सोमवार, 15 अगस्त 2016

सुशील कुमार मोदी बनाम बिहार भाजपा


बिहार गौरव सुशील कुमार मोदी

सन्यास लेने के बाद मुझे जदयू ने भी सम्मानित करते हुए आमंत्रित किया था,
मगर भाजपा को भुला नहीं पाने के कारण दूबारा राजनीति में नहीं लौटा

अब तो भाजपा भी बनता जा रहा है अपराधियों का अड्डा! मगर सुशील कुमार मोदी आज भी हैं हीरा
✍️प्रसेनजित सिंह

जून 2006 में बिहार भाजपा में युवा मोर्चा के प्रदेश महामंत्री मंगल पाण्डेय का भगिना रविशंकर पाण्डेय के द्वारा जब अरूण कुमार सिंह नामक एक इलेक्ट्रिशियन की नाबालिग बेटी के साथ विवाह करनेेे की मंशा जाहिर करने पर उस बच्ची ने विरोध जताया था तब आरोपित युवक ने रिवाल्वर के बल पर उसे जबरदस्ती उठाने की धमकी देने लगा था। इसके कारण इलेक्ट्रिशियन की पत्नी उत्तमी देवी ने मदद के लिए शोर मचातेे हुए उस युवक को लोहे के रड से मार कर जख्मी कर दिया था। शोरगुल सुनकर आस-पास के लोगों को आते देख कर उस समय तो वह अपराधी भाग गया था। लेकिन जाते-जाते उसे उठा लेने की धमकी देता गया था। उस घटना की सूचना मिलते ही अरूण मिस्त्री ने मुझे इस घटना के बारे में बताते हुए आरोपित युवक रविशंकर पाण्डेय के अभिभावकों से उस घटना की शिकायत करने के लिए उसके घर पर चलने का आग्रह किया था। लेकिन अपने घर में शिकायत करने के लिए पहुंचे हुए लोगों को देखते ही रविशंकर पाण्डेय ने न सिर्फ़ हम लोगों को धक्के देते हुए भगा दिया था, बल्कि थोड़ी देर बाद ही दो-तीन लोगों के साथ पिस्टल लेकर इलेक्ट्रिशियन अरूण कुमार सिंह के घर में जाकर गाली-गलौज करने लगा था। बात सिर्फ़ इतनी ही होती तब भी इस मामले को भुलाया जा सकता था लेकिन उसने इलेक्ट्रिशियन की बेटी को जबरन उठा लेने की धमकी देते हुए हाथापाई करने लगा था। घटना स्थल पर मौजूद लोगों ने बीच-बचाव की कोशिश करने पर भी जब यह महसूस किया कि हाथों में पिस्टल लिए हुए ये लोग कुछ भी कर सकते हैं, तब मैंने पुलिस को खबर कर दिया था। मगर जैसा कि आमतौर पर होता है खबर करने के बाद भी जब पुलिस नहीं पहुंची तो आक्रोशित भीड़ ने पिस्टलधारी युवकों को घेर कर धुनाई कर दिया। संयोगववश उसी समय पुलिस के आ जानेेे से लोगों से पिट रहा मुख्य अभियुक्त तो गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन अन्य दो अभियुक्तों के बारे में पूछने पर यह बताया गया कि आप लोगों के पहुंचते ही भीड़ का फायदा उठा कर वे लोग फरार हो गये। लोगों से पिट रहे युवक के साथ कितने लोग थे मैं नहीं जानता हूँ, न ही उसके हाथ में मैंने कोई हथियार देखा था। इसके बावजूद पिस्टल लेकर घर में घुसने का आरोप लगा कर ५०-६० लोगों की भीड़ के द्वारा उस युवक को बूरी तरह मारते हुए देखते ही किसी अनहोनी की आशंका को रोकने के लिए मैंने स्थानीय पुलिस स्टेशन से लेकर वरीय आरक्षी अधीक्षक तक को फोन कर के उक्त घटनास्थल पर अविलम्ब पहुंचने का आग्रह किया था। इस मामले में आरोपित युवक ने अरुण कुमार सिंह नामक इलेक्ट्रिशियन की बेटी के साथ वाकई में जबर्दस्ती किया था की किसी पुरानी दुश्मनी का बदला लेने के लिए मनगढ़ंत कहानी रचा था मैं इसके बारे में भी नहीं जानता। लेकिन अपना घरेलू मिस्त्री होने के कारण इलेक्ट्रिशियन अरुण कुमार सिंह के द्वारा मदद माँगने पर मैं भी उनके साथ कथित अभियुक्त रविशंकर पाण्डेय के घर पर बीच-बचाव करने के लिए जरूर गया था। वहाँ जाते ही उसके अभिभावकों को ढूँढने पर रविशंकर पाण्डेय के द्वारा मुझे भी अपने घर से धक्के देतेहुए जिस तरह से भगाया गया था उससे मैं समझ गया था कि इस मामले में कुछ न कुछ सच्चाई जरूर है। जिसे आरोपित युवक अपने परिजनों से छुपाना चाह रहा है। 



