजस्थान के अजमेर नामक जिस भारतीय क्षेत्र में गिरा था वहाँ पर निर्मित पुष्कर सरोवर! तीर्थ स्थान पुष्कर राज के नाम से प्रसिद्ध हुआ तो भगवान शिव जी की आँखों से दूसरा अश्रुबुन्द जिस स्थान पर गिरा था, उस स्थान पर बना हुआ सरोवर "तीर्थ कुण्ड श्री कटाक्ष राज" के नाम से प्रसिद्ध हुआ लेकिन अब अपभ्रंश के कारण कटास राज कहलाता है।
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शिव जी के नेत्रों से गिरे दो अश्रु बन्दों से बने दोनों तीर्थ कुण्ड 1947 ईस्वी में हुए भारत के बंटवारे के बाद अब दो अलग-अलग देशों में स्थित है।

शास्त्रों में कटास-राज और पुष्कर-राज नामक तीर्थ स्थानों को भूनेत्र अर्थात धरती का नेत्र कहा गया है। लेकिन ऐसा क्यों कहा गया इसके लिए कौशिक कंसल्टेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो के द्वारा शोध किया जा रहा है। यजुर्वेद में श्री कटासराज धाम को सारस्वत प्रदेश में स्थित ब्रह्मावर्त कहा गया है। इस तीर्थ की महानता का प्रमाण आदि ग्रन्थ महाभारत में वर्णित उस घटना से मिलता है, जिसके बारे में लोगों की यह मान्यता है कि कटास-राज अमृत कुण्ड जो पहले एक आम सरोवर की तरह दिखाई देता था, उसी सरोवर के किनारे पाण्डवों के बड़े भाई युधिष्ठिर और उस सरोवर की रक्षा करने वाले यक्ष के बीच वह बहुचर्चित संवाद हुआ था, जिसके कारण यक्ष के द्वारा पूछे गए सभी सवालों के जवाब देकर युद्धिष्ठिर ने न केवल धर्मराज की पदवी पाया था, बल्कि इसी कटास राज सरोवर के पवित्र जल का छिड़काव कर के अचेत अवस्था में पड़े हुए अपने चारों भाईयों को पुनर्जीवित भी किया था। पाण्डवों के साथ घटित उस अविष्मरणीय घटना के कारण "कटास राज सरोवर" एक महान तीर्थ स्थल के रूप में संसार में अपनी सुगन्ध फैलाने लगा।

पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के जिला चकबल में कटाक्ष तीर्थ स्थल के पास बसने वाला कटास नामक वह प्राचीन गाँव आज भी है जहां पर स्थित हिन्दुओं के महान तीर्थ "कटास राज अमृत कुण्ड" 1947 ईस्वी में भारत का बंटवारा होने से पहले हिन्दु धर्म का मुख्य केन्द्र था। भारत का बंटवारा होने से पहले कटास राज मन्दिर के प्राङ्गण में हिन्दी और संस्कृत का महाविद्यालय भी स्थित था, जिसे बंटवारे के बाद बन्द करके स्थायी रूप से खत्म कर दिया गया है। लेकिन उस तीर्थ स्थल पर कटास राज का प्राचीन मन्दिर, श्री कटास राज अमृत कुण्ड के नाम से विख्यात सरोवर और महाविद्यालय के अवशेष अभी भी बचे हुए हैं। जिसकी देख-रेख पाकिस्तान वक्फ़ बोर्ड कर रही है।

इस तीर्थ स्थल हिन्दुओं के कम आवागमन के कारण अब श्री कटास राज कुण्ड के पानी का इस्तेमाल नहीं होने से उस कुण्ड के जल सतह पर सर्वत्र काई जम गया। इसके कारण भगवान शिव के प्रति आस्थावान लोगों के उस तीर्थ स्थान का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। जिसे समय रहते नहीं बचाया गया तो इंसानियत की शुरुआत जिस एक परिवार से हुआ था उसका आखिरी अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा। फिर जाति, धर्म और समुदाय के नाम पर लड़ने वाले लोगों को कैसे यकीन दिलाया जाएगा कि सभी धरती वासी एक ही परिवार के सदस्य हैं?

