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बुधवार, 26 मई 2021
सोमवार, 10 मई 2021
Winging of Scapula एक असाध्य रोग
जब जेनेवा के वेबसाइट पर अपनी तस्वीर दिखाया तब भी किसी को यकीन नहीं हुआ कि मैं वाकई में Winging of Scapula नामक असाध्य बीमारी से जूझ रहा हूँ। मेरी लाइलाज़ बीमारी को बहाना कह कर लोगों ने उड़ाया था मेरा मजाक
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physiopedia.com से डाउनलोड की गयी मेरी तस्वीर |
इसके लिए अपने पूर्व निर्धारित समय पर मैं तो आई.जी ऑफिस में पहुंच ही गया था लेकिन जिनकी सहायता करने के लिए मैंने वह मीटिंग निर्धारित की थी उन्होंने फ़ोन कर के आग्रह किया था कि उनके मामले में मैं जिस अधिकारी से भी मिलुं अपने साथ उन्हें भी जरुर रखूं। उनके इस जिद के कारण निर्धारित समय पर आई.जी के कॉल करने पर भी उनसे भेंट न कर पीड़ित दुखियारिन के आने का इंतजार करता रहा। जब वह पहुंची तब उस आईजी ने हमारे साथ होने वाली मीटिंग कैंसिल कर के अपने विभागीय मीटिंग में व्यस्त हो गया। इसके कारण उस महिला ने इतना हंगामा किया कि आई.जी असीस्टेंट अशोक कुमार सिन्हा ने उन्हें सरकारी कार्य में बाधा उत्पन्न करने के आरोप में गिरफ्तार करने की धमकी देते हुए अपने ऑफिस से खदेड़ दिया था। आईजी ऑफिस के लोग अपने जगह पर सही थें। उन्होंने मदद करने के लिए मुझे हर तरह का आश्वासन दिया था। लेकिन वह महिला पूर्व निर्धारित समय पर नहीं आकर खुद लापरवाही की थी। इसके बावजूद आई जी संजय कुमार सिंह ने 05:00-06:00 बजे के बीच मिलने का दूबारा समय दिया। तब तक गाँधी मैदान थाना और नजदीकी बैंक से सम्बन्धित अन्य लफड़ों को सुलझाने के लिए भी मुझे चलने का आग्रह करते हुए मेरी बाइक पर बैठने लगीं। तब मैंने अपनी बीमारी की जानकारी देते हुए उन्हें बैठाकर बाइक नहीं चला पाने की मजबूरी बताते हुए चार वर्षों के बाद पहली बार उनकी मदद करने के लिए ही बाइक निकालने का कारण और वह बाइक चलाने के कारण बढ़ते जा रहे दर्द की जानकारी भी उन्हें देते हुए माफ़ी माँग लिया था। लेकिन मेरी मजबूरी को अनसुना कर के मेरी बाइक पर जबरन बैठ कर गाँधी मैदान थाना आदि अन्य जगहों पर चलने के लिए जिद करने लगी थीं। मैंने पहली बार एक अनजान महिला को इस तरह जिद करते हुए देखा था। जिसे उनका भोलापन समझ कर न चाहते हुए भी उनको समझाने की कोशिश करना छोड़ दिया और वे जहाँ-जहाँ कहीं वहाँ-वहाँ उनको ढ़ोता रहा। देर रात घर लौटते ही मुझे पेन किलर लेना पड़ा। इसके बावजूद रात भर मुझे नींद नहीं आई। सुबह होने पर मैने महसूस किया कि मेरा हाथ ऊपर नहीं उठ पा रहा है। जरा सी हरकत करने पर भी दर्द से तिलमिला उठता हूँ। तब गुमशुदा लड़की के बारे में पता करने के लिए खुद ही फिल्ड में न जाकर सोशल वर्क और पत्रकारिता से जुड़े अपने मित्रों की मदद से टेलिफ़ोन के द्वारा छानबीन करवाता रहा। जब भी दर्द में कुछ कमी महसूस करता खुद भी अपनी बाइक लेकर निकल जाता था। संयोगवश मेरी मेहनत रंग लाई। मैं अपहरणकर्ता के रूप में आरोपित मुख्य व्यक्ति से सम्पर्क करने में सफल हो गया और उसे कोर्ट में हाजिर होने के लिए दबाव बनाने लगा। तब तक उसके लोकेशन की सूचना अपने मित्रों को देकर उस पर चौतरफा दबाव बनाने लगा तब बाध्य होकर उसने मुझे स्वयं सूचित किया कि मैं स्वयं सरेण्डर करने के लिए तैयार हूँ। इसके लिए अपने वकील से बात कर रहा हूँ।