आरोपित युवक की गिरफ्तारी के बाद केस उठाने के लि‍ए स्थानीय अपराधियों के द्वारा पीड़िता बच्ची के पिता पर दबाव बनाया जाने लगा था। इससे डर कर वह मेरे घर में छुप कर रह रहा था। पीड़ित बच्ची के पिता की मदद न करने के लिए जब मुझे भी स्थानीय अपराधियों के द्वारा धमकी दिया जाने लगा तब मैंने आरक्षी उपाधीक्षक से लेकर तत्कालीन आरक्षी अधीक्षक कुन्दन कृष्णन तक से पीड़ित युवती के परिवार को सुरक्षा दिलाने के साथ धमकी देने वाले अपराधियों की भी शिकायत दर्ज कराया था। उसके बाद अपराधियों की धमकी मिलना तो बन्द हो गया था लेकिन शरणागत की हर हाल में मदद करने की मेरी हठधर्मिता से बौखलाये मोतिहारी के एडीएम वशिष्ठ नारायण पाण्डेय जो आरोपित रविशंकर पाण्डेय का फूफा था, कुछ पुलिसकर्मियों के साथ सीविल ड्रेस में मेरे घर में आकर मुझे अरूण के मामले में हस्तक्षेप करने पर मनमाना केस लाद कर जिन्दगी बर्बाद करने की धमकी देने लगा था। 


जब एडीएम ने मुझसे कहा कि तुम्हारी औकात क्या है,
एक लाख रुपये तो हम रोज़ लेते हैं 

घर में लगे सीसीटीवी कैमरे में उसकी धमकियों की बातें औनलाइन रिकॉर्ड होने की सूचना देते हुए मैंने जैसे ही उसे अपने खानदान का परिचय दिया, वह ठण्डा होकर सुलह करवाने की बातें करते हुए चुपचाप लौट गया था। मुझे रविशंकर पाण्डेय से कोई दुश्मनी नहीं थी, मैं तो उसे जानता तक नहीं था। सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक नाबालिग लड़की के डरे-सहमे परिवार को शरण देकर मैंने कोई गुनाह नहीं किया था। इसके बावजूद खुद को जातियों में भी सबसे ऊँची जाति का बताते हुए एक एडीएम के द्वारा तीन थानों के पुलिस अधिकारियों के साथ मेरे घर में आकर मुझे धमकी देना अपमान जनक ही नहीं बल्कि अक्षम्य भी था। मैं भी कौशिक विश्वामित्र भगवान का वंशज हूँ। मेरे अन्दर भी मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा और फर्ज़न्द बहादुर महाराजा मान का रक्त बह रहा है। ऐसे में मेरा उस अभिमानी ब्राह्मण की धमकियों से डर जाना हमारे पुरखों का अपमान था। अतः मैने भी ठान लिया था कि पीड़ितों के परिजनों को आँच तक आने नहीं दूँगा। मैं इसके लिए एडीएम वशिष्ठ नारायण पाण्डेय के उस धमकी के कारण दृढ़ संकल्पित हो गया था जो आज भी मेरे कानों में गूँजती है। उसने कहा था कि "क्या औकात है तुम्हारी? एक लाख रुपये तो हम रोज़ रिश्वत लेते हैं। कुछ पैसे ले लो और केस खत्म कराओ।" 