देखें कहाँ है कटास राज मन्दिर👇
🏚️ Katas Raj Temples
PXF2+HMR, Kalar Kahar Rd, Katas, Chakwal, Punjab, Pakistan
https://maps.app.goo.gl/4T9j3hH2S5xtmeEs6


शनिवार, 18 जून 2022

अग्निपथ रिक्रूटमेंट स्कीम के उद्देश्य

अग्निपथ रिक्रूटमेंट स्कीम, Agnipath Recruitment, खोज़ी खबर


भारत सरकार की गृह मंत्रालय के अनुसार अग्निपथ रिक्रूटमेंट स्कीम के तहत अग्निवीर बनने वाले लोगों को आपात स्थिति में सामाजिक सहायता और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये तैयार करना है। इस स्कीम के तहत न नई पीढ़ी के भारतीय नागरिकों को राष्ट्रीय एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने में सहायता करने के लिए तैयार करना है बल्कि गरीबी के कारण अच्छी शिक्षा, चिकित्सा और प्रशिक्षण देने वाला माहौल न मिल पाने के कारण बेरोजगारों को बड़गलाने वाले नेताओं और आपराधिक गिरोहों के बहकावे में आकर अपना जीवन बर्बाद करने वाले लोगों को बचाना भी है। भारत सरकार की इस दूरदर्शिता के कारण सभी भारतीय नागरिकों को केन्द्र सरकार की इस योजना में आगे बढ़ कर साथ देना चाहिए। लेकिन देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त काँग्रेस जैसे लूटेरों का साथ देने वाले गिरोहों के लोग अपनी शाख बचाने के लिए दंगा-फसाद, तोड़-फोड़ और आगजनी करके इस लोकहितकारी राष्ट्रीय योजना का विरोध कर रहे हैं। ताउम्र बन्धुआगिरी और बेरोजगारी से जूझने वाले लोगों को भी यह सोचना चाहिए कि आखिर क्या कारण है कि आम लोग ताउम्र ईमानदारी पूर्वक मेहनत और मजदूरी कर के भी भविष्य के लिए एक लाख रुपये भी जमा नहीं कर पाते हैं, गम्भीर रूप से बीमार होने पर भी इलाज़ नहीं करवा पाते हैं, अपना घर नहीं होने के कारण या किराये का घर नहीं ले पाने के कारण छोटा-मोटा दुकान तक नहीं खोल पाते हैं। ऐसे में स्वरोजगार शुरू करने की बातें सोच भी नहीं पाते हैं। इस मंहगाई के दौर में भी मात्र छह-सात हजार रुपये मासिक वेतन पर गुजारा करते हैं। पूरे देश में प्राइवेट सुरक्षा गार्ड की नौकरी करने वाले लोगों में सर्वाधिक संख्या सवर्ण जाति के उन लोगों की है जिनके पास न तो रहने के लिए सुरक्षित घर है न ही खेती-बाड़ी करने लायक पर्याप्त जमीन। बहुत लोग ऐसे भी हैं जिनके पास एक झोपड़ी बनाने लायक भी जमीन नहीं है। इसके बावजूद पिछली सरकारों के द्वारा बनाए गए कानूनों के कारण सवर्ण जाति के लोगों को तमाम विकास योजनाओं का लाभ लेने से वंचित रखा जाता था। यहाँ तक कि सवर्ण जाति के गरीब-गुरबों की सहायता करने के लिए भी कोई मंच नहीं था। जबकि देश को पहले धर्म और फिर जाति और लिंग के आधार पर बांटने वाले नेहरू, इंदिरा और राहुल गाँधी जैसे नेताओं की तिजोरी में बिना कोई मेहनत-मजदूरी किये अरबों रुपये जमा हो जाते हैं। आखिर क्या कारण है कि नेतागिरी की आड़ में नौकरी लगवाने का धन्धा करने वाले लोग विदेशों में भी हवेलियां खड़ी कर लेते हैं, जबकि मेहनत मजदूरी करने वाले लोग खासकर सवर्ण जाति के अनारक्षित लोग ताउम्र एक झोपड़ी बनाने के लिए भी तरसते रहते हैं? आम नागरिकों को ऐसे गिरोहों के चंगुल में फँसने से बचाने के लिए भी भारत सरकार ने "अग्निपथ रिक्रूटमेंट स्कीम" शुरू किया है। 