संयोगवश एक दिन अचानक अयोध्या में बैठे मेरे ग्रुप का ही सेतु सिंह नामक युवक ने मुझे फ़ोन कर के बताया कि मुझे अभी-अभी सूचना मिली है कि अपहृत युवती रचना सिंह को लेकर फरार चल रहा युवक आज कोर्ट में सरेण्डर करने वाला है। इस सूचना के मिलते ही अपहरणकर्ता संजीत कुमार यादव के मुहल्ले में रहने वाले मेरे एक और मित्र ने कॉल कर के सूचित किया कि संजीत और रचना एक घण्टे के अन्दर सीविल कोर्ट में सरेण्डर करने वाला है, वहाँ जल्दी पहुंचिये। इस कॉल के आते ही मुझे पुनः अपनी बाइक से ही कोर्ट की ओर निकलना पड़ा था। इसलिए नहीं कि अपहृत युवती के परिजनों से मुझे प्रेम था और इसलिए भी नहीं कि अपहरण के लिए आरोपित युवक से मेरी दुश्मनी थी। बल्कि इसलिए क्योंकि मेरे कारण कई लोग खुल कर इस मामले के उद्भेदन के लिए मेरी खुल कर मदद कर रहे थे। मेरे वहाँ नहीं जाने से मैं खुद उन लोगों की नजरों से गिर जाता। कोर्ट में पहुंचते ही मैंने देखा कि इस मामले में मेरा साथ दे रहे 7-8 लोग वहाँ पहले ही पहुंच चुके थे। अपहृत कही जा रही युवती जो स्वयं प्रेम प्रसंग के चक्कर में स्वेच्छा से अपने घर से फरार हुई थी, वह भी महिला पुलिसकर्मियों के साथ कोर्ट के बरामदे में अपने कॉल का इंतजार कर रही थी। मैंने उससे मिल कर उसके प्रेमी के बारे में जानकारी देते हुए यह बताया कि वह पहले से ही शादीशुदा और चार बच्चों का बाप है। जिस तरह से पहली पत्नी और बच्चों से पिछले चार वर्षों से कोई मतलब नहीं रखता है उसी तरह किसी और के मिलते ही तुम्हें भी छोड़ देगा। अतः कोर्ट में बयान देते समय यह जरूर कहना की "मैं स्वेच्छा से इनके साथ जरूर भागी थी लेकिन जब विवाह करने के बाद मुझे पता चला कि यह पहले से शादीशुदा और 3-4 बच्चों का बाप है तब मुझे खुद के ठगे जाने का अहसास हुआ। अतः अब इसके साथ नहीं बल्कि अपनी माँ के साथ रहना चाहती हूँ। इसे इसकी धोखाधड़ी करने की सजा मिलनी चाहिए।" बस इसी बयान के आधार पर वह लड़की उसकी माँ को सौंप दी गई। इस तरह एक महीने के अन्दर जिसके साथ उनकी बेटी स्वयं भाग कर गयी थी उससे सम्पर्क स्थापित करने और उन लोगों को समझाने के बाद उनकी बेटी को कोर्ट में हाजिर करवा कर उसके परिजनों तक पहुंचाने का भी काम पूरा कर दिया था।
इस दौरान चार वर्षों से बेरोजगार होकर घर में बैठने की मजबूरी के बावजूद तमाम सरकारी सुविधाओं से भी वंचित होने के बाद भी अपनी जमा पूँजी निकाल-निकाल कर जिस विधवा की सहायता करने के लिए भाग-दौड़ करता रहा उसने अपने अन्य लम्बित मामलों के निपटारे के लिए भी मुझसे मदद करने का आग्रह करने लगी तब मैंने उन्हें स्पष्ट कह दिया कि "मैंने लड़की के अपहरण का मामला समझ कर आपकी मदद किया था।" मुझे आपके कारण ही वह बाइक चलाना पड़ा जिसके कारण मेरी बीमारी फिर से बढ़ गयी है। इसके इलाज के लिए पैसे की जरूरत है। अतः मैं आपका काम तो करवा दुंगा लेकिन अब इसके लिए फी देना होगा। इस मामले से पहले मेरा यही प्रोफेशन था और इसके लिए मैं भारत सरकार के द्वारा रजिस्टर्ड हूँ। तब उन्होंने मुझे वचन दिया की आपकी जो भी फी होगी ले लीजिएगा लेकिन मेरा काम करवा दीजिए। चुकी मेरे एकाउण्ट के लगभग सभी पैसे खत्म हो गये थे इसके कारण मैंने उनसे एडवांस में कुछ पैसे जमा करने का आग्रह किया तो वे बहाने बना कर चली गई थीं। तब मैंने भी अपने स्वास्थ्य कारणों से कहीं आना-जाना बन्द कर दिया था। मुझे बार-बार फोन कर के घर में आकर भेंट करने के लिए बुलाने पर भी जब मैं विधवा महिला अनामिका किशोर के यहाँ नहीं गया तब एक दिन उनका बेटा मेरे घर में आकर माँ की मदद करने का आग्रह किया। तब न चाहते हुए भी उनकी माँ की कई लम्बित मामलों की पैरवी