जब अपराधियों का साथ देने से इंकार करने पर मुझे प्रान्तीय पदाधिकारियों के आदेश की अवमानना के आरोप में भाजपा से निष्कासित करने की धमकी मिली

अरूण कुमार सिंह की मदद करने से ज्यादा मेरा उद्देश्य एक अहंकारी और भ्रष्ट व्यक्ति को उसकी औकात दिखाना था। उसे यह बताना था कि सच्चाई के रास्ते पर चलने वाले की देर से ही सही मगर जीत जरूर होती है। वह केस मेरे लिए एक धर्म युद्ध बन गया था। ऐसे भी मैंने पीड़ित परिवार के द्वारा मदद माँगने पर ही उस मामले में हस्तक्षेप किया था। पीड़िता के पिता जदयू के नेता थे तो मैं भाजपा का नेता। भाजपा तकनीकी मंच, बिहार प्रदेश में कार्यकारिणी समिति के सदस्य सह पटना महानगर के जिला महामन्त्री होने के नाते भी मैं गठबन्धन के धर्म का निर्वहन कर रहा था। इस मामले की शिकायत अपने नेता सुशील कुमार मोदी और गिरीराज जी से करने पर जब वशिष्ठ नारायण पाण्डेय को निलम्बित कर दिया गया, तब जाकर मंगल पाण्डेय को पता चला कि जिस मामले में वह मेरा साथ दे रहा था, उस मामले का मुख्य अभियुक्त उसका भगिना ही है। इसकी सूचना मिलते ही कि मेरे हस्तक्षेप के कारण ही उसके भगिना की गिरफ़्तारी और उसके रिश्तेदार का निलम्बन हुआ है, भाजपा के प्रदेश महामंत्री गिरिराज सिंह से फोन करवा कर मुझे उस मामले से हट जाने की धमकी दिलवाया था। उस फोन के पहले मुझे भी इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि अभियुक्त रविशंकर पाण्डेय से मंगल पाण्डेय की कोई रिश्तेदारी है। यही बात यदि मंगल पाण्डेय ने बताया होता तो उस मामले को पारिवारिक विवाद की तरह सुलझाने का प्रयास अवश्य करता। लेकिन केस खत्म नहीं करवाने पर अंजाम भुगतने की धमकी और औकात को चुनौती देने की बात करने के कारण मैंने भी पीछे नहीं हटने की कसम खा ली थी। उसके बाद उस मामले को अपने केस की तरह देखने लगा था। इससे नाराज़ होकर भाजपा के मुख्य सचेतक सह कुम्हरार विधान सभा क्षेत्र के विधायक अरुण कुमार सिन्हा और बिहार भाजपा के तत्कालीन महामंत्री गिरीराज सिंह ने भी प्रान्तीय नेताओं के आदेश की अवमानना का आरोप लगाकर मुझे भाजपा से निष्कासित करने की धमकी तक दे डाला था। 

गिरिराज सिंह! जिन्हें मैं अपने सगे भाई से कम नहीं समझता था, उन्होंने मंगल पाण्डेय को खुश करने के लिए मुझे धमकी देते हुए कहा था कि "ज्यादा तिस्मार खां मत बनो। अभी इतने बड़े नेता नहीं बने हो कि जिसे चाहो उसे नचा दो। मंगल के भगिना को क्यों फँसा दिये हो?" बस इतना सुनना था कि मैं भी उन पर बिफर पड़ा था। मैैंने भी गरजते हुुए बोला था कि "आज मुुझे पता चला कि नेता का मतलब होता है जिसे चाहो उसे नचाने वाला? मैं नहीं जानता था कि आप भी ऐसे ही लोगों में शामिल हैं। वर्ना मैं आपके जैसे घटिया आदमी को कभी भइया नहीं कहता। मंत्रालय में आपको जगह नहीं मिला था तब यही सुनने के लिए क्या मैंने प्रदेश कार्यालय में हंगामा करवाया था? यदि मुझे आपके बारे में पता होता तो मैं इस मामले में पड़ता ही नहीं। लेकिन अब चाहे जो हो जाए मैं पीछे नहीं हटुंगा। आप बिहार में मनमानी कीजिएगा तो मैं दिल्ली में आपके खिलाफ़ आवाज़ उठाऊंगा। एक अपराधी की मदद करने के लिए किसी बेकसूर समाजसेवी को भाजपा में भी बली का बकरा बनाया जा सकता है, ऐसा मैंने नहीं सोचा था। लेकिन आपके जैसे लोग भी साधु यादव जैसा ही करेंगे, इसे देख कर मुझे खुद को भाजपायी कहने में शर्म आ रही है। जिस तरह आप मंगल के कहने पर मुझे धमकी दे रहे हैं, उसी तरह से मैं भी अपने पड़ोसी से मदद माँगने पर ही उसकी मदद कर रहा हूँ। लेकिन अब आपको जो उखाड़ना है उखाड़ लीजिए, मैं भी जीते-जी पीछे नहीं हटुंगा।"

