पटना में गंगा नदी के किनारे गाय घाट में उदासी मठ बड़ी संगत नामक एक मठ का भग्नावशेष स्थित है। इस मठ के उत्तरी भाग में स्थित है दरगाही बाबा के नाम से मशहूर पहुंचे हुए पीर की समाधि। लेकिन ये दरगाही बाबा कौन हैं, इनके बारे में बहुत कम लोगों को ही पता है। दरअसल दरगाही बाबा और लङ्गरा बाबा के नाम से विख्यात पुरुष हमारे पूर्वज़ सरदार किशन सिंह बहादुर थे। ये धोला रियासत के जागिरदार होने के साथ आमेर रियासत के उत्तराधिकारी भी थे। इन्हें मूगल सल्तनत के शहंशाह शाहजहाँ के दरबार में इनके पिता राम सिंह के द्वारा अपने वकील के रूप में उस समय नियुक्त किया गया था, जब औरंगजेब के विरुद्ध दारा शूकोह का साथ देने के लिए बाबा राम सिंह जी को अपने पिता मिर्ज़ा राजा जय सिंह के द्वारा दिया गया कार्य छोड़ कर मूगल दरबार से बाहर जाना पड़ा था।
विदित हो कि मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा ने अपने ज्येष्ठ पुत्र राजा राम सिंह को अपना वकील बना कर उस समय शाहजहाँ के दरबार में नियुक्त कर के गये थे, जब उन्हें सुलेमान शूकोह के साथ शूजा का विद्रोह रोकने के लिए बंगाल की ओर भेजा जा रहा था। लेकिन औरंगजेब के खिलाफ़ दारा शूकोह का साथ देने के लिए राजा राम सिंह जी को भी जाना जरूरी हो गया, तब अपनी जगह पर अपने बेटे कुंवर किशन सिंह बहादुर जी को अपना वकील बना कर आगरा दरबार में नियुक्त करना पड़ा था। ताकि किशन सिंह जी के द्वारा प्राप्त दरबार में घटने वाली घटनाओं की सूचना अपने पिता को भी दे सकें। लेकिन कई युद्धों के अनुभवी इस वंश को सैन्य संचालन के लिए सम्मान जनक दायित्व नहीं सौंप कर बार-बार अपमानित करने तथा गलत युद्ध नितियों के कारण फैसला होने से पहले ही पराजय मान कर युद्ध क्षेत्र से भागे दारा शूकोह की कायरता सहित सूलेमान शूकोह का दुर्व्यवहार भी राम सिंह और मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा को औरंगजेब का साथ देने के लिए बाध्य कर दिया था। इन घटनाओं से अनभिज्ञ सरदार किशन सिंह बहादुर जी को दारा शूकोह की मदद करने की जिम्मेदारी शहंशाह शाहजहाँ के द्वारा सौंप कर पहाड़ी राजाओं को एकजुट करने के लिए भेजा जा रहा था तब उन्हें अपने पिता और बाबा के द्वारा औरंगजेब को साथ देने की कोई खबर नहीं थी।
उस समय की परिस्थितियों से मजबूर होकर हमारे पूर्वज़ सरदार किशन सिंह बहादुर जी को अपने पिता के द्वारा दिया गया जिम्मेदारी छोड़ कर दारा शूकोह की मदद करने के लिए पहाड़ी राजाओं को एकजुट करना पड़ा था। उस दौरान दारा शूकोह और शाहजहाँ से खार खाये लोगों ने साथ देने का वचन देकर भी उन्हें बार-बार धोखा दिया। इसके बावजूद वे दारा शूकोह की हार को जीत में बदलने के लिए डटे हुए थे। किशन सिंह जी के अनुरोध पर जसवंत सिंह ने अजमेर के पास दारा शूकोह का साथ देने के लिए तैयार हो गए थे लेकिन धरमत के मैदान में औरंगजेब के विरुद्ध हुए जंग के दौरान दारा शूकोह ने जसवंत सिंह पर विश्वास नहीं किया था और मजबूत स्थिति होने के बाद भी युद्ध का फैसला आने के पहले ही दारा शूकोह युद्ध भूमि से भाग गया था। उस बात को याद कर के जसवंत सिंह ने न चाहते हुए भी किशन सिंह जी को दिये हुए वचन को तोड़ दिया था। परिणाम स्वरूप अजमेर में हुए लड़ाई में भी दारा शूकोह बूरी तरह से पराजित हुआ था।
