शनिवार, 28 अगस्त 2021

आर्यों का देश है अजर्बैज़ान

आर्यों का देश अजर्बैज़ान

अजर्बैज़ान का बाकु है कश्यप ऋषि के प्रपौत्र और सूर्यवंशी राजा इक्ष्वाकु की जन्म भूमि

हरिवंश पुराण में वैशम्पायन ऋषि के द्वारा वर्णित एक कथा और महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत नामक ग्रन्थ में वर्णित प्रसंग के अनुसार सूर्यवंशी राजा इक्ष्वाकु के वंश में उत्पन्न एक दुराचारी राजा ने अपने छोटे भाई हर्यश्व को अपने राज्य (बाकु) से निकाल दिया था। तब वे वनों में भटकते हुए पूरब के देश की ओर चले गए थे। वहीं उनकी भेंट दानव राज मधु की बेटी मधुमती से हुआ। जो इनके रूप और पौरुष से आकर्षित होकर विवाह करने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन राज्यहीन हो चुके हर्यश्व ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। तब मधुमती ने यह कह कर स्त्री अपने जीवन में एक ही पुरुष की कामना करती है, मैंने आपको पति मान लिया है तो अब आपके अलावा किसी अन्य पुरुष की कल्पना भी नहीं कर सकती। ऐसे में यदि आप मुझे ठुकरा देंगे तो मैं आजीवन कुवांरी रह लुंगी। इस पर हर्यश्व ने राजकुमारी मधुमती के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिये और उनके साथ वन में ही रहने लगे। कई दिनों से वन में रहने के बाद राजकुमारी ने अपने पिता का आशीर्वाद लेने की इच्छा से उन्हें लेकर अपने जन्मभूमि आभीर देश में चली गई तथा अपने पिता को अपने विवाह से लेकर राजकुंवर हर्यश्व के कुल और वंश के बारे में बताते हुए पूरी आपबीती सुना दी। तब दयालु स्वभाव के दानव राज मधु ने अपने राज्य का आधा भाग जो गिरनार और रैवतक पर्वत से घिरा हुआ था अपनी बेटी को सौंप कर हर्यश्व को वहाँ के राजा बना दिए और आधा भाग अपने बेटे लवण को देकर तपोवन में चले गए। राजा हर्यश्व ने अपने राज्य को नये निर्माण से इतना सजाया की वह अपने सुन्दरता के कारण दूर-दूर तक सुराष्ट्र के नाम से जाना जाने लगा। जो कालान्तर में सौराष्ट्र के नाम से भी विख्यात हुआ। इसी सौराष्ट्र के निवासी पूरी दुनियां की जानकारी रखने वाले कौशिक गोत्रीय ब्राह्मणों के साथ व्यापार करने के लिए इक्ष्वाकु और हर्यश्व नामक अपनी ने पूर्वजों की जन्मभूमि पर जब भी आते थे इसी स्थान पर विश्राम करते तथा अपनी शान्ति और सुरक्षा के लिए सभी देवी-देवताओं में श्रेष्ठ माने जाने वाले कौशिक विश्वामित्र भगवान के पुत्र अग्निदेव के प्रतीक अग्नि कुण्ड में हवन (होम) कर के नटराज शिव और विघ्नविनाशक गणेश-कार्तिकेय की पूजा करते थे। सौराष्ट्रियन व्यापारियों के द्वारा निर्मित बाकु के इस आरामगाह में आगंतुुक लोगों के विश्राम के लिए हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध थी। फायर टेम्पल नामक बाकु के इस मन्दिर में नटराज शिव और गणेश भगवान की प्रतिमा सहित भोजन और विश्राम करने के जगह को भी दिखाया गया है। इसके बावजूद वह मन्दिर वहां के स्थानीय लोगों में पौराणिक विश्राम गृह के बजाए Ateshgah temple के नाम से ही प्रसिद्ध है। यह पुरातात्विक स्थान न केवल एक ऐतिहासिक स्थल है बल्कि दो राष्ट्रों के संस्कृतियों का संगम स्थल और सामाजिक सौहार्द का भी प्रमाण है। यकीनन यह इस्लाम और क्रिश्चियनिटी धर्म के अभ्युदय के पूर्व की संस्कृतियों के लोगों के अनुपम प्रेम और विश्वास का ऐतिहासिक स्मारक ही है। देखें आर्यों के देश अजर्बैज़ान में स्थित बाकु नामक प्रान्त और बाकु में स्थित सौराष्ट्रियन लोगो के द्वारा निर्मित आरामगाह और होम करने के लिए निर्मित अग्निदेव के मन्दिर की तस्वीरें :
नटराज शिव की आकृतियुक्त दीपक