हमें यह जानना चाहिये कि इस देश की भलाई चाहने वाले लोग नहीं, बल्कि सरकारी संसाधनों को लूट कर अपना खजाना भरने वाले लोगों के द्वारा ही भारत सरकार की इस योजना का विरोध किया जा है। अतः हमें देश विरोधी ताकतों के विरोध में खुल कर आगे आना चाहिए और केन्द्र सरकार की इस योजना का लाभ लेने के लिये अपने समाज के ज्यादा से ज्यादा लोगों को प्रेरित करना चाहिए। अपने तमाम सपनों को पूरा करने का सामर्थ्य देने वाले इस योजना का लाभ लेने के लिए यदि सवर्ण समाज के गरीब-गुरबों को आगे लाया जाए तो राष्ट्रहित में ज्यादा अच्छा होगा। क्योंकि एकमात्र यही वर्ग है जो जातिय आरक्षण के कानून के द्वारा लगातार उपेक्षित होते हुए भी इस देश की सुरक्षा के लिये सबसे ज्यादा कुर्बानियां दे चुका है। इन बातों को गहराई से समझने के कारण ही माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने आर्थिक विकास के आधार पर आरक्षण का कानून बना कर पूरे देश में लागू करने का प्रयास किया था। लेकिन इस योजना को सवर्णों से घृणा करने वाले नेताओं ने अपने राज्यों में लागू नहीं होने दिया। जबकि ऐसी ही दूरदर्शिता के कारण ही अन्तरराष्ट्रीय मंच पर लगातार अगली पंक्तियाँ में खड़े रहने वाले प्रधानमंत्री के रूप में अपनी छवि बना कर माननीय मोदी जी इस देश का मान बढ़ा रहे हैं। इनके पहले भारतीय प्रधानमंत्री को कभी भी वह सम्मान नहीं मिला जो माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी के के नेतृत्व में मिल रहा है। अपने मंत्रालय में शामिल विद्वान, देशभक्त और ईमानदार नेताओं की टीम के साथ देश के वंचित लोगों की भी सहायता करने के लिए लगातार काम कर रहे मोदी जी विश्व के सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित नेता के रूप में जितनी जल्दी पहचान बनाये हैं वह विश्व के टॉप टेन आश्चर्यों में सबसे बड़ा आश्चर्य है। यह देश से प्रेम करने वाले भारतीयों के लिए गर्व की बात है। लेकिन जिन लोगों को भारत को मिलने वाला यह सम्मान खटक रहा है, वे लोग हड़ताल और तोड़-फोड़ कर के भारत सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा और अखण्डता सुनिश्चित करने के लिये शुरू की गई इस योजना को बन्द करने के लिए दबाव दे रहे हैं। अतः आम नागरिकों को भी देश में अराजक स्थिति उत्पन्न करने के प्रयास में लिप्त नेताओं का विरोध करते हुए भारत सरकार की इस योजना को लागू करवाने के लिये आगे आना चाहिए। हड़ताल और तोड़-फोड़ करने वाले लोगों का एकजुट होकर विरोध करना चाहिए। 