रविशंकर पाण्डेय के विरूद्ध पटना जिलान्तर्गत अगमकुआँ थाना काण्ड संख्या 298/2006 के तहत दर्ज किये गये उस मामले को रफा-दफ़ा करवाने के लिए सत्ताधारी दल के प्रांतीय नेताओं ने फ़ायदा उठाकर पुलिस-अपराधी गठबन्धन का जमकर इस्तेमाल किया था। गिरिराज सिंह से धमकी मिलने के बाद स्थानीय चोर-पॉकेटमार जैसे लोग मुझे राह चलते केस खत्म करवाने की धमकी देने लगे तो घर में आकर और फोन कर-कर के भी मुझे धमकियां देते थे। मगर जन मुक्ति संघर्ष समिति नामक अपने संगठन के बेखौफ साथियों के बदौलत मैंने अपने सामने किसी की दाल नहीं गलने दिया। राजद समर्थित जिस बूथ लूटेरे ने मुझ पर बहादुरपुर हाउसिंग कॉलोनी में बमबारी करवाया था उसे अपना गिरोह छोड़ने के लिए मजबूर कर के एक रिटायर्ड कर्नल का ड्राइवर बनवा दिया तो जिसके इशारे पर मेरी हत्या करवाने की कोशिश की गई थी उसे साधु यादव के द्वारा ही आर्थिक नुकसान दिला कर राजद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था। राजद को वोट दिलाने वाले ठेकेदारों ने मुझ पर इसलिए हमला करवाया था क्योंकि मेरे रहते वे लोग मतदाताओं को वोट देने से नहीं रोक पाते थे। इसके बावजूद मुझे निशाना बना कर किये गये बमबारी में कई लोगों के जख्मी होने के बाद भी मेरे बाल-बाल बचने की सूचना पर पार्टी के स्तर पर कोई कारवाई करने के बजाए नामर्द विधायक अरुण कुमार सिन्हा ने मुझे अपने साथ लेकर दूसरे क्षेत्र में चला गया और मुझे कुछ दिनों के लिए गाँव चले जाने की सलाह देकर हमलावरों के विरुद्ध FIR तक दर्ज करवाने में मदद नहीं किया था। चुनाव परिणाम के बाद सत्ता में आते ही घटित इस घटना के कारण यही अरुण कुमार सिन्हा जिसके कारण मुझ पर एक ही दिन में तीन-चार बार जानलेवा हमला किया गया था, राजद नेताओं के द्वारा मामले को दबाने के लिए स्थानीय अगमकुआँ थाना के प्रभारी के द्वारा ही मीडिया कर्मियों को खुलेआम रुपये बांटे गए थे, उस विधायक ने मुझसे इस्तीफ़ा देने की माँग किया था। जबकि जिस व्यक्ति ने मुझ पर बमबारी करवाया था उसे भाजपा किसान मोर्चा की पटना महानगर का जिलाध्यक्ष बना कर सम्मानित किया था। ऐसे वफादार हैं बिहार भाजपा में हावी प्रांतीय नेता। ऐसे लोगों के कारण ही आम लोगों का भी भाजपा के ऊपर से विश्वास उठता जा रहा है। इसके अधिकांश जनप्रतिनिधियों को भी आम आदमी पसन्द नहीं करते हैं, मगर सिर्फ़ आरएसएस समर्थित उम्मीदवार होने के कारण न चाहते हुए भी मजबूर होकर वोट देते हैं। कुम्हरार में स्थित दाउद बिगहा के बूथ लूटेरों के इस मामले को तो दबा ही दिया गया था, लेकिन रिवाल्वर के बल पर जबरन विवाह करने के लिए एक नाबालिग लड़की को धमकी देने वाले भाजपा समर्थित अपराधी का मामला पटना से प्रकाशित होने वाले लगभग सभी प्रमुख अखबारों में प्रकाशित हुआ था।