विघ्न विनाशक गणेश की मूर्ति
अग्नि का प्राकृतिक कुण्ड
 
कुम्भी बैस कहलाने वाले ब्राह्मणशाही कौशिकों का पारम्परिक भित्तिचित्र
 
अग्नि मन्दिर के प्रवेश द्वार पर पर्शियन लिपि में लिखा हुआ शिलालेख














गुगल मैप पर अजर्बैज़ान में स्थित पुरातात्विक महत्व के इस जगह को देखने के लिए संलग्न लिंक पर क्लिक करें : 
https://maps.app.goo.gl/gdz8s8cxaFmY627V6 
Check out this review of Ateshgah temple on Google Map
https://goo.gl/maps/FQAqZTYHM7sFLjzK9

शनिवार, 21 अगस्त 2021

कविता : सवर्ण अछूत

हमको देखो हम सवर्ण हैं 
भारत माँ के पूत हैं,
लेकिन दुःख है अब भारत में,
हम सब 'नए अछूत' हैं।

सारे नियम सभी कानूनों
ने हमको ही मारा है,
भारत का निर्माता देखो,
अपने घर में हारा है।
नहीं हमारे लिए नौकरी,
नहीं सीट विद्यालय में।
ना अपनी कोई सुनवाई,
संसद या न्यायालय में।
हम भविष्य थे भारत माँ के,
आज बने हम भूत हैं।
बेहद दुःख है अब भारत में
हम सब 'नए अछूत' हैं।

दलित महज़ आरोप लगा दे,
हमें जेल में जाना है।
हम-निर्दोष! नहीं हैं दोषी,
यह सबूत भी लाना है।
हम जिनको सत्ता में लाये,
छुरा उन्हीं ने भोंका है।
काले कानूनों की भट्ठी,
में हम सब को झोंका है।
किनको चुनें, किन्हें हरायें?
सारे पाप के दूत हैं।
बेहद दुःख है अब भारत में
हम सब 'नए अछूत' हैं।

प्राण त्यागते हैं सीमा पर,
लड़ कर मरते हम ही हैं।
अपनी मेधा से भारत की,
सेवा करते हम ही हैं।
हर सवर्ण इस भारत माँ का,
एक अनमोल नगीना है।
इसके हर बच्चे-बच्चे का,
छप्पन इंची सीना है।
भस्म हमारी शिवशंकर से,
लिपटी हुई भभूत है।
लेकिन दुःख है अब भारत में,
हम सब 'नए अछूत' हैं।

देकर खून पसीना अपना,
इस गुलशन को सींचा है।
डूबा देश रसातल में जब,
हमने बाहर खींचा है।
हमने ही भारत भूमि में,
धर्म-ध्वजा लहराई है।
सोच हमारी नभ को चूमे
बातों में गहराई है।
हम हैं त्यागी, हम बैरागी,
हम ही तो अवधूत हैं।
बेहद दुःख है अब भारत में,
हम सब 'नए अछूत' है। 

- कविता शीर्षक #सवर्ण_अछूत नामक यह रचना उदासी सन्त, कवि और समाजसेवी प्रसेनजित सिंह कौशिक उर्फ़ स्वामी सत्यानन्द के द्वारा स्वरचित मौलिक रचना है तथा उनकी कविता संग्रह "मेरा मन यायावर" से उद्धृत है।  राष्ट्रीय एकता तथा सामाजिक समरसता में बाधक बन रहे जाति, धर्म और लिंग आधारित आरक्षण के बजाए आर्थिक और सामाजिक स्थिति के आधार पर आरक्षण के कानून बनवाने के लिए इच्छुक लोगों से आग्रह है कि जात-पात आधारित वर्तमान क़ानूनों के कारण होने वाली आपबीती या अपने आस-पास के लोगों के साथ हो रहे परेशानियों को गद्य और पद्य में लिख कर या वीडियो रिकार्डिंग कर के मुझे जरूर भेजें। ताकि उन्हें इस ब्लॉग या हमारे संगठन की स्मारिका में जन जागरुकता हेतु सम्मिलित कर आपके सन्देशों को प्रचारित-प्रसारित किया जा सके। कृप्या यह सन्देश सवर्ण समाज के अपने मित्रों को जरूर फारवर्ड या अग्रसारित जरूर करें।