अग्निपथ रिक्रूटमेंट स्कीम के लाभ :
आम लोगों को क्या फायदा होगा केन्द्र सरकार के द्वारा शुरू किये जा रहे अग्निपथ रिक्रूटमेंट स्कीम से इसके बारे में जानने के लिए देखें भारत सरकार की गृह मंत्रालय के द्वारा बताये गये ये लाभ। 
1.  युवाओं का सेना में जाने का सपना साकार होगा। 
2.  बेरोजगार युवाओं को चार सालों तक सैन्य कार्य करने का अनुभव मिलेगा। 
3.  नौकरी के दौरान तकनीकी प्रशिक्षण यथा डिप्लोमा और डिग्री कोर्स करने का भी अवसर मिलेगा। 
4.  अग्निपथ रिक्रूटमेंट स्कीम के तहत 4 वर्षों तक नौकरी करते हुए तकनीकी विषयों से सम्बन्धित कोर्स पूरा करने के बाद सेवानिवृत्त होते ही कॉर्पोरेट सेक्टर में जगह हासिल करना आसान हो जाएगा। 
5.  चार वर्षों के बाद दूसरी नौकरियों में भी अवसर प्राप्त करना आसान हो जाएगा।
6.  पुलिस और रक्षा विभाग से सम्बन्धित दूसरी सेवाओं में वरीयता मिलेगी। 
7.  इस वरीयता के अनुसार अग्निपथ रिक्रूटमेंट स्कीम के तहत अग्निवीर बनने वाले 25% लोगों की नौकरियां पूर्णकालिक किया जा सकेगा। अर्थात 25% प्रतिभाशाली अग्निवीरों की नौकरी 62 वर्ष की आयु तक बढ़ाया जा सकेगा। 
8.  केन्द्र सरकार CAPFs और असम राइफल्स में नौकरी करने के लिए इच्छुक अग्निवीरों को प्राथमिकता देगी। 
9.  नौकरी के दौरान सभी कैडेट्स को सभी तरह की चिकित्सा सुविधाएं भी निःशुल्क उपलब्ध करवायी  जाएगी। 
10. बेहतर भविष्य बनाने के लिए जरूरी सभी आवश्यकताएँ यथा भोजन, वस्त्र, अनुशासित माहौल, तकनीकी शिक्षा, प्रशिक्षण, मासिक वेतन और अपने सपनों को पूरा करने के लिए सरकार द्वारा दिए जाने वाले एकमुश्त पेंशन के साथ सरकारी विभागों में आगे भी नौकरी करने के लिए इच्छुक होने पर वरीयता का वादा एकसाथ केन्द्र सरकार के द्वारा मिलने पर युवाओं में देशभक्ति की भावना जगाने का प्रयास करना भी भारत सरकार के इस योजना का उद्देश्य है। 

शुक्रवार, 17 जून 2022

अग्निपथ के अग्निवीर कितनी करेंगे कमायी


AgnipathRecruitmentScheme

Background Investigation, खोज़ी खबर

अग्निपथ रिक्रूटमेंट स्कीम के तहत बहाल किये जाने वाले जवानों की शुरुआती वेतन 21,000/- रुपये होगी। जो सालोंसाल बढ़ते हुए 28000/- रुपये तक हो जाएगी। अग्निपथ रिक्रूटमेंट स्कीम नामक योजना के तहत बहाल होने वाले जवानों का वेतन दूसरे साल 23,100/- रुपये और तीसरे साल 25,580/- रुपये हो जाएगा। इस तरह से अपनी जरूरी आवश्यकतााओं में सेे कटौती करने के बावज़ूद ताउम्र 1,00,000 (एक लाख) रुपये की भी जुगाड़ नहीं कर पाने वाले परिवार के लोग भी अपने चार वर्षीय सेवा काल के दौरान 11,72,160/- रुपये तो वेतन के रूप में ही कमा लेंगे। इसके अलावा मात्र चार वर्षीय नौकरी पूरा कर के 24 वर्ष की आयु में अपना आगे का भविष्य अपनी इच्छा के अनुसार निर्धारित करने के लिए सेवानिवृत्त कर दिये जायेंगे। चार वर्षों की अवधि में नागरिकता के सभी अधिकारों और कर्तव्यों की शिक्षा लेने के बाद पेंशन के रूप में 11 लाख 71 हजार रुपये भी एकमुश्त प्राप्त करेंगे। जिसका इस्तेमाल अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए या अपना व्यापार शुरू करने के लिए कर सकेंगे। सरकार की इस योजना में कोई बुराई नहीं है। लेकिन कुछ लोगों का गिरोह इसके विरोध में रेल की पटरियां उखाड़ने और तोड़-फोड़ करके देश के संसाधनों को बर्बाद करने का काम कर रहे हैं, जो सर्वथा अनुचित है। 