इसके बावजूद कुंवर किशन सिंह जी! दारा शूकोह का साथ नहीं छोड़े। पारिवारिक सम्बन्धों के कारण सरदार किशन सिंह जी के आग्रह पर ही जिन लोगों ने दारा शूकोह का साथ दिया था वे भी औरंगजेब के मुकाबिल पर्याप्त सैन्य संसाधन न होने के कारण पीछे हट गए थे। आखिरकार दादर में मलिक जीवन के द्वारा दारा शूकोह के साथ किशन सिंह बहादुर को भी गिरफ्तार कर के मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा को सूचित किया गया था। चुकी मलिक जीवन की एक बार मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा ने जान बचायी थी इसलिए उसने भी मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा के पौत्र की मदद करके दोस्ती निभाया था। उन्होंने हमारे पूर्वज़ सरदार किशन सिंह को सपरिवार बिहार की ओर भाग जाने में मदद तो किये ही, किसी को राजा जय सिंह पर शक न हो इसके लिए उनके द्वारा दारा शूकोह और उनके बीबी बच्चों को औरंगजेब के दरबार में हाजिर करवा कर सल्तनत के प्रति मिर्जा राजा जय सिंह बाबा की वफादारी को भी साबित करने में मदद किये थे।
कुंवर किशन सिंह जी की फरारी की खबर सुनकर औरंगजेब ने उनकी जागिरदारी वाली धोला रियासत सहित उनके सभी निजी सम्पत्तियों पर कब्जा कर के मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा को ही अपने पौत्र किशन सिंह जी को जिन्दा या उनकी मृत्यु का प्रमाण लेकर ही दरबार में हाजिर होने का आदेश देकर उन्हें न केवल बूरी तरह अपमानित किया था बल्कि किशन सिंह को गिरफ्तार किये बगैर दरबार में आने से भी मना कर के चारों ओर अपने गुप्तचर लगा दिया था।
इस दौरान मलिक जीवन और बाबा जय सिंह जी के द्वारा बताए गए जगह पर बिहार में आकर किशन सिंह जी ने पड़ाव डाला। पटना के लोहानीपुर में रहने वाले सूफ़ी मत के अनुयायी दीवान शाह अर्जन के घर में अपनी पहचान छुपा कर नौकरी किए और उनकी मदद से ही पुनपुन नदी के किनारे स्थित बियाबान जंगल में जैबर नामक गाँव बसा कर जीवन पर्यंत औरंगजेब के खिलाफ़ संघर्ष करते रहे थे।
इस दौरान सरदार किशन सिंह को मराठा सरदार शिवाजी और जम्मू के राजा मेदिनी सिंह के बेटे दूनी सिंह सहित सिख सरदार गोविन्द सिंह जैसे वीरों का भी साथ मिलता रहा। मगर आगरा के पास विक्रम पुर में मूगल सेना के साथ हुए मुठभेड़ में वीर गति पाने के बाद किशन सिंह बहादुर जी के बीबी-बच्चे औरंगजेब के गुप्तचरों से अपनी पहचान छुपाने के लिए कठिन परिस्थितियों को झेलते हुए भी अपने अस्तित्व को बचाये रखें। हालांकि बाद में आमेर रियासत के कुम्भी बैसों के इस वंश ने पटना में जैबर के आस-पास के भी काफ़ी जमीन कब्जा कर के जैबर, फत्तेपुर, दौलतपुर, सैदनपुर, मसाढ़ी और एकउना नामक छः गाँव बसा लिये। जिनमें सरदार किशन सिंह और दूनी सिंह के वंशज़ अपने सेवकों दीवान, ब्रह्म भट्ट, हजाम, कुम्हार, लोहार, और कहार के वंशज़ों के साथ आज भी रह रहे हैं।