करने के लिए लगातार दो-तीन दिनों तक समय दिया। लेकिन जैसे ही पैसे की बात करता वे बहाने बनाने लगती। मैं समझ गया था कि वे लोग जरूरत से ज्यादा चालाक हैं। यही कारण है कि हर जगह उनका आसानी से होने वाला काम भी फँस जाता है। चुकि वह महिला मेरे ग्रामीण क्षेत्र की ही निकल गई थी जिसके कारण मैं उन पर पैसे के लिए दबाव नहीं बना पा रहा था। लेकिन उन्हें भी तो मेरी परेशानी समझनी चाहिए थी। एक दिन उनके जिद के कारण मुझे इतनी भीड़-भाड़ वाली गली में बाइक लेकर जाना पड़ गया जहाँ अपने दाहिने हाथ में हो रहे दर्द के कारण बाइक की हैण्डल नहीं सम्भाल पाया और दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। उसके कारण मेरी गाड़ी और हेलमेट तो क्षतिग्रस्त हुआ ही पहले से ही Winging of scapula से सबसे ज्यादा पीड़ित दाहिने हाथ में ही दुबारा चोट लगने से हमारी परेशानी और बढ़ गई थी। जिसका इलाज़ करवाने के लिए डॉक्टर का फी देने तक का पैसा अपने पास नहीं होने के कारण जब मैंने उस महिला से उनकी मदद करने के लिए किया गया खर्च माँगने लगा तब मोच बैठाने वाले से दिखवा देने की जिद कर के मुझे Pain Relief Spray लाकर दे दी। जबकि मैं जानता था कि मोच से नहीं बल्कि किसी और बीमारी से परेशान था और चोट लगने के कारण मेरी बीमारी विकराल रूप धारण करने वाली थी।
उस दुर्घटना के बाद मैं उनके बुलाने पर भी जब दुबारा उनकी मदद करने से इंकार कर दिया था तब एक दिन वे खुद हमारे घर पहुंच गई और क्षेत्रीय होने का वास्ता देते हुए कहने लगी कि "आप ही न कह रहे थे कि आपकी बेटी! मेरी भी बेटी है। अतः किसी भी तरह की परेशानी होगी तो मुझे जरूर बताइएगा। जहाँ तक होगा आपकी मदद जरूर करेंगे। फिर ऐसा क्या हुआ कि आप मेरा कॉल रीसिव करना भी छोड़ दिये? बिना मेरी सूचना के मेरे बैंक एकाउण्ट में से जो पैसे गायब हो गए हैं, सिर्फ़ उसकी रिकवरी करवा दें। फिर आप जितनी कहेंगे उतनी फी आपको दे देंगे।" इस पर मैं उन्हें बार-बार समझाता रहा कि आपके एकाउण्ट का पैसा किसी और ने नहीं बल्कि आपकी अपनी बेटी ने ही निकाला है। ऐसे में बैंक पर दबाव देना उचित नहीं है। लेकिन वे मानने के लिए तैयार नहीं हुई।... और अगले दिन बैंक मैनेजर पर इसके लिए दबाव बनाने का वचन लेने के बाद ही मेरे घर से वापस गयी। मुझे उनकी गिड़गिड़ाहट पर तरस खाकर खुद बीमार होने पर भी उनकी मदद करने के लिए जाना पड़ता था। इसका परिणाम यह हुआ कि मेरी बीमारी और बढ़ गई है तथा मैं फूल टाइम बेडरेस्ट के लिए मजबूर हो गया हूँ।
अब मसाढ़ी के उदय किशोर सिंह की विधवा पत्नी अनामिका किशोर अपनी बेटी की बरामदगी के बाद मुझे इनाम या सम्मान देने के बजाय यह आरोप लगा रही हैं कि मैं उनकी बेटी को भगा कर ले जाने वाले युवक का ही साथ दे रहा हूँ। इसी के कारण उन लोगों के द्वारा बार-बार बुलाने पर भी उन लोगों के पास नहीं जा रहा हूँ। जबकि हकीकत यह है कि मैं वाकई में बहुत ज्यादा परेशान और तनाव में हूँ। अपने स्वास्थ्य कारणों से ही घर से नहीं निकल पा रहा हूँ।
मैं हनुमान तो हूँ नहीं जो सीना चीड़ कर दिखा दूँ। आज तक आप लोगों से अपनी बीमारी के बारे में न बता कर सामाजिक गतिविधियों में इसलिए मग्न रहता था ताकि अपनी जिन्दगी को जी भर के जी सकूं। अन्यथा बीमारी को याद कर-कर के निर्दयी और निष्ठुर हो चुके लोगों से चर्चा करने से मानसिक तनाव और बढ़ेगा ही। जिसके लिए अपने स्वास्थ्य की परवाह किये बगैर तन, मन, धन सब कुछ लगा दिया जब वैसे लोग भी धोखेबाज़ निकल गये तो समाज के अन्य लोगों से क्या आशा करूं?