केन्द्र सरकार की अग्निपथ योजना के तहत बहाल होने वाले युवाओं को कितनी कमाई होगी उसे संलग्न चार्ट से समझ सकते हैं। : 
पहला साल- 21,000×12= 2,52,000
दूसरा साल- 23,100×12= 2,77,200
तीसरा साल- 25,580×12= 3,06,960
चौथा साल- 28,000×12= 3,36,000
कुल वेतन का योग 11,72,160 रुपये 

रिटायरमेंट राशि 11,71,000 रुपये
कुल कमाई राशि का योग 23,43,160

मात्र चार वर्षों की सेवा अवधि में ही इतनी कमाई करने का अवसर देने वाला जॉब आर्मी की है। रहना-खाना, आर्मी का मुफ्त में प्रशिक्षण और इलाज़ आदि कई सुविधायें फ़्री है। मतलब यह है कि जो उम्र गलियों में क्रिकेट खेलने, नुक्कड़ों पर चाय और सिगरेट पीने में निकल जाती है, उन 4 सालों में 23 लाख 43 हज़ार 160 रुपये कमाने का सुअवसर भारत सरकार दे रहा है।

मात्र 17 से 23 साल की उम्र के लोगों के लिए यह योजना यूक्रेन और रूस में चल रहे युद्ध की विषम परिस्थितियों से निपटने के लिये यूक्रेन के सभी नागरिकों को सैन्य प्रशिक्षण की अनिवार्य शिक्षा कानून को देख कर शुरू किया है। आज विश्व में जो हो रहा है उससे निपटने के लिए इस तरह की योजना की आवश्यकता भी थी। मगर भारत को तोड़ने की साजिश करने वाले लोगों के उकसावे पर केन्द्र सरकार के द्वारा शुरू किये गये अग्निपथ योजना के विरोध में तोड़-फोड़ कर रहे हैं। अतः आप लोगों से अपील है कि देश विरोधी लोगों के उकसावे में आकर अपने ही हाथों अपना नुकसान नहीं करें। बल्कि अपने बच्चों को भारतीय सेना को ज्वाइन करने के लिए प्रेरित करें। विश्व मंच पर सबसे ज्यादा प्रसिद्ध प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी केन्द्र सरकार के पैसों से 4 वर्षों तक आपको आर्मी की ट्रेनिंग देंगे, साथ मे इतने सारे पैसे भी। जॉब वैसे भी नहीं है, बारवीं या ग्रेजुएशन करने के बाद सीधे अग्निपथ के रास्ते पर चले जाइए, यही आपका भविष्य है और हमारा भी।

उसके बाद 24-25 की उम्र में रिटायरमेंट के पैसों से अपना बिजनेस शुरू करें लीजिएगा,या इंडियन आर्मी की ट्रेनिंग के साथ गल्फ़ तो है ही, आर्मी का अनुशासन आपके बहुत काम आएगा। आपकी वर्तमान लाइफ जैसी अभी चल रही है, उससे बेहतर तय है। तो आप अग्निपथ योजना के विरोध का हिस्सा मत बनिए बल्कि ये समझिए कि, आप के लिए बल्क में, आर्मी तक नहीं पहुँचने देने का जो आरक्षण था अब वह ख़त्म हो चुका है।