अगमकुआँ थाना काण्ड संख्या 268/2006 के इस मामले की सूचना पटना से प्रकाशित होने वाले लगभग सभी प्रमुख अखबारों में दिनांक 02.08.2006 और 03.08.2006 को भी छपी थी। उस घटना के कुछ ही दिनों बाद बिहार की सत्ता से सटे पूंजीपति सवर्णों की टोली ने दिनांक 15.08.2006 को अपनी आजादी का जमकर जश्न मनाया। जबकी शरणागत की रक्षा करने के अपने क्षात्र धर्म को निभाने की कोशिश में शासन और प्रशासन द्वारा संरक्षित अपराधियों से बचने के लिए मुझे भूमिगत होना पड़ा था, जिसके कारण चारों ओर से दुश्मनों से बचने के लिए मुझ जैसे कर्तव्यनिष्व्ठ  क्रान्तिकारी के परिवार को 15 अगस्त को भी भूखे रहना पड़ा था। उस दिन मुझे विश्वास हो गया था कि इस देश में ग़रीब, ईमानदार और देशभक्त लोग नहीं बल्कि सिर्फ़ अमीर, बेईमान और धूर्त लोग ही आज़ाद हुए हैं। 

23.06.2010 दैनिक जागरण, पटना
समाजसेवा की यह सनक कुछ समय के लिए तब शान्त हो गया था जब अरूण कुमार सिंह नामक उस इलेक्ट्रिशियन ने मेरा साथ देनेे से इंकार कर दिया था जिसके कारण मैने अपने परििजनों से भी अधिक प्यारा भाजपा परिवार से नाता तोड़ कर मदद कििया था। जिस शरणागत की मदद करने की जिद में मैंने न सिर्फ़ भाजपायी मित्रों से सभी पुराने सम्बन्धों को त्याग कर राजनीति से सन्यास ले लिया था। अरुण कुमार सिंह नामक धूूर्त इलेक्ट्रिशियन ने मेरा उस समय साथ देने इंकार कर दिया था जब मुझे अचानक एक जमानतदार की जरूरत पड़ गयी थी। उस धूर्त ने मेरी मदद करने से इंकार करते हुए साफ़ कह दिया था कि "आप सक्षम थे तो मेरी मदद किये, लेकिन हम सक्षम नहीं हैं।" हालांकि बाद में मुझे भाजपा के उन पुराने साथियों को ही याद करना पड़ा था जिनका पुतला दहन कर के मैने राजनीति से सन्यास लिया था। वे मददगार थे बिहार के उपमुख्यमंत्री माननीय सुशील कुमार मोदी जी। उन्होंने सिर्फ़ एक फोन पर ही मेरी मदद की थी, वह भी उस स्थिति में जब मैंने मोदी जी का ही पुतला दहन कर के भाजपा से नाता तोड़ लिया था। लेकिन जिस दिन एक फोन पर ही मोदी जी ने मेरी मदद की थी, उस दिन मुझे यकीन हो गया था कि मैंने भाजपा कार्यालय में जाना भले ही छोड़ दिया था लेकिन मेरी आत्मा भाजपा के साथ जुड़ी हुई थी। न तो मैंने भाजपा को छोड़ा था और न ही मोदी जी ने मेरा परित्याग किया था। यह तो मोदी जी की महानता थी कि उन्होंने नकारात्मक बातों को भुला कर के संकट में फँसे हुए एक भाई की तरह मेरी मदद की थी। इनके जैसे व्यवहार वाले नेता बिहार में दूसरा कोई नहीं है। वाकई में बिहार के गौरव हैं सुशील कुमार मोदी जी। जिस दिन मेरे एक कॉल मात्र से इन्होंने मुझे नालन्दा के एसपी के चंगुल से मुक्त करवाया था, उसी दिन मुझे विश्वास हो गया था कि असली परिवार वही है जो बूरे समय में साथ देता है। अतः गैरों के लिए अपने परिवार से भूल कर भी सम्बन्ध खराब नहीं करना चाहिए। 