फत्तेपुर वासी सतीश जी की माँ पटना के NMCH में इलाज़रत हैं। उन्हें डॉक्टरों का सहयोग नहीं मिल पा रहा है, इसके लिए सतीश जी ने Bargayan Warriors are नामक हमारे व्हाट्सएप ग्रुप के सदस्यों से मदद की गुहार लगाये थे। लेकिन यह पहला अवसर है जब चाह कर भी उनकी मदद नहीं कर पाया। इसके कारण वे नाराज़ होकर मुझसे आग्रह किया हैं कि "प्रसेनजित जी! जब मेरी मदद नहीं कर सकते हैं तो इस ग्रुप से मुझे बाहर कर दीजिए।" लेकिन बहुत ही दुख की बात है कि इस ग्रुप के लोग उन्हें मदद करना तो दूर सांत्वना देना भी जरूरी नहीं समझे और दूसरे लोगों के अनावश्यक सन्देश भेज-भेज कर अपनी विद्वता का बखान करते रहे। अतः बन्धुओं से आग्रह है कि कृप्या संकटग्रस्त लोगों की मजबूरियों को भी समझें। उनके दुःख में साथ दें। मैं चाहता था कि मेरे मरने के बाद कोई भी व्यक्ति यह न कहे कि प्रसेनजित ने बूरे समय में मेरा साथ नहीं दिया है। लेकिन लगता है कि काल को अब यही मंजूर है। विशेष क्या कहूँ? जिन्दा रहा तो फिर मिलेंगे।
गुरुवार, 6 मई 2021
मन्दिरों के सीढ़ियों पर क्यों बैठते हैं हिन्दु
दर्शनोपरान्त मन्दिरों के सीढ़ियों पर बैठने की परम्परा क्यों है हिन्दुओं में ?
हिन्दु समाज में बहुत से ऐसे रीती-रिवाज़ हैं, जिन्हे हम सभी ने अपने जीवन में देखा है, ऐसा ही एक रिवाज़ है मन्दिर से निकलते समय मन्दिर की सीढ़ी, पेड़ी या ड्योढ़ी पर बैठने का रिवाज़। आइये जानते हैं की इसका मूल कारण।
आपने बड़े-बुजुर्ग को कहते और करते देखा होगा कि जब भी किसी मन्दिर में दर्शन के लिए जाते हैं तब दर्शन करने के बाद बाहर आकर मन्दिर की सीढ़ी, पेड़ी, ड्योढ़ी, ओसारा या ऑटले पर थोड़ी देर बैठते हैं ।आजकल तो लोग मन्दिर की सीढ़ी पर बैठकर अपने घर की व्यापार की राजनीति की चर्चा करते हैं परन्तु यह प्राचीन परम्परा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई थी। वास्तव में मन्दिर की सीढ़ी या पैड़ी पर बैठ कर अपने ध्यान को आज्ञा चक्र में तिरोहित करके परमेश्वर के प्रति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ पूरे मनोयोग से एक श्लोक बोलना चाहिए। यह श्लोक वर्तमान पीढ़ी के लोग भूल गए हैं। अतः आप इस श्लोक को पढ़े और आने वाली पीढ़ी को भी इसे बतायें।
यह श्लोक इस प्रकार है -
अनायासेन न मरणम्, बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।
"अनायासेन न मरणम्" अर्थात अनायास हमारी मृत्यु हो, बिना तकलीफ़ के हम मरें। हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर न पड़ें, कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त न हों चलते-फिरते ही हमारे प्राण निकल जाए।
"बिना देन्येन जीवनम्" अर्थात परवशता का जीवन ना हो, मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित और लाचार हो जाता है वैसे परवश या बेबस न हों, बस इतनी सी कृपा कर दो। आपकी कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके ।
"देहांते तव सानिध्यम" अर्थात् जब भी मृत्यु हो तब भगवान हमारे सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। भीष्म पितामह ने प्रभु श्री कृष्ण के दर्शन करते हुए प्राण त्यागे थे।