अपना भविष्य सुरक्षित कीजिए और सोचिए 24 के उम्र में 0 से आर्मी ट्रेनिंग के साथ कुल मिला कर 11 लाख रूपये सैलरी के रूप में मिलने वाला पूरा पैसा अगर आप ख़त्म भी कर देते हैं तो रिटायरमेंट के वक़्त मिलने वाला 11 लाख 71 हज़ार रुपया कम नहीं है।

देश में 50% लोग ऐसे हैं जो पूरी उम्र में इतना पैसा नहीं कमाते जो  4 साल में अग्नीपथ से आयेंगे।💞
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शुक्रवार, 10 जून 2022

सबसे सस्ता गोल्ड बेचने वाले देश


आइये हम जानते हैं कहाँ मिलता है World's Cheapest Gold

दुनिया के इन देशों में मिलता है सबसे सस्ता सोना, लेकिन भारत में इसे सीमित मात्रा में ही ला सकते हैं। 
आपको बता दें कि दुनिया कई देशों में सोने के दाम भारत से 15 प्रतिशत तक कम किमत में मिलते हैं। लेकिन उन देशों की सूची में मुख्य रूप से कौन-कौन देश सम्मिलित हैं और उन देशों से कितना सोना भारत ला सकते हैं, आइए जानते हैं उनके बारे में।

विश्व में सबसे सस्ता सोना :

दुनिया के इन देशों में मिलता है सबसे सस्ता सोना, लेकिन भारत सीमित मात्रा में ही सोना ला सकते हैं।

दुनिया के कई देशों में Gold की दीवानगी सिर चढ़कर बोलती है। स्विटजरलैंड के ज्यूरिख शहर में लोगों को अच्छा और बेहतर सोना मिल सकता है, दुनिया में पर्यटन का एक प्रमुख केन्द्र दुबई भी गोल्ड का एक बड़ा हब है।
 
मानव सभ्यता के हजारों वर्षों के इतिहास में जिस चीज़ से इंसान ने बेइंतहा प्यार किया है, वह है सोना! सोने को लेकर इंसान की इसी दीवानगी ने सोने को दुनिया की सबसे बहुमूल्य धातुओं में से एक बना दिया है। यही कारण है कि सोने को मुश्किल दिनों का साथी भी कहा जाता है। दुनिया में तेल के बाद सबसे अधिक पैसा सोने में निवेश किया जाता है। 

सोने को लेकर दीवानगी सिर्फ भारत में ही नहीं है, बल्कि दुनिया के कई देशों में इसकी दीवानगी सिर चढ़कर बोलती है। हम सभी ने विभिन्न अखबारों, मैग्ज़ीन्स, फिल्मोर और समाचारों में दुबई के बारे में जो तस्वीरें देखी और पढ़ी है उसमें दुबई का नाम सोने की सर्वाधिक तस्करी करने वाले देशों की सूची में पहला स्थान है। दुबई में जितने भी प्रसिद्ध गोल्ड मार्केट हैं वहां की दुकानों में भरे हुए जेवरात देख कर आँखें चौंधिया जाती है। ऐसे में आपके मन में भी सवाल उठ रहा होगा कि क्या वहां सोेना इतना सस्ता है? जी हां, दुनिया में कई देशों में सोने के दाम भारत से 15 प्रतिशत तक कम हैं। आइए जानते हैं इन देशों के बारे में.. 