दरगाही बाबा और लङ्गरा बाबा के नाम से प्रसिद्ध सरदार किशन सिंह के वंशज़ प्रसेनजित सिंह फतुहां प्रखण्ड में स्थित बड़गायां दौलतपुर नामक गाँव में रहते हुए कुम्भी बैस वंशीय कच्छवाहा राजपूतों का इतिहास जानने के लिए वर्षों से शोध कर रहे हैं। कुम्भी, बैस और कच्छवाहा जैसे शब्दों की व्युत्पत्ति कैसे हुई इसे जानने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ लोग आमेर रियासत के इस वंश का गोत्र मानव्य बताते हैं, जबकि इनका गोत्र कौशिक है। इनकी कुल देवी का नाम कुछ लोग जमवाय माता बताते हैं, जबकि इनकी कुल देवी बन्दी मइया है। सम्भवतः इसी के कारण औरंगजेब अपने बचपन में मिर्जा राजा जय सिंह बाबा को "बान बा" कह कर पुकारता था।
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दरगाही बाबा सरदार किशन सिंह बहादुर जी के द्वारा जैबर में स्थापित कौशिक गोत्रीय कुम्भी बारी समाज की कुल देवी बन्दी मइया की पिण्डी |
दादर से पटना आते समय रास्ते में ही अपने परिवार से भटक कर नांदेड़ में स्थित भगवान दास की वीरान हवेली में शरण लेकर अपनी प्राण रक्षा करने वाले दरगाही बाबा किशन सिंह जी के ज्येष्ठ पुत्र माधो दास! बन्दा वैरागी के नाम से क्यों मशहूर हुए? औरंगजेब! मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा को बान बा कह कर क्यों पुकारता था? मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा, उनके बेटे राम सिंह और राम सिंह के भी ज्येष्ठ पुत्र सरदार किशन सिंह बहादुर की भी मृत्यु कैसे हुई, इन लोगों की समाधियाँ कहाँ और किस स्थिति में हैं, ऐसे कई सवालों के जवाब की तलाश करने के लिए मैंने इस ब्लॉगर को अपना माध्यम बनाया है।
मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा के जिस वंश को मूगल काल में अपना घर-बार, धन-धान्य सब कुछ छोड़कर उदासी साधुओं के वेश-भूषा में पटना में रहना पड़ा था, क्या उनके वंशजों को आमेर रियासत या धोला रियासत में स्थित धोलपुर, भरतपुर, आगरा, मथुरा और दिल्ली में स्थित उनके छिन चुके महलों या जमीनों पर दूबारा अधिकार नहीं मिल सकेगा? दरगाही बाबा किशन सिंह के छोटे भाई बाबा विशन सिंह जी के वंश में उत्पन्न आखिरी चिराग दीया कुमारी से क्या मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा के वंश वृक्ष आगे बढ़ सकेगा? क्या सरदार किशन सिंह बहादुर के वंशज़ों की अपेक्षा दीया कुमारी के भाई के रूप में गोद लिये गये पुत्र प्रदुम्न से ही मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा के वंश की नींव ज्यादा मजबूत होगी? यदि नहीं तो क्या अब किशन सिंह जी के वंशज़ों को भी अपनी सम्पत्ति पर दूबारा काबिज होने के लिए कानूनी कारवाई की शुरुआत नहीं करनी चाहिए? ऐसे कई सवालों के जवाब की तलाश करने के लिए लिखा गया है यह लेख।
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मित्रों के साथ प्रसेनजित सिंह उर्फ स्वामी सत्यानन्द दास |
इस वंश के बारे में आगे भी जानकारी देता रहुंगा। मगर कृप्या अपना कमेन्ट देकर भी हमारा मार्गदर्शन करते रहें।
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