"देहि में परमेश्वरम्" हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना ।
अपने अराध्य से क्या करें प्रार्थना :
गाड़ी, लाड़ी, लड़का, लड़की, पति, पत्नी, घर, धन यह नहीं माँगें यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं। इसीलिए अपने आराध्य का दर्शन करने के बाद कुछ देर मन्दिर के दरवाजे के बाहर बैठकर प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए। विदित हो कि प्रार्थना में अपने अराध्य से की प्रिती पाने के लिए एक प्यास होती है। अपने अराध्य के लिए समर्पण का भाव होता है। जबकि सांसारिक भोगों की प्राप्ति के लिए अपने अराध्य से की गई विनती! याचना होता है। अधिकांश लोग याचना करने के लिए ही धार्मिक स्थलों पर जाते हैं। अर्थात भौतिक पदार्थों यथा - घर, व्यापार, नौकरी, पुत्र, पति, स्वास्थ्य सुख और धन आदि का सुख माँगने जाते हैं। जो भक्ति नहीं बल्कि भीख है।
यही कारण है कि अपने भौतिक सुख की प्राप्ति की कामना के बजाए निस्वार्थ होकर परमेश्वर की सेवा में जायें। ऐसी भक्ति ही उत्तम कहलाती है। श्रेष्ठ और विशिष्ट कहलाती है। ऐसी भक्ति को ही प्रार्थना कहते हैं। क्योंकि प्रार्थना का विशेष अर्थ होता है विशिष्ट, श्रेष्ठ। अर्थात् निवेदन। अपने अराध्य या अराध्या के ध्यान में लीन होकर उनकी प्रार्थना करें और प्रार्थना क्या अपने अन्तःकरण से उनका ध्यान करें।
जब हम मन्दिर में दर्शन करने जाते हैं तो खुली आंखों से भगवान को देखना चाहिए, उनकी सुन्दरता और भव्यता को निहारना चाहिए। उनके मनोहर छवि के दर्शन करने चाहिए। जबकि कुछ लोग वहाँ आँखे बन्द करके खड़े रहते हैं। आँखे बन्द क्यों करना हम तो दर्शन करने आए हैं। भगवान के स्वरूप का, उनके श्री चरणों का, मुखारविन्द का, श्रृंगार का। उनके साकार रूप का आपादमस्तक दर्शन करें। उनकी छवि को निहारते हुए अपने स्मृति पटल में बसाने का प्रयास करें। न की आँखे बन्द करके खड़े रहें। अपनी आँखों में भर लें अपने प्रियतम के स्वरूप को। जी भर कर उनका दर्शन करें और दर्शन करने के बाद जब बाहर आकर बैठें, तब जिनके साकार स्वरूप का दर्शन कर चुके हैं उनके निराकार स्वरूप का ध्यान करें। मन्दिर में नेत्र नहीं बन्द करना। बाहर आने के बाद सीढ़ी, पैड़ी या चबुतरा पर बैठकर जब अपने अराध्य का ध्यान करें तब नेत्र बन्द करें और अगर अपने अराध्य या अराध्या का स्वरूप ध्यान में न आए तब दोबारा मन्दिर में जाएं और उनके स्वरूप का पुनः दर्शन करें। इस प्रक्रिया का उन्नत रूप त्राटक कहलाता है। नेत्रों को बन्द करने के पश्चात निम्ननलिखित श्लोक का मनन करते हुए पाठ करें। ताकि नये भक्तों को भी सिद्ध साधु-सन्तों की तरह ईश्वर के अस्तित्व की अनुभूति हो सके।
अनायासेन न मरणम्, बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।
मैं त्राटक के बारे में भी विस्तृत चर्चा जरूर करेंगे। अतः हमेें फॉलो करते रहें। ताकि पूजा करने की असली विधी की जानकारी आपको हो सके। ताकि बढ़ते पाखण्ड के कारण सनातन धर्म को भूलते जा रहे लोगों को पुनः अपनी संस्कृति के प्रति आकर्षण को बढाया जा सके।... ॐ