दुबई :
सस्ते सोने के मामले में दुबई का मुकाबला शायद ही कोई दूसरा देश कर पाए। दुनिया में पर्यटन का एक प्रमुख केंद्र दुबई गोल्ड का भी एक बड़ा हब है। यहां की सरकार सोने पर किसी प्रकार का टैक्स नहीं लगाती है, यह भी यहां सस्ता सोना मिलने का एक प्रमुख कारण है। यहां का दिएरा एक ऐसी जगह है, जहां गोल्ड सूक एरिया गोल्ड शॉपिंग का हब माना जाता है। 

स्विट्जरलैंड :
आपको स्विट्जरलैंड का नाम सुनकर स्विस बैंक का ख्याल जरूर आता होगा। लेकिन स्विटजरलैंड दुनिया भर में गोल्ड के लिए भी फेमस है। स्विस वॉचेज़ अपनी डिजाइनर गोल्डन घड़ियों के लिए काफी मशहूर है। इस देश में सोने का अच्छा कारोबार होता है। स्विटजरलैंड के ज्यूरिख शहर में लोगों को अच्छा और बेहतर सोना मिल सकता है। यहां हैंडमेड डिजाइनर गहनों के साथ आपको काफी वैरायटी मिलती है। 

हांगकांग :
एक समय ब्रिटिश कोलोनी रहे हांगकांग में टैक्स की रियायतें भी भरपूर हैं। ऐसे में चीन का यह स्वायत्त क्षेत्र दुनिया भर में गोल्ड शॉपिंग के लिए भी मशहूर है। हांगकांग में आपको सोना बेहद कम कीमत पर मिलता है। मालूम हो कि यह विश्व का सबसे एक्टिव गोल्ड ट्रेडिंग मार्केट में से एक है। 

थाईलैंड :
अपने सुंदर बीच और पर्यटन केंद्रों के लिए मशहूर थाईलैंड भी दुबई की तरह ही सस्ते सोने का केंद्र है। थाईलैंड के बैंकॉक में आप कम कीमत में अच्छी क्वालिटी का सोना खरीद सकते हैं। थाईलैंड के चाइना टाउन में यावोरात रोड सोना खरीदने के लिए सबसे पसंदीदा जगहों में से एक है। यहां आपको बहुत कम मार्जिन में गोल्ड मिल जाता है और साथ ही अच्छी वैरायटी भी होती है। 

भारत :
अगले आलेख में आप पढ़ सकते हैं भारत के नये कस्टम रूल्स और भारत में कहाँ मिलता है सबसे सस्ता सोना? 🤔

भारत ला सकते हैं कितना सोना? 

सवाल उठता है कि थाइलैंड से लेकर दुबई तक आप सस्ता सोना खरीद सकते हैं। लेकिन विदेशों में खरीदा सोना क्या भारत लाया जा सकता है, इस पर टैक्स कितना देना होगा, आपको इस पर भी गौर करना चाहिए। देश में सोने के सिक्के गहने आदि लाने को बड़ी सख्ती से केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाता है। वित्त मंत्रालय के तहत आने वाली सेंट्रल इनडायरेक्ट टैक्स और कस्टम ने गाइड फॉर ट्रैवलर्स जारी की गई है। इसमें आपको बताया गया है कि विदेश से आप कितना सोना ला सकते हैं।

ये है ड्यूटी चार्ज :
जो नागरिक एक साल से विदेश में रह रहे हैं, वे अधिकतम 40 ग्राम सोना ही ला सकते हैं
यात्रियों को सीमा से अधिक गोल्ड लाने पर ड्यूटी कनवर्टिबल करेंसी में देना होता है।
गोल्ड बार, तोला बार जिस पर  मैन्युफैक्चर का नाम सीरियल नंबर लिखा होता है, 12.5 प्रतिशत की दर से सरचार्ज देना होता है।
अन्य प्रकार के गोल्ड जैसे कि पत्थरों या मोतियों से जड़े गहनों के अलावा 12.5 प्रतिशत ड्यूटी के साथ 1.25% समाज कल्याण सरचार्ज लगाया जाता है।


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