एक इलेक्ट्रिशियन की नाबालिग लड़की को अपहृत करने की धमकी देने वाले व्यक्ति का विरोध करने के कारण मेरे क्षेत्रिय विधायक अरुण कुमार सिन्हा, भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेश महामन्त्री मंगल पाण्डेय और बिहार भाजपा के प्रदेश महामन्त्री गिरिराज सिंह से मेरा सम्बन्ध इतना खराब हो गया था कि मेरे लिए किसी भी स्थिति में इन लोगों के साथ बैठना मुझे अपमानजनक लगने लगा था। इसके कारण न चाहते हुए भी मैं खुदको भाजपा से दूर करता गया और मन को अन्य कामों में रमाये रखने के लिए सहारनपुर से प्रकाशित होने वाले भाष्कर दर्शन नामक एक साप्ताहिक अखबार में पटना ग्रामीण के अपराध संवाददाता के रूप में जुड़ कर पत्रकारिता का अपना पुराना काम पुनः शुरू कर दिया था। 2004 में मेरे द्वारा ही गठित किया गया संगठन जन मुक्ति संघर्ष समिति तो मेरे साथ था ही। यदा-कदा उसके भी कार्यक्रम करवाते हुए खाली समय में शोषित और पीड़ित लोगों की मदद करता था। 

जन विरोधी योजनाओं के कारण बढ़ते पुलिसिया गुण्डागर्दी के खिलाफ़
आवाज़ उठातेे जन मुक्ति संघर्ष समिति के कार्यकर्ता


पहले तो बहादुरपुर हाउसिंग कॉलोनी से गरीब-गुरबों को बेघर करने की कोशिश फिर फुटपाथ पर भी दुकान लगाने से रोके जाने के खिलाफ़ विचार गोष्ठी में शामिल समिति के अध्यक्ष प्रसेनजित सिंह 



अवामी पार्टी, बिहार के प्रधान महासचिव के रूप में कार्यकर्ता
सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए समाजसेवी प्रसेनजित सिंह मुन्ना



इसी बीच एक दिन विश्वमोहन चौधरी नामक अपने मित्र की जिद पर मुझे पटना के कालीदास रंगालय नामक कम्युनिटी हॉल में आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल होना पड़ा। जहां आवामी पार्टी नामक एक राजनीतिक संगठन के कार्यक्रम में आयोजित एक सभा को सम्बोधित करते हुए मैं "सुशासन की आड़ में कुशासन का खेल" विषयक अपना व्याख्यान दे रहा था, तब संयोगवश सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता और अवामी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी उस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। मेरे सम्भाषण से प्रभावित होकर उन्होंने उसी समय मुझे अपनी पार्टी में बिहार प्रदेश के प्रधान महासचिव घोषित कर के पटना से चुनाव लड़ने का निमंत्रण दे दिए। उसके बाद अवामी पार्टी में बिहार के प्रधान महासचिव की हैसियत से पटना के कालीदास रंगालय में कार्यकर्ता सम्मेलन का आयोजन कर के गरीबी और बेरोजगारी के कारण अपनी ही जाति के सम्पन्न लोगों के द्वारा शोषित हो रहे सवर्णों को गरीबी आधारित आरक्षण दिलवाने के लिए मैंने सवर्ण फैंस क्लब नामक एक सामाजिक मंच की आधारशीला रखा था। इसके संरक्षक अवामी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता सैय्यद मुशीर अहमद थे। 

दायीं ओर से क्रमशः अवामी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैय्यद मुशीर अहमद, बिहार के
प्रदेश प्रभारी बादल खान तथा प्रधान महासचिव प्रसेनजित सिंह मुन्ना